"नमस्कार लिख्खाड़ानन्द जी!"
"नमस्काऽर! आइये आइये टिप्पण्यानन्द जी!"
"लिख्खाड़ानन्द जी! आप तो ब्लोगिंग के आसमान की ऊँचाइयों को छू रहे हैं! ब्लोगिस्तान में डंका बजता है आपका! ऐसा कोई भी ब्लोगर नहीं है जो आपके नाम से परिचित न हो। आज हम आपसे यह जानना चाहते हैं कि आखिर आप इस मुकाम तक पहुँचे कैसे?"
"हे हे हे हे, आप तो बस हमें चने के झाड़ पर चढ़ा रहे हैं।"
"नहीं नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है, मैंने जो कुछ भी कहा है वह सच है। अब बताइये ना जो हमने पूछा है।"
"वो क्या है टिप्पण्यानन्द जी, हमारी सफलता के पीछे कई बातें हैं। पहली बात तो यह है कि
आपको पोस्ट निकालना आना चाहिये। पोस्ट किसी भी चीज से निकाला जा सकता है। जैसे नदी में तरबूज-खरबूज आदि की खेती हो रही है तो उस पर पोस्ट निकाल लो। आपके घर के पास कुतिया ने पिल्ले दिये हैं तो झटपट उन पिल्लों के फोटो ले लीजिये और एक पोस्ट निकाल कर चेप दीजिये उन फोटुओं को। यात्रा के दौरान आपका सूटकेस चोरी हो गया तो उससे भी पोस्ट निकाला जा सकता है। आपको रास्ते में कोई विक्षिप्त दिख गया तो उससे एक पोस्ट निकाल लीजिये।
जब लोगों को किसी भी ग्राफिक्स में अल्लाह नजर आ जाता है, सिगरेट के धुएँ में चाँद-सितारे आदि दिख जाते हैं तो किसी भी चीज से पोस्ट क्यों नहीं निकाला जा सकता? हमारे कहने का तात्पर्य यह है कि पोस्ट कहीं से भी निकल सकता है।
"दूसरी बात है पोस्ट का प्रभावशाली होना।
पोस्ट में प्रभाव उत्पन्न होता है उसे दर्शन का रूप देने से! किसी एक बात से दूसरी किसी ऐसी बात को जोड़ने से जिसका कि पहली बात से दूर-दूर का कुछ भी सम्बन्ध न हो जैसे कि भैंसों के पगुराने को रेलगाड़ी की सीटी से जोड़ दो।
पोस्ट में प्रभाव उत्पन्न होता है उसमें अरबी, फारसी, उर्दू, अंग्रेजी आदि के शब्द डालने से! बल्कि इन भाषाओं और हिन्दी के शब्दों को तोड़-मरोड़ कर नये-नये शब्द बनाने से। जैसे कि हिन्दी के शब्द "निश्चित" में अंग्रेजी का प्रत्यय "ली" जोड़कर "निश्चितली" बना दीजिये या अंग्रेजी के शब्द "स्ट्रिक्ट" में हिन्दी का प्रत्यय "ता" जोड़कर "स्ट्रिक्टता" बना दीजिये। कहने का लब्बो-लुआब यह है कि जो कुछ भी आप लिखें उसे भले ही न समझ सके किन्तु उसमें प्रभाव अवश्य होना चाहिये।"अगली बात है पढ़ने वालों का जुगाड़ करना! आप तो जानते ही हैं कि हमारे पाठक अन्य ब्लोगर्स ही होते हैं। तो सबसे जरूरी है उन्हें खुश रखना ताकि वे आपके पोस्ट में जरूर आयें और सिर्फ आये ही नहीं बल्कि टिप्पणी भी करें। दूसरे ब्लोगर्स खुश होते हैं टिप्पणी पाकर। याद रखिये कि टिप्पणी ही हिन्दी ब्लोगिंग का सार है! हम तो बस यही याद रखते हैं कि
यारों टिप्पणी राखिये, बिन टिप्पणी सब सून!"इन सब के अलावा यह याद रखना जरूरी है कि "विद्या विनयेन शोभते!" विद्या, योग्यता आदि की शोभा विनय से ही होती है अतः हमेशा विनम्र बने रहिये। आपकी विनयशीलता दूसरे ब्लोगर्स पर सबसे अधिक प्रभाव डालती है।
"अंत में हम आपको यह भी बता दें कि सफलता पाने के लिये थोड़ी बहुत राजनीति भी करनी पड़ती है, कुछ लोगों को अपने साथ मिला कर रखना पड़ता है जो आपकी और आपस में एक दूसरे की पब्लिसिटी करें। इस विषय में विस्तार से फिर कभी आपको बतायेंगे।"
"वाह! वाह!! आज तो आपने हमें बहुत अच्छी जानकारी दी है। बहुत-बहुत धन्यवाद आपका! अच्छा अब यह तो बताइये कि आप टॉप लिस्ट में सबसे ऊपर कैसे रहते हैं। हमारा मतलब है कि आपका नाम टॉप फाइव्ह में ही कैसे रहता है? और ये पहले पाँच नाम ही क्यों हमेशा ऊपर नीचे होते रहते हैं?"
"आप भी अजीब हो! अरे भाई ये भला हम कैसे बता सकते हैं? ये तो टॉप लिस्ट बनाने वाले ही बता पायेंगे!"
"अब आप हमें बहलाइये मत लिख्खाड़ानन्द जी। आप अवश्य इस रहस्य को जानते हैं पर हमें बताना नहीं चाहते। भाई हम आपके इतने पुराने मित्र हैं, कम से कम हमें तो बता दीजिये।"
"अब हम क्या बतायें टिप्पण्यानन्द जी? टॉप लिस्ट को तो एक स्वचालित तंत्र बनाता है जो चिट्ठों की आवृति, बैकलिंक्स आदि के आधार पर टॉप चिट्ठों की लिस्टिंग करता है।"
"पर हमने तो देखा है कि कई ऐसे ब्लोगर हैं जो दिन में दो-दो पोस्ट लिखते हैं और टॉप लिस्ट से बाहर ही रहते हैं। इधर आप और आपके साथी हैं जो कि सप्ताह में सिर्फ दो पोस्ट लिखकर टॉप फाइव्ह में ही बने रहते हैं। हमने यह भी देखा है कि 88 बैकलिंक्स वाला 1 नंबर पर होता है और 184 बैकलिंक्स वाला 4 नंबर पर होता है। 33 बैकलिंक्स वाला टॉपलिस्ट के भीतर होता है 35 बैकलिंक्स वाला लिस्ट के बाहर। कई सालों से ब्लोगिंग करने वाले ब्लोगर का लिस्ट में नाम ही नहीं होता और जिन्हें ब्लोगिंग में आये जुम्मा-जुम्मा कुछ ही समय हुआ है ऐसे ब्लोगर लिस्ट में जगह पा जाते है। आखिर ये माजरा क्या है? कुछ हम भी तो जानें।"
"छोड़िये इन बातों को टिप्पण्यानन्द जी, आप तो बस इतना समझ लीजिये कि एक सीक्रेट फॉर्मूले के द्वारा हम उन्हीं ब्लोगर को लिस्ट में लेते हैं जिन्हें हमें लेना है। दूसरे चाहे लाख कोशिश कर लें पर हमारे चाहे बगैर लिस्ट में शामिल हो ही नहीं सकते। आखिर हम लोगों ने इतनी मेहनत की है फॉर्मूला बनाने में तो कम से कम उसका फायदा तो हमें ही मिलना चाहिये ना!"
"अच्छा तो ऐसी बात है! मान गये आप लोगों को लिख्खाड़ानन्द जी! जो जानने के लिये आये थे सो जान चुके। अब चलते हैं। नमस्कार!"
"नमस्कार!"