जिस प्रकार से टीवी चैनल्स वाले सीरियल्स बनाते समय इस बात का पूरा-पूरा ध्यान रखते हैं कि उनके दर्शक क्या देखना चाहते हैं, उसी प्रकार से एक ब्लोगर को भी इस बात का ध्यान रखना, कि उसके पाठक क्या पढ़ना चाहते हैं, निहायत ही जरूरी है। वास्तव में आपकी लिखी सामग्री (content) ही पाठकों को खींच कर आपके ब्लॉग में लाती है। अंग्रेजी में तो कहा जाता हैः
'Content is king.'
अर्थात्, यदि हिन्दी में कहें तो, "सामग्री ही साम्राज्ञी है।"
किन्तु हममें से अधिकांश हिन्दी ब्लोगर वह लिखते हैं जो उन्हें पसंद है, किन्तु यह जरूरी नहीं है कि एक व्यक्ति की पसंद सभी लोगों को भी पसंद आए। कई बार तो हम यह सोच कर भी लिख देते हैं कि कुछ न कुछ तो लिखना है। अब आप ही बताइए कि इस प्रकार के उद्देश्यहीन लेखन को क्या पाठक पसंद कर सकता है? फिर ऐसे लेखन का क्या फायदा जिसे कि कोई पढ़े ही नहीं। यह तो वही बात हुई कि जंगल में मोर नाचा किसी ना देखा।
तो आइए जानने की कोशिश करें कि पाठक क्या चाहता है?
वास्तव में पाठक सन्तुष्टि चाहता है। वह चाहता है कि उसे घिसी पिटी चीज पढ़ने को न मिले। उसने जो कुछ भी पढ़ा है उससे उसे कुछ नई जानकारी मिली है, उसके ज्ञान में कुछ वृद्धि हुई है। यदि पाठक ऐसे लेख को पढ़ता है जिसे पढ़कर उसे कुछ भी प्राप्त नहीं होता तो उसे क्षोभ होता है और जिस ब्लॉग में उसे ऐसी सामग्री पढ़ने को मिली है उस ब्लॉग से वह कन्नी काट लेता है। इसके विपरीत यदि उसे किसी ब्लॉग की सामग्री को पढ़कर कुछ नयापन मिले, उसे सन्तुष्टि हो तो वह उस ब्लॉग का चाहने वाला बन जाता है। याद रखिए कि पाठक को उसके पसंद की सामग्री मिलेगी तो वह उसे अवश्य ही पढ़ेगा।
एक बात यह भी है कि पाठक हमेशा नई-नई जानकारी चाहता है और ऐसे में एक बहुत बड़ा प्रश्न उठता है कि आखिर रोज रोज आखिर नई जानकारी लायें कहाँ से?
यह यक्षप्रश्न है कि आखिर रोज हम अपनी सामग्री में कहाँ से नयापन लायें? सच्चाई भी यही है कि हम हमेशा नई जानकारी नहीं प्राप्त कर सकते। पर हाँ किसी पुरानी जानकारी को ऐसी शैली में प्रस्तुत कर सकते हैं कि उसमें नयापन झलकने लगे। प्रायः सभी सफल लेखक यही करते हैं और इस प्रकार के प्रस्तुतीकरण को पाठक भी पसंद करते हैं।
कभी कभी ऐसा भी हो जाता है कि हम पाठकों को ऐसी सामग्री देना चाहते हैं जिनके विषय में हम जानते हैं कि यह उनके लिये हितकारी है किन्तु उनकी रुचि के अनुरूप नहीं है। ऐसी स्थिति में आप अपने लेख को इस चतुराई से (tactfully) लिखें कि पाठक को वह सुरुचिपूर्ण लगे। मतलब यह कि कड़वी दवा के ऊपर शक्कर की परत।
किन्तु इस बात का भी विशेष ध्यान रखना है अच्छी बातों की अपेक्षा बुरी बातें लोगों को अधिक आकर्षित करती हैं और इसी कारण से अश्लीलता और फूहड़ता अधिकांश पाठकों को आसानी के साथ आकर्षित कर लेती हैं। लोगों की इसी मनोवृति का फायदा उठाते हुए आज के अधिकांश टीवी चैनल्स अपने दर्शकों को, "जोई रोगी भावै सोई बैद बतावै" के तर्ज पर, धड़ल्ले के साथ अश्लीलता और फूहड़ता परस रहे हैं। उन्हें इस बात से कुछ भी सरोकार नहीं है कि ऐसा करने से समाज और देश का कितना अहित हो रहा है, उन्हें तो सिर्फ अपने टीआरपी बढ़ा कर अधिक से अधिक विज्ञापन बटोरने का ही ध्यान रहता है। पर हमें ऐसा कतइ नहीं करना है। हमें तो ऐसे पोस्ट लिखना है जो लोगों में जागरूकता पैदा करे और समाज तथा देश का हित करे।
Thursday, April 28, 2011
Wednesday, April 27, 2011
तुम दूर भी हो, तुम पास भी हो - गीत
(स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित कविता)
तुम दूर भी हो, तुम पास भी हो;
मुझे निराश सदा तुम करती,
फिर भी तुम मेरी आश ही हो,
तुम दूर भी हो, तुम पास भी हो।
उत्कण्ठा में आकुल मैं तो,
चिरप्रतीक्षा के क्षण गिनता हूँ;
किन्तु नहीं आते हो जब तुम,
सपनों में तुमसे मिलता हूँ;
तुम तो मेरा जीवन हो,
तुम ही मेरी श्वाँस भी हो,
तुम दूर भी हो, तुम पास भी हो।
मिलने की घड़ियाँ कब आवेंगी?
दिन-रात यही सोचा करता हूँ;
पर न मिलन जब होता है तो,
ठंडी ठंडी आहें भरता हूँ;
तुमने मुझको बांधा है, तुम मेरी उलझन हो,
फिर भी तुम मेरी पाश ही हो,
तुम दूर भी हो, तुम पास भी हो।
तुमसे मेरे जीवन में स्पन्दन है,
नस नस में तुम छाये रहते हो;
पल भर भी भूल न पाता तुमको,
जाने किस जादू में भरमाये रहते हो;
तुम ही मेरे जीवन के रक्षक-
तुम ही मेरी नाश भी हो,
तुम दूर भी हो, तुम पास भी हो।
देख न पाता हूँ जब तुमको,
ऐंठन मन में होती है;
तुम्हें सामने जब पाता हूँ,
जगी वेदना सोती है;
तुम ही मेरी दुनिया हो,
मेरे जीवन का विश्वास भी हो,
तुम दूर भी हो, तुम पास भी हो।
आओ दो से एक बनें हम,
हिलमिल दोनों खो जायें;
मैं मैं न रहूँ, और तुम न रहो तुम,
सरिता-सागर हो जायें;
धड़कन तेरे दिल की बन जाउँ,
तुम तो मेरी श्वाँस ही हो,
तुम दूर भी हो, तुम पास भी हो।
(रचना तिथिः शनिवार 31-01-1981)
तुम दूर भी हो, तुम पास भी हो;
मुझे निराश सदा तुम करती,
फिर भी तुम मेरी आश ही हो,
तुम दूर भी हो, तुम पास भी हो।
उत्कण्ठा में आकुल मैं तो,
चिरप्रतीक्षा के क्षण गिनता हूँ;
किन्तु नहीं आते हो जब तुम,
सपनों में तुमसे मिलता हूँ;
तुम तो मेरा जीवन हो,
तुम ही मेरी श्वाँस भी हो,
तुम दूर भी हो, तुम पास भी हो।
मिलने की घड़ियाँ कब आवेंगी?
दिन-रात यही सोचा करता हूँ;
पर न मिलन जब होता है तो,
ठंडी ठंडी आहें भरता हूँ;
तुमने मुझको बांधा है, तुम मेरी उलझन हो,
फिर भी तुम मेरी पाश ही हो,
तुम दूर भी हो, तुम पास भी हो।
तुमसे मेरे जीवन में स्पन्दन है,
नस नस में तुम छाये रहते हो;
पल भर भी भूल न पाता तुमको,
जाने किस जादू में भरमाये रहते हो;
तुम ही मेरे जीवन के रक्षक-
तुम ही मेरी नाश भी हो,
तुम दूर भी हो, तुम पास भी हो।
देख न पाता हूँ जब तुमको,
ऐंठन मन में होती है;
तुम्हें सामने जब पाता हूँ,
जगी वेदना सोती है;
तुम ही मेरी दुनिया हो,
मेरे जीवन का विश्वास भी हो,
तुम दूर भी हो, तुम पास भी हो।
आओ दो से एक बनें हम,
हिलमिल दोनों खो जायें;
मैं मैं न रहूँ, और तुम न रहो तुम,
सरिता-सागर हो जायें;
धड़कन तेरे दिल की बन जाउँ,
तुम तो मेरी श्वाँस ही हो,
तुम दूर भी हो, तुम पास भी हो।
(रचना तिथिः शनिवार 31-01-1981)
Tuesday, April 26, 2011
जब हिन्दी के ब्लोगर झूमेंगे
सपने देखने का अधिकार तो सभी को है और इस अधिकार का प्रयोग करते हुए मैं भी सपने देखता हूँ, सपने में देखता हूँ अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओं के ब्लोगर के जैसे हिन्दी के ब्लोगर भी खुशहाल हैं, मस्ती में झूम रहे हैं। अन्य ब्लोगरों को अपने ब्लोग से कमाई का लालच हो, न हो, मुझे तो है। इसलिए अपने सपने में ब्लोगरों की अपने ब्लोग से कमाई होते हुए भी देखता हूँ। कामना करने लगता हूँ कि एडसेंस तथा अन्य विज्ञापनों से हिन्दी ब्लोग्स के द्वारा भी कमाई हो।
किन्तु यह भी जानता हूँ कि सपने देखना आसान है और उन सपनों को साकार कर लेना बहुत ही मुश्किल! किसी ने सच ही कहा है -
Dreams are not the ones which come when you sleep, but they are the ones which will not let you sleep.
अर्थात् सपने वो नहीं होते जिन्हें आप सोते हुए देखते हैं, बल्कि सपने वो होते हैं जो आपकी नींद गायब कर देते हैं।
ब्लोगरों को झूमते हुए देखने का यह सपना मुझसे बरबस कहलवाता है -
इन 'हिन्दी ब्लोग के पोस्टों' से, जब रात का आँचल ढलकेगा
जब 'गूगल' का दिल पिघलेगा, जब 'डॉलर' का सागर छलकेगा
जब हिन्दी के ब्लोगर झूमेंगे, और एडसेंस रकम बरसायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी
जिस सुबह की खातिर जुग-जुग से, ब्लोगर मरते-जीते हैं
जिस सुबह के अमृत की धुन में, वे जहर के प्याले पीते हैं
इन मेहनतकश चिट्ठाकारों पर, इक दिन तो करम फर्मायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी
माना कि अभी इन हिन्दी के, 'पोस्टों' की कीमत कुछ भी नहीं
मिट्टी का भी है कुछ मोल मगर, चिट्ठाकारों की कीमत कुछ भी नहीं
चिट्ठाकारों के मेहनत को इक दिन जब, सिक्कों में ही तोली जायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी
जब हिन्दीगण 'चैटिंग' छोड़ेंगे, 'एडल्ट साइट्स' से नाता तोड़ेंगे
जब ज्ञान-पिपासा जागेगी, जब ब्लोग्स से नाता जोड़ेंगे
हिन्दी पाठकों की संख्या, बढ़ती और बढ़ती जायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी
बीतेंगे कभी तो दिन आख़िर, ये फोकट के लाचारी के
टूटेंगे कभी तो बुत आख़िर, अंग्रेजी की इजारादारी के
जब हिन्दी की अनोखी दुनिया की बुनियाद उठाई जायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी
(महान शायर साहिर लुधियानवी से क्षमायाचना सहित।)
उपरोक्त पैरोडी का मूल है साहिर लुधियानवी की ये रचनाएँ -
वो सुबह हमीं से आयेगी
जब धरती करवट बदलेगी, जब क़ैद से क़ैदी छूटेंगे
जब पाप घरौंदे फूटेंगे, जब ज़ुल्म के बन्धन टूटेंगे
उस सुबह को हम ही लायेंगे, वो सुबह हमीं से आयेगी
वो सुबह हमीं से आयेगी
मनहूस समाजों ढांचों में, जब जुर्म न पाले जायेंगे
जब हाथ न काटे जायेंगे, जब सर न उछाले जायेंगे
जेलों के बिना जब दुनिया की, सरकार चलाई जायेगी
वो सुबह हमीं से आयेगी
संसार के सारे मेहनतकश, खेतो से, मिलों से निकलेंगे
बेघर, बेदर, बेबस इन्सां, तारीक बिलों से निकलेंगे
दुनिया अम्न और खुशहाली के, फूलों से सजाई जायेगी
वो सुबह हमीं से आयेगी
और
वो सुबह कभी तो आयेगी
इन काली सदियों के सर से, जब रात का आंचल ढलकेगा
जब दुख के बादल पिघलेंगे, जब सुख का सागर छलकेगा
जब अम्बर झूम के नाचेगा, जब धरती नज़्में गायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी
जिस सुबह की खातिर जुग-जुग से, हम सब मर-मर कर जीते हैं
जिस सुबह के अमृत की धुन में, हम जहर के प्याले पीते हैं
इन भूखी प्यासी रूहों पर, इक दिन तो करम फर्मायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी
माना कि अभी तेरे मेरे, अरमानों की कीमत कुछ भी नहीं
मिट्टी का भी है कुछ मोल मगर, इन्सानों की कीमत कुछ भी नहीं
इन्सानों की इज्जत जब झूठे, सिक्कों में न तोली जायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी
दौलत के लिये जब औरत की, इस्मत को न बेचा जायेगा
चाहत को न कुचला जायेगा, ग़ैरत को न बेचा जायेगा
अपनी काली करतूतों पर, जब ये दुनिया शर्मायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी
बीतेंगे कभी तो दिन आख़िर, ये भूख के और बेकारी के
टूटेंगे कभी तो बुत आख़िर, दौलत की इजारादारी के
जब एक अनोखी दुनिया की बुनियाद उठाई जायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी
मजबूर बुढ़ापा जब सूनी, राहों की धूल न फांकेगा
मासूम लड़कपन जब गंदी, गलियों में भीख न मांगेगा
ह़क मांगने वालों को जिस दिन, सूली न दिखाई जायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी
फ़ाको की चिताओं पर जिस दिन, इन्सां न जलाये जायेंगे
सीनों के दहकते दोज़ख में, अर्मां न जलाये जायेंगे
ये नरक से भी गन्दी दुनिया, जब स्वर्ग बनाई जायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी
किन्तु यह भी जानता हूँ कि सपने देखना आसान है और उन सपनों को साकार कर लेना बहुत ही मुश्किल! किसी ने सच ही कहा है -
Dreams are not the ones which come when you sleep, but they are the ones which will not let you sleep.
अर्थात् सपने वो नहीं होते जिन्हें आप सोते हुए देखते हैं, बल्कि सपने वो होते हैं जो आपकी नींद गायब कर देते हैं।
ब्लोगरों को झूमते हुए देखने का यह सपना मुझसे बरबस कहलवाता है -
इन 'हिन्दी ब्लोग के पोस्टों' से, जब रात का आँचल ढलकेगा
जब 'गूगल' का दिल पिघलेगा, जब 'डॉलर' का सागर छलकेगा
जब हिन्दी के ब्लोगर झूमेंगे, और एडसेंस रकम बरसायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी
जिस सुबह की खातिर जुग-जुग से, ब्लोगर मरते-जीते हैं
जिस सुबह के अमृत की धुन में, वे जहर के प्याले पीते हैं
इन मेहनतकश चिट्ठाकारों पर, इक दिन तो करम फर्मायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी
माना कि अभी इन हिन्दी के, 'पोस्टों' की कीमत कुछ भी नहीं
मिट्टी का भी है कुछ मोल मगर, चिट्ठाकारों की कीमत कुछ भी नहीं
चिट्ठाकारों के मेहनत को इक दिन जब, सिक्कों में ही तोली जायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी
जब हिन्दीगण 'चैटिंग' छोड़ेंगे, 'एडल्ट साइट्स' से नाता तोड़ेंगे
जब ज्ञान-पिपासा जागेगी, जब ब्लोग्स से नाता जोड़ेंगे
हिन्दी पाठकों की संख्या, बढ़ती और बढ़ती जायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी
बीतेंगे कभी तो दिन आख़िर, ये फोकट के लाचारी के
टूटेंगे कभी तो बुत आख़िर, अंग्रेजी की इजारादारी के
जब हिन्दी की अनोखी दुनिया की बुनियाद उठाई जायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी
(महान शायर साहिर लुधियानवी से क्षमायाचना सहित।)
उपरोक्त पैरोडी का मूल है साहिर लुधियानवी की ये रचनाएँ -
वो सुबह हमीं से आयेगी
जब धरती करवट बदलेगी, जब क़ैद से क़ैदी छूटेंगे
जब पाप घरौंदे फूटेंगे, जब ज़ुल्म के बन्धन टूटेंगे
उस सुबह को हम ही लायेंगे, वो सुबह हमीं से आयेगी
वो सुबह हमीं से आयेगी
मनहूस समाजों ढांचों में, जब जुर्म न पाले जायेंगे
जब हाथ न काटे जायेंगे, जब सर न उछाले जायेंगे
जेलों के बिना जब दुनिया की, सरकार चलाई जायेगी
वो सुबह हमीं से आयेगी
संसार के सारे मेहनतकश, खेतो से, मिलों से निकलेंगे
बेघर, बेदर, बेबस इन्सां, तारीक बिलों से निकलेंगे
दुनिया अम्न और खुशहाली के, फूलों से सजाई जायेगी
वो सुबह हमीं से आयेगी
और
वो सुबह कभी तो आयेगी
इन काली सदियों के सर से, जब रात का आंचल ढलकेगा
जब दुख के बादल पिघलेंगे, जब सुख का सागर छलकेगा
जब अम्बर झूम के नाचेगा, जब धरती नज़्में गायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी
जिस सुबह की खातिर जुग-जुग से, हम सब मर-मर कर जीते हैं
जिस सुबह के अमृत की धुन में, हम जहर के प्याले पीते हैं
इन भूखी प्यासी रूहों पर, इक दिन तो करम फर्मायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी
माना कि अभी तेरे मेरे, अरमानों की कीमत कुछ भी नहीं
मिट्टी का भी है कुछ मोल मगर, इन्सानों की कीमत कुछ भी नहीं
इन्सानों की इज्जत जब झूठे, सिक्कों में न तोली जायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी
दौलत के लिये जब औरत की, इस्मत को न बेचा जायेगा
चाहत को न कुचला जायेगा, ग़ैरत को न बेचा जायेगा
अपनी काली करतूतों पर, जब ये दुनिया शर्मायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी
बीतेंगे कभी तो दिन आख़िर, ये भूख के और बेकारी के
टूटेंगे कभी तो बुत आख़िर, दौलत की इजारादारी के
जब एक अनोखी दुनिया की बुनियाद उठाई जायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी
मजबूर बुढ़ापा जब सूनी, राहों की धूल न फांकेगा
मासूम लड़कपन जब गंदी, गलियों में भीख न मांगेगा
ह़क मांगने वालों को जिस दिन, सूली न दिखाई जायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी
फ़ाको की चिताओं पर जिस दिन, इन्सां न जलाये जायेंगे
सीनों के दहकते दोज़ख में, अर्मां न जलाये जायेंगे
ये नरक से भी गन्दी दुनिया, जब स्वर्ग बनाई जायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी
Monday, April 25, 2011
एक मजेदार प्रश्न! क्या जवाब है आपके पास इस सवाल का?
कल्पना कीजिए कि आँधी, तूफान और बारिश वाली एक रात में आप अपने टू सीटर कार में जा रहे हैं। रास्ते में एक बस स्टॉप मिलता है जहाँ पर तीन लोग बस के लिए इन्तजार कर रहे हैं जिनमें -
1. एक अति बीमार वृद्ध महिला है जिसे तत्काल अस्पताल पहुँचाने की आवश्यकता है अन्यथा वह मर सकती है।
2. आपका एक बहुत पुराना मित्र है जिसने एक बार आपकी जान बचाई थी।
3. एक ऐसा व्यक्ति (यदि आप पुरुष हैं तो वह महिला और यदि आप महिला हैं तो वह पुरुष) है जिस पर आप मर मिटे हैं और उसे आप दिलोजान से प्यार करते हैं।
(चूँकि आपकी कार टू सीटर है, आप उनमें से किसी एक को ही अपने साथ ले जा सकते हैं।)
इस अवस्था मे आप -
आप किसी की जान बचा सकते हैं!
या किसी का एहसान चुका सकते हैं!
या अपने प्राणाधिक प्यारे व्यक्ति का साथ पा सकते हैं!
ऐसी अवस्था में आप क्या करेंगे?
उपरोक्त प्रश्न का उत्तर अलग-अलग व्यक्ति अलग-अलग दे सकते हैं और उनके उत्तर से उनके व्यक्तित्व, सोच-विचार के सम्बन्ध में अनुमान लगाया जा सकता है।
तो ईमानदारी के साथ बताइए कि ऐसी अवस्था में आप क्या करेंगे?
सोचिए और जवाब दीजिए!
अपना जवाब दे लेने के बाद नीचे स्क्रोल करके उस जवाब पर भी एक नजर डाल लीजिए जो हमें सर्वथा उपयुक्त लगता है, लेकिन उस जवाब को तभी देखिए जब आप अपना जवाब दे लें। बहुत ही प्रसन्नता की बात होगी यदि आपका जवाब नीचे दिए गए हमारे हिसाब से सबसे उपयुक्त जवाब से मेल खा जाए!
हमारे हिसाब से सबसे उपयुक्त जवाब -
.......
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.......
मैं अपनी कार अपने पुराने मित्र के हवाले करके वृद्धा को अस्पताल ले जाने के लिए कहूँगा और स्वयं वहाँ पर अपने प्रिय के साथ बैठकर बस का इन्तजार करूँगा!
1. एक अति बीमार वृद्ध महिला है जिसे तत्काल अस्पताल पहुँचाने की आवश्यकता है अन्यथा वह मर सकती है।
2. आपका एक बहुत पुराना मित्र है जिसने एक बार आपकी जान बचाई थी।
3. एक ऐसा व्यक्ति (यदि आप पुरुष हैं तो वह महिला और यदि आप महिला हैं तो वह पुरुष) है जिस पर आप मर मिटे हैं और उसे आप दिलोजान से प्यार करते हैं।
(चूँकि आपकी कार टू सीटर है, आप उनमें से किसी एक को ही अपने साथ ले जा सकते हैं।)
इस अवस्था मे आप -
आप किसी की जान बचा सकते हैं!
या किसी का एहसान चुका सकते हैं!
या अपने प्राणाधिक प्यारे व्यक्ति का साथ पा सकते हैं!
ऐसी अवस्था में आप क्या करेंगे?
उपरोक्त प्रश्न का उत्तर अलग-अलग व्यक्ति अलग-अलग दे सकते हैं और उनके उत्तर से उनके व्यक्तित्व, सोच-विचार के सम्बन्ध में अनुमान लगाया जा सकता है।
तो ईमानदारी के साथ बताइए कि ऐसी अवस्था में आप क्या करेंगे?
सोचिए और जवाब दीजिए!
अपना जवाब दे लेने के बाद नीचे स्क्रोल करके उस जवाब पर भी एक नजर डाल लीजिए जो हमें सर्वथा उपयुक्त लगता है, लेकिन उस जवाब को तभी देखिए जब आप अपना जवाब दे लें। बहुत ही प्रसन्नता की बात होगी यदि आपका जवाब नीचे दिए गए हमारे हिसाब से सबसे उपयुक्त जवाब से मेल खा जाए!
हमारे हिसाब से सबसे उपयुक्त जवाब -
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मैं अपनी कार अपने पुराने मित्र के हवाले करके वृद्धा को अस्पताल ले जाने के लिए कहूँगा और स्वयं वहाँ पर अपने प्रिय के साथ बैठकर बस का इन्तजार करूँगा!
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