Saturday, January 24, 2015

वसन्त पंचमी - वसन्त ऋतु का प्रारम्भ (Vasant Panchami)


वसन्त ऋतु को ऋतुराज की संज्ञा दी गई है। ऋतुराज अर्थात् ऋतुओं का राजा!

जलते हुए अंगारों के जैसे पलाश के फूल! सारे पत्ते झड़े हुए सेमल के वृक्षों पर लगे हुए रक्त के जैसे लाल सुमन! वातावरण में मनमोहक सुगन्ध बिखेरती शीतल-मन्द बयार! मन में मादकता पैदा करने वाली आम के बौर! रंग-बिरंगे फूलों से सजे बाग-बगीचे! हवा के झौंकों से गिरे फूलों से शोभित भूमि! कलकल ध्वनि के साथ तेजी के साथ बहती नदियाँ! स्वच्छ जल से लबालब तालाब व झीलें। पक्षियों का मधुर कलरव!

यही सब तो वसन्त को ऋतुओं का राजा बना देते हैं।

माना जाता है कि वसन्त का आरम्भ वसन्त पंचमी (Vasant Panchami) के दिन से होता है। और आज वसन्त पंचमी है (Vasant Panchami) याने कि वसन्त ऋतु की शुरुवात।

अब शिशिर की ठिठुरन खत्म और वसन्त की शीतोष्ण समीर द्वारा तन और मन का सहलाना शुरू!

ऐसा शायद ही कोई रसिक होगा जिसका मन वसन्त पंचमी (Vasant Panchami) से लेकर रंग पंचमी तक मादकता और मस्ती से न मचले।

तो मित्रों! आप सभी को वसन्त पंचमी  (Vasant Panchami) की हार्दिक शुभकामनाए!

Friday, January 23, 2015

"आजाद हिन्द फौज (The Indian National Army) का Provisional Government" : नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की अमर गाथा

21 अक्टूबर 1943 का दिन इतिहास का एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं गौरवशाली दिन है!

इसी दिन नेताजी सुभाष चन्द्र बोस (Subhash Chandra Bose) ने "आजाद हिन्द तत्कालिक (provisional) सरकार" बनाने का ऐलान किया था। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस (Subhash Chandra Bose) के द्वारा की गई "आजाद हिन्द फौज (The Indian National Army) का Provisional Government" के निर्माण की इस घोषणा ने स्वातंत्र्य वीरों को जोश और उत्साह से भर दिया था। इस घोषणा में प्रत्येक भारतीय, चाहे वह किसी भी जाति का हो या किसी भी संप्रदाय को मानने वाला हो, को समान मान्यता और समान मान्यता देने का दावा नेताजी ने किया था। अपने भाषण के अन्त में उन्होंने भावोत्तेज अपील किया था कि -

"In the name of God, in the name of bygone generations who have welded the Indian people into one nation and in the name of the dead heroes who have bequeathed to us a tradition of heroism and self-sacrifice - we call upon the Indian people to rally round our banner and strike for India's Freedom. We call upon them to launch the final struggle against the British and all their allies in Indian and to prosecute that struggle with valour and perseverance and with full faith in Final Victory - until the enemy is expelled from
Indian soil and the Indian people are once again a Free Nation."

भावार्थ - भगवान के नाम पर, बीते पीढ़ियों के नाम पर, जिन्होंने हमें एक राष्ट्र के रूप जोड़ रखा है और उन अमर वीरों के नाम पर जिन्होंनें हमें वीरता एवं आत्म बलिदान की एक परंपरा विरासत दिया है - भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के उद्देश्य से रैलियाँ निकालने, बैनर लगाने तथा हड़तालें करने के लिए निमन्त्रित करते हैं। हम उन्हें ब्रिटिश एवं उनके समस्त सहयोगियों के विरुद्ध वीरतापूर्वक और दृढ़तापूर्वक एवं अन्तिम विजय हेतु दृढ़ विश्वास रखते हुए निर्णायक संघर्ष आरम्भ करने के लिए आह्वान करते हैं - तब तक संघर्ष जारी रहना चाहिए जब तक कि दुश्मन भारत भूमि से खदेड़ ना दिये जाएँ और समस्त भारतीय पुनः एक स्वतन्त्र राष्ट्र के अंग न बन जाएँ।

"आजाद हिन्द फौज (The Indian National Army) का Provisional Government"  में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस (Subhash Chandra Bose) स्वयं देश के मुखिया, प्रधान मन्त्री तथा युद्ध मन्त्री थे तथा आजाद हिन्द फौज के अन्य अधिकारी केबिनेट मेम्बर थे।

"आजाद हिन्द तत्कालिक (provisional) सरकार" के केबिनेट मेम्बर्स का विवरण इस प्रकार है -

लेफ्टिनेंट ए.सी. चटर्जी - वित्त मन्त्री (Minister of Finance)
डॉ.(कैप्टन) लक्ष्मी सहगल - Minister of Women’s Organisation
श्री ए.एम सहाय - Secretary with Ministerial Rank
श्री एस.एं अय्यर - Minister of Publicity and Propaganda
ले. कर्नल जे.के. भोंसले - Representative of INA
ले. कर्नल लोगानाथन - Representative of INA
ले. कर्नल एहसान कादिर - Representative of INA
ले. कर्नल एन.एस. भगत - Representative of INA
ले. कर्नल एम.जेड. कियानी - Representative of INA
ले. कर्नल अज़ीज़ अहमद -Representative of INA
ले. कर्नल शाह नवाज़ खान - Representative of INA
ले. कर्नल गुलजारा सिंह - Representative of INA
रास बिहारी बोस - Supreme Advisor
करीम गियानी - Advisor from Burma
देबनाथ दास - Advisor from Thailand
सरदार ईशर सिंह - Advisor from Thailand
डी.एम. खान - Advisor from Hong Kong
ए. येल्लप्पा - Advisor from Singapore
ए.एन सरकार - Advisor from Singapore
 (सन्दर्भः http://www.s1942.org.sg/s1942/indian_national_army/provi.htm)

"आजाद हिन्द तत्कालिक (provisional) सरकार" ने न केवल नेताजी को जापानियों के साथ बराबरी के साथ समझौता करने में सक्षम बनाया बल्कि पूर्व एशिया में रहने वाले भारतीयों को एक सूत्र में बाँधकर आजाद हिन्द फौज में भर्ती होने के लिए प्रोत्साहित किया। सुभाष चन्द्र बोस जी के इस तत्कालिक सरकार को अनेक देशों ने मान्यता भी प्रदान की।

"आजाद हिन्द तत्कालिक (provisional) सरकार" के निर्माण के साथ ही नेताजी ने भारतीयों को एकसूत्र में बँध कर आजाद हिन्द फौज के तत्वावधान में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध का शंखनाद भी कर दिया। मलाया, थाइलैंड तथा बर्मा में बसे भारतीयों ने नेताजी के युद्ध के प्रस्ताव का उत्साहपूर्वक स्वागत किया और बड़ी संख्या में भारतीय आजाद हिन्द फौज में भर्ती होने लगे। अनेक भारतीयों ने आजाद हिन्द फौज को सोना, चाँदी, गहने, कपड़े आदि की सहायता प्रदान की, महिलाओं ने अपने जेवरात तक उतार कर आजाद हिन्द फौज को समर्पित कर दिए।

भारतीयों से प्राप्त उसी धन से अप्रैल 1944 तक रंगून में आजाद हिन्द बैंक की स्थापना भी हो गई।



Thursday, January 22, 2015

चंद शेर


तुम्हें गैरों से कब फुरसत हम अपने ग़म से कब खाली
चलो बस हो गया मिलना ना तुम खाली ना हम खाली

अंदाज अपना देखते हैं आईने में वो
और ये भी देखते हैं कोई देखता ना हो

उधर ज़ुल्फों में कंघी हो रही है, खम निकलता है
इधर रुक रुक के खिच खिच के हमारा दम निकलता है
इलाही खैर हो, उलझन पे उलझन बढ़ती जाती है
ना उनका खम निकलता है, ना हमारा दम निकलता है

कितने नादाँ हैं तेरे भूलने वाले कि तुझे
याद करने के लिए उम्र पड़ी हो जैसे

दर्द-ओ-ग़म का ना रहा नाम तेरे आने से
दिल को क्या आ गया आराम तेरे आने से

हमको किसके ग़म ने मारा, ये कहानी फिर सही
किसने तोड़ा दिल हमारा, ये कहानी फिर सही
दिल के लुटने का सबब पूछो न सबके सामने
नाम आएगा तुम्हारा, ये कहानी फिर सही

कि तू भी याद  नहीं आता ये तो होना था
गए दिनों को सभी को भुलाना होता है

आदमी आदमी को क्या देगा, जो भी देगा वही खुदा देगा
जिंदगी को क़रीब से देखो, इसका चेहरा तुम्हें रुला देगा

अपने मंसूबों को नाकाम नहीं करना है
मुझको इस उम्र में आराम नहीं करना है

Tuesday, January 20, 2015

ओ देस से आने वाले बता!


ओ देस से आने वाले बता!
क्‍या अब भी वहाँ के बाग़ों में मस्‍ताना हवाएँ आती हैं?
क्‍या अब भी वहाँ के परबत पर घनघोर घटाएँ छाती हैं?
क्‍या अब भी वहाँ की बरखाएँ वैसे ही दिलों को भाती हैं?

ओ देस से आने वाले बता!
क्‍या अब भी वतन में वैसे ही सरमस्‍त नज़ारे होते हैं?
क्‍या अब भी सुहानी रातों को वो चाँद-सितारे होते हैं?
हम खेल जो खेला करते थे अब भी वो सारे होते हैं?

ओ देस से आने वाले बता!
शादाबो-शिगुफ़्ता फूलों से मा' मूर हैं गुलज़ार अब कि नहीं?
बाज़ार में मालन लाती है फूलों के गुँधे हार अब कि नहीं?
और शौक से टूटे पड़ते है नौउम्र खरीदार अब कि नहीं?

(शादाबो-शिगुफ़्ता = प्रफुल्‍ल, मा' = स्‍फुटित, मूर = परिपूर्ण, गुलज़ार = वाटिका)

ओ देस से आने वाले बता!
क्‍या शाम पड़े गलियों में वही दिलचस्‍प अंधेरा होता हैं?
और सड़कों की धुँधली शम्‍मओं पर सायों का बसेरा होता हैं?
बाग़ों की घनेरी शाखों पर जिस तरह सवेरा होता हैं?

ओ देस से आने वाले बता!
क्‍या अब भी वहाँ वैसी ही जवां और मदभरी रातें होती हैं?
क्‍या रात भर अब भी गीतों की और प्‍यार की बाते होती हैं?
वो हुस्‍न के जादू चलते हैं वो इश्‍क़ की घातें होती हैं?

ओ देस से आने वाले बता!
क्‍या अब भी महकते मन्दिर से नाक़ूस की आवाज़ आती है?
क्‍या अब भी मुक़द्दस मस्जिद पर मस्‍ताना अज़ां थर्राती है?
और शाम के रंगी सायों पर अ़ज़्मत की झलक छा जाती है?

(नाक़ूस = शंख, मुक़द्दस = पवित्र, अज़ां = अजान, अ़ज़्मत = महानता)

ओ देस से आने वाले बता!
क्‍या अब भी वहाँ के पनघट पर पनहारियाँ पानी भरती हैं?
अँगड़ाई का नक़्शा बन-बन कर सब माथे पे गागर धरती हैं?
और अपने घरों को जाते हुए हँसती हुई चुहलें करती है?

ओ देस से आने वाले बता!
क्‍या अब भी वहाँ मेलों में वही बरसात का जोबन होता है?
फैले हुए बड़ की शाखों में झूलों का निशेमन होता है?
उमड़े हुए बादल होते हैं छाया हुआ सावन होता है?

ओ देस से आने वाले बता!
क्‍या शहर के गिर्द अब भी है रवाँ दरिया-ए-हसीं लहराए हुए?
ज्यूं गोद में अपने मन को लिए नागन हो कोई थर्राये हुए?
या नूर की हँसली हूर की गर्दन में हो अ़याँ बल खाये हुए?

(रवाँ = बहती है, दरिया-ए-हसीं = सुन्‍दर नदी, मन = मणि, नूर = प्रकाश, अ़याँ = प्रकट)

ओ देस से आने वाले बता!
क्‍या अब भी किसी के सीने में बाक़ी है हमारी चाह? बता!
क्‍या याद हमें भी करता है अब यारों में कोई? आह बता!
ओ देश से आने वाले बता लिल्‍लाह बता, लिल्‍लाह बता!

(लिल्‍लाह = भगवान के लिए)

ओ देस से आने वाले बता!
क्‍या गाँव में अब भी वैसी ही मस्ती भरी रातें आती हैं?
देहात में कमसिन माहवशें तालाब की जानिब जाती हैं?
और चाँद की सादा रोशनी में रंगीन तराने गाती हैं?

ओ देस से आने वाले बता!
क्‍या अब भी गजर-दम चरवाहे रेवड़ को चराने जाते हैं?
और शाम के धुंधले सायों में हमराह घरों को आते हैं?
और अपनी रंगीली बांसुरियों में इश्‍क़ के नग्‍मे गाते हैं?

(गजर-दम = सुबह)

ओ देस से आने वाले बता!
आखिर में ये हसरत है कि बता वो ग़ारते-ईमां कैसी है?
बचपन में जो आफ़त ढाती थी वो आफ़ते-दौरां कैसी है?
हम दोनों थे जिसके परवाने वो शम्‍मए-शबिस्‍तां कैसी हैं?

(ग़ारते-ईमां = धर्म नष्ट करने वाली, अत्यन्त सुन्दरी, आफ़ते-दौरां = संसार के लिए आफत, शम्‍मए-शबिस्‍तां = शयनाकक्ष का दीपक)

ओ देस से आने वाले बता!
क्‍या अब भी शहाबी आ़रिज़ पर गेसू-ए-सियह बल खाते हैं?
या बहरे-शफ़क़ की मौजों पर दो नाग पड़े लहराते हैं?
और जिनकी झलक से सावन की रातों के से सपने आते हैं?

(शहाबी आ़रिज़ = गुलाबी कपोल, गेसू-ए-सियह = काले केश, बहरे-शफ़क़ = ऊषा का सागर, मौजों = लहरों)

ओ देस से आने वाले बता!
अब नामे-खुदा, होगी वो जवाँ मैके में है या ससुराल गई?
दोशीज़ा है या आफ़त में उसे कमबख़्त जवानी डाल गई?
घर पर ही रही या घर से गई, ख़ुशहाल रही ख़ुशहाल गई?

ओ देस से आने वाले बता!

अख़्तर शीरानी