Friday, February 13, 2015

चाणक्य नीति - अध्याय 5 (Chanakya Neeti in Hindi)


  • द्विजों के लिए अग्नि पूज्य है; अन्य वर्ण के लोगों के लिए ब्राह्मण पूज्य है; पत्नी के लिए पति पूज्य है; और मध्याह्नभोज के समय आने वाला अतिथि सभी के लिए पूज्य है।

  • जिस प्रकार से सोने को घिसकर, काटकर, गरम करके और पीटकर परखा जाता है, उसी प्रकार से व्यक्ति को उसके त्याग, आचरण, गुण तथा व्यवहार से परखा जाता है।

  • भय से तभी तक भयभीत होना चाहिए जब तक भय आने की आशंका हो, किन्तु भय के आ जाने पर निःसंकोच उसे दूर करने का प्रयास करना चाहिए।

  • जैसे बेर के पेड़ में फले सारे बेर एक जैसे नहीं होते, उसी प्रकार से एक ही गर्भ से और एक ही नक्षत्र में उत्पन्न व्यक्तियों के स्वभाव भी एक जैसे नहीं होते।

  • किसी वस्तु के प्रति आसक्ति नहीं होने पर उस वस्तु का अधिकारी भी नहीं बना जा सकता। वासना का त्याग कर देने वाला श्रृंगार नहीं करता; मूर्ख व्यक्ति मृदुभाषी नहीं होता; और स्पष्ट बात करने वाला धोखा नहीं देता।

  • मूर्ख विद्वान से इर्ष्या करते हैं; दरिद्र धनवान से इर्ष्या करते हैं; बुरे आचरण वाली स्त्री पतिव्रता से इर्ष्या करती हैं; और कुरूप स्त्री सुन्दर स्त्री से इर्ष्या करती हैं।

  • आलस्य से विद्या का नाश होता है; भरोसा कर के दूसरों को दे देने से धन का नाश होता है; लापरवाही से बुआई करने पर बीजों का नाश होता है; और सेनापति के बिना सेना का नाश होता है।

  • विद्या अभ्यास से आती है; कुल का बड़प्पन सुशील स्वभाव से होता है; श्रेष्ठता की पहचान गुणों से होती है; और क्रोध का पता आँखों से चलता है।

  • धर्म की रक्षा धन से होती है; ज्ञान की रक्षा निरन्तर साधना से होती है; राजकोप से मृदु स्वभाव द्वारा रक्षा होती है और घर की रक्षा कर्तव्य परायण गृहणी से होती है।
  • वैदिक पाण्डित्य तथा शास्त्रों के ज्ञान को को व्यर्थ बताने वाले लोग स्वयं व्यर्थ हैं।

  • दान से दारिद्र्य का; सदाचार से दुर्भाग्य का; विवेक से अज्ञान का; और परीक्षण से भय का नाश होता है।

  • काम वासना से बढ़कार कोई रोग नहीं होता; मोह से बढ़कर कोई शत्रु नहीं होता; क्रोध से बढ़कर कोई आग नहीं होता; और ज्ञान से बढ़कर कोई सुख नहीं होता।

  • व्यक्ति अकेला ही जन्म लेता है, अकेला ही मरता है, अकेला ही अपने अच्छे बुरे कर्मों को भोगता है और अकेला ही नर्क में जाता है या मोक्ष प्राप्त करता है।

  • ब्रह्मज्ञानी की दृष्टि में स्वर्ग तुच्छ है; पराक्रमी योद्धा की दृष्टि में जीवन तुच्छ है; इन्द्रियों को जीत लेने वाले की दृष्टि में स्त्री तुच्छ है; तत्वज्ञानी की दृष्टि में समस्त संसार तुच्छ है।

  • विदेश में विद्या मित्र है; घर में पत्नी मित्र है; रोगी के लिए औषधि मित्र है; और मरने वाले के लिए धर्म मित्र है।

  • समुद्र होने वाली वर्षा व्यर्थ है; तृप्त व्यक्ति को भोजन कराना व्यर्थ है; धनी व्यक्ति को दान देना व्यर्थ है; और दिन में दिया जलाना व्यर्थ है।

  • वर्षा के जल के समान कोई जल नहीं है; आत्मबल के समान कोई बल नहीं है; नेत्र की ज्योति के समान कोई प्रकाश नहीं है; और अन्न के समान कोई सम्पत्ति नहीं है।

  • निर्धन को धन की कामना होती है; पशु को वाणी की कामना होती है; मनुष्य को स्वर्ग की कामना होती है; और देवताओं को मोक्ष की कामना होती है।

  • सत्य से पृथ्वी टिकी है; सत्य से सूर्य प्रकाशित है; सत्य से वायु प्रवाहित होती है; संसार के समस्त पदार्थों में सत्य ही निहित है।

  • लक्ष्मी अस्थिर है; प्राण अस्थिर है; संसार में सिर्फ धर्म ही स्थिर है।
  • पुरुषों में नाई धूर्त होता है; पक्षियों में कौवा धूर्त होता है; पशुओं में गीदड़ धूर्त होता है; और औरतों में मालिन धूर्त होती है।

  • जन्म देने वाला, यज्ञोपवीत संस्कार कराने वाला, विद्या प्रदान करने वाला, अन्न देने वाला और भय से मुक्ति दिलाने वाला - ये पाँच पिता कहे गए हैं।
  • राजा की पत्नी, गुरु की पत्नी, मित्र की पत्नी, पत्नी की माता तथा स्वयं की माता को माता समझना चाहिए।

Wednesday, February 11, 2015

चाणक्य नीति - अध्याय 4 (Chanakya Neeti in Hindi)


  • व्यक्ति की कुल उम्र, व्यक्ति के कार्य का प्रकार, व्यक्ति की संपत्ति और व्यक्ति की मृत्यु दिनांक - ये चार बातें माता के गर्भ में ही निश्चित हो जाती हैं।

  • सन्तान, मित्र तथा सगे-सम्बन्धी भगवान के भक्त से दूर भागते हैं, किन्तु जो लोग भगवान के भक्त का अनुसरण करते हैं वे अपने समर्पण के कारण अपने परिवार को धन्य कर देते हैं।

  • जिस प्रकार से मछली, कछुआ और पक्षी अपने बच्चों को देखभाल करके, सावधानी बरत कर और स्पर्श करके बड़ा करते हैं, उसी प्रकार से संतजन भी अपने सहभागियों का पालन करते हैं।

  • जब शरीर स्वस्थ हो, स्वयं के नियन्त्रण में हो और मृत्यु दूर हो तभी आत्मसुरक्षा का प्रयास कर लेना चाहिए, मृत्यु के सर पर आ जाने पर भला क्या किया जा सकता है?

  • विद्या प्राप्ति कामधेन के समान है जो कि हर ऋतु में फल प्रदान करती है। विद्या माँ के समान रक्षक तथा हितकारी है। विद्या एक छुपे हुए खजाने के जैसा है।

  • अच्छे गुणों से सम्पन्न एक पुत्र, गुणों से वंचित सौ पुत्रों से भी अच्छा होता है। आसमान के असंख्य तारे रात्रि के अन्धकार को दूर नहीं कर सकते, उसे तो सिर्फ एक चन्द्रमा ही दूर करता है।

  • पैदा होते ही मर जाने वाला पुत्र, एक लम्बी उम्र वाले मूर्ख पुत्र से अच्छा होता है क्योंकि पैदा होते ही मर जाने वाला पुत्र क्षणिक दुख देता है जबकि मूर्ख बालक तमाम उम्र दुख देता है।

  • शरीर को बिना आग के जलाती हैं -
    उस छोटे से गाँव में बसना जहाँ रहने की सुविधाएँ उपलब्ध न हो
    नीच कुल में जन्मे व्यक्ति की नौकरी करना
    अस्वास्थ्यकर भोजन करना
    पत्नी का सदैव क्रोधित रहना
    मूर्ख पुत्र का होना
    पुत्री का विधवा हो जाना

  • दूध न देने वाली तथा गर्भधारण के अयोग्य गाय किस काम की? उसी प्रकार ऐसे पुत्र का जन्म किस काम का जो न तो शिक्षित हो सके और न ही भगवान की भक्ति कर सके।

  • जीवन के दुखों की आग में झुलसने वाले व्यक्ति को केवल सन्तान, पत्नी और भगवान के भक्तों की संगति ही सहारा देते हैं।

  • ये बातें सिर्फ एक बार होती हैं -
    राजा का आज्ञा देना
    पण्डित का उपदेश देना
    लड़की का विवाह

  • तप अकेले करना चाहिए, अभ्यास दो लोगों को एक साथ करना चाहिए, गायन तीन लोगों को एक साथ करना चाहिए, कृषि चार लोगों को एक साथ करना चाहिए और युद्ध अनेक लोगों को एक साथ लड़ना चाहिए।

  • यथार्थ में पत्नी वही होती है जो शुचिपूर्ण हो, पारंगत हो, पतिव्रता हो, पति को प्रसन्न करने वाली हो और सत्यवादी हो।

  • पुत्रहीन व्यक्ति का घर, सम्बन्धी रहित व्यक्ति की समस्त दिशाएँ, मूर्ख व्यक्ति का हृदय और निर्धन व्यक्ति का सब कुछ उजाड़ होता है।

  • आचरण में न लाया जाने वाला आध्यात्मिक सीख जहर है; अजीर्ण रोग से ग्रसित व्यक्ति के लिए भोजन जहर है; निर्धन व्यक्ति के लिए सामाजिक कार्यक्रम में जाना जहर है; और वृद्ध या प्रौढ़ व्यक्ति के लिए युवा पत्नी जहर है।

  • दया और धर्म से हीन व्यक्ति, आध्यात्मिक ज्ञान न रखने वाले गुरु, निरन्तर घृणा प्रदर्शन करने वाली पत्नी और स्नेह न रखने वाले सम्बन्धी का त्याग कर देना चाहिए।

  • व्यक्ति का सतत् भ्रमण बुढ़ापे को समीप ला देता है; घोड़े को हमेशा बाँधे रखने से वह बूढ़ा हो जाता है; पति के साथ यौनाचार न करने वाली स्त्री बूढ़ी हो जाती है; और लगातार धूप में रखने से वस्त्र पुराने हो जाते हैं।

  • इन बातों पर बार-बार विचार करना चाहिए - उचित समय, उचित मित्र, उचित स्थान, आय के उचित साधन, व्यय के उचित तरीके और उर्जा स्रोत जहाँ से आप शक्ति प्राप्त करते हैं।
  • द्विज अग्नि अग्नि में भगवान् देखते है, भक्त अपने हृदय में भगवान् देखते है, अल्पबुद्धि लोग मूर्ति में भगवान् देखते है किन्तु व्यापक दृष्टि रखने वाले लोग सर्वत्र में में भगवान् देखते है।

Monday, February 9, 2015

चाणक्य नीति - अध्याय 3 (Chanakya Neeti in Hindi)

  • इस संसार में ऐसा कौन सा परिवार है जिस पर कोई दाग न लगा हो? ऐसा कौन है जो रोग और संताप से मुक्त हो, हमेशा सुखी रहने वाला कौन है?

  • व्यक्ति के आचरण से उसके कुल को पहचाना जा सकता है, उसकी भाषा के उच्चारण से उसके देश को पहचाना जा सकता है, उसके सौहार्द तथा उसकी दीप्ति से उसकी मित्रता पहचानी जा सकती है और उसके शारीरिक गठन से उसकी भोजन क्षमता पहचानी जा सकती है।

  • पुत्री का विवाह अच्छे कुल में करना चाहिए, पुत्र को ज्ञानार्जन के प्रति आसक्त करना चाहिए, शत्रु को क्लेश में डालना चाहिए और मित्रों को धर्म के प्रति आसक्त करना चाहिए।

  • एक साँप एक दुर्जन से बेहतर होता है क्योंकि वह तभी आक्रमण करता है जब उसे प्राण जाने का भय हो किन्तु दुर्जन हर कदम पर वार करता है।
  • राजा स्वयं को अच्छे कुल के व्यक्तियों से इसलिए घिरा रखता है क्योंकि वे न आरम्भ में, न तो मध्य में और न ही अन्त में साथ छोड़कर जाते हैं।

  • प्रलय के समय समुद्र भी अपनी मर्यादा खो देता है किन्तु सज्जन व्यक्ति कभी भी विचलित नहीं होते।

  • मूर्खों के साथ कभी भी मित्रता नहीं करनी चाहिए क्योंकि वे दो पैरों वाले पशु के समान होते हैं, जैसे कोई अनदेखा काँटा शरीर के अंग में घुसकर पीड़ा पहुँचाता है वैसे ही मूर्ख अपने कटु वचनों से हृदय को क्लेश पहुँचाता है।

  • अच्छे कुल में जन्म लेने वाला यौवन से सम्पन्न सुन्दर व्यक्ति भी विद्या से हीन होने पर पलाश के फूल के समान होता है जो कि सुन्दर होते हुए भी सुगन्ध हीन होता है।
  • कोयल की सुन्दरता उसकी कूक में होती है, स्त्री की सुन्दरता पति के प्रति विशुद्ध समर्पण में होती है, कुरूप व्यक्ति की सुन्दरता उसके ज्ञान में होती है और तपस्वी की सुन्दरता उसकी क्षमाशीलता में होती है।

  • परिवार की रक्षा के लिए परिवार के सदस्य का बलिदान कर देना चाहिए, गाँव की रक्षा के लिए परिवार का बलिदान कर देना चाहिए, देश की रक्षा के लिए गाँव का बलिदान कर देना चाहिए और आत्मा की रक्षा के लिए देश का बलिदान कर देना चाहिए।

  • कर्मशील व्यक्ति निर्धन नहीं हो सकता, जप करने वाला पापी नहीं हो सकता, मौनी व्यक्ति अन्य व्यक्तियों से विवाद नहीं हो सकता और सचेत व्यक्ति भयभीत नहीं हो सकता।
  • सीता का हरण उसकी अति सुन्दरता के कारण हुआ, रावण अन्त उसके अति अहंकार के कारण हुआ, अति दानी होने के कारण राजा बलि को बंधन में बंधना पड़ा, अतः अति किसी भी वस्तु की अच्छी नहीं होती।

  • सामर्थ्यवान के लिए कौन सा कार्य कठिन है? श्रम करने वाले के लिए कौन सा स्थान दूर है। विद्वान के लिए विदेश कहाँ है? मृदुभाषी का अहित कौन कर सकता है?

  • जिस प्रकार से सुगन्धित फूलों वाला केवल एक वृक्ष पूरे वन को महका देता है उसी प्रकार से केवल एक गुणवान पुत्र पूरे कुल को प्रतिष्ठा दिलाता है।

  • जिस प्रकार से केवल एक सूखा वृक्ष जलकर पूरे वन को भस्म कर देता है उसी प्रकार से केवल एक कपूत पूरे कुल की मान-मर्यादा एवं प्रतिष्ठा को नष्ट कर देता है।

  • जिस प्रकार से चन्द्रमा के उदय होने से रात जगमगा उठती है उसी प्रकार से विद्वान एवं सदाचारी पुत्र से सम्पूर्ण परिवार खुशहाल हो जाता है।

  • दुःख एवं निराशा देने वाले अनेक पुत्र किस काम के हैं? इससे तो अच्छा है कि परिवार को आश्रय एवं शान्ति प्रदान करने वाला एक ही पुत्र हो।

  • पाँच वर्ष की आयु तक पुत्र का पालन लाड़-प्यार के साथ करना चाहिए, बाद के दस साल तक उसे छड़ी से डराना चाहिए किन्तु सोलह वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने पर पुत्र के साथ मित्रवत व्यवहार करना चाहिए।

  • भयावह आपदा के समय, विदेशी आक्रमण होने पर, भयानक अकाल पड़ने पर तथा दुष्ट व्यक्ति का साथ हो जाने पर जो व्यक्ति दूर भाग जाता है, वही व्यक्ति हमेशा सुरक्षित होता है।

  • जो व्यक्ति धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष अर्जित नहीं कर सकता उसे बार-बार जन्म लेना और मरना पड़ता है।

  • धन की देवी लक्ष्मी स्वयमेव तथा स्वेच्छा से वहाँ चली आती हैं जहाँ -
    मूखो का सम्मान नहीं होता।
    अनाज का सही प्रकार से भण्डारण होता है।
    पति-पत्नी का आपस मे विवाद नहीं।