Wednesday, July 23, 2014

क्या गुमनामी बाबा उर्फ भगवनजी ही नेताजी सुभाष चन्द्र बोस (Subhash Chandra Bose) थे?


16 सितंबर, 1985 के दिन. फैजाबाद के सिविल लाइन्स में स्थित रामभवन में निवास करने वाले एक व्यक्ति की मृत्यु हुई जिन्हें गुमनामी बाबा के नाम से जाना जाता था। बताया जाता है कि गुमनामी बाबा सन् 1975 में फैजाबाद पधारे थे। उनके निवासकाल में उन्हें पास-पड़ोस के किसी भी व्यक्ति ने नहीं देखा था, यहाँ तक कि उनके मकान मालिक तक ने भी नहीं। वे स्वयं को गुप्त रखा करते थे और यदि किसी से बात करने की नौबत आ जाती थी तो परदे के पीछे से बात किया करते था। यही कारण है कि लोगों ने उन्हें गुमनामी बाबा नाम दे दिया।

गुमनामी बाबा के साथ उनकी एक सेविका सरस्वती देवी देवी रहती थीं जिन्हें वे जगदम्बे के नाम से बुलाया करते थे। सरस्वती देवी के बारे में कहा जाता है कि वे नेपाल के राजघराने से ताल्लुक रखती थीं।

गुमनामी बाबा की मृत्यु का समाचार फैजाबाद में आग की तरह फैल गई। लोग उन्हें एक नजर देखना चाहते थे किन्तु बाबा की मृत्यु के दो दिन बाद अत्यन्त गोपनीयता के साथ उनका अन्तिम संस्कार उनके शरीर को तिरंगे में लपेट सरयू के गुप्तार घाट में कर दिया गया।

किन्तु जब गुमनामी बाबा के कमरे के सामान को देखकर लोग आश्चर्य में रह गये। उन सामानों की वजह से लोगों को लगने लगा कि गुमनामी बाबा कोई साधारण व्यक्ति नहीं थे बल्कि वे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस (Subhash Chandra Bose) हो सकते हैं।

स्थानीय लोगों ने यह भी बताया कि 23 जनवरी तथा दुर्गा पूजा के दिनों में गुमनामी बाबा से मिलने बहुत लोग आया करते थे, जो गुमनामी बाबा को भगवनजी सम्बोधित किया करते थे। उल्लेखनीय है कि  23 जनवरी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस (Subhash Chandra Bose) जी का जन्म दिवस है।

बताया जाता है गुमनामी बाबा फर्राटेदार अंग्रेजी और जर्मन बोलते थे तथा साथ ही और भी अनेक भाषाओं का उन्हें ज्ञान था।

गुमनामी बाबा उर्फ भगवनजी के कमरे से बरामद सामान को प्रशासन नीलाम करने जा रहा था। तब बाबा के कुछ भक्तों ने न्यायालय का शरण ले लिया।

कोर्ट के आदेशानुसार मार्च’ 86 से सितम्बर’ 87 के बीच गुमनामी बाबा के सामान को 24 ट्रंकों में सील किया गया जो कि आज भी सरकारी खजाने में जमा हैं।

26 नवम्बर 2001 को इन ट्रंकों के सील को मुखर्जी आयोग के समक्ष खोला गया और इनमें बन्द 2600 से भी अधिक चीजों की जाँच की गई। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं के अतिरिक्त इन सामानों में नामी-गिरामी लोगों, जैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के “गुरूजी”, प्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री तथा राज्यपाल के पत्र, नेताजी से जुड़े समाचारों-लेखों के कतरन, रोलेक्स और ओमेगा की दो कलाई-घड़ियाँ, (उल्लेखनीय है कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ऐसी ही घड़ियाँ वे पहनते थे), जर्मन दूरबीन, इंगलिश टाइपराइटर, पारिवारिक छायाचित्र, हाथी दाँत का टूटा हुआ स्मोकिंग पाईप इत्यादि निकले। यहाँ तक कि नेताजी के बड़े भाई सुरेश बोस को खोसला आयोग द्वारा भेजे गये सम्मन की मूल प्रति भी उन सामानों में थी।

एक समाचार के अनुसार सरकारी खज़ाने में जमा गुमनामी बाबा का सामान
  • सुभाष चंद्र बोस के माता-पिता/परिवार की निजी तस्वीरें
  • कलकत्ता में हर वर्ष 23 जनवरी को मनाए जाने वाले नेताजी जन्मोत्सव की तस्वीरें
  • लीला रॉय की मृत्यु पर हुई शोक सभाओं की तस्वीरें
  • नेताजी की तरह के दर्जनों गोल चश्मे
  • 555 सिगरेट और विदेशी शराब का बड़ा ज़खीरा
  • रोलेक्स की जेब घड़ी
  • आज़ाद हिन्द फ़ौज की एक यूनिफॉर्म
  • 1974 में कलकत्ता के दैनिक 'आनंद बाज़ार पत्रिका' में 24 किस्तों में छपी खबर 'ताइहोकू विमान दुर्घटना एक बनी हुई कहानी' की कटिंग्स
  • जर्मन, जापानी और अंग्रेजी साहित्य की ढेरों किताबें
  • भारत-चीन युद्ध सम्बन्धी किताबें जिनके पन्नों पर टिप्पणियां लिखी गईं थीं
  • सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु की जांच पर बने शाहनवाज़ और खोसला आयोग की रिपोर्टें
  • सैंकड़ों टेलीग्राम, पत्र आदि जिन्हें भगवनजी के नाम पर संबोधित किया गया था
  • हाथ से बने हुए नक़्शे जिनमे उस जगह को इंकित किया गया था जहाँ कहा जाता है नेताजी का विमान क्रैश हुआ था
  • आज़ाद हिन्द फ़ौज की गुप्तचर शाखा के प्रमुख पवित्र मोहन रॉय के लिखे गए बधाई सन्देश
क्या गुमनामी बाबा उर्फ भगवनजी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस (Subhash Chandra Bose) थे? यदि वे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस (Subhash Chandra Bose) थे तो गुमनामी जीवन व्यतीत करने के लिए क्यों विवश हुए?
हो सकता है कि उपरोक्त प्रश्नों के उत्तर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस (Subhash Chandra Bose) से सम्बन्धित उन फाइलों में छुपे हुए हों जिन्हें आज तक सरकार ने गुप्त रखा हुआ है।

Monday, July 21, 2014

क्या जनता कभी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस (Subhash Chandra Bose) के बारे में पूरा पूरा जान पायेगी?


भारत सरकार के पास नेताजी सुभाष चन्द्र बोस (Subhash Chandra Bose) से सम्बन्धित ऐसी फाइलें हैं जिन्हें कि गुप्त रखा गया है।

आखिर भारत की जनता अपने प्रिय स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस (Subhash Chandra Bose) से सम्बन्धित जानकारी क्यों नहीं प्राप्त कर सकती?

भारत सरकार अब तक यही कहती रही है कि इन फाइलों का सार्वजनिक होना राष्ट्रहित में नहीं है।

कम से कम जनता यह तो जाने कि आखिर वे राष्ट्रहित कौन से हैं? उन फाइलों के सार्वजनिक होने से आखिर राष्ट्र का किस प्रकार का अहित होने की आशंका है?

बताया जाता है कि ताईवान की राजधानी ताईपेइ में 18 अगस्त, 1945 के दिन एक विमान दुर्घटना में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस (Subhash Chandra Bose) का निधन हो गया था। भारत सरकार भी आज तक इसी बात को स्वीकार करती रही है। किन्तु ताइवान सरकार ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया कि 18 अगस्त, 1945 को ताइवान में कोई विमान हादसा हुआ ही नहीं था।

नेट में खोजते हुए हमें समय दर्पण नामक ब्लोग के एक पोस्ट http://samaydarpan.blogspot.in/2009/11/blog-post_2737.html में निम्न जानकारी मिली -
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के चित्रों को सरकारी कार्यालय आदि स्थानों पर लगाये जाने पर पाबन्दी क्यों लगाई गयी? यह पाबन्दी भारत सरकार की सहमति पर बम्बई सरकार ने ११ फरवरी १९४९ को गुप्त आदेश संख्या नं० 155211 के अनुसार प्रधान कार्यालय बम्बई उप-क्षेत्र कुलाबा-६ द्वारा लगाई गई।

नेताजी को अन्तर्राष्ट्रीय युद्ध अपराधी भारतीय नेताओं ने क्यों स्वीकार किया? अन्तर्राष्ट्रीय अपराधी गुप्त फाईल नं० 10(INA) क्रमांक २७९ के अनुसार नेताजी को १९९९ तक युद्ध अपराधी घोषित किया गया था, जिस फाईल पर जवाहर लाल नेहरू के हस्ताक्षर हैं। परन्तु 3-12-1968 में यू.एन.ओ. परिषद के प्रस्ताव नं० 2391/ xx3 के अनुसार १९९९ की बजाय आजीवन युद्ध अपराधी घोषित किया जिस पर श्रीमती इन्दिरागांधी के हस्ताक्षर हैं।
समय-समय पर आवाज उठने के कारण भारत सरकार ने सुभाष चन्द्र बोस (Subhash Chandra Bose) से सम्बन्धित रहस्यों से पर्दा उठाने के लिए तीन बार समितियों का गठन किया, वे समितियाँ थीं - शाहनवाज समिति, खोसला आयोग और मुखर्जी आयोग। किन्तु इन तीनों समितियों के रिपोर्ट रहस्य के आवरण को हटा नहीं सकीं।

अपुष्ट जानकारी के अनुसार 1945 में विमान दुर्घटना में दिवंगत ही नहीं हुए थे। वे जीवित थे और अलग अलग समय में विभिन्न नामों के साथ अलग अलग स्थानों में निवास किया था। कुछ काल पहले बीबीसी हिन्दी ने भी इस सम्बन्ध में दो पोस्ट http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2013/02/130213_netaji_gumnami_faizabad_partone_ns.shtml तथा http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2013/02/130215_netaji_gumnami_faizabad_final_ns.shtml प्रकाशित किया था।

क्या आपको नहीं लगता कि सुभाष चन्द्र बोस (Subhash Chandra Bose) हमारे समस्त राष्ट्र के थे और सरकार के पास रखी गई गुप्त फाइलों में बंद जानकारी जनता के समक्ष आनी चाहिए?

अब नेताजी के परिजनों ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जो को पत्र लिखकर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस (Subhash Chandra Bose) की सच्चाई को आम जनता के समक्ष लाने के लिए एक स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम बनाने का आग्रह किया है।

मोदी जी के अनुसार सुभाष चन्द्र बोस उनके प्रेरणा स्रोत रहे हैं। 8 मई को बनारस के एक चुनावी सभा में मोदी जी ने आज़ाद हिंद फ़ौज में काम कर चुके तथा नेताजी अंगरक्षक रह चुके कर्नल’ निज़ामुद्दीन के के पैर भी छुए थे। लगता है कि मोदी जी जल्द ही इस रहस्य पर से आवरण हटाकर महान देशभक्त नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से सम्बन्धित समस्त जानकारी को जनता से अवगत कराने का प्रयास अवश्य करेंगे।

पत्नी स्तुति - हे सुमुखि! हे मृदुभाषिणी! हे देवि! हे भार्या!


(विवाहोपरान्त पहले साल तक)

हे आर्यावर्त की आधुनिक आर्या!
हे सुमुखि! हे मृदुभाषिणी!
हे देवि! हे भार्या!

पाणिग्रहण करके मुझसे तुमने
किया बड़ा उपकार है,
तुझे देख हर सपना मेरे
हो जाता साकार है।

हे मृगनयनी, हे पिकयनी
पाकर तेरा प्रणय दान
हर निशा बनी है पूर्णचन्द्र
सँवर उठे मेरे दिनमान।

हर्षित हृदय होकर जब तू
आती मेरे पास है
यह अकिंचन प्राणी तेरा
बन जाता फिर दास है।

(विवाहोपरान्त पहले साल के बाद)

हे आर्यावर्त की आधुनिक आर्या!
हे विकराले! हे कटुभाषिणी!
हे देवि! हे भार्या!

पाणिग्रहण किया था तुझसे
सोच के कि तू कितनी सुन्दर है,
पता नहीं था
मेरी बीबी मेरी खातिर
"साँप के मुँह में छुछूंदर है"

निगल नहीं पाता हूँ तुझको
और उगलना मुश्किल है
समझा था जिसको कोमलहृदया
अब जाना वो संगदिल है

खब्त-खोपड़ी-खाविन्द हूँ तेरा
जीवन भर तुझको झेला हूँ
"पत्नी को परमेश्वर मानो"
जैसी दीक्षा देने वाले गुरु का
सही अर्थ में चेला हूँ

बैरी है तू मेरे ब्लोगिंग की
क्यूँ करती मेरे पोस्ट-लेखन पर आघात है?
मेरे ब्लोगिंग-बगिया के लता-पुष्प पर
करती क्यों तुषारापात है?

हे विकराले! हे कटुभाषिणी!
हे देवि! हे भार्या!

बस एक पोस्ट लिखने दे मुझको
और प्रकाशित करने दे
खाली-खाली हृदय को मेरे
उल्लास-उमंग से भरने दे
तेरे इस उपकार के बदले
मैं तेरा गुण गाउँगा
स्तुति करूँगा मैं तेरी
और तेरे चरणों में
नतमस्तक हो जाउँगा।