सबसे पहले तो आप सभी को गणेश चतुर्थी की शुभकामनाएँ और ईद मुबारक!
आज का दिन एक विशेष दिन है क्योंकि आज गणेश चतुर्थी और ईद एक साथ मनाए जा रहे हैं। हिन्दू भाई भी खुश और मुसलमान भाई भी खुश! यह भी हो सकता है कि किसी वर्ष होली और ईद एक ही दिन मनाया जाये! जी हाँ, मैं गलत नहीं कह रहा हूँ, अवश्य ही ऐसा हो सकता है। अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा कैसे और क्यों होता है?
दरअसल यह समय की गणना का एक रोचक खेल है। आप यह तो जानते ही हैं कि समय की गणना पंचांग अर्थात् कैलेंडर के द्वारा की जाती है। पंचांग में समय की गणना मुख्यतः दो आधारों पर होती हैं - या तो सूर्य की गति के आधार पर या फिर चन्द्र की गति के आधार पर। हिन्दू और हिजरी कैलेंडरों में समय की गणना चन्द्रमा की गति के आधार पर होती है जबकि ग्रैगेरियन अर्थात अंग्रेजी कैलेंडर में समय की गणना सूर्य की गति के आधार पर होती है। सूर्य की गति के आधार पर समय की गणना करने पर एक साल में दिनों की कुल संख्या लगभग 365.25 होती है जबकि चन्द्र की गति से समय की गणना करने पर साल में दिनों की कुल संख्या घट कर लगभग 354.37 ही रह जाती है इस प्रकार से चन्द्र वर्ष सूर्य वर्ष से लगभग 10.88 कम दिनों का होता है। मोटे तौर पर कहें तो जूलियन अर्थात अंग्रेजी वर्ष में हिन्दू और हिजरी वर्षों से लगभग 10 अधिक दिन होते हैं। इस प्रकार से प्रत्येक हिन्दू और मुस्लिम त्यौहार प्रति वर्ष 10 दिन पीछे होते चले जाते हैं। तीन वर्ष में लगभग 30 दिन कम हो जाने पर हिन्दू पंचांग में तो एक अधिक मास जोड़ दिया जाता है और प्रत्येक हिन्दू त्यौहार पुनः एक माह आगे बढ़ जाते हैं किन्तु हिजरी पंचांग में मुस्लिम त्यौहार निरन्तर रूप से हर साल 10 दिन पीछे ही होते चले जाते हैं। इसी कारण से ईद का त्यौहार कभी किसी हिन्दू त्यौहार के साथ मिल जाता है तो कभी किसी अन्य हिन्दू त्यौहार के साथ। बहरहाल यह एक अच्छी बात ही है कि हिन्दू और मुसलमान एक साथ मिल कर एक ही दिन अपने-अपने त्यौहार मनाकर खुश होते हैं।
प्रति वर्ष ईद के लगभग दस दिन पीछे हो जाने के कारण एक और भी रोचक बात होती है वह है एक ही अंग्रेजी साल में दो बार ईद का मनाया जाना, एक बार जनवरी माह में और दूसरी बार दिसम्बर माह में! ऐसा सन् 2000 में हुआ था जब माह रमज़ान की ईद 8 जनवरी और अगली ईद 28 दिसम्बर को पड़ी थी। है ना यह एक मजेदार बात! सन् 2000 के बाद लगभग 35-36 बीत जाने पर फिर से ईद एक ही अंग्रेजी साल में दो बार मनाया जाएगा!
चलते-चलते
कल भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि थी जिसे कि हरतालिका तीज कहा जाता है। हरतालिका तीज को छत्तीसगढ़ में "तीजा" के नाम से जाना जाता है और यह इस क्षेत्र की महिलाओं के लिए एक विशिष्ट दिन होता है। समस्त महिलाएँ, चाहे वे कुमारी हों या विवाहित, आज निर्जला व्रत रख कर रात्रि जागरण और गौरी-शंकर की पूजा करेंगी। व्रत-पूजा करके जहाँ विवाहित महिलाएँ अपने लिये अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं वहीं कुमारियों का उद्देश्य होता है स्वयं के लिये योग्य वर की प्राप्ति। मान्यता है कि आज के दिन ही शिव-पार्वती का विवाह हुआ था।
छत्तीसगढ़ में तीजा व्रत की अत्यधिक मान्यता है। इस व्रत को मायके में ही आकर रखा जाता है। यदि किसी कारणवश मायके आना नहीं हो पाता तो भी व्रत तोड़ने के लिये मायके से जल और फलाहार का आना आवश्यक होता है क्योंकि इस व्रत को मायके के ही जल पीकर तोड़ा जाता है।
महिलाएँ रात भर जागरण करके भजन-पूजन करती हैं और भोर होने के बाद अपना व्रत तोड़ती हैं।