Saturday, September 26, 2009

यह तो तय है कि हिन्दी एग्रीगेटर्स का प्रचार होना चाहिए

हिन्दी को आगे लाने के लिए आप सभी कितने उत्साहित हैं यह तो इसी से पता चलता है कि आप लोगों ने मेरे कल के पोस्ट "जरूरत एक हिन्दी ब्लोगर बनाने की नहीं बल्कि एक हिन्दी पाठक बनाने की है" में इतनी अधिक रुचि दिखाई। आप सभी लोगों को मेरे पोस्ट में रुचि दिखाने और टिप्पणियों के द्वारा अपने विचार प्रदर्शित करने के लिए धन्यवाद!

आप सभी के उत्साह को देखते हुए मुझे विश्वास हो गया है कि यथाशीघ्र नेट में हिन्दी छा जायेगी।

संजीव तिवारी जी के कथन से मैं पूर्णतः सहमत हूँ कि "हिन्दी एग्रीगेटर्स का प्रचार किया जाए"। प्रचार करने के कुछ तरीके मुझे सूझे हैं जिनको बताना ही मेरे इस पोस्ट का उद्देश्य है।

याहू चैट, याहू समूह और ऑर्कुट वे स्थान हैं जहाँ हमारे हिन्दीभाषी मित्र बहुतायत से पाए जाते हैं। तो क्यों न हम इन्हीं स्थानों में ब्लोगवाणी, चिट्ठाजगत आदि अपने हिन्दी एग्रीगेटर्स का प्रचार करें।

याहू चैटः हम ब्लोगर्स में से अधिकतर साथी चैट तो करते ही होंगे। तो हमें याहू चैट के चैट रूम्स में एक के बाद एक जाना है और नीचे स्नैपशॉट में दर्शाए गए संदेश जैसा कोई आकर्षक संदेश बना कर चैट रूम के मुख्य विंडो में भेज देना है ताकि चैट रूम में उपस्थित सारे सदस्यों को वह संदेश मुख्य विंडो में नजर आने लगे।

याहू समूहः याहू समूहों की काफी लोकप्रियता है और हमारे बहुत से लोग अनेकों समूहों के सदस्य हैं। हम भी ऐसे समूहों के सदस्य बन कर वहाँ एग्रीगेटर्स के विषय में संदेश देना है और साथ ही समूह में अपने एग्रीगेटर्स के लिंक डाल देना है। लिंक डालने के लिए समूह के मीनू में लिंक्स को क्लिक कर देना है। उसके बाद वहा दिए गए निर्देशों के अनुसार लिंक्स डाल देना है। इस प्रकार से हमारे एग्रीगेटर्स के लिंक्स वहाँ हमेशा के लिए रह जायेंगे।

ऑर्कुटः ऑर्कुट के विषय में बहुत अधिक बताने की जरूरत नहीं है क्योंकि आप सभी इसके बारे में अच्छी तरह से जानते हैं। करना सिर्फ यह है कि वहाँ जितने भी अधिक मित्र बन सकें बनाना है और एग्रीगेटर्स के विषय में एक संदेश बना कर एक ही क्लिक से सभी मित्रों को एक बार में ही संदेश भेज देना है।

युवा वर्ग किसी युवा से अपेक्षाकृत अधिक प्रभावित होते हैं बनिस्बत के किसी प्रौढ़ या वृद्ध व्यक्ति के। अतः मेरी अपेक्षा आप लोग इस कार्य को अधिक प्रभावशाली ढंग से तथा सफलतापूर्वक कर सकेंगे।

जै हिन्दी!

हिन्दी ब्लोग जगत अमर हो!!

Friday, September 25, 2009

जरूरत एक हिन्दी ब्लोगर बनाने की नहीं बल्कि एक हिन्दी पाठक बनाने की है

भारत में इंटरनेट यूजर्स की वर्तमान संख्या 8,10,00,000 (आठ करोड़ दस लाख) है, यह मैं नहीं कहता बल्कि इंटरनेटवर्ल्डस्टैट्स कहता है। यकीन न हो तो इस लिंक को क्लिक कर के देख लें। तो इन आठ करोड़ दस लाख लोगों में से हिन्दी बोलने, समझने तथा पढ़ने वाले भी तो करोड़ों लोग होंगे ही। किन्तु खेद की बात तो यह है कि हिन्दी ब्लोग्स को पढ़ने के लिए इन लोगों में से कुछ सौ लोग भी शायद ही आते होंगे। ब्लोगवाणी में आज अधिक पढ़े गये की संख्या प्रायः 100 से 200 तक रहती है। यह संख्या शायद ही कभी 200 से ऊपर गई हो और कई बार तो यह 100 से भी कम ही रहती है। चिट्ठाजगत तथा अन्य एग्रीगेटर्स से भी शायद इतने ही पाठक आते हों। कहने का तात्पर्य यह है कि हिन्दी ब्लोग्स की संख्या तो पाँच अंकों को पार कर गई है किन्तु पाठकों की संख्या ने शायद ही कभी तीन अंकों को पार किया हो।

हिन्दी ब्लोगिंग के शुरुवात के बाद से एक लंबा समय व्यतीत हो जाने के बाद भी हम ब्लोगर्स ही एक दूसरे को पढ़ते हैं। किसी कवि गोष्ठी, जहाँ सिर्फ कवि लोग एकत्रित होकर एक दूसरे को अपनी कविताएँ सुनाते हैं, के जैसे ही हमने ब्लोग गोष्ठी बना लिया है। हमें किसी विराट कवि सम्मेलन, जहाँ पर कि श्रोताओं की विशाल संख्या आती है, के जैसे ब्लोग सम्मेलन करना है जहाँ कि पाठकों की विशाल संख्या हो। और फिर हम ब्लोगर्स भी अन्य सभी ब्लोगर्स को न पढ़ कर सिर्फ उन थोड़े से ब्लोगर्स को पढ़ते हैं जिनका लेख हमें पसंद आता है। अब जब हम एक नया ब्लोगर बनाने की बात कहते हैं तो इसका मतलब यह होता है कि हम अपने ब्लोग गोष्ठी के सदस्यों की संख्या में ही इजाफा कर रहे हैं जबकि हमें पाठकों की संख्या बढ़ाना है।

ब्लोगर बनने के लिए, थोड़ी ही सही, लेखन प्रतिभा की आवश्यकता होती है किन्तु पाठक बनने के लिए इस प्रतिभा का होना अनिवार्य नहीं है। तो क्यों न हम नये नये ब्लोगर्स बनाने के बदले नये नये पाठक बनाने का प्रयास करें? हिन्दी ब्लोगिंग को सफल और व्यावसायिक बनाने के लिए हमें पाठकों की संख्या बढ़ानी ही होगी।

अब प्रश्न यह उठता है कि आखिर, करोड़ों की संख्या में हिन्दीभाषी लोगों ने नेट प्रयोगकर्ता होने बावजूद भी, हमारे ब्लोग्स के लिए पाठक क्यों नहीं मिलते? यदि हम इस प्रश्न का उत्तर खोज लें तो शायद नये पाठक बनाने में हमें आसानी हो। मेरी सूझ के अनुसार हिन्दी पाठकों की संख्या कम होने के निम्न कारण हो सकते हैं:

नेट में आने वाले अधिकतम लोगों को आज भी नहीं पता है कि हिन्दी ब्लोगिंग जैसी किसी चीज का अस्तित्व भी है। हमें लोगों को इस विषय में जानकारी देनी होगी। तो उन्हें कैसे जानकारी दी जाए? उन्हें जानकारी देने के लिए सबसे पहले यह जानना आवश्यक है कि आखिर नेट में आने वाले ये हिन्दीभाषी लोग जाते कहाँ हैं? उनका ठिकाना मिलने पर ही तो उनसे सम्पर्क करके हम उन्हें हिन्दी ब्लोगिंग के बारे में बता सकेंगे। मैं समझता हूँ कि इन लोगों की एक बड़ी संख्या आर्कुट, याहू चैट और याहू समूहों में मिल जाएगी। हमारे बहुत से युवा ब्लोगर मित्र भी आर्कुट, याहू चैट और याहू समूहों में जाते होंगे। यदि वे उन्हें मित्र बना कर निजी संदेश, निजी मेल आदि के द्वारा हिन्दी ब्लोगिंग और हिन्दी ब्लोग एग्रीगेटर्स के विषय में जानकारी देना आरम्भ करें तो अवश्य ही हिन्दी ब्लोग्स के पाठकों की संख्या में बढ़ोत्तरी होगी।

अच्छी गुणवत्ता वाली पाठ्य सामग्री की कमी भी पाठक न मिलने का एक कारण है। कुछ पाठक यदि हमारे ब्लोग्स में आ भी जाते हैं तो उन्हें या तो अपनी रुचि की पाठ्य सामग्री नहीं मिल पाती या फिर सामग्री की गुणवत्ता में कमी दिखाई पड़ता है। परिणामस्वरूप वे फिर से पलट कर नहीं आते। अब यदि हमारे ब्लोग में वह सामग्री हो जिससे कि पाठक टी.व्ही., प्रिंट मीडिया या नेट के न्यूज साइट्स के द्वारा पहले ही वाकिफ हो चुका हो तो वह हमारे ब्लोग में क्यों रुकेगा?

ऐसे ही और भी कई कारण आप लोगों को भी सूझ सकते हैं।

तो आइये हम सभी मिल कर अधिक से अधिक लोगों को हिन्दी ब्लोग्स के विषय में जानकरी देने और अपने ब्लोग्स के पाठकों की संख्या को बढ़ाने का संकल्प लें।

Thursday, September 24, 2009

क्या सोचकर टिप्पणी की थी ... सुरेश चिपलूनकर खुश होगा ... शबासी देगा ...

भइ सुरेश चिपलूनकर जी के लेख क्या "नेस्ले" कम्पनी, भारत के बच्चों को "गिनीपिग" समझती है? Nestle Foods GM Content and Consumer Protection ने तो कमाल ही कर दिया! कट्टर विरोधियों ने भी ऐसी टिप्पणियाँ कि जैसे कि शक्कर की चाशनी टपक रही हो!! सिर्फ टिप्पणियाँ ही नहीं कीं चटका भी लगाया!!!


स्वच्छ(?) हजरत तो जो हैं सो हैं, तीन हफ्ते में किसी को पागल कर देने वाले औंधे घड़े खुद तीन मिनट में पागल हो गए और कसीदे पढ़ने लगे।

अब आप बोलोगे कि अवधिया जी (सठियाये बुड्ढे) आप भी तो बस मौका खोजते रहते हो लट्ठ ले कर पीछे पड़ने की। आखिर क्या बुरा किया उन्होंने? तो जवाब में हम भी आपसे पूछ लेते हैं कि आपने पढ़ा है उन टिप्पणियों को? उन्हें पढ़ कर एक बच्चा भी समझ सकता है कि उनमें सुरेश जी की प्रशंसा से कहीं अधिक आत्म प्रशंसा है। उनमें दर्शाया गया है कि वे अगर चटका लगाकर सुरेश जी पर एहसान नहीं करते तो सुरेश जी के लेख को कोई पूछने वाला नहीं था। वो अगर सुरेश जी के लेख को हिन्दी के एग्रीगेटर्स में अगर आगे लाते तो पढ़ना तो दूर कोई देखता तक नहीं। ये बताया गया है कि सुरेश जी अकेले राष्ट्र के हित में सोचने वाले व्यक्ति नहीं हैं बल्कि टिप्पणी करने वाले उनसे भी अधिक राष्ट-हितू हैं।

हम तो सिर्फ यह कहते हैं कि किसी की प्रशंसा करनी है तो दिल से करो, सदाशयता के साथ करो। जिसकी प्रशंसा कर रहे हो उस पर एहसान जताने के लिए और उसकी प्रशंसा के बहाने आत्म प्रशंसा करने के लिए मत करो। या फिर प्रसंशा करो ही मत

Tuesday, September 22, 2009

पाकिस्तान बना - पर किसकी लाश पर?

महात्मा गांधी ने विभाजन के पूर्व हिन्दुओं से अनुरोध किया था कि वे अपना घर बार छोड़ कर कहीं न जाएँ क्योंकि देश का विभाजन नहीं होगा। भरी सभा में उनका कथन था - "यदि पाकिस्तान बनेगा तो मेरी लाश पर बनेगा"

(चित्र स्रोतः http://www.hindu.com/th125/gallery/thim001.htm)

किन्तु पाकिस्तान बना

विभाजन के पहले:


(
चित्र स्रोतः http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00maplinks/modern/maps1947/beforemax.gif)

विभाजन के बाद:

(चित्र स्रोतः http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00maplinks/modern/maps1947/aftermax.gif)

हाँ तो पाकिस्तान बना ...

पर
किसकी लाश पर? महात्मा गांधी की लाश पर? या 25 लाख हिन्दू सिखों की लाशों पर?

महात्मा जी का कथन कोरा झूठ साबित हुआ।

दंगों में मारे गये लोगों की लाशों का ढेर

(चित्र स्रोतः http://news.bbc.co.uk/2/shared/spl/hi/pop_ups/06/south_asia_india0s_partition/html/7.stm)

दंगों में मारे गये लोगों का सामूहिक अग्नि संस्कार

(चित्र स्रोतः http://news.bbc.co.uk/2/shared/spl/hi/pop_ups/06/south_asia_india0s_partition/html/9.stm)

असंख्य माताओं और बहनों का शीलहरण हुआ। अनगिनत लोगों को अपना घर बार, जमीन जायजाद, व्यवसाय व्यापार छोड़ कर दरिद्र बनना पड़ा और शरणार्थी जीवन व्यतीत करने के लिए विवश होना पड़ा।

पाकिस्तान से भारत आने वाली रेलगाड़ी

(चित्र स्रोतः http://www.hindu.com/th125/gallery/thim004.htm)

दिल्ली से पाकिस्तान जाने वाली रेलगाड़ी

(चित्र स्रोतः http://en.wikipedia.org/wiki/File:Train-to-pakistan-delhi1947.jpg)

शरणार्थी शिविर

(चित्र स्रोत http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00routesdata/1900_1999/partition/camps/camps.html)

एक और शरणार्थी शिविर

(चित्र स्रोत http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00routesdata/1900_1999/partition/camps/camps.html)

पंजाब उच्च न्यायालय के एक न्यायमूर्ति श्री जी.डी. खोसला की पुस्तक ‘‘The stern Reckoning’’ पुस्तक में हिन्दुस्तान का विभाजन, विभाजन तक हुई घटनाएँ और विभाजन के भयानक परिणामों से सम्बन्धित अध्यायों के अनुसारः

गाड़ियाँ भर-भरकर निर्वासितों के दल हिन्दुस्तान आने लगे। उसका ब्यौरा भी हृदय विदीर्ण करने वाला है। वह भयाक्रान्त मानवता का बड़ा प्रवाह बह रहा था। डिब्बों में साँस लेने जितना भी स्थान न था। डिब्बों की छत पर बैठकर भी लोग आते थे। पश्चिमी पंजाब के मुसलमानों का आग्रह था कि लोगों का स्थानान्तरण होना चाहिए, परन्तु वह इतने सीधे, बिना किसी छह के हो, यह उन्हें नहीं भाता था। इन हिन्दुओं के जाते समय भयानकता, क्रूरता, पशुता अमानुषता, अवहेलना आदि भावों का अनुभव मिलना ही चाहिए, ऐसी उनकी सोच थी। उसी के अनुसार उनका व्यवहार था।

(छेदक 12 ए 9)

किसी स्टेशन पर गाड़ी घण्टों ठहरती थी। उस विलम्ब का कोई कारण न था। पानी के नल तोड़ दिए गए थे। अन्य अप्राप्य किया जाता था। छोटे बच्चे भूख और प्यास से छटपटा कर मरते थे। यह तो सदा का अनुभव बना था। एक अधिकृत सूचना के अनुसार माता-पिताओं ने अपने बच्चों को पानी के स्थान पर अपना मूत्र दिया, किन्तु यह भी उनके पास होता तो ! निर्वासितों पर हमले हुआ करते थे। उनको ले जाने वाले ट्रक और लारियाँ रास्ते में रोकी जाती थीं। लड़कियाँ भगायी जाती थीं। जो युवावस्था में थीं, ऐसी लड़कियों पर बलात्कार हुआ करते थे। वे भगायी भी जाती थीं और दूसरे लोगों की हत्या की जाती थी। यदि कोई पुरुष बच जाए, उसे अपने प्राण बच गए, यह मानकर ही संतुष्ट रहना पड़ता था।

(छेदक 12 ए 10)

निर्वासितों का काफिला झुण्ड की भाँति चल रहा था। वृद्ध पुरुषों तथा स्त्रियों का चलते-चलते दम घुट जाता था। वे मार्ग के किनारे मरने के लिए ही छोड़े जाते थे। काफिला आगे बढ़ जाता था। उनकी देखभाल करने का किसी के पास समय न होता था। रास्तों शवों से भरे थे। शव गल जाते थे। उनसे दुर्गन्ध फैलती थी। कुत्ते और गिद्ध उन्हें अपना भोजन बनाते थे। ऐसे समूह मानो मनुष्य की पराभूत चित्त की, शोक विह्वल और अगनित मन की अन्त्ययात्रा ही थी।

(छेदक 12 ए 11)

अल्पसंख्यकों का बरबस निष्कासन करना, यही मुस्लिम लीग और पाकिस्तान की रचना को प्रोत्साहित करने वालों का मन्तव्य था। अतएव उन लोगों से सद्व्यवहार, सहानुभूति अथवा सुविधाओं की अपेक्षा करना अर्थहीन था। उनके सैनिक और आरक्षीगण (पुलिस) उनके यात्रारक्षी दल प्रायः मुसलमान थे। उनसे निर्वासितों को रक्षण मिलना असंभव ही था। निर्वासितों को भी उन पर विश्वास न था। क्योंकि उन्हें रक्षण देने की अपेक्षा, अपने धर्मबन्धुओं द्वारा चलाए लूटपाट के अभियान में हाथ बंटाने का उन्हें अधिक मोह हुआ करता था।

(छेदक 12 ए 12)

पश्चिमी पंजाब से आई निर्वासितों की गाड़ियों पर कई हमले हुआ करते थे, किन्तु 14 अगस्त, 1947 के पश्चात् जो हमले हुए, वे अत्यधिक क्रूरतापूर्वक थे। सितम्बर में झेलम जिले के पिंडदादनखान गाँव से चल पड़ी गाड़ियों पर तीन स्थानों पर आक्रमण हुए। दो सौ स्त्रियों को या तो मारा गया या भगाया गया था। वहाँ से निकली गाड़ी पर वजीराबाद के पास हमला हुआ। वह गाड़ी सीधे रास्ते से लाहौर जाने के बजाय टेढ़े रास्ते सियालकोट की ओर घुमायी गयी। यह सितम्बर में हुआ। अक्टूबर में सियालकोट से आने वाली एक गाड़ी पर ऐसा ही अत्याचारी प्रयोग किया गया, किन्तु जनवरी, 1948 में बन्नू से निकली गाड़ी पर गुजरात स्थानक पर विशेष रूप से क्रूर हमला हुआ। हिन्दुओं का घोर संहार हुआ। उसी गाड़ी पर खुशाब स्थानक पर भी हमला हुआ। सरगोधा और लायलपुर के रास्ते वह गाड़ी सीधी लाहौर लाई जाने के बजाय खुशाब, मालकवाल, लालामोसा गुजरात और वजीराबाद जैसे दूर के मार्ग से लाहौर लाई गई। बिहार का सैनिकदल यात्रारक्षा के लिए नियुक्त किया गया था, उन पर भी शस्त्रधारी पठानों ने हमला किया था, गोलियाँ बरसायी थीं। यात्रारक्षी दल ने प्रत्युत्तर में गोली चलायी, किन्तु शीघ्र ही उनका गोला बारुद समाप्त हो गया। जैसे ही पठानों को यह भान हुआ, तीन सहस्त्र पठानों ने गाड़ी पर हमला कर दिया। पाँच सौ लोगों को कत्ल कर दिया। यात्री अधिकतर बन्नू की ओर के थे और उनमें से कुछ धनवान थे। उनको लूट लिया गया। यह सब जनवरी, 1948 में हुआ।

(छेदक 12 ए 13)

(कोटेड सामग्री http://pustak.org/bs/home.php?bookid=4418 से साभार)

देश का विभाजन एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी। विभाजन एक ऐसा घाव है जो हमेशा हमेशा के लिए नासूर बन कर रह गया है।

Monday, September 21, 2009

देवी नहीं आती दारू दुकान बंद कराने

हमारे रायपुर में:

देवी नहीं आती दारू दुकान बंद कराने नौ दिन तक, फिर भी लोग नवरात्रि में खुद से दारू पीना बन्द कर देते हैं!

गाँधी जयन्ती जैसे राष्ट्रीय पर्व में शासन दारू दुकान बन्द करा देती है फिर भी लोग उस दिन पीते हैं।

और आपके यहाँ?

क्या करें कि यूट्यूब वाली व्हीडियो बीच बीच में न रुके और सही सही चले

मैं यूट्यूब में एक व्हीडियो खोजने के लिए। पहले ये बता दूँ कि क्यों चला गया मैं यूट्यूब में। वो क्या है कि आदमी के दिमाग को भी विचित्र बनाया है बनाने वाले ने। न जाने क्यूँ सबेरे से रह रह कर दिमाग में गूँज रहा था "हम भी गोया किसी साज के तार हैं चोट खाते रहे गुनगुनाते रहे"। याद करने पर याद आया कि अरे ये तो राही मासूम रज़ा साहब की गज़ल "अजनबी शहर के अजनबी रास्ते ..." है जिसे कभी मैं अपने सीडी प्लेयर पर सलाम आलवी की आवाज में सुना करता था। बस चला गया मैं यूट्यूब में इस गज़ल को खोजने के लिए, भाई आडियो में तो सुना था यदि व्हीडियो मिल जाए तो क्या बात है! थोड़ा सा सर्च करने पर मिल भी गया एक व्हीडियो उस गज़ल का।

अब मैं अच्छी तरह से जानता हूँ कि यदि इस व्हीडियो को मैं चलाना शुरू करूँगा तो जरूर यह बीच बीच में बार बार रुकेगा और मेरा दिमाग भन्ना जाएगा। अब यदि संगीत बीच बीच में टूटता जाए तो क्या दिमाग नहीं भन्नायेगा? आपने भी जरूर कई बार ऐसे अनुभव हुए होंगे। तो क्या करें कि व्हीडियो बीच बीच में रुके और सही सही चलता रहे। चलिए मैं बताता हूँ कि क्या करना है। बहुत आसान है ये। बस आपको व्हीडियो के सही सही चलने के लिए पाँच-दस मिनट इंतिजार करना है।

आपको सिर्फ इतना करना है कि उस व्हीडियो को चालू करने के बाद उसके आवाज को बंद कर देना है।

आवाज बंद कर देने के बाद आप उस व्हीडियो के विंडो को मिनिमाइज कर देना है और अपने किसी अन्य छोटे-मोटे जरूरी काम में जुट जाना है। दसेक मिनट बाद, जब आपका काम खतम हो जाए तो, फिर व्हीडियो वाले विंडो को मैक्जिमाइज करना है। आप देखेंगे कि वो व्हीडियो पूरा चल चुका है।

अब आप बंद किए गये आवाज को फिर से चालू दें और रिप्ले को क्लिक दें। व्हीडियो अब की बार बिना रुके सही सही चलेगा और आपको पूरा आनन्द देगा।

चलिए अब जिस गज़ल ने मुझे यूट्यूब में भेजा था, उसे आप लोगों को भी पढ़ा और उसका व्हीडियो दिखा दूँ

अजनबी शहर के अजनबी रास्ते, मेरी तन्हाई पे मुस्कुराते रहे,
मैं बहुत देर तक यूं ही चलता रहा, तुम बहुत देर तक याद आते रहे।

ज़हर मिलता रहा, ज़हर पीते रहे, रोज़ मरते रहे रोज़ जीते रहे,
ज़िंदगी भी हमें आज़माती रही, और हम भी उसे आज़माते रहे।

ज़ख्म जब भी कोई ज़हनो दिल पे लगा, जिंदगी की तरफ़ एक दरीचा खुला,
हम भी गोया किसी साज़ के तार हैं, चोट खाते रहे गुनगुनाते रहे।

कल कुछ ऐसा हुआ मैं बहुत थक गया, इसलिये सुन के भी अनसुनी कर गया,
इतनी यादों के भटके हुए कारवां, दिल के जख्मों के दर खटखटाते रहे।


Sunday, September 20, 2009

हम अपने उद्देश्य में सफल हुए और कुप्रचार वाली टिप्पणियाँ मिटा दी गईं

पिछले कुछ दिनों से हम जो भी पोस्ट लिख रहे थे उसका उद्देश्य था हिन्दी ब्लोग्स से कुप्रचार और विज्ञापनयुक्त टिप्पणियों को समाप्त करना। हमारा उद्देश्य सिर्फ अपने विद्वान बन्धुओं को ही समझाना था न कि किसी मूर्ख को कुछ समझाना। हम जानते हैं कि न तो औंधे घड़े में पानी डाला जा सकता है और न ही किसी मूर्ख को, लाख सर पटक लेने के बाद भी, समझाया जा सकता है। इसीलिए तो तुलसीदास जी ने लिखा हैः

मूरख हृदय न चेत जो गुरु मिलहिं बिरंचि सम।
फूलहिं फलहिं न बेत जदपि जलद बरसहिं सुधा॥

अस्तु, प्रसन्नता की बात है कि हम अपने उद्देश्य में सफल हुए। हमारे ब्लोगर बन्धुओं ने हमारी बात को समझा और अपने अपने ब्लोग्स से गंदगी को निकाल कर फेंक दिया। मैं अपने समस्त ब्लोगर बन्धुओं को इसके लिए साधुवाद देता हूँ।