सरज़मीं मुहब्बत की ज़ुल्म के हवाले क्यूँ? वक्त की हथेली में नफरतों के छाले क्यूँ? | प्रेम की पवित्र भूमि अत्याचार के अधिकार में क्यों है? वक्त की हथेली पर नफरतों के छाले क्यों हैं? |
अम्न की जंजीर पे खौफ की हुकुमत है क़ैद है तअस्सुब में ज़हन के उजाले क्यूँ? | शान्ति पर भय शासन कर रहा है। बुद्धिरूपी सूर्य से निकलने वाला प्रकाश अधर्म, अन्याय, भय, घृणा, उपेक्षा आदि के अन्धकार में कैद क्यों है? |
रो रही है भूखी माँ दो जवान बेटों को जिसके पास जन्नत है उसके लब पे नाले क्यूँ? | दो जवान बेटों के होते हुए भी माँ भूखी है। जिसे स्वर्ग का सुख मिलना चाहिए उसके होठों पर आह क्यों है? |
आलमे सियासत में बसने वाले लोगों के ताबनाक चेहरे है दिल मगर हैं काले क्यूँ? | राजनीति के आलम में बसने वाले लोगों के चेहरे तो चमकीले हैं पर उनके दिल काले क्यों हैं? |
सब उसी के बंदे हैं सब उसी के सेवक हैं टूटती हैं मस्जिद क्यूँ जल रहे शिवाले क्यूँ? | चाहे हिन्दू हो, चाहे मुस्लिम, चाहे सिख हो, चाहे ईसाई हो, सब तो एक ही ईश्वर के सेवक हैं। फिर मस्जिदें क्यों टूटती हैं और शिवालय क्यों जल रहे हैं? |
सोच का परिंदा हर जंग जीत सकता था होंसलों के पर "हातिम" तुमने काट डाले क्यूँ? | विचाररूपी पक्षी प्रत्येक युद्ध को जीत सकता था, पर उसके साहसरूपी पंख को क्यों काट डाला गया है? |
Saturday, January 14, 2012
टूटती हैं मस्जिद क्यूँ जल रहे शिवाले क्यूँ?
डॉक्टर हातिम जावेद की गज़ल
Friday, January 13, 2012
राष्ट्रगीत "वन्दे मातरम्" से सम्बन्धित तथ्य
- देशभक्त साहित्यकार बंकिमचन्द्र चटर्जी ने 7 नवम्वर 1876 को बंगाल के कांतल पाडा गाँव में "वन्दे मातरम्" की रचना की।
- "वन्दे मातरम्" के प्रथम दो पद संस्कृत में तथा शेष पद बंगाली भाषा में थे।
- बंकिमचन्द्र जी ने सन् 1882 में अपनी इस रचना "वन्दे मातरम् को अपने उपन्यास "आनन्द मठ", जिसकी कथावस्तु सन्यासी विद्रोह पर आधारित है, में सम्मिलित किया।
- रवीन्द्र नाथ टैगोर ने "वन्दे मातरम्" को स्वरबद्ध करके सन् 1896 में पहली बार कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) के कांग्रेस अधिवेशन में गाया।
- सबसे पहले "वन्दे मातरम्" का अंग्रेजी अनुवाद अरविन्द घोष ने किया।
- दिसम्बर 1905 में कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में "वन्दे मातरम्" को राष्ट्रगीत का दर्जा प्रदान किया गया।
- बंग भंग आन्दोलन में "वन्दे मातरम्" राष्ट्रीय नारा बना।
- 1906 में "वन्दे मातरम्" को देवनागरी लिपि में प्रस्तुत किया गया।
- 1923 के कांग्रेस अधिवेशन में "वन्दे मातरम्" के विरोध में स्वर उठे।
- जवाहर लाल नेहरू, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद, सुभाष चन्द्र बोस और आचार्य नरेन्द्र देव की समिति, जिसका मार्गदर्शन रवीन्द्र नाथ टैगोर ने किया था, 28 अक्टूबर 1937 को कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में पेश किए गए अपने अपने रिपोर्ट में "वन्दे मातरम्" के गायन को अनिवार्य बाध्यता से मुक्त रखते हुए कहा कि इस गीत के आरम्भ के दो पद ही प्रासंगिक है।
- 14 अगस्त 1947 की रात्रि में संविधान सभा की पहली बैठक का आरम्भ "वन्दे मातरम्" तथा समापन "जन गण मन..." के साथ हुआ।
- 1950 में "वन्दे मातरम्" राष्ट्रगीत तथा "जन गण मन..." राष्ट्रगान बना।
- 2002 के बीबीसी के एक सर्वेक्षण के अनुसार "वन्दे मातरम्" विश्व का दूसरा सर्वाधिक लोकप्रिय गीत है।
वन्दे मातरम्।
सुजलाम् सुफलाम् मलयज् शीतलाम्
शस्यश्यामलाम् मातरम्।
वन्दे मातरम्।
शुभ्रज्योत्स्नांपुलकितयामिनीम्
फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीम्
सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्
सुखदाम् वरदाम् मातरम्॥
वन्दे मातरम्।
कोटि-कोटि-कण्ठ कल-कल-निनाद-कराले
कोटि-कोटि-भुजैघृत-खरकरवाले
अबला केन माँ एत बले।
बहुबलधारिणीम् नमामि तारिणीम्
रिपुदलवारिणीम् मातरम्॥
वन्दे मातरम्।
तुमि विद्या तुमि धर्म
तुमि ह्रदि, तुमि मर्म
त्वं हि प्रणाः शरीरे
बाहूते तुमि माँ शक्ति
ह्दये तुमि माँ भक्ति
तोमारइ प्रतिमा गडि मन्दिरे मन्दिरे॥
वन्दे मातरम्।
त्वं हि दुर्गादशप्रहरमधारिणी
कमला कमलदलविहारिणी
वाणी विद्यादायिनी
नमामि त्वं नमामि कमलाम्
अमलाम् अतुलाम् सुजलाम् सुफलाम् मातरम्॥
वन्दे मातरम्।
श्यामलाम् सरलाम् सुष्मिताम् भूषिताम्
धारिणीम् भारिणीम् मातरम्॥
वन्दे मातरम्।
Wednesday, January 11, 2012
स्वामी विवेकानन्द के द्वारा दिये गए सन्देश
"भाइयों और बहनों, लंबी रात्रि अपनी अन्तिम अवस्था में पहुँच चुकी है। दुःख और उदासी समाप्त हो रहे हैं। हमारा देश एक पवित्र देश है। मातृभूमि शनैः-शनैः जाग रही है। चहुँ ओर प्रवाहित होने वाली स्वच्छ समीर को धन्यवाद। मातृभूमि को कोई हमसे दूर नहीं कर सकता।"
"क्या आप मातृभूमि के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए तैयार हैं? यदि हाँ, तो आप गरीबी और उपेक्षा से छुटकारा पा सकते हैं। क्या आप जानते हैं कि लाखों की संख्या में हमारे देशवासी दुःख तथा भूख से पीड़ित हैं? क्या उनके दुःख को आप अनुभव कर सकते हैं? क्या आप उनके आँसू पोछना चाहते हैं?"
"क्या आपमें बाधाओं, भले ही वे कितनी भी विकट हों, से लड़ने का साहस है? क्या आपमें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, भले ही आपके अपने इसके विरुद्ध हों, दृढ़ निश्चय है? आप एक स्वतन्त्र व्यक्ति तभी बन सकते हैं जब आपमें भरपूर आत्मविश्वास हो। आपको सशक्त बनना है। अध्ययन तथा आध्यात्म के द्वारा आपको अपनी बुद्धि विकसित करनी है। तभी आपकी विजय होगी।"
"अमेरिका और इंग्लैंड जाने के पूर्व मैं अपनी मातृभूमि को प्रेम करता था। वापस आने के बाद मुझे मातृभूमि का एक एक धूलिकण पवित्र प्रतीत हो रहा है।"
मूल अंग्रेजी सन्देशः
"Brothers and sisters, the long night is at last drawing to a close. Miseries and sorrows are disappearing. Ours is a sacred country. She is gradually waking up, thanks to the fresh breeze all around. Her might no one can overcome."
"Are you prepared for all sacrifices for the sake of our motherland? If you are, then you can rid the land of poverty and ignorance. Do you know that millions of our countrymen are starving and miserable? Do you feel for them? Do you so much as shed a tear for them?"
"Have you the courage to face any hurdles, however formidable? Have you the determination to pursue your goal, even if those near and dear to you oppose you? You can be free men only if you have confidence in yourselves. You should develop a strong physique. You should shape your mind through study and mediation. Only then will victory be yours."
"I loved my motherland dearly before I went to America and England. After my return, every particle of the dust of this land seems sacred to me."
Sunday, January 8, 2012
वर्ष 1925 से अब तक सोने की कीमतें ऐसे बढ़ी हैं
स्वर्ण....कंचन....
कनक....
क्या ही विचित्र वस्तु है यह सोना! देखते ही इसे पाने की इच्छा होने लगती है और पाते ही इसका नशा चढ़ने लगता है। अन्य नशीली वस्तुओं का नशा तो उसे खाने या पीने के बाद चढ़ता है पर सोने का नशा उसे पाते ही चढ़ने लगता है; इसीलिए तो कहा है -
"कनक कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाय।
वे खाए बौरात हैं ये पाए बौराय॥"
यह सोना जितना लुभावना है, उतना ही क्रूर भी है। न जाने इसने कितनी हत्याएँ करवाई हैं, न जाने कितने युद्ध लड़े गए हैं इसके लिए। न जाने कितने भाइयों ने भाइयों की, पतियों ने पत्नियों की, मित्रों ने मित्रों की हत्या कर दी है इस सोने के लिए।
फिर भी यह सोना आदिकाल से अब तक मनुष्यों के लिए सबसे बड़ा आकर्षण बना चला आ रहा है। कैसी भी कीमत देकर लोग इस सोने को पाना चाहते हैं। इसी कारण से सामान्यतः सोने की कीमत साल दर साल बढ़ती ही चली जाती है। मेरी दादी माँ बताती थीं कि उन्होंने मेरे पिताजी की शिक्षा के लिए अठारह रुपये तोले की कीमत में सोना बेचा था। आज तो दस ग्राम सोने, जो कि तोले से भी कम मात्रा है, की कीमत रु.27000/- से भी ऊपर पहुँच गई है।
सोने तथा इसकी कीमत पर पोस्ट लिखने के लिए मुझे प्रेरित किया मेरे हिन्दी वेबसाइट के स्नेही पाठक श्री रतन लाल श्रीवास्तव जी ने, जिन्होंने मुझे वर्ष 1925 से 2011 तक की सोने की कीमतों का चार्ट उपलब्ध करवाया। श्रीवास्तव जी इलाहाबाद के निवासी हैं किन्तु वर्तमान में चण्डीगढ़ में कार्यरत हैं। नीचे प्रस्तुत है श्रीवास्तव जी द्वारा भेजा गया सोने की कीमतों के आकड़े वाला चार्ट -
पोस्ट के आरम्भ में मैंने सोने के तीन और पर्यायवाची शब्द दिए हैं किन्तु संस्कृत ग्रंथ अमरकोष के अनुसार सोने के नाम हैं, जो इस प्रकार हैं -
"सुवरन को खोजत फिरै कवि व्यभिचारी चोर।"
उपरोक्त पंक्ति श्लेष अलंकार का एक सुन्दर उदाहरण है जिसमें "सुवरन" शब्द के तीन अर्थ हैं। आप समझ ही गए होंगे कि कवि सुन्दर शब्दों (सुवरन) को, व्यभिचारी सुन्दर स्त्री (सुवरन) को और चोर सोने (सुवरन) को खोजता फिरता है।
कनक....
क्या ही विचित्र वस्तु है यह सोना! देखते ही इसे पाने की इच्छा होने लगती है और पाते ही इसका नशा चढ़ने लगता है। अन्य नशीली वस्तुओं का नशा तो उसे खाने या पीने के बाद चढ़ता है पर सोने का नशा उसे पाते ही चढ़ने लगता है; इसीलिए तो कहा है -
वे खाए बौरात हैं ये पाए बौराय॥"
यह सोना जितना लुभावना है, उतना ही क्रूर भी है। न जाने इसने कितनी हत्याएँ करवाई हैं, न जाने कितने युद्ध लड़े गए हैं इसके लिए। न जाने कितने भाइयों ने भाइयों की, पतियों ने पत्नियों की, मित्रों ने मित्रों की हत्या कर दी है इस सोने के लिए।
फिर भी यह सोना आदिकाल से अब तक मनुष्यों के लिए सबसे बड़ा आकर्षण बना चला आ रहा है। कैसी भी कीमत देकर लोग इस सोने को पाना चाहते हैं। इसी कारण से सामान्यतः सोने की कीमत साल दर साल बढ़ती ही चली जाती है। मेरी दादी माँ बताती थीं कि उन्होंने मेरे पिताजी की शिक्षा के लिए अठारह रुपये तोले की कीमत में सोना बेचा था। आज तो दस ग्राम सोने, जो कि तोले से भी कम मात्रा है, की कीमत रु.27000/- से भी ऊपर पहुँच गई है।
सोने तथा इसकी कीमत पर पोस्ट लिखने के लिए मुझे प्रेरित किया मेरे हिन्दी वेबसाइट के स्नेही पाठक श्री रतन लाल श्रीवास्तव जी ने, जिन्होंने मुझे वर्ष 1925 से 2011 तक की सोने की कीमतों का चार्ट उपलब्ध करवाया। श्रीवास्तव जी इलाहाबाद के निवासी हैं किन्तु वर्तमान में चण्डीगढ़ में कार्यरत हैं। नीचे प्रस्तुत है श्रीवास्तव जी द्वारा भेजा गया सोने की कीमतों के आकड़े वाला चार्ट -
पोस्ट के आरम्भ में मैंने सोने के तीन और पर्यायवाची शब्द दिए हैं किन्तु संस्कृत ग्रंथ अमरकोष के अनुसार सोने के नाम हैं, जो इस प्रकार हैं -
- सुवर्ण
- कनक
- हिरण्य
- हेम
- हाटक
- तपनीय
- शातकुम्भ या शातकौम्भ
- गांगेय
- भर्म
- कर्बुर या कर्बूर
- चामीकर
- जातरूप
- महारजत
- काञ्चन
- रुक्म
- कार्तस्वर
- जाम्बूनद
- अष्टापद
"सुवरन को खोजत फिरै कवि व्यभिचारी चोर।"
उपरोक्त पंक्ति श्लेष अलंकार का एक सुन्दर उदाहरण है जिसमें "सुवरन" शब्द के तीन अर्थ हैं। आप समझ ही गए होंगे कि कवि सुन्दर शब्दों (सुवरन) को, व्यभिचारी सुन्दर स्त्री (सुवरन) को और चोर सोने (सुवरन) को खोजता फिरता है।
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