Sunday, February 14, 2010

शकुन्तला का प्रेमपत्र दुष्यन्त के नाम - वेलेंटाइन डे स्पेशल

मेरे अनुरागी दुष्यन्त!

पिछले वर्ष वेलेंटाइन डे के दिन तुमने मुझे यह लाल गुलाब दिया था तभी से आँखें बंद करती हूँ तो तुम सामने नजर आते हो। आँखें खोलती हूँ तब भी तुम मेरे सामने रहते हो। तुम्हारा मुखड़ा, तुम्हारी आँखें, तुम्हारी मुस्कुराहट मैं एक पल भी नहीं भूल पाती। रात में सब सो जाते हैं लेकिन मुझे नींद नहीं आती। छटपटाते रहती हूँ। तकिये में मुँह छुपा लेती हूँ। मुझे लगता है तकिया ही तुम्हारा विशाल सीना है जहाँ मैं सदैव के लिये समा गई हूँ।

आज हमारे मिलन को एक वर्ष पूर्ण हो चुके हैं। इस दौरान हम दोनों कितने ही बार मुँह में रूमाल बाँध कर लांग ड्राइव्ह में गये हैं और किसी ने भी हमें पहचाना तक नहीं। किन्तु पिछले कई दिनों से तुमने मुझे मेरे मोबाइल पर कॉल भी नहीं किया है। आज फिर से वेलेंटाइन डे आ गया है और मैं तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही हूँ किन्तु तुम्हारा कहीं भी पता नहीं लग रहा है। मुझे भय लग रहा है कहीं आज तुम किसी और को लाल गुलाब देने के लिये तो नहीं चले गये हो। कहीं तुमने महाभारत कालीन दुष्यन्त की तरह से मुझ शकुन्तला को भुला दिया तो मेरे गर्भ में पलते भरत का क्या होगा। क्या मेरी माता मेनका मुझे कश्यप ऋषि के पास आज भी छोड़ेगी?

जल्दी ही आ जाओ। आने के पहले मोबाइल कर देना ताकि मैं अपने मुँह पर रूमाल बाँधकर तुम्हारे साथ हमेशा हमेशा के लिये चले जाने के लिये तैयार रहूँ।

कहीं ऐसा न हो जाये किः

नजर को जगंल नही अब मकान मिलते हैं
अब हवा मे यहां बि्जली के तार हिलते हैं
प्यार मे पागल यहां आ गयी है शकुंतला
सड़क पर चलते हुए उसके पाँव छिलते हैं

(उपरोक्त पंक्तियाँ ललित शर्मा के सौजन्य से)

सिर्फ तुम्हारी
शकुन्तला

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"संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" में आज पढ़ें

लंका में सीता की खोज - सुन्दरकाण्ड (3)

15 comments:

Anil Pusadkar said...

गज़ब लिखा अवधिया जी।इसी को आजकल फ़्यूज़न कहते हैं शायद्।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

बहुत बढ़िया. शकुन्तला का संदर्भ लेकर अच्छा कटाक्ष किया है.

घटोत्कच said...

गज़ब लिखा अवधिया जी।इसी को आजकल कनफ़्यूज़न कहते हैं शायद्।

जोहार ले

कविता रावत said...

Vartman ko udghatik karti Bahut prastuti....

डॉ टी एस दराल said...

आजकल तो यही हो रहा है।
वैलेंटाइन यानि गारमेंट्स , पुराना हो गया तो बदल डालो।

रचना दीक्षित said...

बदलाव ही जीवन है

Anonymous said...

आजकल की बातें

बी एस पाबला

राज भाटिय़ा said...

कलयुग की शकुन्तला या दुष्यंत, लेकिन हो यही रह है, मुंह पर रुमाल रख के

मनोज कुमार said...

बेहतरीन। लाजवाब।

स्वप्न मञ्जूषा said...

ghazab ki chitthi hai...
laailaaz..ha ha ha

विजय तिवारी " किसलय " said...

अच्छा व्यंग्य
- विजय

दीपक 'मशाल' said...

sachmuch aaj ki shakuntla yahi likhegee.. khoob likha

अजित गुप्ता का कोना said...

वाह लाल गुलाब के फूल का परिणाम फूल सा लाल। क्‍य कहने, जय वेलेन्‍टाइन संत।

rashmi ravija said...

बहुत ही चुटीला व्यंग है ...आजकल की स्थितियों पर..

राज भाटिय़ा said...

अवधिया जी आप की बात से सहमत हुं