Saturday, August 29, 2009

अब्लोगस्य कुतो मित्रम्, अमित्रस्य कुतो सुखम्

जैसा कि निम्न श्लोक में कहा गया है कि मित्र के बिना सुख कहाँ? और धन के बिना मित्र कहाँ?

अलसस्य कुतो विद्या, अविद्यस्य कुतो धनम्।
अधनस्य कुतो मित्रम्, अमित्रस्य कुतो सुखम्॥

अर्थात् आलसी के पास विद्या कहाँ? विद्या के बिना धन कहाँ? धन के बिना मित्र कहाँ? और मित्र के बिना सुख कहाँ?

यदि इस श्लोक की रचना के जमाने में ब्लोग होते तो श्लोककर्ता ने "अधनस्य कुतो मित्रम्" के स्थान पर "अब्लोगस्य कुतो मित्रम्" ही लिखा होता क्योंकि धन की सहायता से प्राप्त मित्र सच्चे मित्र हो भी सकते हैं और नहीं भी हो सकते किन्तु ब्लोग के द्वारा सच्चा मित्र ही प्राप्त होता है।

पर अपने लिए तो गाहे बगाहे ये समस्या आती ही रहती है भैयाः

खूब खपाई खोपड़ी, औ खुद खप गए यार।
लिख ना पाए आज कुछ, हम ब्लोगर बेकार॥
हम ब्लोगर बेकार, थक कर अब सिर धुनते हैं।
जाने कैसे लोग, प्रविष्टि-पुष्प चुनते हैं?
बुद्धि हो गई भ्रष्ट, आज तो गए हम ऊब।
लिख ना पाये यार, खपाई खोपड़ी खूब॥

Thursday, August 27, 2009

हिन्दी ब्लोग्स में हिज्जों और व्याकरण की गलतियाँ

यह खुशी की बात है कि हिन्दी ब्लोग्स की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। नित नये नये लोग हिन्दी ब्लोगर्स बनते जा रहे हैं। पर जब कभी भी हिन्दी ब्लोग्स में "हम मुर्ख हैं", "बातें कि जाये" आदि पढ़ता हूँ तो मन क्षोभ से भर उठता है। अंग्रेजी के ब्लोग्स तथा वेबसाइट्स में इस बात का पूरा पूरा ध्यान दिया जाता है कि हिज्जों और व्याकरण की गलतियाँ न रह जायें और इसीलिए वहाँ पर ढूँढने से भी गलतियाँ नहीं मिलती।

यह सही है कि सभी हिन्दी ब्लोगर्स की मुख्य भाषा हिन्दी नहीं है इसलिए हिज्जों और व्याकरण की गलतियाँ होनी तो स्वाभाविक ही है। मगर कई बार उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे हिन्दीभाषी क्षेत्र के ब्लोग्स में भी हिज्जे और व्याकरण की गलतियाँ मिलती हैं। इसका मुख्य कारण सिर्फ यही लगता है कि हम हिन्दीभाषी ब्लोगर्स अपनी प्रविष्टियाँ आनन फानन में बिना जाँचे ही प्रकाशित कर देते हैं। यदि हम अपनी प्रविष्टियाँ प्रकाशित करने के पहले एक बार उसे पढ़ लें तो इस प्रकार की गलतियाँ हो ही नहीं सकती।

हिन्दी को इंटरनेट की प्रमुख भाषाओं में से एक बनाने के लिए हमें उसकी गुणवत्ता पर पूरा पूरा ध्यान रखना ही होगा। इसके लिए हम सभी हिन्दी ब्लोगर्स को संकल्प लेना होगा कि अपनी प्रविष्टि प्रकाशित करने के पूर्व हम सुनिश्चित हो जाएँ कि कहीं कोई हिज्जे या व्याकरण की गलती तो नहीं रह गई है।

Wednesday, August 26, 2009

लिखना कोई बड़ी बात नहीं है, बड़ी बात है उसे लोगों को पढ़वाना

अब अगर कोई ब्लोगर है तो लिखेगा ही। आखिर लिखना कौन सी बड़ी बात है? बड़ी बात तो है लिखे हुए को पढ़वाना। क्या मतलब हुआ लिखने का यदि किसी ने पढ़ा ही नहीं? असली मेहनत तो अपने लिखे को दूसरों को पढ़वाने में लगती है। बड़ी माथा-पच्ची करनी पड़ती है। पाठक जुटाना कोई हँसी खेल नहीं है। ढूँढ-ढूँढ कर सैकड़ों ई-मेल पते इकट्ठे करने होते हैं। लिखने के बाद सभी को ई-मेल से सूचित करना पड़ता है कि मेरा ब्लोग अपडेट हो गया है।

अब आप पूछेंगे कि जब एग्रीगेटर्स आपके लेख को लोगों तक पहुँचा ही देते हैं तो फिर मेल करने की जरूरत क्या है? तो जवाब है - भाई कोई जरूरी तो नहीं है कि सभी लोग एग्रीगेटर्स को देख रहें हों और मानलो देख भी रहें हों तो आपके लेख को मिस भी तो कर सकते हैं। इसलिए जरूरी है कि लोगों को मेल करो।

अब अगर आप कहेंगे कि यदि लेख अच्छा होगा तो लोग पढ़ेंगे ही, चाशनी टपकाओगे तो चीटियाँ तो अपने आप आयेंगी। इसके जवाब में मैं बताना चाहूँगा कि आप पाठकों की नब्ज नहीं पहचानते। आप नहीं जानते कि ये पाठक बड़े विचित्र जीव होते हैं, कुछ भी ऊल-जलूल चीजों को तो पढ़ लेते हैं पर अच्छे लेखों की तरफ झाँक कर देखते भी नहीं। पर पाठकों को अच्छे लेख पढ़वाना हमारा नैतिक कर्तव्य है इसलिए मेल करके उनका ध्यान खींचो, उन्हें सद्‍बुद्धि दो और सही रास्ते पर लाओ।

भाई, ई-मेल तो फोकट में होता है पर जब ई-मेल का जमाना नहीं था तो हमारे कवि मित्र और गुरु लोगों को फोन से अपनी कविता सुनाया करते थे। एक बार जब मैं उनके यहाँ पहुँचा तो वे फोन में कह रहे थे - वर्षा-वर्णन पर मेरी ताजी कविता सुनें, इतना अच्छा लिखा है कि सुनकर आप तुलसीदास जी का "शरद् वर्णन" और "सेनापति" का "ऋतु वर्णन" भूल जायेंगे। तो सुनिये - "बारिश हुई, मेढक टर्राया, सड़कों में भी पानी भर आया ...." दूसरी ओर से आवाज आई - बकवास बन्द कर साले और बता मेरा फोन नंबर तुझे किसने दिया? गुरु बोले - मैं तो अपनी हर कविता लिखने के तत्काल बाद ही फोन में कुछ भी नंबर घुमा देता हूँ और जिसे लग जाए उसे अपनी कविता सुना देता हूँ।

खैर, मुझे तो अपनी उम्र का भी लाभ मिलता है और कुछ पाठक वैसे ही मिल जाते हैं क्योंकि लोग सोचते हैं - वयोवृद्ध ब्लोगर ने लिखा है अवश्य पढ़ना चाहिये (अब मैं तो स्वयं को वयोवृद्ध ही कहूँगा ना भले ही यह अलग बात है कि लोग सोचते हैं कि आज साले बुड़्ढे ने भी लिखा है चलो एक नजर डाल ही लें)। फिर भी मैंने हजारों ई-मेल पते संग्रह कर रखे हैं और उनके द्वारा सभी को अपने लेख के बारे में सूचित करता हूँ। यदि आपको भी कभी मेरा मेल मिल जाए तो आपसे गुजारिश हैं कि न तो उसे मिटाइयेगा और न ही उसका बुरा मानियेगा।

Sunday, August 23, 2009

तीजा - छत्तीसगढ़ की महिलाओं का विशिष्ट दिन

आज भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की तृतीया है - अर्थात् हरतालिका तीज, जिसे कि छत्तीसगढ़ में "तीजा" कहा जाता है। आज का दिन छत्तीसगढ़ की महिलाओं के लिए एक विशिष्ट दिन है। समस्त महिलाएँ, चाहे वे कुमारी हों या विवाहित, आज निर्जला व्रत रख कर रात्रि जागरण और गौरी-शंकर की पूजा करेंगी। व्रत-पूजा करके जहाँ विवाहित महिलाएँ अपने लिये अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं वहीं कुमारियों का उद्देश्य होता है स्वयं के लिये योग्य वर की प्राप्ति। मान्यता है कि आज के दिन ही शिव-पार्वती का विवाह हुआ था।

छत्तीसगढ़ में तीजा व्रत की अत्यधिक मान्यता है। इस व्रत को मायके में ही आकर रखा जाता है। यदि किसी कारणवश मायके आना नहीं हो पाता तो भी व्रत तोड़ने के लिये मायके से जल और फलाहार का आना आवश्यक होता है क्योंकि इस व्रत को मायके के ही जल पीकर तोड़ा जाता है।

महिलाएँ रात भर जागरण करके भजन-पूजन करती हैं और भोर होने के बाद अपना व्रत तोड़ती हैं।

रात्रि के इस उल्लास के साथ दूसरे दिन विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश जी का आगमन द्विगुणित कर देता है।

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