16 सितंबर, 1985 के दिन. फैजाबाद के सिविल लाइन्स में स्थित रामभवन में निवास करने वाले एक व्यक्ति की मृत्यु हुई जिन्हें गुमनामी बाबा के नाम से जाना जाता था। बताया जाता है कि गुमनामी बाबा सन् 1975 में फैजाबाद पधारे थे। उनके निवासकाल में उन्हें पास-पड़ोस के किसी भी व्यक्ति ने नहीं देखा था, यहाँ तक कि उनके मकान मालिक तक ने भी नहीं। वे स्वयं को गुप्त रखा करते थे और यदि किसी से बात करने की नौबत आ जाती थी तो परदे के पीछे से बात किया करते था। यही कारण है कि लोगों ने उन्हें गुमनामी बाबा नाम दे दिया।
गुमनामी बाबा के साथ उनकी एक सेविका सरस्वती देवी देवी रहती थीं जिन्हें वे जगदम्बे के नाम से बुलाया करते थे। सरस्वती देवी के बारे में कहा जाता है कि वे नेपाल के राजघराने से ताल्लुक रखती थीं।
गुमनामी बाबा की मृत्यु का समाचार फैजाबाद में आग की तरह फैल गई। लोग उन्हें एक नजर देखना चाहते थे किन्तु बाबा की मृत्यु के दो दिन बाद अत्यन्त गोपनीयता के साथ उनका अन्तिम संस्कार उनके शरीर को तिरंगे में लपेट सरयू के गुप्तार घाट में कर दिया गया।
किन्तु जब गुमनामी बाबा के कमरे के सामान को देखकर लोग आश्चर्य में रह गये। उन सामानों की वजह से लोगों को लगने लगा कि गुमनामी बाबा कोई साधारण व्यक्ति नहीं थे बल्कि वे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस (Subhash Chandra Bose) हो सकते हैं।
स्थानीय लोगों ने यह भी बताया कि 23 जनवरी तथा दुर्गा पूजा के दिनों में गुमनामी बाबा से मिलने बहुत लोग आया करते थे, जो गुमनामी बाबा को भगवनजी सम्बोधित किया करते थे। उल्लेखनीय है कि 23 जनवरी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस (Subhash Chandra Bose) जी का जन्म दिवस है।
बताया जाता है गुमनामी बाबा फर्राटेदार अंग्रेजी और जर्मन बोलते थे तथा साथ ही और भी अनेक भाषाओं का उन्हें ज्ञान था।
गुमनामी बाबा उर्फ भगवनजी के कमरे से बरामद सामान को प्रशासन नीलाम करने जा रहा था। तब बाबा के कुछ भक्तों ने न्यायालय का शरण ले लिया।
कोर्ट के आदेशानुसार मार्च’ 86 से सितम्बर’ 87 के बीच गुमनामी बाबा के सामान को 24 ट्रंकों में सील किया गया जो कि आज भी सरकारी खजाने में जमा हैं।
26 नवम्बर 2001 को इन ट्रंकों के सील को मुखर्जी आयोग के समक्ष खोला गया और इनमें बन्द 2600 से भी अधिक चीजों की जाँच की गई। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं के अतिरिक्त इन सामानों में नामी-गिरामी लोगों, जैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के “गुरूजी”, प्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री तथा राज्यपाल के पत्र, नेताजी से जुड़े समाचारों-लेखों के कतरन, रोलेक्स और ओमेगा की दो कलाई-घड़ियाँ, (उल्लेखनीय है कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ऐसी ही घड़ियाँ वे पहनते थे), जर्मन दूरबीन, इंगलिश टाइपराइटर, पारिवारिक छायाचित्र, हाथी दाँत का टूटा हुआ स्मोकिंग पाईप इत्यादि निकले। यहाँ तक कि नेताजी के बड़े भाई सुरेश बोस को खोसला आयोग द्वारा भेजे गये सम्मन की मूल प्रति भी उन सामानों में थी।
एक समाचार के अनुसार सरकारी खज़ाने में जमा गुमनामी बाबा का सामान
- सुभाष चंद्र बोस के माता-पिता/परिवार की निजी तस्वीरें
- कलकत्ता में हर वर्ष 23 जनवरी को मनाए जाने वाले नेताजी जन्मोत्सव की तस्वीरें
- लीला रॉय की मृत्यु पर हुई शोक सभाओं की तस्वीरें
- नेताजी की तरह के दर्जनों गोल चश्मे
- 555 सिगरेट और विदेशी शराब का बड़ा ज़खीरा
- रोलेक्स की जेब घड़ी
- आज़ाद हिन्द फ़ौज की एक यूनिफॉर्म
- 1974 में कलकत्ता के दैनिक 'आनंद बाज़ार पत्रिका' में 24 किस्तों में छपी खबर 'ताइहोकू विमान दुर्घटना एक बनी हुई कहानी' की कटिंग्स
- जर्मन, जापानी और अंग्रेजी साहित्य की ढेरों किताबें
- भारत-चीन युद्ध सम्बन्धी किताबें जिनके पन्नों पर टिप्पणियां लिखी गईं थीं
- सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु की जांच पर बने शाहनवाज़ और खोसला आयोग की रिपोर्टें
- सैंकड़ों टेलीग्राम, पत्र आदि जिन्हें भगवनजी के नाम पर संबोधित किया गया था
- हाथ से बने हुए नक़्शे जिनमे उस जगह को इंकित किया गया था जहाँ कहा जाता है नेताजी का विमान क्रैश हुआ था
- आज़ाद हिन्द फ़ौज की गुप्तचर शाखा के प्रमुख पवित्र मोहन रॉय के लिखे गए बधाई सन्देश
हो सकता है कि उपरोक्त प्रश्नों के उत्तर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस (Subhash Chandra Bose) से सम्बन्धित उन फाइलों में छुपे हुए हों जिन्हें आज तक सरकार ने गुप्त रखा हुआ है।