Saturday, June 19, 2010

क्या हुआ ब्लोगवाणी को?

कल सायं 03:19 के बाद से ब्लोगवाणी में हिन्दी ब्लोग्स के पोस्टों का अद्यतनीकरण (updation) नहीं हो रहा है। ब्लोगवाणी के प्रशंसक निराश हैं। हमने तो यही अनुमान लगाया था कि शायद ब्लोगवाणी का रख-रखाव (maintenance) हो रहा हो किन्तु रख-रखाव में इतना लंबा समय तो नहीं लगता। हमारे मित्रगण हमें मोबाइल लगा कर पूछ रहे हैं कि ब्लोगवाणी को क्या हुआ है। पर हम कुछ भी बताने में स्वयं को असमर्थ पा रहे हैं क्योंकि इस विषय में हमें कुछ भी जानकारी नहीं है। जानकारी के अभाव में सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता है। अब हमें लग रहा है कि शायद ब्लोगवाणी का सर्व्हर बदला गया हो और उसके डेटा पुराने सर्व्हर से नये सर्व्हर में स्थानांतरित किये जा रहे हों। पर यह भी सिर्फ एक अनुमान ही है। वास्तविकता क्या है यह तो ब्लोगवाणी टीम ही बता पायेगी।

ब्लोगवाणी से चाहे हमें पसन्द मिले या नापसन्द, चाहे हम ब्लोगवाणी को कितना भी बुरा-भला कहें, किन्तु ब्लोगवाणी का महत्व ऐसे ही समय में स्पष्ट हो जाता है जब यह काम करना बंद कर देता है।

Friday, June 18, 2010

जबान संभाल के बड़े भाय ... बहुत मंहगा पड़ेगा हमसे उलझना

क्या चीज है यह जबान भी? कभी बड़े भाई जैसे अपनत्व भरे शब्द को वैमनस्य भरा शब्द बना देती है "जबान संभाल के बड़े भाय ... बहुत मंहगा पड़ेगा हमसे उलझना" के रूप में। तो कभी लल्लू जैसे मखौल उड़ाने के लिये प्रयोग किये जाने वाले शब्द को अत्यन्त प्यारा शब्द बना देती है "काय लल्लू! आज तो जँच रहे हो!!" के रूप में।

जबान याने कि जीभ ... इसे रसना की संज्ञा दी गई है क्योंकि यह सभी प्रकार के रस अर्थात् स्वाद का हमें अनुभव कराती है। ये रसना ना होती तो हम कभी भी न जान पाते कि खट्टा, मीठा, चरपरा, कसैला आदि क्या चीज होती है। आजकल बाजार पटा हुआ है दसहरी, लंगड़ा, सुंदरी, बैंगनपल्ली आदि आमों से; सड़कों के किनारे ठेले भरे हुए दिखाई पड़ते हैं इन आमों से। और इन सुस्वादु आमों के दर्शन हुए नहीं कि जीभ गीली होने लगती है लार से। लज्जतदार खाद्य वस्तुओं का निर्माण मात्र इस रसना की तृप्ति के लिये ही होती हैं। पेट तो सादे भोजन से भी भरता है किन्तु इस रसना का क्या करें जो  पुलाव, बिरयानी, मटर पुलाव, वेजीटेरियन पुलाव, दाल, दाल फ्राई, दाल मखणी, चपाती, रोटी, तंदूरी रोटी, पराठा, पूरी, हलुआ, सब्जी, हरी सब्जी, साग, सरसों का साग, तंदूरी चिकन आदि जायकेदार भोजन की ओर हमें खींचे चले जाती है। पर मुँह में जायका आखिर कितनी देर तक रह पाता है? जीभ से जरा नीचे गले के भीतर भोजन उतरा नहीं कि सारे स्वाद एक हो जाते हैं।

ये जबान जहाँ रस रस का अनुभव कराती है वहीं मुँह से भाँति-भाँति के शब्द निकाल कर कभी सुनने वाले के कानों में मिठास घोलती है वहीं कोड़े बरसाने से भी नहीं चूकती। चंद्रधर शर्मा 'गुलेरी' जी ने अपनी कहानी "उसने कहा था" के आरम्भ में ही इस जुबान के कमाल को बड़ी दक्षतापूर्वक दर्शाते हैं:

बडे-बडे शहरों के इक्के-गाड़ी वालों की जुबान के कोड़ो से जिनकी पीठ छिल गई है, और कान पक गये हैं, उनसे हमारी प्रार्थना है कि अमृतसर के बम्बूकॉर्ट वालों की बोली का मरहम लगायें। जब बडे़-बडे़ शहरों की चौड़ी सड़कों पर घोड़े की पीठ चाबुक से धुनते हुए इक्केवाले कभी घोड़े की नानी से अपना निकट-सम्बन्ध स्थिर करते हैं, कभी राह चलते पैदलों की आँखों के न होने पर तरस खाते हैं, कभी उनके पैरों की अंगुलियों के पोरों को चींरकर अपने-ही को सताया हुआ बताते हैं, और संसार-भर की ग्लानि, निराशा और क्षोभ के अवतार बने, नाक की सीध चले जाते हैं, तब अमृतसर में उनकी बिरादरी वाले तंग चक्करदार गलियों में, हर-एक लड्ढी वाले के लिए ठहर कर सब्र का समुद्र उमड़ा कर, ‘बचो खालसाजी‘ ‘हटो भाईजी‘ ‘ठहरना भाई जी‘ ‘आने दो लाला जी‘ ‘हटो बाछा‘ कहते हुए सफेद फेटों, खच्चरों और बत्तकों, गन्ने और खोमचे और भारे वालों के जंगल में से राह खेते हैं। क्या मजाल है कि जी और साहब बिना सुने किसी को हटना पडे़। यह बात नहीं कि उनकी जीभ चलती नहीं; चलती है पर मीठी छुरी की तरह महीन मार करती हुई। यदि कोई बुढ़िया बार-बार चितौनी देने पर भी लीक से नहीं हटती, तो उनकी वचनावली के ये नमूने हैं – ‘हट जा जीणे जोगिए’; ‘हट जा करमा वालिए’; ‘हट जा पुत्ता प्यारिए’; ‘बच जा लम्बी वालिए।‘ समष्टि में इनके अर्थ हैं, कि तू जीने योग्य है, तू भाग्योंवाली है, पुत्रों को प्यारी है, लम्बी उमर तेरे सामने है, तू क्यों मेरे पहिये के नीचे आना चाहती है? बच जा।

अनेक बार तो इस जबान ने बड़े-बड़े युद्ध तक करवा दिये हैं। यदि द्रौपदी ने दुर्योधन से सिर्फ "अन्धे के अन्धे ही होते हैं" न कहा होता तो महाभारत के युद्ध में अठारह अक्षौहिनी सेना के मरने-कटने की कभी नौबत ही ना आती।
जबान के जरा से फिसल जाने से अपनों के बीच बैर व्याप्त जाता है और दूसरी ओर मीठी जबान बैरी को भी अपना बना सकता है। इसीलिये कहा गया हैः

ऐसी वाणी बोलिये मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय॥

Thursday, June 17, 2010

गूगल सर्च इंजिन के विशिष्ट प्रयोग

गूगल सर्च इंजिन का प्रयोग तो अवश्य ही आप सभी करते होंगे किन्तु आप में से बहुत से लोगों को शायद ही यह जानकारी होगी कि गूगल सर्च इंजिन में बहुत सारी विशिष्टताएँ भी हैं। तो आइये जानें उन विशिष्टताओं के बारे में!

गूगल सर्च इंजिन को केलकुलेटर के तौर पर प्रयोग करें
  • सर्च बॉक्स में कोई भी गणितीय एक्सप्रेसन टाइप करें जैसे कि - 5*23 + 3*44 - 87

[गूगल सर्च इंजन जोड़ (+), घटाना (-), गुणा (*), भाग (/), घात (^), और वर्गमूल (sqrt) की गणना कर सकता है।]

परिभाषाएँ जानिये
  • सर्च बॉक्स में इस प्रकार से टाइप करें - define: website


गूगल सर्च इंजिन को एक परिवर्तक के तौर पर प्रयोग करें

किलोमीटर को मील में बदलने के लिये:
  • सर्च बॉक्स में इस प्रकार से टाइप करें - 10 km in mile
फैरनहीट को सेल्सियश में बदलने के लिये:
  • सर्च बॉक्स में इस प्रकार से टाइप करें - 25F to C
इंच को सेंटीमीटर में बदलने के लिये:
  • सर्च बॉक्स में इस प्रकार से टाइप करें - 5 inch in cm
किसी इलाके का समय जानिये
  • सर्च बॉक्स में इस प्रकार से टाइप करें - what time is it Raipur
दो देशों की करेंसी की तुलना कीजिये
  • सर्च बॉक्स में इस प्रकार से टाइप करें - 1 usd in inr

    मौसम का विवरण जानिये
    • सर्च बॉक्स में इस प्रकार से टाइप करें - Raipur weather
    फ्लाइट स्टेटस पता करें
    • सर्च बॉक्स में इस प्रकार से टाइप करें - name of airlinne flight number

    Tuesday, June 15, 2010

    कल हमारे नापसन्दीलाल छुट्टी पर थे

    जब कोई वस्तु अनायास ही उपलब्ध हो, और वह भी मुफ्त में, तो उस वस्तु का उपयोग करने की इच्छा जागृत हो ही जाया करती है। ब्लोगवाणी ने भी हम सभी को नापसन्द वाला बटन उपलब्ध करवाया हुआ है; और वह भी बिल्कुल मुफ्त में। यह तो आप जानते ही हैं कि "माल-ए-मुफ्त दिल-ए-बेरहम"! तो इस बटन को क्लिकियाने का शौक भला किसे नहीं होगा। नापसन्द का एक चटका लगा देने में भला अपने बाप का क्या जाता है याने कि आजकल की भाषा में What goes of my father? और फिर खूब मजा भी तो आता है नापसन्द का चटका लगाने में! संकलक के हॉटलिस्ट में ऊपर चढ़ता हुआ पोस्ट दन्न से नीचे आ जाता है और पोस्ट लिखने वाले का हाल तो "कइसा फड़फड़ा रिया है स्साला" वाला हो जाता है। नापसन्द का चटका लगाने वाला उसके इस हाल को रू-ब-रू देख तो नहीं पाता, पर उसकी कल्पना कर के खूब खुश हो लेता है।

    तो बात चल रही थी नापसन्द वाले बटन को प्रयोग करने की। जब इसे प्रयोग करने की इच्छा जोर मारने लगती है तो सोचना पड़ता है कि आखिर कहाँ पर प्रयोग किया जाये इसका? ज्योंही दिमाग में यह प्रश्न उठता है, तत्काल भीतर से आवाज आती है जो भी ब्लोगर हमें पसन्द नहीं है उस पर इस बटन का प्रयोग कर दो। किसी ब्लोगर के पसन्द होने या ना होने के लिये किसी कारण का होना जरूरी थोड़े ही होता है, कई बार तो लोग अकारण ही हमें पसन्द नहीं होते। सामान्य जीवन में भी आपने अनेक बार अनुभव किया होगा कि हम किसी व्यक्ति को जीवन में पहली बार देखते हैं और देखते ही हमें लगने लगता है कि "स्साला एक नंबर का टुच्चा है"। बताइये कई बार ऐसा लगता है कि नहीं? वैसे कई बार इसका उलटा भी होता है कि किसी अनजान व्यक्ति को देखते ही हमें लगने लगता है कि "यार ये तो बहुत ही अच्छा आदमी है"। तो यही बात किसी ब्लोगर के विषय में भी हो जाना अस्वाभाविक तो नहीं है। बस फिर क्या है? जो ब्लोगर मन को नहीं भाता, उसके पोस्ट पर दन्न से चटका लग जाता है नापसन्द का। अब नापसन्द का चटका लगाने के लिये किसी के पोस्ट को पढ़ना जरूरी थोड़े ही होता है!

    तो हम बता रहे थे कि किसी ब्लोगर को नापसन्द करने के लिये किसी कारण का होना जरूरी नहीं है पर हमें नापसन्द करने के लिये तो एक नहीं अनेक कारण हैं। जैसे कि सठियाने के उम्र में भी ब्लोगिंग कर रहा है स्साला। भला ब्लोगिंग भी कोई बुड्ढों की करने की चीज है। पर ये हैं कि किये जा रहा है ब्लोगिंग। सींग कटा कर बछड़ों में शामिल हो गया है। कब्र में पाँव लटके हुए हैं पर छपास की चाह नहीं छूटती। शिरीष के फल के जैसे, सारे फूल-पत्ते के झड़ जाने के बावजूद भी, लटका हुआ है डाली से। अरे भाई, अब गिर भी जाओ नीचे, दूसरे फल को आने के लिये जगह दो।

    चलो, अब जब ये ब्लोगिंग कर ही रहे हैं तो हमारे जैसे भलेमानुष को इन पर तरस भी आ जाता है और हम टिप्पणी भी दे देते हैं इन्हें पर ये हैं कि हमें टिप्पणी देना तो दूर, भूल कर भी कभी झाँकने तक नहीं आते हमारे ब्लोग में। भला ये भी कोई बात हुई? ऊपर से तुर्रा यह कि कई बार हमारी टिप्पणी को मिटा तक देते हैं यह कहते हुए कि तुम्हारी टिप्पणी का हमारे पोस्ट के विषय से कुछ सम्बन्ध ही नहीं है। अब भला किसी टिप्पणी का पोस्ट के विषय से सम्बन्ध होना कोई जरूरी है क्या?

    कहने का तात्पर्य यह है कि हमें नापसन्द करने के लिये बहुत सारे कारण हैं। ऐसे में यदि कोई हमें नापसन्द करने लगे तो ऐसा होना तो स्वाभाविक ही है। तो साहब, एक अरसे से हम देख रहे हैं कि हमारा पोस्ट ब्लोगवाणी में ज्योंही आता है, तड़ाक से उस पर एक चटका लग जाता है नापसन्द का। हम तो यह सोच कर दिल को तसल्ली दे लेते हैं कि यह सिर्फ एक हमारा ही ग़म नहीं है बल्कि और भी बहुत से लोग इस दर्द के मारे हुए हैं।

    पर कल हमें यह देख कर बहुत ही आश्चर्य हुआ कि हमारा पोस्ट संकलक में आ गया है पर नापसन्द का चटका नहीं लगा है। खैर हमने सोचा कि आज हमारे नापसन्दीलाल जी शायद कहीं व्यस्त हैं, बाद में आकर हमें चटका दे जायेंगे। हम इन्तजार करते रहे पर हमारे इन्तजार का कुछ भी सार्थक नतीजा नहीं निकला। यहाँ तक कि कल का दिन बीत गया और आज का दिन आ गया पर वह चटका अभी भी नदारद है। अब हमें लग रहा है कि हमारे नापसन्दी लाल जी शायद कल छुट्टी पर थे। या फिर शायद उन्हे उनके डॉक्टर ने नापसन्द का चटका लगाने के लिये मना कर दिया हो। हमें तो में आशंका हो रही है कि भगवान ना करे कि कहीं बीमार-वीमार ना पड़ गये हों। यदि ऐसा कुछ हो तो हम तो ऊपर वाले से यही दुआ करेंगे कि वे जल्द ही स्वास्थ्यलाभ प्राप्त करें।

    Monday, June 14, 2010

    ब्लोगर महान नहीं होता, महान होता है पोस्ट

    सीनियर ब्लोगर, जूनियर ब्लोगर, बड़े ब्लोगर, छोटे ब्लोगर, महान ब्लोगर ....

    आखिर क्या है यह? ब्लोगर महान होता है या उसका पोस्ट उसे महान बनाता है?

    हमारा तो मानना है कि सिर्फ रचना ही छोटी, बड़ी या महान होती है जो कि रचयिता को भी छोटा, बड़ा या महान बना देती है। लेखन का विषय चाहे जो भी हो, यदि उसके भाव पाठक के दिल में घर कर जाते हैं तो वह लेखन महान हो जाता है। 'भगवतीचरण वर्मा' जी की कृति "चित्रलेखा" इसलिये महान हो गयी क्योंकि वर्मा जी ने अपनी उस कृति में 'नर्तकी चित्रलेखा' और 'तपस्वी कुमारगिरि' के अहं (ego) के टकराव को इतने सुन्दर और प्रभावशाली शैली में व्यक्त किया कि उनकी अभिव्यक्ति पाठकों के मन को छू गई। चित्रलेखा जैसे एक साधारण नर्तकी से कुमारगिरि जैसे महान ज्ञानी का पराजित हो जाने को उन तपस्वी का अहं स्वीकार नहीं कर पाता। किन्तु तपस्वी नर्तकी से सिर्फ एक बार नहीं बल्कि बार-बार पराजित हो  कर पतन के गर्त में गिरते ही चला जाता है और अन्त में योगी से भोगी हो जाता है, पुण्यात्मा से महान पापी हो जाता है। "चित्रलेखा" उपन्यास को नर्तकी और तपस्वी के अहं के टकराव ने महान बना दिया और कृति की महानता ने रचयिता भगवतीचरण वर्मा को महान लेखकों की सूची में सम्मिलित कर दिया। चित्रलेखा उपन्यास वर्मा जी की आरम्भिक कृतियों में से है, जब इस उपन्यास को उन्होंने लिखा था तो उनकी अवस्था बहुत कम थी। तो क्या उम्र कम होने के कारण से ही उन्हें छोटा या जूनियर रचनाकार कहा जाता? हमारे विचार से तो कदापि नहीं।

    अहं के टकराव की प्रभावशाली अभिव्यक्ति ने चित्रलेखा ही नहीं बल्कि और भी अनेक कृतियों को महान बना दिया है। फाँसी की सजा पाये विलक्षण कैदी और जेल के जेलर के अहं के टकराव की अभिव्यक्ति ने 'अनिल बरवे' जी के नाटक "थैंक यू मिस्टर ग्लाड" को अत्यन्त लोकप्रिय और चर्चित बना दिया। 'शरतचन्द्र' जी के उपन्यास "पथ के दावेदार" में माँ के किसी ईसाई के साथ द्वितीय विवाह कर लेने के कारण ईसाई हो गई, किन्तु विशुद्ध हिन्दू संस्कार वाली, मिस भारती जोसेफ और बंगाली युवक अपूर्व के अहं के टकराव की अभिव्यक्ति इतनी सुन्दर है कि पाठक उस काल्पनिक कथा के संसार में खो जाता है और उस टकराव को स्वयं अनुभव करने लग जाता है।

    अनेक बाते हैं जो कि रचनाकार की रचना को महान बनाती हैं जैसे कि पात्रों का चरित्र-चित्रण, रचना में भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति, लेखन शैली आदि-आदि इत्यादि। सूबेदारनी का लहनासिंह के प्रति विश्वास और लहनासिंह का सूबेदारनी के प्रति आत्मिक प्रेम (प्लूटेरियन लव्ह) की अभिव्यक्ति ने "उसने कहा था" को संसार भर में लोकप्रिय बना कर चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' जी को अमर कर दिया। गोदान में ग्राम्य तथा नगरीय जीवन शैली को समटते हुए ग्रामीण होरी का दर्द, गाँव के जमींदार के द्वारा ग्रामीणों के शोषण, नगर के प्रोफेसर मेहता और मिस मालती के विचारों के अन्तरद्वन्द्व की प्रभावशाली अभिव्यक्ति 'प्रेमचंद' जी के लेखन की ऐसी विशेषता है जो उन्हें अतिविशिष्टता प्रदान कर के महान बना देती है।

    ब्लोगिंग भी अपने विचारों को व्यक्त करने का एक सशक्त माध्यम है और हमारा मानना है इस माध्यम के द्वारा आप बड़े, छोटे, सीनियर, जूनियर कदापि नहीं बन सकते, हाँ महान अवश्य बन सकते हैं यदि आप अपने पाठकों के हृदय में घर कर लेते हैं तो! आपकी अभिव्यक्ति ही आपको पाठकों की विशाल संख्या प्रदान कर के आपको श्रेष्ठता प्रदान कर सकती है। इसलिये हमारा अनुरोध है कि आप सीनियर ब्लोगर, जूनियर ब्लोगर, बड़े ब्लोगर, छोटे ब्लोगर, महान ब्लोगर आदि बातों का विचार न कर सिर्फ उत्तम लेखन पर ही ध्यान देते रहें।

    Sunday, June 13, 2010

    पैचान कौन?

    नीचे के तीनों चित्र जिन महाशय के हैं उन्हें आप अच्छी तरह से जानते हैं! अब देखना यह है कि आप उन्हें पहचान पाते हैं या नहीं? तो बताइये कि ये चित्र किन महाशय के हैं?