कहाँ रहे अब गुरु? वे गुरु जो अपने शिष्यों को प्राण से भी प्यारे मानते थे, उन्हें जीवन का सद्मार्ग दिखाते थे, आत्म-निर्भर बनाते थे, प्रत्येक परिस्थिति में अडिग रहना सिखाते थे। मेकॉले द्वारा लादी हुई शिक्षा नीति ने आश्रम प्रथा तथा गुरुकुलों को विनष्ट कर डाला और उनके नष्ट होने से वे गुरु भी लुप्त हो गए। उनका स्थान ले लिया प्रोफेसरों, लेक्चररों, टीचरों और शिक्षा कर्मियों ने जो आत्मनिर्भरता सिखाने के बजाय विद्यार्थियों के भीतर नौकरी करके दूसरों पर निर्भर रहने की भावना को बढ़ावा देते हैं तथा उन्हें सर्टिफिकेट, डिप्लोमा इत्यादि दिलाने की व्यवस्था करते हैं ताकि वे ऊँची से ऊँची नौकरियाँ प्राप्त कर सकें।
गुरु लुप्त हो गए किन्तु गुरु पूर्णिमा का अस्तित्व बना ही रहा क्योंकि लाख कोशिश करने के बावजूद भारत को लूटने वाले भारतीय के भीतर से भारतीयता को नहीं मिटा पाए।
चलते-चलते
जा के गुरु है आंधरा, चेला निपट निरंध।
अंधे अंधा ठेलिया, दोना कूप परंत॥
Friday, July 15, 2011
Wednesday, July 13, 2011
चाणक्य रचित सूक्तियाँ
- मनुष्य अकेला ही पैदा होता है; अकेला ही मरता है; अकेला ही अच्छे तथा बुरे परिणामों का अनुभव करता है और अकेला ही परमधाम अथवा नर्क को प्राप्त करता है।
- मनुष्य जन्म से महान नहीं होता, उसके कर्म उसे महान बनाते हैं।
- किसी व्यक्ति को अत्यधिक ईमानदार नहीं होना चाहिए, जिस प्रकार से सीधे वृक्ष को पहले काटा जाता है उसी प्रकार से अत्यधिक ईमानदार व्यक्ति को पहले प्रताड़ना दी जाती है।
- जिस प्रकार से एक सूखा पेड़ अग्नि पाकर पूरे वन का विनाश कर देता है उसी प्रकार से एक दुष्ट पुत्र समस्त परिवार का नाश कर देता है।
- भय के उत्पन्न होते ही उस पर वार करके उसका विनाश कर दो।
- किसी कार्य को आरम्भ करने के पूर्व स्वयं से तीन प्रश्न करो - मैं यह कार्य क्यों कर रहा हूँ?, मेरे इस कार्य का परिणाम क्या होगा? और क्या मुझे इस कार्य में सफलता मिलेगी? गहन विचार करने के पश्चात् यदि इन प्रश्नों के संतोषप्रद उत्तर मिलें तभी आगे बढ़ो।
- किसी मूर्ख के लिए पुस्तकें उतनी ही उपयोगी होती हैं जितना अंधे के लिए आईना।
- सबसे बड़ा गुरुमन्त्रः अपने भेद कभी भी किसी से मत कहो, ऐसा करना तुम्हें विनाश तक ले जाएगा।
- नारी का यौवन तथा सौन्दर्य संसार की सबसे बड़ी शक्ति है।
Tuesday, July 12, 2011
समुद्र के अन्य नाम
संस्कृत ग्रंथ अमरकोष के अनुसार समुद्र के नाम हैं -
- समुद्र
- सागर
- सिन्धु
- रत्नाकर
- उदधि
- जलनिधि
- सरित्पति
- उदन्वान
- सरस्वान
- अब्धि
- अर्णव
- अकूपार
- आकूपार
- पारावार
- यादपति
- अपांपति
Sunday, July 10, 2011
लेना है तो लो नहीं तो चलते फिरते नजर आओ
रायपुर में यदि आप किसी दुकान में गुटका (पान मसाला) खरीदने जाएँगे तो दुकानदार आपसे प्रिंट रेट से पचास पैसे अधिक लेगा और यदि आप उससे तर्क करने पर उतारू हो जाएँगे तो वह साफ कह देगा 'लेना है तो लो नहीं तो चलते फिरते नजर आओ'। बहार गुटका की प्रिंट कीमत है दो रुपए जबकि उसे ढाई रुपये में बेचा जाता है, और यदि आप सिर्फ एक ही गुटका खरीदेंगे तो आपको उसकी कीमत तीन रुपए देनी होगी क्योंकि रायपुर में पचास पैसे का चलन पिछले आठ-दस सालों से बंद हो चुका है। रायपुर के दस साल से कम उम्र के बच्चे को तो पता ही नहीं होता कि पचास पैसे का सिक्का क्या होता है क्योंकि अठन्नी उसने अपने जीवनकाल में कभी देखा ही नहीं होता।
बहार गुटके के एक पूड़े, जिसमें 60 पुड़िया होती है, की कीमत रु.90.00 है। इन साठ गुटकों को ढाई रुपये के एक के हिसाब से एक सौ पचास रुपयों में बेचा जाता है, याने कि गुटका बेचने का धंधा 66.67% मुनाफे का धंधा है। यह व्यापार है या लूट? मजे की बात यह है कि यह लूट न तो शासन को दिखाई पड़ता है और न ही मीडिया को।
इसी प्रकार यदि आपने किसी भोजनालय में रु.33.00 का खाना खाया है और यदि आपने उसे रु.50 का नोट दिया है तो आपको वापस रु.15 तथा दो चाकलेट दिया जाएगा। चाकलेट के बदले दो रुपये माँगने पर जवाब मिलेगा कि तीन रुपये चिल्हर आप दे दीजिए अन्यथा हमारे पास चिल्हर नहीं है आपको चाकलेट ही लेना पड़ेगा। एक तथा दो रुपये के सिक्कों की जानबूझ कर कमी बना कर जबरदस्ती चाकलेट बेचा जा रहा है। इस चाकलेट बेचने में भी व्यापारी को 25% से 40% तक मुनाफा मिलता है, याने कि ग्राहक को दो रुपये के बदले में चाकलेट के रूप में सिर्फ रु.1.50 ही वापस मिलते हैं।
एक जमाना था जब बेचने वाले को अपना सामान बेचने की गरज हुआ करती थी और वह ग्राहक को सामान लेने के लिए मिन्नतें करता था किन्तु आज जमाना ऐसा आ गया है कि बेचने वाला ग्राहक की मिन्नत करने के बजाय 'लेना है तो लो नहीं तो चलते फिरते नजर आओ' कहकर उसे धता बता देता है।
बहार गुटके के एक पूड़े, जिसमें 60 पुड़िया होती है, की कीमत रु.90.00 है। इन साठ गुटकों को ढाई रुपये के एक के हिसाब से एक सौ पचास रुपयों में बेचा जाता है, याने कि गुटका बेचने का धंधा 66.67% मुनाफे का धंधा है। यह व्यापार है या लूट? मजे की बात यह है कि यह लूट न तो शासन को दिखाई पड़ता है और न ही मीडिया को।
इसी प्रकार यदि आपने किसी भोजनालय में रु.33.00 का खाना खाया है और यदि आपने उसे रु.50 का नोट दिया है तो आपको वापस रु.15 तथा दो चाकलेट दिया जाएगा। चाकलेट के बदले दो रुपये माँगने पर जवाब मिलेगा कि तीन रुपये चिल्हर आप दे दीजिए अन्यथा हमारे पास चिल्हर नहीं है आपको चाकलेट ही लेना पड़ेगा। एक तथा दो रुपये के सिक्कों की जानबूझ कर कमी बना कर जबरदस्ती चाकलेट बेचा जा रहा है। इस चाकलेट बेचने में भी व्यापारी को 25% से 40% तक मुनाफा मिलता है, याने कि ग्राहक को दो रुपये के बदले में चाकलेट के रूप में सिर्फ रु.1.50 ही वापस मिलते हैं।
एक जमाना था जब बेचने वाले को अपना सामान बेचने की गरज हुआ करती थी और वह ग्राहक को सामान लेने के लिए मिन्नतें करता था किन्तु आज जमाना ऐसा आ गया है कि बेचने वाला ग्राहक की मिन्नत करने के बजाय 'लेना है तो लो नहीं तो चलते फिरते नजर आओ' कहकर उसे धता बता देता है।
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