Saturday, August 21, 2010

रेल्वे के एक टिकट के साथ फ्लाइट का एक टिकट मुफ्त

click here

आपको शायद पता हो कि यात्रा.कॉम का रेल्वे टिकट बुकिंग के लिए इण्डियन रेल्वे कैटरिंग एण्ड टूरिज्म कार्पोरेशन लिमिटेड IRCTC, जो कि आनलाइन रेल्वे टिकट बुकिंग के लिए भारत की सबसे बड़ी ईकामर्स साइट है, के साथ अनुबन्ध है और यात्रा.कॉम के माध्यम से आसानी के साथ घर बैठे ही रेल्वे टिकट बुकिंग कराया जा सकता है।

आनलाइन रेल्वे बुकिंग के अपने बिजनेस को प्रमोट करने के लिए यात्रा.कॉम ने सीमित समय के लिए एक स्कीम जारी किया है जिसके तहत प्रत्येक रेल्वे टिकट के आनलाइन बुकिंग के साथ एक डोमेस्टिक फ्लाइट टिकट बिल्कुल मुफ्त देने का आफर है।

आप भी इस आफर का लाभ उठा कर मुफ्त फ्लाइट टिकट प्राप्त कर सकते हैं! याद रखें कि यह आफर सिर्फ सीमित समय के लिए ही है।
click here

Friday, August 20, 2010

ठगों के गिरोह - जो रेशमी रूमाल को अस्त्र बना कर बगैर रक्तपात किए हत्या कर दिया करते थे

आज ठगी का अर्थ किसी को बहला-फुसला कर या धोखा देकर लूट लेने से लगाया जाता है याने कि ठग का अर्थ वही समझा जाता है जो कि अंग्रेजी के शब्द 'चीट' (cheat) का होता है। किन्तु अठारहवीं शताब्दी में भारत में ठगों के गिरोह हुआ करते थे जो कि अपनी साहसिक, रोमांचकारी किन्तु हत्या के घृणित कृत्य किया करते थे। उन दिनों इन ठगो के गिरोहों का व्यापक जाल सम्पूर्ण भारत में कन्याकुमारी से कश्मीर तक फैला हुआ था। इन गिरोहों में पाँच-दस व्यक्तियों से लेकर सैकड़ों व्यक्ति तक हुआ करते थे जिनमें हिन्दू और मुसलमान दोनों ही शामिल रहते थे। स्त्रियाँ भी इन गिरोहों का सदस्य होती थीं। उस काल में आज की तरह रेल-मोटर जैसी सुविधाएँ न होने के कारण लोग काफिला बना कर रथों, बैलगाड़ियों, घोड़ों, ऊँटों आदि जानवरों पर सवार होकर तथा पैदल चल कर यात्रा किया करते थे। साथ के सामान को ढोने के लिए गधों और खच्चरों का इस्तेमाल किया जाता था। काफिले के लोगों की संख्या के अनुसार एक से अधिक ठगों के गिरोह मिलकर ठगी का धन्धा किया करते थे।

यद्यपि इन ठगों के गिरोहों में मुसलमान भी हुआ करते थे किन्तु इन ठगों की इष्ट काली देवी हुआ करती थी। सम्भवतः ठगी का आरम्भ तान्त्रिकों से हुआ था और इसीलिए उनका धर्म-विश्वास तान्त्रिक ढंग पर था। ठगों के पूजा-स्थल गोपनीय हुआ करते थे। ये ठग प्रायः बगैर रक्तपात किए हत्या किया करते थे। इनका हत्या करने का ढंग भी अपनी तरह का अनूठा था। इनका मुख्य अस्त्र एक रेशमी रूमाल हुआ करता था, जिसमें एक मंसूरी पैसा बंधा रहता था। अपने रेशमी रूमाल को वे इस सफाई के साथ अपने शिकार के गले में डालते थे कि वह पैसा शिकार के टेंटुए से कस जाता था और क्षण भर में ही बलवान से बलवान आदमी की ऐसी मृत्यु हो जाया करती थी कि वह 'चीं' तक न कर पाता था। शिकारों की संख्या चाहे सौ-दो सौ ही क्यों ना हो, संकेत होने पर एक ही क्षण में सभी के गले में फाँसी लग जाती थी।

ठगों के ये गिरोह सैनिक पद्धति पर संगठित हुआ करते थे तथा उनमें भिन्न-भिन्न पदाधिकारी भी होते थे। पदाधिकारियों के आधीन अलग-अलग दल होते थे जिनके विभिन्न प्रकार के काम नियत होते थे। 'सोथा' नामक दल के सदस्यों का कार्य होता था भद्रवेश में सम्पन्न लोगों की तरह यात्रा करना तथा मुसाफिरों को अपनी वाक्‍‌पटुता के जाल में फँसा कर उनसे हेल-मेल करके उनके काफिलों में शामिल हो जाना। 'सोथा' दल के किसी काफिले में शामिल हो जाने के बाद 'भटोट' नामक दल भी 'सोथा' की सहायता से उस काफिले में शामिल हो जाया करता था। 'भटोट' दल के सदस्यों का कार्य शिकार के गले में पैसे बंधे रेशमी रूमाल से फाँसी डालना। गिरोह के नए रंगरूटों के दल को 'कबूला' कहा जाता था और इनका काम मुर्दों को रफा-दफा करना हुआ करता था। शिकार को फाँसी लगाते समय उनकी सहायता के लिए तत्पर रहने वालों के दल को 'समासिया' कहा जाता था। 'लगाई' नाम के दल के लोगों का काम होता था फाँसी के लिए नियत स्थान के पास पहले से ही कब्रें खोद कर तैयार रखना। कहाँ पर कौन आकर काफिले में शामिल होगा और किस स्थान पर शिकारों को फाँसी दी जाएगी ये सारी बातें पूर्व से ही योजनाबद्ध हुआ करती थीं। फाँसी देने के लिए संकेत नियत रहता था, दल के सरदार के द्वारा संकेत देने को 'झिलूम देना' कहा जाता था। जहाँ पर शिकारों को फाँसी देना होता था उस स्थान पर डेरा डलवा दिया जाता था। फाँसी देने का समय नियत होता था और उस समय काफिले के प्रत्येक व्यक्ति के साथ एक-एक ठग हो जाया करते थे। ज्योंही सरदार "पान लाओ" जैसी कोई पूर्व-नियत बात कहकर झिलूम देता था, शिकारों के गले फाँसी से कस जाया करते थे।

इन ठगों के अनेक प्रकार के समुदाय हुआ करते थे। "मेघपूना" नामक ठगों का एक समुदाय केवल बच्चों के अपहरण का कार्य किया करता था। अवसर आने पर विभिन्न समुदाय एक साथ मिलकर काम किया करते थे। अपढ़ तथा गँवार लोगों के साथ पढ़े-लिखे व्यक्ति भी ठगों के इन गिरोहों में हुआ करते थे।

देखा जाए तो अठारहवीं शताब्दी का वह काल भारत के लिए सर्वत्र अराजकता का काल था। बादशाह का पतन हो चुका था और राजे और नवाब अपने राज्य को बढ़ाने के लिए एक दूसरे से युद्ध किया करते थे। पिण्डारी और रुहेले के दल सरे आम गाँवों और कस्बों को लूट लिया करते थे और ठग सैकड़ों तथा हजारों की तादाद में लोगों की हत्या कर दिया करते थे। राजाओ-नवाबों के आपसी युद्ध का फायदा अंग्रेजों ने खूब उठाया और भारत के अधिपति बन बैठे थे। ठगों के इन गिरोहों ने ये अंग्रेज शासकों के नाक में दम कर रखा था इसलिए अंग्रेजी शासन ने ठगों के गिरोहों के उन्मूलन को अपना प्रथम लक्ष्य बना लिया था और कर्नल स्लीमेन (colonel slimane) की अध्यक्षता में बने ठग उन्मूलन कमीशन ने चुन-चुन कर ठगों का सफाया कर डाला।

---------------------------------------

सूचनाः

यात्रा एवं पर्यटन से सम्बन्धित जानकारी देने के उद्देश्य से मैंने "यात्रा एवं पर्यटन" नामक एक नया ब्लोग बनाया है और आशा करता हूँ वह आप सभी को पसंद आयेगा।

देखें "यात्रा एवं पर्यटन" का पहला पोस्ट - मांडू (माण्डवगढ़)

Thursday, August 19, 2010

अपना अलेक्सा रैंक देखा तो पता चला की हमारा ब्लोग 31 जुलाई 2000 से आनलाइन है

हम ब्लोग की दुनिया में कब, क्यों और कैसे आए यह बिल्कुल भूल चुके हैं। आज एकाएक विचार आया कि अपने ब्लोग का अलैक्सा रैंक देख लिया जाए। देखा तो पाया कि अलैक्सा में हमारे ब्लोग का विश्व रैंक 408,205 और भारत रैंक 39,420 है। हमारे लिए यह एक संतुष्टि की बात थी किन्तु अधिक प्रसन्नता यह देखकर हुई कि हमारा ब्लोग हमारा ब्लोग 31 जुलाई 2000 से आनलाइन है; हम तो भूल ही चुके थे कि हमने अपना ब्लोग कब बनाया था।



यदि आप अपने ब्लोग का अलैक्सा रैंक देखना चाहें तो http://www.alexa.com/ में जाकर देख सकते हैं।

अपना अलैक्सा रैंक देख लेने के बाद उत्सुकता हुई कि जाने माने ब्लोग्स के भी अलैक्सा रैंक देखा जाए, जिसका परिणाम यह प्राप्त हुआः

ब्लोगचिट्ठा जगत सक्रियताअलैक्सा विश्व रैंकिंगअलैक्सा भारत रैंकिंग
ताऊ डॉट इन1357,76638,787
उडन तश्तरी2493,35551,392
मानसिक हलचल3561,64867,046
लोक संघर्ष41,672,515257,948
हिन्दी युग्म5213,30416,611
ज्ञान दर्पण6173,98714,569
हिन्दी ब्लाग टिप्स7448,90256,969
फ़ुरसतिया8770,58099,378
छींटे और बौछारें9512,89356,374
ललित डॉट कॉम10358,75129,459


याने कि अलेक्सा रैकिंग के अनुसार उपरोक्त ब्लोग्स का क्रम हुआः

क्रमांकब्लोगविश्व रैंकिगइंडिया रैंकिग
1.ज्ञान दर्पण173,98714,569
2.हिंदी युग्म213,30416,611
3.ताऊ डॉट इन357,76638,787
4.ललित डॉट कॉम358,75129,459
5.उड़न तश्तरी493,35551,392
6.हिन्दी ब्लाग टिप्स448,90256,969
7.छींटे बौछारें512,89356,374
8.मानसिक हलचल561,64867,046
9.फ़ुरसतिया770,58099,378
10.लोक संघर्ष1,672,515257,948

तुलसी का पुनः भारत आगमन

(स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित कविता)

भक्ति के प्रभाव से निष्कपट मुक्ति भाव से
संत तुकाराम सदेह स्वर्ग को सिधारे
किन्तु तुलसीदास समय के अन्तराल को
पार कर सदेह ही भारत में पुनः पधारे
सम्वत् सोलह सौ अस्सी बाद सन (उन्नीस सौ) पच्यासी में
धर्म दशा देखने पहुँचे दिल्ली द्वारे
जनता के मन में 'मानस' के प्रति कुछ रहे न रहे
गूँज रहे थे धर्म निरपेक्षता के नारे।

फिर तुलसीदास ने काशी में जा कर देखा
तो अपनी धर्म नगरी को ज्यों का त्यों पाया
लेकिन रह गये दंग रंग देख पण्डों का
फैली थी सब तरफ भंग दण्ड की माया
और प्रयागराज के भरद्वाज आश्रम में
रामायण के बदले 'सत्यकथा' को पाया
भक्ति प्रदर्शित करती थीं महिलाएँ सब
परम पवित्र थी उनकी कंचन काया।

अपने ही कलियुग वर्णन को तुलसी ने
यत्र-तत्र-सर्वत्र साकार रूप में देखा
भारत में धोती-साड़ी गायब थी जनता की
लगा न सके वे पेंट-कोट ब्लाउज का लेखा
सोचा तुलसी ने अंग्रेजी में मानस लिख दूँ
जिसमें कहीं भी न पाई जावे लक्ष्मण रेखा
काम हमारा यह होगा भारत के हित में
गड़ रहा जहाँ नित कान्वेण्ट का मेखा।

अपनी इस भारत यात्रा में तुलसी जी ने
देखे अनगिनती डिप्लोमेटिक रावण
हर घर में थी अशोक वाटिका सुशोभित
थिरक रहा था दहेज दैत्य का नर्तन
'मोहि कपट छल छिद्र न माया' कह कर
लाद दिया था मानव पर रूखा बन्धन
इसीलिये गायब थे तुलसी के राम यहाँ
पनप रहा था प्रवंचना का काला धन

सन्तों को बने असन्त देखा दास तुलसी ने
गाते अपनी डफली पर अपना राग
आतंक, त्रास, उग्रता, पशुता और नीचता,
जगा चुके थे सभी अपना अपना भाग
पुण्य भूमि में सन्तों को भी दुष्टों ने ललकारा
विचरण करते तुलसी ने देखे अनेकों नाग
अपने ही वर्णित कलियुग वर्णन को साकार देख
तुलसीदास चले गये भारत को त्याग।

(रचना तिथिः 22-08-1985)

Tuesday, August 17, 2010

अमूमन हम सभी झूठ बोलते हैं।

हमारे मोबाइल की घंटी बजी। अरे यह तो गुप्ता जी की काल है। तीन माह पहले हमने तीन दिनों के भीतर वापस करने का वादा करके जो उनसे पाँच सौ रुपये उधार लिए थे, जरूर उसी के लिये फोन किया होगा। हमने लड़के को मोबाइल देते हुए उससे कहा, "बेटे, गुप्ता अंकल को कह दो कि पापा घर में नहीं हैं।"

जी हाँ, अमूमन हम सभी झूठ बोलते हैं। कोई कर्ज के तगादे से बचने के लिए झूठ बोलता है, कोई अपने बॉस या अधिकारी से अपनी गलती छिपाने के लिए झूठ बोलता है तो कोई महबूबा की नजरों में चढ़ने के लिए झूठ बोलता है। फिल्म "जॉनी मेरा नाम" का एक संवाद याद आ रहा है जिसमें देवानंद ने ऐसा ही एक झूठ बोला थाः

"..... लेकिन जब दरवाजा खुला तो मैं दंग रह गया। दो हसीन आँखें मुझे देख रही थीं और दिल धड़क-धड़क कर कह रहा था कि जॉनी बेटे तरी मंजिल यही पर है, लेकिन याद रख कि अगर इन्हे मालूम हो गया कि तू चोर है, उचक्का है, छोटी छोटी चोरयों के इल्जाम में जेल जा चुका है और हाल ही में जेल तोड़कर आया है तो इन आँखों मे तेरे लिए सिवाय नफरत के कुछ भी ना होगा .... बस फिर क्या था बात बात में मुँह से झूठ निकलने लगा..."

कभी परिस्थितियाँ हमें विवश करती हैं झूठ बोलने के लिये तो कभी हमारे ही बनाये नियम-कायदे हम से झूठ बोलवाते हैं।

हमारे जीवन में ऐसी अनेकों परिस्थितियाँ आती हैं कि झूठ बोलना हमारे लिये मज़बूरी हो जाती है। अब जरा सोचिये कि आप अपनी प्रेमिका (यदि आप महिला हैं तो प्रेमी समझ लें) से छुप कर मिलने जा रहे हैं। इस बीच रास्ते में यदि कोई परिचित मिल जाये और पूछे कि कहाँ जा रहे हो तो क्या करेंगे आप? झूठ ही तो बोलेंगे न?

नियम-कानून का तो कहना ही क्या। ये तो हमसे सबसे ज्यादा झूठ बोलवाते हैं। छुट्टी के लिये आवेदन पत्र में आप कारण 'परिवार के साथ सिनेमा जाना है' तो नहीं लिख सकते न? 'तबियत खराब है' जैसा कोई झूठा कारण ही लिखना पड़ेगा। हम एक ऐसे सज्जन को जानते हैं जिन्होंने छुट्टियाँ लेने के लिये अपने ससुराल पक्ष के अनेकों रिश्तेदारों को मार डाला है। जबकि जानने वाले जानते हैं कि अभी तक उनकी शादी ही नहीं हुई है। पता नहीं जब उनकी शादी होगी तो फिर क्या झूठ बोलकर छुट्टी लेंगे?

कुछ लोगों को दूसरों की परेशानी देख कर मजा आता है। ऐसे लोग दूसरों से इसलिये झूठ बोल देते हैं ताकि वे परेशान हो जायें और उनकी परेशानी का आनन्द उठाया जा सके।

हमारे परिचितों में एक सज्जन तो ऐसे हैं जो सिर्फ झूठ ही बोलते हैं। लगता है कि कभी भूल से वे सच बोल देंगे तो उनका खाना ही हजम नहीं होगा या फिर डॉक्टर ने उन्हें सच बोलने से मना किया हुआ है।

इस झूठ ने तो धर्मराज युधिष्ठिर को भी नहीं छोड़ा था। उन्हें 'अश्वत्थामा हतो' कहना ही पड़ा था। यह बात अलग है कि बाद में 'नरो वा कुंजरो' कह कर उन्होंने अपने झूठ की लीपा-पोती कर दी थी।

झूठ का एक और रूप भी होता है - बात को इस प्रकार से गोल-गोल कहना कि उसका स्पष्ट अर्थ ही न निकले। झूठ के इस रूप का प्रयोग व्यापक तौर से होता है। और भला क्यों न हो। जब देवर्षि नारद जी ने विश्वमोहिनी से ब्याह करने की कामना से भगवान विष्णु से उनका रूप माँगा था तो विष्णु जी ने भी तो झूठ के इसी रूप का प्रयोग किया था -

"कुपथ माग रुज ब्याकुल रोगी। बैद न देइ सुनहु मुनि जोगी॥
एहि बिधि हित तुम्हार मैं ठयऊ। कहि अस अंतरहित प्रभु भयऊ॥"


उपरोक्त सभी झूठों के अलावा एक झूठ और भी होता है - वह है किसी के कल्याण के लिये झूठ बोलना और इस प्रकार के झूठ को पावन झूठ की संज्ञा दी जा सकती है।

Monday, August 16, 2010

टिप्पणी और पठन के खेल निराले मेरे भैया .....

आज दिनांक 16-08-10 को सुबह लगभग 9.15 बजे चिट्ठाजगत के धड़ाधड़ टिप्पणियाँ और धड़ाधड़ पठन हॉट लिस्टः

क्र.धड़ाधड़ टिप्पणियाँधड़ाधड़ पठन
1.जिसे सर झुकाती है हिंन्द सारी .......स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनओं [35]ये आजादी भी कोई आजादी है लल्लू! [66]
2.स्वाधीनता दिवस पर … क्या यही है स्वतंत्रता! [21]ग़ुरबत के हिस्से की चिल्हर धूप लॉकर में रख छोड़ी है जिन्होंने...! [65]
3.सफ़र [19]वर्ष के श्रेष्ठ ब्लोगर का सम्मान,वर्ष की श्रेष्ठ महिला ब्लोगर का सम्मान [57]
4.नया सफ़र ........एक नए चेहरे के [18]स्वतंत्रता की नई चादर फिर से बुननी होगी… [57]
5.स्वतंत्रता की नई चादर फिर से बुननी होगी… [16]रिविज़न ज़िन्दगी [53]
6.आज़ादी ..... [16]साहित्य में अश्लीलता की छौंक...... छिनरपन वाली 'फँसा-फँसी'........रेणु जी का बावनदास......और हमारी बौद्धिक अय्याशीयों के बीच परोसी गई एक साहित्यिक थाली............सतीश पंचम [53]
7.“अपनी आजादी” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”) [15]"चिरकुटाई की डेमोक्रेसी' [52]
8.मुद्दतों बाद…. [15]मैं नत-मस्तक हूँ .... [47]
9.स्वाधीनता दिवस पर … आज का ही दिन बस स्वतंत्र है! [14]चिंदी-चिंदी बीनती, फिर भी नहीं हताश [44]
10.क्या हम आज एक-दूसरे को बधाई देने के हक़दार है...खुशदीप [14]मुझमे तुम सा... [44]
11.तुलसी जयन्ती पर युगद्रष्टा कवि को श्रद्धा सुमन: कबीर तुलसी श्रीराम त्रयी और मानस का बोनस -2 [14]जन्म कुंडली देखे बिना पता करे , सरकारी नौकरी का योग [41]
12.वन्दे मातरम्... [14]सूनापन [41]
13.मुझमे तुम सा... [14]हिंदी ब्‍लॉग जगत के सभी लेखकों और पाठकों को स्‍वतंत्रता दिवस की असीम शुभकामनाएं ..... [40]
14.दिस प्रोग्राम इस स्पोन्सर्ड बाय...........! [13]वन्दे मातरम्... [39]
15.हम सिर्फ बोलते जाते हैं [13]ऐसे आंदोलनों का दबना अब मुश्किल [39]
16.आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनये। [13]बिहारक सभ जिला सूखाग्रस्त घोषित... [37]
17.चिंदी-चिंदी बीनती, फिर भी नहीं हताश [13]कुछ वतन की बात करें [37]
18.राष्ट्रीयता अस्मिता और आजादी की वर्षगाँठ [13]स्वाधीनता दिवस पर … क्या यही है स्वतंत्रता! [36]
19.ब्लॉगिंग का एक साल और आपका साथ (1)...खुशदीप [12]नया सफ़र ........एक नए चेहरे के [34]
20.मैं नत-मस्तक हूँ .... [12]आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनये। [34]
21.पन्द्रह अगस्त - कुछ यादें मेरी..कुछ नयी बातें, कुछ पुरानी बातें [12]स्वतंत्रता दिवसक हार्दिक शुभकामना... [34]
22.साहित्य में अश्लीलता की छौंक...... छिनरपन वाली 'फँसा-फँसी'........रेणु जी का बावनदास......और हमारी बौद्धिक अय्याशीयों के बीच परोसी गई एक साहित्यिक थाली............सतीश पंचम [11]ब्लॉगिंग का एक साल और आपका साथ (1)...खुशदीप [33]
23.ग़ुरबत के हिस्से की चिल्हर धूप लॉकर में रख छोड़ी है जिन्होंने...! [11]क्या हमारा मन आज़ाद है ? - सतीश सक्सेना [33]
24.सूनापन [11]Sacrifices of muslim ulema हज़रत मौलाना क़ासिम नानौतवी साहब रहमतुल्लाह अलैह ने तैयार की थी फ़ौज - Anwer Jamal [33]
25.मेला फिर! [11]परमात्मा की पुकार [32]
26.हिन्दुस्तान है हमारा, हम है इसकी शान, दिल [11]पन्द्रह अगस्त - कुछ यादें मेरी..कुछ नयी बातें, कुछ पुरानी बातें [32]
27.ये आजादी भी कोई आजादी है लल्लू! [10]क्या हम आज एक-दूसरे को बधाई देने के हक़दार है...खुशदीप [31]
28.स्वतंत्रता के छह दशक-क्या खोया क्या पाया -राजीव तनेजा [9]तुम हो स्वतंत्र तुम हो स्वतंत्र [31]
29.Sacrifices of muslim ulema हज़रत मौलाना क़ासिम नानौतवी साहब रहमतुल्लाह अलैह ने तैयार की थी फ़ौज - Anwer Jamal [9]ये देश बस दो ही दिन याद आता है....अमित [31]
30.बुढापा, कोई लेवे तो थने बेच दूं॥[9]पिन कोड 273010, एक अधूरा प्रेमपत्र - 12 [31]
31.ये साकी से मिल, हम भी क्या कर चलेकि प्यास [9]जिसे सर झुकाती है हिंन्द सारी .......स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनओं [31]
32.रिविज़न ज़िन्दगी [9]आज़ादी ..... [31]
33.सितारों की महफ़िल में आज श्री समीर लाल समीर जी [8]बाऊजी : एक स्वयंनिर्मित व्यक्तित्व आज [31]
34.आतंकवादी की फरमाईश पर ग़ज़ल-2 [8]मेला फिर! [30]
35.स्‍वतंत्रता दिवस विशेषांक :-२ - ब्‍लॉग4वार्ता - शिवम् मिश्रा [8]पवन के कार्टून... [30]
36.क्या हमारा मन आज़ाद है ? - सतीश सक्सेना [8]आधी आबादी की इन्साफ की लड़ाई और शबाना आजमी [29]
37.हिंदी ब्‍लॉग जगत के सभी लेखकों और पाठकों को स्‍वतंत्रता दिवस की असीम शुभकामनाएं ..... [7]हम सिर्फ बोलते जाते हैं [29]
38.जन्म कुंडली देखे बिना पता करे , सरकारी नौकरी का योग [7]आइए दीर्घायु व कैंसर से मुक्ति के लिए धूम्रपान करें. [28]
39.पीर पराई समझ सको तो जीवन भर आजाद रहोगे..वरना तुम बर्बाद रहोगे. [6]“अपनी आजादी” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”) [28]
40.वन्दे मातरम [6]हिन्दुस्तान है हमारा, हम है इसकी शान, दिल [28]

हॉटलिस्ट तो एक ही संकलक के हैं किन्तु पहले हॉटलिस्ट का पहला नंबर का पोस्ट दूसरे हॉटलिस्ट में 31वें नंबर पर है जबकि दूसरे हॉटलिस्ट का पहला नंबर का पोस्ट पहले हॉटलिस्ट में 27वें नंबर पर है।

चलते-चलते

भारत कब स्वतन्त्र हुआ था?

कल स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर सहारा चैनल ने एक सर्वे किया जिसमें सार्वजनिक स्थानों में उपस्थित या राह चलते आदमियों से कुछ प्रश्न किए गये जो कि राष्ट्र, फिल्म, क्रिकेट आदि से सम्बन्धित थे।

परिणाम आश्चर्यजनक था! फिल्मों तथा क्रिकेट से सम्बन्धित कठिन से कठिन सवालों का जवाब अधिकतर लोगों ने आसानी के साथ दे दिया किन्तु राष्ट्र से सम्बन्धित प्रश्नों के उत्तर वे नहीं दे पाये।

उदाहरण के लिये कुछ प्रश्न तथा दिए गए उत्तरः

प्र. हमारा देश कब आजाद हुआ था?
उ. आज के दिन ही आजाद हुआ था किन्तु किस वर्ष यह हमें नहीं पता।

प्र. महात्मा गांधी की पत्नी का क्या नाम था?
उ. नहीं मालूम।

प्र. "जय जवान जय किसान" नारा किसने दिया था।
उ. नहीं पता।

Sunday, August 15, 2010

ये आजादी भी कोई आजादी है लल्लू!

हजार से अधिक सालों से लुटती रही है भारत माता। परतन्त्रता की बेड़ियों में जकड़ी जाने के पूर्व भी अनेक बार उसे यवन और तुर्क लूट कर चले गए, फिर वह परतन्त्रता की बेड़ियों में जकड़ी गई और उस दौरान मुगलों और मलेच्छों ने लूटा और अब जबकि आजादी मिल चुकी है तो उसे उसके अपने ही (क)पूत उसे लूट कर उसकी धन-सम्पदा को विदेश (स्विस बैंकों) में भेज रहे हैं।

शायद लुटते रहना ही भारत माता की नियति है!

सन् 712 में मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर आक्रमण कर उसे लूटा।

सन् 1000-1027 के बीच महमूद गज़नवी ने सोमनाथ मन्दिर, जो कि सैकड़ों देवदासियों के घुँघरूओं की ध्वनि से सदा गुंजित रहता था और जिसके ऐश्वर्य तथा वैभव की महिमा दिग्-दिगन्त तक फैल गई थी, पर 17 बार आक्रमण कर उसे लूटा।

सन् 1175 में मुल्तान पर आक्रमण कर मोहम्मद गोरी ने उसे लूटना शुरू किया और अन्ततः उसने उसे परतन्त्रता की बेड़ियाँ में ही जकड़ दिया।

अनेक बार लुटने के बावजूद भी भारत माता की अकूत धन सम्पदा में किंचित मात्र भी कमी नहीं आई। सोने की चिड़िया कहलाती थी वह! दूध-दही की नदियाँ बहती थीं उसकी भूमि में! रत्नगर्भा वसुन्धरा थी उसके पास! शाहजहाँ और औरंगजेब का जमाना आने तक न जाने कितने बार लुट चुकी थी वह पर उसकी अपार सम्पदा वैसी की वैसी ही बनी हुई थी। इस बात का प्रमाण यह है कि दुनिया का कोई भी इतिहासज्ञ शाहजहाँ की धन-दौलत का अनुमान नहीं लगा सका है। उसका स्वर्ण-रत्न-भण्डार संसार भर में अद्वितीय था। तीस करोड़ की सम्पदा तो उसे अकेले गोलकुण्डा से ही प्राप्त हुई थी। उसके धनागार में दो गुप्त हौज थे। एक में सोने और दूसरे में चाँदी का माल रखा जाता था। इन हौजों की लम्बाई सत्तर फुट और गहराई तीस फुट थी। उसने ठोस सोने की एक मोमबत्ती, जिसमें गोलकुण्डा का सबसे बहुमूल्य हीरा जड़ा था और जिसका मूल्य एक करोड़ रुपया था, मक्का में काबा की मस्जिद में भेंट की थी। लोग कहते थे कि उसके पास इतना धन था कि फ्रांस और पर्शिया के दोनों महाराज्यों के कोष मिलाकर भी उसकी बराबरी नहीं कर सकते थे। सोने के ठोस पायों पर बने हुए तख्त-ए-ताउस में दो मोर मोतियों और जवाहरात के बने थे। इसमें पचास हजार मिसकाल हीरे, मोती और दो लाख पच्चीस मिसकाल शुद्ध सोना लगा था, जिसकी कीमत सत्रहवीं शताब्दी में तिरपन करोड़ रुपये आँकी गई थी। इससे पूर्व इसके पिता जहांगीर के खजाने में एक सौ छियानवे मन सोना तथा डेढ़ हजार मन चाँदी, पचास हजार अस्सी पौंड बिना तराशे जवाहरात, एक सौ पौंड लालमणि, एक सौ पौंड पन्ना और छः सौ पौंड मोती थे। शाही फौज अफसरों की दो हजार तलवारों की मूठें रत्नजटित थीं। दीवाने-खास की एक सौ तीन कुर्सियाँ चाँदी की तथा पाँच सोने की थीं। तख्त-ए-ताउस के अलावा तीन ठोस चाँदी के तख्त और थे, जो प्रतिष्ठित राजवर्गी जनों के लिए थे। इनके अतिरिक्त सात रत्नजटित सोने के छोटे तख्त और थे। बादशाह के हमाम में जो टब सात फुट लम्बा और पाँच फुट चौड़ा था, उसकी कीमत दस करोड़ रुपये थी। शाही महल में पच्चीस टन सोने की तश्तरियाँ और बर्तन थे। वर्नियर कहता है कि बेगमें और शाहजादियाँ तो हर वक्त जवाहरात से लदी रहती थीं। जवाहरात किश्तियों में भरकर लाए जाते थे। नारियल के बराबर बड़े-बड़े लाल छेद करके वे गले में डाले रहती थीं। वे गले में रत्न, हीरे व मोतियों के हार, सिर में लाल व नीलम जड़ित मोतियों का गुच्छा, बाँहों में रत्नजटित बाजूबंद और दूसरे गहने नित्य पहने रहती थीं।

पन्द्रहवीं शताब्दी में वास्को-डि-गामा के भारत पहुँचने के साथ ही भारत के अकूत धन-सम्पदा की ख्याति यूरोपीय देशों में पहुँच गई और हिन्द महासागर यूरोपीय समुद्री डाकुओं से भर गया। सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दियों में यूरो के सभी देशों के साहसिकवर्गी लोग और व्यापारी हिन्द महासागर में अपने पुश्तैनी डाकेज़नी का धंधा करने लगे। ज्यों-ज्यों भारतीय व्यापार की वृद्धि होती गई, त्यों-त्यों विभिन्न यूरोपीय समुद्री डकैत हिन्द महासागर में भरते चले गए।

सत्रहवीं शताब्दी के आरम्भ में पुर्तगालियों ने भारत में लूट-खसोट करना शुरू कर दिया और बम्बई के टापू, मंगलौर, कंचिन, लंका, दिव, गोआ आदि को हथिया कर उनके मालिक बन बैठे। भारतीय जलमार्ग के नक्शे मिलने के तीस साल बाद सन् 1608 में पहला अंग्रेजी जहाज 'हेक्टर' सूरत की बन्दरगाह पर आकर लगा। उन दिनों सूरत का बन्दरगाह भारतीय विदेशी व्यापार का बड़ा भारी केन्द्र था। जहाज का कप्तान हाकिन्स पहला अंग्रेज बच्चा था जिसने प्रथम बार भारत की भूमि का स्पर्श किया। उसके बाद तो अंग्रेजों ने व्यापार का बहाना कर के भारत में ऐसा लूट-खसोट मचाना शुरू किया की ईस्ट इंडिया कंपनी इस देश की मालिक ही बन बैठी। सही अर्थों में भारत माता को इन फिरंगियों ने ही लूटा और इस अकूत धन-सम्पदा की स्वामिनी को दरिद्रता की श्रेणी में लाकर रख दिया।

बावजूद इस सब के आज भी भारत माता के पास कुछ भी कमी नहीं है किन्तु अब इसे इसके स्वयं के बेटे, जिन्होंने इसके टुकड़े तक कर डाले, ही लूट रहे हैं।

अपनी आजादी को देखकर आज भारत माता के मन में यही विचार उठते होंगे कि "ये आजादी भी कोई आजादी है लल्लू!"

(इस पोस्ट में महत्वपूर्ण जानकारी और आँकड़े आचार्य चतुरसेन के उपन्यास "सोना और खून" से साभार लिए गए हैं।)