और किसी को लगे, न लगे, पर मुझे लगता है कि हिन्दी ब्लोगिंग की प्राणशक्ति बेहद कमजोर हो चुकी है, इसके पीछे कारण यही लगता है कि हिन्दी ब्लोगिंग के लिए अच्छे एग्रीगेटर का न होना। और फिर फेसबुक ने भी तो हिन्दी ब्लोगिंग की प्राणशक्ति को चूस लिया है।
वैसे तो हिन्दी ब्लोगिंग के लिए अनेक एग्रीगेटर्स बने किन्तु हिन्दी ब्लोगिंग को सबसे अधिक किसी एग्रीगेटर ने बढ़ाया तो वह है ब्लोगवाणी। एक समय ऐसा था कि हिन्दी ब्लोगर्स अपना ब्लॉग बाद में खोलते थे, ब्लोगवाणी पहले खोल लिया करते थे। फिर हिन्दी ब्लोगिंग के दुर्भाग्य का उदय हुआ और ब्लोगवाणी ने हिन्दी ब्लोग्स के अपडेट देना बंद कर दिया। शायद कुछ विघ्नसंतोषी लोगों के द्वारा ब्लोगवाणी की भावनाओं को लगातार ठेस पहुँचाते रहना ही इसका कारण रहा हो सकता है। उसके कुछ दिनों बाद चिट्ठाजगत का बंद हो जाना हिन्दी ब्लोगिंग के लिए "दुबले के लिए दूसरा आषाढ़" साबित हुआ।
ब्लोगवाणी कभी भी बंद नहीं हुई, वह आज भी चल रही है, बस उसमें हिन्दी ब्लोग्स के अपडेट को बंद कर दिया गया है। अगर ब्लोगवाणी चाहे तो आज भी फिर से हिन्दी ब्लोगिंग में जान फूँक सकती है, बस इसके लिए उसे फिर से हिन्दी ब्लोग्स के अपडेट को चालू करना होगा। ब्लोगवाणी के हिन्दी ब्लोगिंग पर बहुत से उपकार हैं जिसे हिन्दी ब्लोगिंग कभी भुला नहीं पायेगी। पर आज एक बार फिर से हिन्दी ब्लोगिंग को ब्लोगवाणी के उपकार की आवश्यकता है। ब्लोगवाणी टीम यदि हिन्दी ब्लोग्स के अपडेट को फिर से चालू कर देगी तो निश्चय ही यह हिन्दी ब्लोगिंग पर उसका सबसे बड़ा उपकार होगा। हिन्दी ब्लोगिंग घिसट-घिसट कर चलने के बजाय एक बार फिर से दौड़ना शुरू कर देगी।
Thursday, December 27, 2012
Monday, December 24, 2012
जब मुझे बूढ़े से बच्चा बनना पड़ा
इस पोस्ट का शीर्षक पढ़ कर शायद आप सोच रहे होंगे कि ये जी.के. अवधिया क्या बेपर की हाँक रहा है? भला आदमी बूढ़े से बच्चा कैसे बन सकता है?
यह तो हम सभी जानते हैं कि जो समय बीत गया उसे फिर से वापस लाया नहीं जा सकता। समय बीतने के साथ ही उम्र भी बढ़ते जाती है, और बीते हुए उम्र को भी फिर से वापस नहीं लाया जा सकता। पर बीते चुके उम्र में कल्पना के सहारे जाया तो जा सकता है।
बात यह हुई कि मेरे मित्र गुप्ता जी ने मुझसे कहा कि उनके पुत्र, जो कि कक्षा पीपी२ में पढ़ता है, के स्कूल की पत्रिका छप रही है और वे अपने पुत्र के नाम से कु सामग्री उसमें छपने के लिए देना चाहते हैं, अतः मैं उन्हें या तो नेट से कुछ खोज कर दूँ या स्वयं कुछ लिख कर दूँ। मैंने सोचा कि चलो इसी बहाने कुछ लिख लिया जाए। पर मेरी सोच तो बूढ़ी हो चुकी है क्योंकि मैं बूढ़ा आदमी हूँ। इसलिए मैंने अपनी कल्पना के सहारे, अपने बचपन में वापस जाकर, स्वयं को बच्चा बनाया और उन्हें यह लिखकर दियाः
क्रिसमस की छुट्टी
क्रिसमस की छुट्टी हैं आईं।
खुशियों की ये लहरें लाईं॥
चुन्नू मुन्नू मेरे घर आए।
सब मिलकर हम नाचे गाये॥
मम्मी पापा प्यार जताते।
अपने संग पिकनिक ले जाते॥
खुशियों के हम गीत हैं गाते।
मामा मेरे ढोल बजाते॥
चह चह चहके चिड़िया रानी।
दाना चुगाती इसे है नानी॥
बहना मेरी बड़ी सयानी।
होकर बड़ी ये बनेगी रानी॥
कल कल करती नदिया बहती।
झर झर बहता झरना॥
नदिया झरना कहते हमसे।
सीखो हमसे आगे बढ़ना॥
तो ऐसे बनना पड़ा मुझे बूढ़े से बच्चा।
यह तो हम सभी जानते हैं कि जो समय बीत गया उसे फिर से वापस लाया नहीं जा सकता। समय बीतने के साथ ही उम्र भी बढ़ते जाती है, और बीते हुए उम्र को भी फिर से वापस नहीं लाया जा सकता। पर बीते चुके उम्र में कल्पना के सहारे जाया तो जा सकता है।
बात यह हुई कि मेरे मित्र गुप्ता जी ने मुझसे कहा कि उनके पुत्र, जो कि कक्षा पीपी२ में पढ़ता है, के स्कूल की पत्रिका छप रही है और वे अपने पुत्र के नाम से कु सामग्री उसमें छपने के लिए देना चाहते हैं, अतः मैं उन्हें या तो नेट से कुछ खोज कर दूँ या स्वयं कुछ लिख कर दूँ। मैंने सोचा कि चलो इसी बहाने कुछ लिख लिया जाए। पर मेरी सोच तो बूढ़ी हो चुकी है क्योंकि मैं बूढ़ा आदमी हूँ। इसलिए मैंने अपनी कल्पना के सहारे, अपने बचपन में वापस जाकर, स्वयं को बच्चा बनाया और उन्हें यह लिखकर दियाः
क्रिसमस की छुट्टी
क्रिसमस की छुट्टी हैं आईं।
खुशियों की ये लहरें लाईं॥
चुन्नू मुन्नू मेरे घर आए।
सब मिलकर हम नाचे गाये॥
मम्मी पापा प्यार जताते।
अपने संग पिकनिक ले जाते॥
खुशियों के हम गीत हैं गाते।
मामा मेरे ढोल बजाते॥
चह चह चहके चिड़िया रानी।
दाना चुगाती इसे है नानी॥
बहना मेरी बड़ी सयानी।
होकर बड़ी ये बनेगी रानी॥
कल कल करती नदिया बहती।
झर झर बहता झरना॥
नदिया झरना कहते हमसे।
सीखो हमसे आगे बढ़ना॥
तो ऐसे बनना पड़ा मुझे बूढ़े से बच्चा।
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