Saturday, October 17, 2009

दिवाली थी, मिठाई थी, मेवे थे, रुपये थे और उदासी थी

बात दीवाली के दिन की ही है। सन् 1973 में 10 अक्टूबर को मैंने नरसिंहपुर में भारतीय स्टेट बैंक की नौकरी ज्वायन की थी। उसके पहले मैं कभी भी रायपुर से बाहर कहीं गया नहीं था। अकेलापन खाने को दौड़ता था। सही तारीख तो याद नहीं पर 25 या 26 अक्टूबर को दिवाली थी, इसीलिए 22 तारीख को ही वेतन भी मिल गई थी। उन दिनों स्टेट बैंक के बॉम्बे (वर्तमान मुंबइ) तथा भोपाल सर्किल में दिवाली के समय स्टाफ वेलफेयर की तरफ से पूरे स्टाफ को दिवाली की मिठाई तथा सूखे मेवे आदि दिए जाने का रिवाज था। तो दिवाली की छुट्टी थी, जेब में रुपये थे, मिठाई और सूखे मेवे का पैकेट सामने रखा था पर मैं उदासी में डूबा हुआ था।

और आज?

आज भी दिवाली है, घर है, परिवार है, परिजन हैं फिर भी उदासी है। आज अपनी व्हैल्यु जो नहीं है।

किन्तु 1973 की उदासी और आज की उदासी में फर्क है। उस समय मैं उदास था और अपनी उदासी को छुपा भी नहीं रहा था पर आज भले ही मैं उदासी अनुभव करूं लोगों को प्रसन्न ही नजर आउँगा।

दीपोत्सव का यह पावन पर्व आपके जीवन को धन-धान्य-सुख-समृद्धि से परिपूर्ण करे!!!


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ऋषि विश्वामित्र का पूर्व चरित्र - बालकाण्ड (14)

ब्राह्मणत्व की प्राप्ति के पूर्व ऋषि विश्वामित्र बड़े पराक्रमी और प्रजावत्सल नरेश थे। प्रजापति के पुत्र कुश, कुश के पुत्र कुशनाभ और कुशनाभ के पुत्र राजा गाधि थे। ये सभी शूरवीर, पराक्रमी और धर्मपरायण थे। विश्वामित्र जी उन्हीं गाधि के पुत्र हैं।

Friday, October 16, 2009

दीपावली क्यों मनाई जाती है?... अलग अलग मान्यताएँ हैं ...

जैन धर्म के अनुसार भगवान महावीर को 15 अक्टूबर १५५२७ (ईसवी पूर्व) के दिन, जो कि दीपावली का दिन था, निर्वाण की प्राप्ति हुई थी। (अंग्रेजी विकीपेडिया http://en.wikipedia.org/wiki/Diwali#In_Jainism)

सिख समुदाय के लोग अनेकों कारण से दीपावली का त्यौहार मनाते हैं। इस दिन उनके छठवें गुरु, गुरु हरगोविंद जी, को 52 हिन्दू राजाओ के साथ कारागार से मुक्ति मिली थी और वे अमृतसर के स्वर्ण मन्दिर में मत्था टेकने गये थे जहाँ पर अनेकों दिये प्रकाशित करके उनका स्वागत किया गया था।

कहा जाता है किस चौदह वर्ष का वनवास काट कर भगवान श्री रामचन्द्र जी दीपावली के दिन ही अयोध्या वापस लौटे थे और अनेकों दीप प्रज्जवलित कर के उनका स्वागत किया गया था।

स्कन्द पुराण के अनुसार देवी शक्ति ने भगवान शिव का आधा शरीर प्राप्त करने के लिये 21 दिनों का व्रत किया था जिसका आरम्भ कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी से हुआ था और उन्हें दीपावली के दिन व्रत का फल मिला था।

दीपावली को फसल काटने का त्यौहार भी माना जाता है। कृषक अपने परिश्रम का फल फसल के रूप में पाकर आनन्द तथा उल्लास से सराबोर हो जाते हैं और त्यौहार मनाते हैं। चूँकि अन्न लक्ष्मी देवी का एक रूप है अतः दीपावली की रात्रि को लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है।

कुछ और जानकारी

दीपावली शब्द "दीप" (दिया) तथा "आवली" (कतार) शब्दों के मेल से बना है अर्थात् दीपावली का अर्थ है "दिये की कतार"।

दीपावली को "लक्ष्मी पूजा" के नाम से भी जाना जाता है। लक्ष्मी पूजा के दिन घरों के द्वारों पर सभी दिशाओ की ओर अनेकों दिये आलोकित किये जाते हैं। ।

दीपावली रोशनी का त्यौहार है। दिया या प्रकाश बुराई पर भलाई के विजय का प्रतीक है।

दीपावली हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक चन्द्रमास की अमावस्या के दिन मनाया जाता है जो कि अंग्रेजी कैलेन्डर के अनुसार अक्टूबर या नवम्बर महीने में आता है।

लक्ष्मी पूजा के पूर्व का दिन "नर्क चतुर्दशी" कहलाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर पर विजय प्राप्त किया था। नर्क चतुर्दशी के दिन घरों के द्वारों पर दक्षिण दिशा की ओर चौदह दिये आलोकित किये जाते हैं।

लक्ष्मी पूजा के दूसरे दिन "गोवर्धन पूजा" मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने इन्द्र को पराजित किया था।

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अहल्या की कथा - बालकाण्ड (13)

एक दिन गौतम ऋषि की अनुपस्थिति में इन्द्र ने गौतम के वेश में आकर अहल्या से प्रणय-याचना की। यद्यपि अहल्या ने इन्द्र को पहचान लिया था तो भी यह सोचकर कि मैं इतनी सौन्दर्यशाली हूँ कि देवराज इन्द्र स्वयं मुझ से प्रणय-याचना कर रहे हैं, अपनी स्वीकृति दे दी।

Thursday, October 15, 2009

तीन तीन बात कहनी है एक पोस्ट में ... शीर्षक क्या दूँ? ... एडसेंस या ब्लॉगवाणी या धनतेरस?

पहली बात तो ये कि गूगल एडसेंस टीम ने कुछ चुने हुए लोगों को मेल भेजा है कि एडसेंस सर्वे करके एक आईपॉड जीतने का अवसर प्राप्त करें। उन चुने हुए लोगों में हमें भी शामिल किया है एडसेंस टीम ने याने कि उन्होंने हमें भी लायक समझा और मेल भेजा। खैर, सर्वे तो हमने कर दिया है अब इनाम मिले या न मिले, कुछ विशेष फर्क नहीं पड़ता।

दूसरी बात यह कि पता नहीं आप लोगों को अटपटा लगा कि नहीं पर हमें तो ब्लॉगवाणी के बिना फिर एक बार लगभग चौबीस घंटे गुजारना बड़ा अटपटा लगा। खैर तकनीकी दिक्कत सुलझ गई और हमारा अटपटापन भी खत्म हो गया। भई, हमारे ब्राउसर के एक टैब में तो ब्लॉगवाणी चलते ही रहता है।

अब तीसरी और आखरी बात धनतेरस वाली। "धन त्रयोदशी" याने कि धनतेरस के दिन को सोना-चांदी व बर्तन खरीदने के लिये अत्यधिक शुभ दिन माना जाता है (पर हम इस बार नहीं खरीदने वाले क्योंकि हमारा एडसेंस वाला चेक अब तीन महीने में एक बार आता है और फिलहाल जेब खाली है)।

आजकल तो लोग धनतेरस के दिन भी पकाई गई मिट्टी याने कि लाल रंग के दिये जलाते हैं जबकि हमें याद है कि इस दिन सूर्यास्त के बाद घर के मुख्य द्वार में पूर्व की ओर मुख कर वाले कच्ची मिट्टी के ही तेरह दिये प्रज्वलित करके ही पूजा की जाती थी। अस्तु, समय के अनुसार परिपाटी भी बदलती जाती है।


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धनुष यज्ञ के लिये प्रस्थान - बालकाण्ड (9)

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Wednesday, October 14, 2009

आपके घर में किसकी चलती है?

"यार तुम्हारे घर में किसकी चलती है?"

"भाई सभी की चलती है। श्रीमती जी मुझे हड़काती हैं, मैं बच्चों को डाँट देता हूँ, बच्चे नौकर को चिल्ला देते हैं, नौकर कुत्ते को लात मार देता है।


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विश्वामित्र द्वारा राम को अलभ्य अस्त्रों का दान - बालकाण्ड (6)

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कल शाम से ब्लॉगवाणी गायब क्यों है ...

कल शाम के बाद से ही ब्लॉगवाणी खुल नहीं रहा है। यह मेरे साथ ही है या आप लोग भी ब्लॉगवाणी नहीं खोल पा रहे हैं? इतने लंबे समय के लिए तो प्रायः सर्वर डाउन नहीं रहता? क्या कोई बहुत बड़ी तकनीकी समस्या आ गई है या फिर नया ब्लॉगवाणी अपलोड हो रहा है?


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Tuesday, October 13, 2009

आनलाइन खरीदी करने क्या आप सुरक्षित भुगतान (secure payment) करते हैं?

क्या आप आनलाइन खरीदी करते हैं? और यदि करते हैं तो भुगतान सीधे अपने क्रेडिट कार्ड से करते हैं या किसी सुरक्षित भुगतान करने वाली एजेंसी के माध्यम से?

क्रेडिट कार्ड से सीधे भुगतान करने पर आपके क्रेडिट कार्ड के दुरुपयोग होने की सम्भावना बनी रहती है। आपके क्रेडिट कार्ड का दुरुपयोग न होने पाये इस बात को ध्यान में रख कर कई ऐसी एजेंसियाँ बनाई गई हैं जो कि आपको सुरक्षित भुगतान की सुविधा प्रदान करती है। सुरक्षित भुगतान कराने वाली सबसे अधिक जानी मानी और विश्वस्त एजेंसी है पेपल।

पेपल क्या है?

पेपल एक ऐसी साइट है जिसके माध्यम से आप सुरक्षित भुगतान कर सकते हैं, सुरक्षित रूप से किसी को धन भेज सकते हैं और सुरक्षित रूप से किसी अन्य से धन प्राप्त कर सकते हैं। इसके जरिये आप अपना मासिक सब्स्क्रिप्शन का भुगतान कर सकते हैं, यहाँ पर राशि जमा रख सकते हैं और समय पड़ने पर निकाल सकते हैं। कहा जा सकता है कि पेपल एक प्रकार से आनलाइन बैंकिंग कार्य करता है।

सुरक्षित भुगतान क्या है?

जब आप किसी को अपने क्रेडिट से सीधे भुगतान करते हैं तो आपके क्रेडिट कार्ड का विवरण भी भुगतान प्राप्त करने वाले को मिल जाता है और इस बात का अवसर भी बन जाता है कि हो सकता है वह आपके क्रेडिट कार्ड का दुरुपयोग करे। किन्तु यदि आप पेपल जैसी किसी साइट के माध्यम से किसी को भुगतान करते हैं तो भुगतान प्राप्त करने वाले को सिर्फ भुगतान प्राप्त होता है आपके क्रेडिट कार्ड का विवरण नहीं, ये विवरण एजेंसी के पस ही सुरक्षित रहता है। इस प्रकार से ये भुगतान सुरक्षित होता है और इसीलिए इसे सुरक्षित भुगतान (secure payment) कहते हैं।

पेपल की सदस्यता बिल्कुल मुफ्त में मिलती है और जब आप भुगतान करते हैं तो उसके एवज में भी आपको किसी प्रकार की अतिरिक्त राशि नहीं देनी पड़ती। हाँ, यदि आप आनलाइन बिजनेस कर रहे हैं और पेपल के माध्यम से भुगतान प्राप्त करते हैं तो अवश्य ही पेपल आपसे नाममात्र की राशि कमीशन के रूप में अवश्य लेती है।

पेपल में अपना खाता कैसे खोलें?

आप इस लिंक या यहाँ पर प्रयुक्त शब्द पेपल में बने लिंक को क्लिक करके आप अपना खाता खोल सकते हैं।

यहाँ मैं यह भी बता देना उचित समझता हूँ कि इस लेख मे आए पेपल लिंक मेरा रेफरल लिंक है याने कि यदि आप भविष्य में कभी आनलाइन बिजनेस करके पेपल के माध्यम से भुगतान प्राप्त करते हैं, तो आपको पेपल का सदस्य बनाने के एवज में, पेपल आपसे प्राप्त कमीशन में से एक छोटी सी राशि मुझे भी देगी। वैसे तो निकट भविष्य में ऐसा अवसर शायद ही आये कि मैं इस प्रकार की कमाई कर सकूँ। :-)

फिर भी यदि मेरा रेफरल लिंक प्रयोग न करना चाहें तो सीधे पेपल साइट में जाकर अपना खाता खोल सकते हैं।

जब समय मिलेगा तो पढ़ लेंगे वाल्मीकि को भी ... जल्दी क्या है?

समय कहाँ है उन्हीं घिसी पिटी पुरानी बातों को पढ़ने की? कुछ नया है क्या इस रामकथा में? कभी पढ़ी नहीं तो क्या, कहानी तो सुनी है, टी.व्ही. में रामानन्द सागर ने दिखाया था तो देखी भी थी। पढ़ लेंगे भई, वाल्मीकि को भी जब समय मिलेगा तो।

परसों जब अपना नया ब्लॉग "संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" शुरू किया तो सोचा भी नहीं था कि इतनी सारी टिप्पणियाँ मिलेंगी। हम तो बड़े खुश हुए थे। अब पता चला कि ये तो हिन्दी ब्लोगिंग का रवैया है कि नये का, चाहे वह कोई नया ब्लोगर हो या चाहे पुराने ब्लोगर का कोई नया ब्लोग हो, स्वागत करना ही है। भले ही दूसरे दिन उधर झाँकने भी न जाओ।

पहले दिन की ढेर सारी टिप्पणियाँ पढ़कर हम उत्साहित हुए और अपने नये ब्लोग के पाठको की प्रगति जानने के लिए स्टेटकाउंटर में उसका एक नया प्रोजेक्ट बना दिया। काश हमने ये नहीं किया होता! न करते तो हमें पता भी नहीं चलता कि उस ब्लोग के दूसरे पोस्ट पर मात्र 20 हिट्स ही हुए हैं। और उनमें से दसेक तो हमारे ही हैं। याने कि मात्र दस लोगों ने देखा उस पोस्ट को। ये भी हो सकता है कि एक दो लोगों ने भूल से दो बार भी देख लिया हो और हिट्स की संख्या बढ़ गई हो। तो इसका मतलब ये हुआ कि दस लोगों ने नहीं बल्कि चार पाँच लोगों ने ही उस पोस्ट को देखा (जी हाँ, देखा; पढ़ा कि नहीं ये तो वे ही बता पायेंगे)।

अब सोच रहे हैं कि सात काण्डों में चौबीस हजार श्लोक वाले वाल्मीकि रामायण को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करने के लिए अपना घंटों समय बर्बाद करें या इस ब्लोग को बंद कर दें? सीधी सी बात है भाई कि जब लोगों के पास एक ब्लोग पोस्ट को पढ़ने के लिए दो-तीन या अधिक से अधिक पाँच मिनट का समय नहीं है तो हम क्यों उस पोस्ट को लिखने के लिए अपना घंटों का समय खराब करें। उसकी जगह उतने ही समय में आठ दस निंदाचारी, छीछालेदर वाले पोस्ट क्यों न लिख कर अधिक से अधिक पाठक बटोरें?

खैर, फिलहाल तो यही निर्णय लिया है कि चार-पाँच पोस्ट और कर के देखेंगे "संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" में और यदि फिर भी स्थिति यही रही तो बंद कर देंगे उसे। उसके लिए हमारे पास इस ब्लोगर के अलावा और भी प्लेटफॉर्म है। हम उसे अपने खुद के होस्टिंग में वर्डप्रेस में प्रकाशित करेंगे या फिर "संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" का pdf फाइल बना कर उसे पुस्तक के रूप में बेचने का प्रयास करेंगे।

मैं ब्लॉगवाणी का बहुत आभारी हूँ जिन्होंने इस "संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" को बहुत जल्दी रजिस्टर कर लिया था। मैंने तो सोचा था कि कम से कम चौबीस घंटे तो लगेंगे ही इसे एग्रीगेटर में आने के लिए किन्तु चौबीस मिनट भी नहीं लगे। मैं श्री दिनेशराय द्विवेदी जी को भी हार्दिक धन्यवाद दूँगा जिन्होंने हर पोस्ट में मेरा उत्साहवर्धन किया।

Monday, October 12, 2009

ये हिन्दी बलॉगिंग तो हमारा दिवाला निकाल रहा है

हम तो नेट के संसार में आए थे कुछ कमाई करने के उद्देश्य से। हमने सुन रखा था कि नेट से भी कमाई की जाती है इसलिए सन् 2004 में स्वैच्छिक सेवानिवृति लेने के बाद हम लग गए इसी चक्कर में। बहुत शोध किया, डोमेननेम रजिस्टर कराया, होस्टिंग सेवा ले ली और कुछ अंग्रेजी लेख डाल कर खोल दिया अपना वेबसाइट। कुछ अंग्रेजी ब्लॉग्स भी बना लिया। एडसेंस पब्लिशर बन गये। बहुत सारे एफिलियेट लिंक्स डाल दिया अपने वेबसाइट्स में। कहने का मतलब यह कि बहुत पापड़ बेला। और आखिर में आठ महीने बाद हमारा पहला एडसेंस चेक हमें मिला।

इस बीच में हिन्दी ब्लॉगिंग के विषय में पता चला तो उसमें घुस गये। हिन्दी में भी गूगल एड्स आते थे उस समय। बस क्या था अपने मेन साइट को हिन्दी कर डाला। बहुत सारे सबडोमेन बना डाले और कई प्रकार के लेख लिख डाले उदाहरण के लिए देखे हमारी साइट भारतीय सिनेमा। एडसेंस ने भी रंग दिखाना शुरू किया और आठ महीने से पाँच, पाच से तीन होते होते हर महीने चेक आने लगा। तो अंग्रेजी लेखन के तरफ से ध्यान हटा कर हिन्दी में ही लिखने लगे। पर एकाएक हिन्दी में एडसेंस आना बंद हो गया, आता भी था तो गूगल का सार्वजनिक सेवा विज्ञापन। तो कमाई कम हो गई। अंग्रेजी के कुछ साइट्स से अभी भी कमाई हो रही है कुछ कुछ, याने कि हर तीसरे महीने गूगल से एक चेक मिल जाता है।

तो इस प्रकार से हिन्दी ब्लॉग ने दिवाला निकाल कर रख दिया हमारा। अब अंग्रेजी लेखन के तरफ ध्यान जाता ही नहीं। हिन्दी ब्लॉगिंग का चस्का ऐसा लग गया है कि सारा समय उसी में बीत जाता है। बस हम तो यही मना रहे हैं कि हिन्दी से भी जल्दी से जल्दी कमाई होना शुरू हो जाये।

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संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण की दूसरी किश्त - राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म - बालकाण्ड (2)
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पादे सो पुन्न करे ...

पादना शब्द का प्रयोग सामान्यतः अच्छा नहीं माना जाता किन्तु शिष्ट हास्य के लिए इस शब्द को प्रयोग करना अनुचित भी नहीं समझा जाता जैसे किः

  • पादे सो पुन्न करे, सूँघे सो धर्मात्मा।
    हाँसे सो नरक परे, छिन भर के वासना॥

  • ठुसका पाद महा बस्साय।

  • आइये हुजूर,खाइये खुजूर,बैठिये तखत पर,और पादिये बखत पर।
फिर भी यदि ये शब्द आपको पसंद नहीं आ पा रहा हो तो चलिए अब इसके बदले हम इसके शुद्ध हिन्दी नाम याने कि अधोवायु का ही प्रयोग करेंगे।

यह तो आप जानते ही हैं कि पेट के भीतर बनने वाली वायु अर्थात् गैस को अधोवायु कहा जाता है। पेट के भीतर वायु बनना स्वाभाविक क्रिया है और चूँकि यह वायु नीचे के तरफ याने कि गुदा से निकलती है इसलिए इसे अधोवायु कहा जाता है।

यदि यह अधोवायु शब्द करते हुए छूट जाए तो जहाँ अन्य लोगों को अनायास ही हँसी आ जाती है वहीं इसे छोड़ने वाला बड़ा अटपटा से अनुभव करने लगता है। इसीलिए विष्णुपुराण में गृहस्थ सम्बन्धी सदाचार का वर्णन करते हुए बताया गया है कि शब्द करते हुए अधोवायु नहीं छोड़ना चाहिए।

अधोवायु का पेट के बाहर निकल जाना निहायत ही जरूरी है। इसे पेट के भीतर रोक रखने से आदमी के पेटदर्द, सिरदर्द, कब्ज, एसिडिटी, जी मिचलाना, बेचैनी जैसी व्याधियों से ग्रसित हो जाने की अत्यधिक सम्भावना रहती है। आयुर्वेद शास्त्र के अनुसार तो लंबे समय तक अधोवायु को पेट के भीतर रोके रहे जाना अनेको यौन रोगों के उत्पन्न हो जाने का कारण भी बन जाता है।

अधोवायु को पेट से बाहर निकालने के लिए दोनों समय भोजन के पश्चात् काली हरड़ चूसना बहुत ही गुणकारी होता है।

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आपको "संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" भी अवश्य ही पसंद आयेगा।

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Sunday, October 11, 2009

क्या किसी ब्लॉग को पढ़ने के लिए किसी प्रकार का सत्यापन जरूरी है?

कुछ ब्लॉग्स को मैं पढ़ने के लिए जाता हूँ तो ब्लॉग के ओपन होते ही एक छोटा सा विंडो खुल कर सामने आ जाता है, सत्यापन जरूरी वाला। स्नैपशॉट देखें:

इस विंडो में रद्द बटन को क्लिक करने पर वह पुनः सामने आ जाता है। आप बार बार रद्द करिए और यह, कपिल शर्मा वाला जिद्दी मुर्गे के जैसा (व्हीडियो देखें), फिर सामने आ जाता है। और मैं हारकर उस ब्लॉग को बिना पढ़े ही बंद कर देता हूँ।



तो क्या किसी ब्लॉग को पढ़ने के लिए किसी प्रकार का सत्यापन जरूरी है?

चलते-चलते

जहाज तूफान में फँस कर डूब गया। लाइफ बोट के सहारे तीन लोग एक वीरान टापू में पहुँच गये - एक अमेरिकन, एक जापानी और एक पाकिस्तानी। टापू में फलों के वृक्ष और पीने लायक पानी के झरने भरपूर थे। वे लोग साथ रहकर किसी तरह समय बिताने लगे। एक दिन वे समुद्र के किनारे बैठे तो उन्हें लहरों में तैरती हुई एक बोतल दिखी। अमेरिकन ने बोतल ढक्कन खोल दिया। बोतल में से जिन्न निकला और बोला, "मैं चार हजार साल से इस बोतल में बंद था। तुम लोगों ने मुझे कैद से मुक्ति दिलाई है। बदले में मैं तुम लोगों की एक एक इच्छा पूरी कर सकता हूँ। बोलो क्या इच्छा है तुम लोगों की?"

"मुझे न्यूयार्क पहुँचा दो।" अमेरिकन ने कहा।

जिन्न ने पलक झपकते उसे न्यूयार्क पहुँचा दिया।

"मुझे पेरिस पहुँचा दो।" जापानी ने कहा।

जिन्न ने उसे भी पलक झपकते पेरिस पहुँचा दिया।

"अब तुम कराँची जाना चाहोगे?" जिन्न ने पाकिस्तानी से पूछा।

"कौन साला वापस जाना चाहता है उस नामुराद माहौल में? मुझे तो ये टापू रास आ गई है। मैं तो यहीं रहूँगा।" पाकिस्तानी ने उत्तर दिया।

"फिर मुझसे क्या चाहते हो?"

"यहां पर मैं ठीक तो हूँ पर अकेलापन महसूस करता हूँ। तुम मेरे दोनों दोस्तों को वापस ले आओ।"