Saturday, October 3, 2015

ज्ञान को आत्मसात करना ही श्रेयस्कर है

एक बार राजा भोज के दरबार में एक शिल्पकार आया और उसने राजा से कहा, "हे राजन्! मैंने यह तीन मूर्तियाँ बड़े परिश्रम से बनाई हैं। इन तीनों मूर्तियों में कुछ न कुछ अन्तर है। उन अन्तरों के आधार पर आप मुझे इन मूर्तियों की कीमत दे दें।"

राज भोज तथा उनके सभी दरबारियों ने पत्थर की उन मूर्तियों को गौर से देखा, वे शिल्पकला की उत्कृष्ट कलाकृति थीं। तीनों हू-ब-हू एक जैसी! रत्ती भर भी कहीं कोई फर्क नहीं। लाख कोशिश करने पर भी वे उन मूर्तियों में किसी प्रकार का कोई अन्तर न निकाल पाये।

राजा भोज विचार करने लगे कि काश! इस समय यहाँ पर कालिदास मौजूद होते। वे जरूर इन मूर्तियों में फर्क ढूँढ लेते। उसी समय कालिदास वहाँ पधारे। राजा ने मूर्तियाँ उनके हाथों में दे दीं। पहले तो कालिदास को भी उन मूर्तियों में किसी प्रकार का अन्तर नजर नहीं आया किन्तु बहुत गौर से देखने पर उन्हें उन मूर्तियों के कानों में छेद दिखाई पड़ा। वे सोचने लगे कि फर्क अवश्य ही कान के इन छेदों के कारण ही होगा।

कालिदास ने सोने का बहुत पतला तार मँगवाया और एक मूर्ति के कान में उस तार को डाला। तार अन्दर घुसते चला गया और अन्त में तार का सिरा दूसरे कान से बाहर निकल आया। दूसरी मूर्ति के कान में तार डालने पर उसका सिरा मुँह से बाहर निकला। पर तीसरे मूर्ति के कान में तार डालने पर तार घुसता ही चला गया, कहीं से भी बाहर नहीं निकला।

यह देखकर कालिदास के मुख पर सन्तुष्टि की मुस्कान आ गई। वे राजा भोज से बोले, "महाराज जिस मूर्ति के दूसरे कान से तार का सिरा निकला उसकी कीमत दो कौड़ी भी नहीं है क्योंकि वह उन लोगों का प्रतीक है जो ज्ञान की बातों को एक कान से सुनते हैं और दूसरे कान से बाहर निकाल देते हैं। दूसरी मूर्ति जिसके मुँह से तार का सिरा निकला वह अवश्य कुछ मूल्यवान है क्योंकि वह ऐसे लोगों को इंगित करती है जो ज्ञान की बातों को सुनते हैं और सुनकर दूसरों को भी बताते हैं, उन बातों को आत्मसात करते हैं या नहीं यह कहा नहीं जा सकता किन्तु ज्ञान की बातों को सुनकर दूसरों को भी बताने का अवश्य कुछ न कुछ मूल्य होता है। और तीसरी मूर्ति जिसके भीतर तार घुसता ही चला गया, कहीं से बाहर नहीं निकला उन लोगों का प्रतीक है जो ज्ञान की बातों को सुनकर आत्मसात कर लेते हैं। इस तीसरी मूर्ति का मूल्य कोई भी नहीं दे सकता, यह अनमोल है।"

कथा का सार यही है कि ज्ञान की बातों को आत्मसात कर लेना और उनका जगत तथा स्वयं के हित में सदुपयोग करना ही श्रेयस्कर है।

Monday, April 20, 2015

मुझ बुड्ढे की भगवान से प्रार्थना

हे सर्वशक्तिमान परमात्मा!

आप जानते ही हैं कि मेरी उम्र साठ साल को पार कर गई है और मैं अब बूढ़ा हो चला हूँ।

मुझे अत्यधिक वाचाल याने कि बातूनी होने से बचाने की कृपा करें। ऐसी कृपा करें कि मैं अपने पुराने चुटकुले सुना-सुनाकर, अपने अतीत के किस्से बता-बता कर और लोगों को बिना माँगी सलाह दे-देकर पकाने की कोशिश करने से हमेशा बचूँ।

यह भी कृपा करें कि मैं लोगों के समक्ष अपनी बातों को, अन्तहीन विस्तार न देकर, संक्षेप में रख सकूँ। मेरी बुद्धि में यह बात सदा बनी रहे कि अपनी बात को अनावश्यक विस्तार देकर लोगों के समय बर्बाद करने वाले वृद्धजनों को लोग और कुछ नहीं, बल्कि एक खूँसट बुड्ढा ही समझते हैं।

अपनी ही हाँकने के बजाय लोगों की बात को सुनने और समझने की क्षमता मुझे प्रदान करने की कृपा करें।

मुझे ऐसा आशीर्वाद दें कि इस उम्र में भी मैं लोगों के सुख-दुःख में साथ दे पाऊँ।

मुझ पर ऐसी कृपा करें कि मैं लोगों के सामने अपने परिजनों की निन्दा करने से हमेशा बचा रहूँ।

मेरे मन में कदापि यह विचार न बना रहे कि 'चूँकि मैं अन्य लोगों से उम्र में बड़ा हूँ ड़सलिए, मैं अन्य लोगों से अधिक बुद्धिमान और ज्ञानी हूँ', मेरे भीतर सदा आभास बना रहे कि यह जरूरी नहीं है कि उम्रदराज आदमी दूसरों से अधिक विवेकी हो।

मेरी इस पूरी प्रार्थना का सार यही है कि हे भगवान! आप मुझ ऐसी कृपा करें कि मैं इस वय में भी अपने अवगुणों से अवगत रह पाऊँ ताकि लोग मुझे सठियाया हुआ बुड्ढा, सनकी बुड्ढा, झक्की बुड्ढा, खूँसट बुड्ढा जैसी उपाधि प्रदान करने से परहेज करें।

Saturday, March 21, 2015

हिन्दू नववर्ष

  • हिन्दू नववर्ष (Hindu New Year) का आरम्भ प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि से होता है। आज भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का दिन है और आज से हिन्दू नव संवत्सर 2072 का आरम्भ हो रहा है।

  • हिन्दू मान्यता के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का दिन से सृष्टि की रचना का पहला दिन है। ब्रह्मा जी ने आज से लगभग एक अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 111 वर्ष पूर्व आज के दिन ही से सृष्टि की रचना शुरू की थी।

  • रावण का वध करके लंका से अयोध्या वापस आने के बाद भगवान श्री राम का राज्याभिषेक आज ही के दिन, अर्थात् चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के ही दिन, हुआ था।

  • चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन से ही चैत्र नवरात्रि का आरम्भ होता है।

  • आज से लगभग 5113 वर्ष पूर्व चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही ज्येष्ठ पाण्डव युधिष्ठिर का राज्याभिषेक हुआ था, जिसकी स्मृति में युगाब्द संवत्सर आरम्भ किया गया।

  • भारत के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य द्वारा चलाये गये विक्रम संवत का आरम्भ भी आज से 2072 वर्ष पूर्व चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही से हुआ था।

  • आज से 1937 वर्ष पूर्व आज ही के दिन से शालिवाहन शक संवत का आरम्भ हुआ था। उल्लेखनीय है कि शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित किया था।

  • सिख परम्परा के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को गुरु अंगद देव प्रकटोत्सव मनाया जाता है। गुरु अंगद देव सिखों के द्वितीय गुरु हैं।

  • आर्य समाज की स्थापना भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही हुई थी।

  • सिंध प्रान्त के सुप्रसिद्ध समाज रक्षक संत झूलेलाल, जिन्हें भगवान वरुण का अवतार माना जाता है, भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही प्रकट हुए थे।

  • उल्लास और उमंग प्रदान करने वाला ऋतुराज वसन्त का आरम्भ भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही होता है।
  • अंग्रेजी नववर्ष रात्रि के बारह बजे नीरव अन्धकार में आता है जबकि हिन्दू नववर्ष प्रातः सूर्योदय के समय पक्षियों के मधुर कलरव के साथ आता है; अंग्रेजी नववर्ष आने के समय पतझड़ का मौसम होता है जिसके कारण प्रकृति का सौन्दर्य फीका रहता है जबकि हिन्दू नववर्ष आने के समय वसन्त ऋतु होता है जो कि प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में हर्ष, उल्लास और उमंग को उद्दीप्त करती है; अग्रेजी नववर्ष मादक पदार्थों का सेवन करके हो-हल्ला मचा कर मनाया जाता है जबकि हिन्दू नववर्ष शान्ति के साथ पूजा-पाठ करके मनाया जाता है।

Friday, March 20, 2015

परिवर्तन

इस संसार में कुछ भी स्थिर नहीं है, परिवर्तन (variance) ही संसार का नियम है। समय बदलने के साथ ही साथ अनेक प्रकार के उलट-फेर (somerset) होना स्वाभाविक बात है। इस सत्य को समस्त विद्वानों ने स्वीकारा है।

किसी ने सच ही कहा है - सदा न जोबन थिर रहे, सदा न जीवै कोय।

रावण का वंश बहुत विशाल था पर हुआ क्या? यही ना -

इक लख पूत सवा लख नाती,
ता रावण घर दिया ना बाती।

यह तो समय बदल जाने की ही बात है।

महाभारत के शान्ति पर्व (80/8) में परिवर्तन (variance, somerset) को लक्ष्य करते हुए वेदव्यास जी लिखते हैं -

असाधुः साधुतामेति साधुर्भवति दारुणः।
अरिश्च मित्रं भवति मित्रं चापि प्रदुष्यति॥

भावार्थः असाधु अर्थात दुष्ट मनुष्य साधु अर्थात भला व्यक्ति बन जाता है और साधु अर्थात भला व्यक्ति दारुण अर्थात दुष्ट बन जाता है, शत्रु मित्र बन जाता है और मित्र शत्रु।

सच पूछा जाय तो मनुष्य बलवान नहीं होता, समय ही बलवान होता है, इसीलिए तो कहा गया है

पुरुष बली नहि होत है समय होत बलवान।
भीलन लूटी गोपिका वहि अर्जुन वहि बान॥

मलिक मोहम्मद जायसी अपनी सुप्रसिद्ध रचना पद्मावत में कहते हैं -

मोतिहि जौं मलीन होइ करा। पुनि सो पानि कहाँ निरमरा॥

भावार्थः एक बार मोती की कान्ति मलिन हो जाने पर उसे फिर से वही कान्ति नहीं मिलती।

समय के साथ परिवर्तन कैसे होता है यह बताते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं -

तुलसी पावस के समय धरी कोकिलन मौन।
अब तो दादुर बोलिहैं हमें पूछिहै कौन॥

भावार्थः तुलसीदास जी कहते हैं कि पावस ऋतु अर्थात बरसात का मौसम आने पर कोयल मौन धारण कर लेती है, क्योंकि मेढकों के टर्राने की आवाज के बीच कोयल की आवाज कौन सुनेगा?

नरोत्तमदास अपनी प्रसिद्ध खंडकाव्य "सुदामाचरित" में कहते हैं -

कै वह टूटि सी छानी हुती कहँ
कंचन के सब धाम सुहावत।
कै पग मे पनही न हुती कहँ
लै गजराजहु ठाढ़े महावत॥
भूमि कठोर पै रात कटै कहँ
कोमल सेज पै नींद न आवत।
कै जुरतो नहिं कोदो सवाँ, प्रभु
कै परताप ते दाख न भावत॥

भावार्थः कृष्ण के सखा सुदामा का कभी टूटी छत वाली झोपड़ी थी तो अब विशाल भवन है जिसे सारे कमरे सोने से सुसज्जित हैं। कभी सुदामा के पैरों में पनही तक नहीं होती थी और अब उनके लिए हाथी लेकर महावत खड़े रहते हैं। कभी कठोर भूमि पर सोकर रात कटती थी तो अब कोमल शय्या पर भी नींद नहीं आती और कभी मोटा-झोटा अन्न तक भी नहीं मिल पाता था और आज मेवे भी सुदामा को भाते नहीं हैं।

समय के बारे में कवि बिहारी लिखते हैं -

समै पलटि पलटै प्रकृति, को न तजै निज चाल।

भावार्थः समय बदलने पर प्रकृति भी पलट जाती है, इस संसार में भला ऐसा कौन है जो समय के साथ अपनी चाल न बदलता हो।

जयशंकर प्रसाद अपने नाटक "स्कन्दगुप्त" में लिखते हैं -

परिवर्तन ही सृष्टि है, जीवन है। स्थिर होना मृत्यु है, निश्चेष्ट शान्ति मरण है। प्रकृति क्रियाशील है।

सुमित्रानन्दन पंत जी अपनी रचना "पल्लव" में कहते हैं -

आज बचपन का कोमल गात जरा का पीला पात।
चार दिन सुखद चाँदनी रात और फिर अंधकार अज्ञात॥

भावार्थः बचपन में जो कोमल शरीर था वह आज वृद्धावस्था में पीला और झुर्रीदार हो गया है। चार दिन की सुखद चाँदनी होती है फिर अंधेरा ही रह जाता है।

"भारत भारती" में मैथिलीशरण गुप्त जी बताते हैं -

संसार में किसका समय है एक सा रहता सदा,
है निशि-दिवा सी चूमती सर्वत्र विपदा-सम्पदा।
जो आज राजा बन रहा है रंक कल होता वही,
जो आज उत्सव-मग्न है कल शोक से रोता वही॥

भावार्थः इस संसार में भला किसका समय एक सा रहता है! रात और दिन की तरह विपत्ति और सम्पत्ति आते-जाते रहते हैं। जो आज अमीर है वही कल गरीब हो जाता है और जो आज उत्सव मना रहा है उसी को कल शोक से रोना भी पड़ता है।

"चित्रलेखा" उपन्यास में भगवतीचरण वर्मा जी लिखते हैं -

संसार क्या है? शून्य है। और परिवर्तन उस शून्य की चाल है।

बन्धुओं समय कभी भी एक जैसा नहीं होता, आपने ये लोकोक्तियाँ अवश्य ही सुनी होंगी

"सब दिन जात न एक समान"

"कभी दिन बड़े तो कभी रात बड़ी"

"कभी नाव गाड़ी पर, कभी गाड़ी नाव पर"

"चार दिनों की चांदनी फिर अंधियारी रात"

"घूरे के भी दिन फिरते हैं"

अतः समय के अनुसार स्वयं को ढालने में ही बेहतरी है।

Friday, March 13, 2015

कलम-दवात और काले हाथ


कल एक व्यापारी मित्र ने अनुरोध किया कि मैं उनका बैंक अकाउंट खोलने का फॉर्म भर दूँ। फॉर्म तो मैंने भर दिया किन्तु फॉर्म भरने के लिए पेन निकालते समय विचार आया कि न जाने कितने दिनों से मैंन कुछ लिखने के लिए पेन का प्रयोग नहीं किया है। आजकल पेन तो सिर्फ हस्ताक्षर करने के लिए ही निकलता है, या फिर कभी कोई फॉर्म भरने के लिए। कुछ, सार्थक या निरर्थक ही सही, लिखने के लिए मैंने पेन का प्रयोग कब किया था, बहुत सोचने पर भी याद नहीं आया। अब लिखना होता ही कहाँ है? अब तो सिर्फ कम्प्यूटर में टाइप करना ही होता है।

विचारों के सागर में गोते लगाता हुआ मैं धीरे-धीरे बीते हुए समय की ओर जाने लगा। आज जेल पेन, उसके पहले बॉल पेन, बॉल पेन के पहले फाउंटेन पेन और उसके भी पहले कलम-दवात।



दवात को धो-पोंछ कर उसमें स्याही भरना...

स्याही भरते समय हाथ, कभी-कभी कपड़ों, का काला हो जाना...

लिखते समय कलम का निब टूट जाने पर परेशान होना...

लिखावट सुन्दर न होने के कारण गुरुजी से डाँट पड़ना और कभी-कभी मार खाना...

पर यह सब मैं लिख क्यों रहा हूँ? शायद इसलिए कि अतीत में जीते रहना वृद्धों का स्वभाव बन जाता है।

वैसे भी प्रेमचंद जी ने अपने उपन्यास 'गोदान' में लिखा है -
बूढ़ों के लिए अतीत के सुखों और वर्तमान के दु:खों और भविष्य के सर्वनाश से ज्यादा मनोरंजक और कोई प्रसंग नहीं होता।


Monday, March 9, 2015

औरत संसार की क़िस्मत है फिर भी...


साहिर लुधियानवी

औरत ने जनम दिया मर्दों को
मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
जब जी चाहा मसला कुचला
जब जी चाहा दुत्कार दिया

तुलती है कहीं दीनारों में
बिकती है कहीं बाज़ारों में
नंगी नचवाई जाती है
ऐय्याशों के दरबारों में
ये वो बेइज़्ज़त चीज़ है जो
बँट जाती है इज़्ज़तदारों में
औरत ने जनम दिया मर्दों को...

मर्दों के लिये हर ज़ुल्म रवाँ
औरत के लिये रोना भी खता
मर्दों के लिये लाखों सेजें
औरत के लिये बस एक चिता
मर्दों के लिये हर ऐश का हक़
औरत के लिये जीना भी सज़ा
औरत ने जनम दिया मर्दों को...

जिन होठों ने इनको प्यार किया
उन होठों का व्यौपार किया
जिस कोख में इनका जिस्म ढला
उस कोख का कारोबार किया
जिस तन से उगे कोपल बन कर
उस तन को ज़लील-ओ-ख़ार किया
औरत ने जनम दिया मर्दों को...

मर्दों ने बनायी जो रस्में
उनको हक़ का फ़रमान कहा
औरत के ज़िन्दा जलने को
कुर्बानी और बलिदान कहा
इस्मत के बदले रोटी दी
और उसको भी एहसान कहा
औरत ने जनम दिया मर्दों को...

संसार की हर एक बेशर्मी
गुर्बत की गोद में पलती है
चकलों ही में आ के रुकती है
फ़ाकों से जो राह निकलती है
मर्दों की हवस है जो अक्सर
औरत के पाप में ढलती है
औरत ने जनम दिया मर्दों को...

औरत संसार की क़िस्मत है
फ़िर भी तक़दीर की हेटी है
अवतार पयम्बर जनती है
फिर भी शैतान की बेटी है
ये वो बदक़िस्मत माँ है जो
बेटों की सेज़ पे लेटी है
औरत ने जनम दिया मर्दों को...

Friday, March 6, 2015

मोहे रहि रहि मदन सतावै....



टेसू और सेमल के लाल-लाल फूल...

बौराये हुए आम के पेड़...

पीले फूलों वाले सरसों के खेत...

गेहूँ की लहलहाती बालियाँ...

मादक सुगंध लिए हुए शीतल मंद बयार...

किस रसिक का मन मदमस्त नहीं हो उठेगा यह सब देख कर!

भला किसकी कोमल भावनाएँ उद्दीप्त न हो उठेंगी फागुन के इस महीने में!

ऐसे में किसी विरहणी, जिसका प्रिय परदेस में जा बसा हो, के मन की हालत क्या होगी?

क्या वह विरह में कह न उठेगी ...



नींद नहि आवै पिया बिना नींद नहि आवै

मोहे रहि रहि मदन सतावै
पिया बिना नींद नहि आवै

सखि फागुन मस्त महीना
सब सखियन मंगल कीन्हा
अरे तुम खेलव रंगे गुलालै
मोहे पिया बिना कौन दुलारै
पिया बिना नींद नहि आवै

सखि लागत मास असाढ़ा
मोरे प्रान परे अति गाढ़ा
अरे वो तो बादर गरज सुनावै
परदेसी पिया नहीं आवै
पिया बिना नींद नहि आवै

सखि सावन मास सुहाना
सब सखियाँ हिंडोला ताना
अरे तुम झूलव संगी सहेली
मैं तो पिया बिना फिरत अकेली
पिया बिना नींद नहि आवै

सखि भादो गहन गंभीरा
मोरे नैन बहे जल नीरा
अरे मैं तो डूबत हौं मँझधारे
मोहे पिया बिना कौन उबारे
पिया बिना नींद नहि आवै

सखि क्वार मदन तन दूना
मोरे पिया बिना मंदिर सूना
अरे मैं तो का से कहौं दुःख रोई
मैं तो पिया बिना सेज ना सोई
पिया बिना नींद नहि आवै

सखि कातिक मास देवारी
सब दियना बारैं अटारी
अरे तुम पहिरौ कुसुम रंग सारी
मैं तो पिया बिना फिरत उघारी
पिया बिना नींद नहि आवै

सखि अगहन अगम अंदेसू
मैं तो लिख लिख भेजौं संदेसू
अरे मैं तो नित उठ सुरुज मनावौं
परदेसी पिया को बुलावौं
पिया बिना नींद नहि आवै

सखि पूस जाड़ अधिकाई
मोहे पिया बिना सेज ना भायी
अरे मोरा तन मन जोबन छीना
परदेसी गवन नहिं कीन्हा
पिया बिना नींद नहि आवै

सखि माघ आम बौराये
चहुँ ओर बसंत बिखराये
अरे वो तो कोयल कूक सुनावै
मोरे पापी पिया नहि आवै
पिया बिना नींद नहि आवै

Monday, March 2, 2015

चाणक्य नीति - अध्याय 9 (Chanakya Neeti in Hindi)


  • यदि मुक्ति की कामना करते हो तो समस्त विषय-वासनाओं को विष की भाँति त्यागक दया, पवित्रता, नम्रता और क्षमाशीलता को अपनाओ।

  • दूसरों के दोषों को उजागर करने वाले नीच व्यक्ति उसी प्रकार से नष्ट हो जाते हैं जिस प्रकार से साँप के घर में रहने वाला दीमक।

  • प्रतीत होता है कि सृष्टि के निर्माणकर्ता ब्रह्मा जी को किसी ने यह सलाह नहीं दी कि वे सोने को सुगन्ध, ईख को फल, चन्दन वृक्ष को फूल, विद्वान को धन और राजा को दीर्घायु प्रदान करते।

  • औषधियों में अमृत, इन्द्रिय सुखों में भोजन, इन्द्रयों में नेत्र एवं शरीर के अंगों में सिर प्रधान होते हैं।

  • जो ब्राह्मण सूर्य तथा चन्द्रग्रहण की सटीक भविष्यवाणी करता है वह वास्तव में विद्वान होता है; क्योंकि आकाश में न तो कोई दूत जा सकता है और न ही वहाँ से कोई संदेश लाया जा सकता है।

  • विद्यार्थी, सेवक, पथिक, भूखा आदमी, भयभीत व्यक्ति, कोष का रक्षक और द्वारपाल यदि सो जाएँ तो उन्हें तत्काल जगा देना चाहिए।

  • सर्प, राजा, सिंह, बर्र, बालक, दूसरे का कुत्ता और मूर्ख व्यक्ति को कभी भी सोते से नहीं जगाना चाहिए।

  • धन कमाने के लिए वेदपाठ करने वाला और शूद्रों का अन्न खाने वाला ब्राह्मण शक्तिहीन होते हैं; वे उस सर्प के समान हैं जिनमें विष नहीं; वे न तो शाप दे सकते हैं और न ही वरदान।

  • जिसके क्रोध से भय नहीं उत्पन्न नहीं होता, जिसकी प्रसन्नता से लाभ नहीं होता और जिनमें दण्ड देने का सामर्थ्य नहीं हो ऐसा व्यक्ति कुछ भी नहीं कर सकता।

  • साँप के विष से अधिक उसका फुँफकारना भय उत्पन्न करता है अतः विषहीन होने के बावजूद भी सर्प को फुँफकारना चाहिए।

  • स्वयं के द्वारा गूथे हार को स्वयं पहनने से, स्वयं के द्वारा घिसे चंदन को स्वयं लगाने से और स्वयं के द्वारा रचित स्त्रोत को स्वयं पढ़ने से वैभव का नाश होता है।

  • ईख, तिल, क्षुद्र स्त्री, स्वर्ण, धरती, चंदन, दही, और पान पान को जितना अधिक मथा जाता है, उनसे उतनी ही अधिक प्राप्ति होती है।
  • दरिद्रता में भी धैर्य रखना चाहिए, नये वस्त्र न होने पर पुराने वस्त्रों को भी स्वच्छ रखना चाहिए, बासी हो जाने पर अन्न को गरम करके खाना चाहिए और कुरूप होने पर सद्व्यवहार से लोगों को प्रभावित करना चाहिए।

Saturday, February 28, 2015

चाणक्य नीति - अध्याय 8 (Chanakya Neeti in Hindi)


  • निम्न वर्ग के लोग धन की कामना करते हैं और मध्यम वर्ग के लोग धन तथा यश दोनों की; किन्तु उच्च वर्ग के लोग सिर्फ यश की ही कामना करते हैं क्योंकि यश धन से श्रेष्ठ है।

  • जिस प्रकार दीपक अन्धकार को खाकर कालिख बनाता है अर्थात् काली वस्तु को खाकर काली वस्तु ही बनाता है, उसी प्रकार से मनुष्य जैसा अन्न खाता है वैसा ही विचार बनाता है।

  • बुद्धिमान पुरुष के लिए यही उचित है कि वह अपना धन गुणी तथा योग्य व्यक्ति को दे, किसी अन्य को नहीं क्योंकि समुद्र का जल मेघो के मुँह में जाकर मीठा हो जाता है तथा पृथ्वी के चर-अचर जीवों को जीवनदान देकर कई करोड़ गुना होकर फिर से समुद्र में चला जाता है।

  • तत्वदर्शियों ने कहा है कि एक मलेच्छ हजारों चाण्डालों से भी अधिक नीच होता है, मलेच्छ से बढ़कर नीच अन्य कोई भी नहीं है।

  • शरी पर तेल लगाने के बाद, शरीर पर चिता का धुआँ लग जाने के बाद, स्त्री संभोग करने के बाद और बाल कटवाने के बाद मनुष्य तब तक चाण्डाल (अशुद्ध) रहता है जब तक कि वह स्नान न कर ले।

  • अपच की अवस्था में जल पीने पर जल औषधि के समान है; भोजन पच जाने के पश्चात जल पीने पर जल शक्तिवर्धक है; भोजन करते समय बीच-बीच में थोड़ा-थोड़ा जल पीने पर जल अमृत के समान है किन्तु भोजन समाप्त करने के तत्काल बाद जल पीने पर जल विष के समान है।

  • ज्ञान को कर्म का रूप न देने पर ज्ञान व्यर्थ हो जाता है; ज्ञान से हीन व्यक्ति मृतक के समान है; सेनापति न होने पर सेना नष्ट हो जाती है; और पति के बिना पत्नी पतित हो जाती है।

  • बुढ़ापे में पत्नी की मृत्यु हो जाना, धन-सम्पदा का बंधु-बांधवों के हाथों चले जाना और भोजन के लिए दूसरों पर निर्भर होना व्यक्ति के लिए दुर्भाग्य है।

  • यज्ञ कर्मों को न करके केवल वेद मंत्रों का उच्चारण करना व्यर्थ है; दान किये बिना यज्ञ करना व्यर्थ है; और भाव (प्रेम) न होने पर सिद्धि व्यर्थ है।

  • सोने, चांदी, तांबे, पीतल, लकड़ी, पत्थर इत्यादि से बनी मूर्ति में देवता को विद्यमान मानकर उसकी पूजा करनी चाहिए। मनुष्य जिस भाव से पूजा करता है, ईश्वर उसे वैसी ही सिद्धि प्रदान करते हैं।

  • संयम के समान कोई तप नहीं है; संतोष के समान कोई सुख नहीं है; लोभ के समान कोई रोग नहीं है; और दया के समान कोई गुण नहीं है।

  • क्रोध साक्षात यमराज है; लोभ साक्षात वैतरणी (नरक में बहने वाली नदी) है; ज्ञान साक्षात कामधेनु है; और संतोष साक्षात नन्दनवन (देवराज इन्द्र की वाटिका) है।

  • रूप की शोभा गुण में है; कुल की शोभा शील में है; विद्या की शोभा सिद्धि में है; और धन की शोभा भोग में है।

  • गुण न होने पर रूप व्यर्थ है; दुष्ट स्वभाव होने पर कुल का नाश हो जाता है; लक्ष्य न होने पर सिद्धि व्यर्थ है; और सदुपयोग न करने पर धन व्यर्थ है।

  • भूमि के भीतर का जल पवित्र होता है; परिवार को समर्पित पतिव्रता स्त्री पवित्र होती है; लोककल्याण करने वाला राजा पवित्र होता है; और सन्तोष करने वाला ब्राह्मण पवित्र होता है।

  • असन्तोषी ब्राह्मण, सन्तोषी राजा, लज्जाशील वेश्या और निर्लज्ज कुलीन स्त्री का नाश जल्दी ही हो जाता है।

  • उच्च कुल में जन्मे अज्ञानी एवं मूर्ख का कोई सम्मान नहीं करता जबकि नीच कुल में जन्मे विद्वान का सभी देवता के समान सम्मान करते हैं।

  • विद्वान ही सर्वत्र सम्मान पाता है; विद्या ही श्रेष्ठ है; विद्या की सर्वत्र पूजा होती है।

  • विद्या से हीन सुन्दर, युवा और कुलीन व्यक्ति पलाश के फूल के समान होता है जिसमें सुन्दरता तो होती है किन्तु सुगन्ध नहीं होती।

  • मांस-मदिरा का सेवन करने वाले तथा विद्या से हीन व्यक्ति मनुष्य के रूप में पशु और धरती के लिए बोझ होते हैं।
  • यज्ञ के पश्चात भोजन न करवाने पर यज्ञ राजा को जलाता है; अशुद्ध मंत्रोच्चार करने पर यज्ञ ऋत्विज (यज्ञ सम्पन्न करने वाला ब्राह्मण) को जलाता है; और यज्ञ के पश्चात दान न करने पर यज्ञ यजमान को जलाता है।

Tuesday, February 24, 2015

चाणक्य नीति - अध्याय 7 (Chanakya Neeti in Hindi)

  • बुद्धिमान व्यक्ति धन के नाश, मन के संताप, पत्नी के दोष, स्वयं के द्वारा खाये जाने वाले धोखा और स्वयं के अपमान को किसी को नहीं बताते।

  • वही व्यक्ति सुखी होता है जो धन सम्बन्धी व्यवहार करने में, ज्ञानर्जन में, भोजन करने में और ईमानदारी से काम करने में संकोच नहीं करता।

  • जो सुख संतोषी व्यक्ति को संतोष प्राप्त करने में मिलता है वही सुख लोभी व्यक्ति को धन प्राप्त करने पर भी नहीं मिलता।

  • स्वयं की पत्नी से, उपलब्ध भोजन से और अपने कमाये धन से हमेशा संतुष्ट रहना चाहिए। किन्तु विद्याभ्यास, तप और परोपकार करने में हमेशा असंतुष्ट रहना चाहिए।

  • दो ब्राह्मणों, ब्राह्मण और यज्ञ की अग्नि, पति और पत्नी, स्वामी और सेवक तथा हल और बैल के बीच कभी नहीं पड़ना चाहिए।

  • अग्नि, गुरु, ब्राह्मण, गाय, कन्या, वृद्ध और बालक को कभी भी चरण से स्पर्श नहीं करना चाहिए।

  • सींग वाले पशु से दस हाथ की, घोड़े से सौ हाथ की और हाथी से हजार हाथ की दूरी रखना चाहिए किन्तु जिस स्थान में दुष्ट हों उस स्थान का ही त्याग कर देना चाहिए।

  • हाथी को अंकुश से, घोड़े को चाबुक से, सींग वाले पशु को डंडे से और दुष्ट व्यक्ति को तलवार से नियन्त्रित करना चाहिए।

  • ब्राह्मण भोजन पाकर, मोर मेघ की गर्जन सुनकर, साधु दूसरों की सम्पन्नता देखकर और दुष्ट दूसरों को विपत्ति में देखकर प्रसन्न होते हैं।

  • स्वयं से अधिक शक्तिशाली को समझौता करके, अपने समान शक्ति वाले को स्थिति अनुसार युद्ध या समझौता करके और अपने से दुर्बल को अपनी शक्ति का प्रभाव दिखाकर वश में करना चाहिए।

  • राजा की शक्ति बाहुबल में, ब्राह्मण की शक्ति ज्ञान में और स्त्री की शक्ति सौन्दर्य तथा माधुर्य में होती है।

  • अत्यधिक सरल और सीधा होना भी अच्छी बात नहीं है; वन के सीधे वृक्ष ही काटे जाते हैं, टेढ़े नहीं।

  • जिस प्रकार से सरोवर के पानी सूख जाने पर हंस सरोवर को छोड़ देता है उसी प्रकार से व्यक्ति के सद्व्यवहार करना छोड़ देने पर लोग उससे नाता तोड़ लेते हैं।

  • जिस प्रकार से स्थिर जल से प्रवाहित जल अच्छा होता है उसी प्रकार से संचित किये जाने वाले धन से दान दिया जाने वाला धन अच्छा होता है।

  • संसार में जिस व्यक्ति के पास धन है उसके सभी मित्र और सगे-सम्बन्धी हैं, वही श्रेष्ठ माना जाता है, उसे ही मान-सम्मान मिलता है और वही शानोशौकत से जीता है।

  • परोपकार करना, मधुर वचन कहना, भगवान की आराधना करना और ब्राह्मण को भोजन तथा दान से सन्तुष्ट करना सद्पुरुए और देवताओं के गुण हैं।

  • अत्यधिक क्रोध करना, कठोर वचन कहना, सम्बन्धियों से बैर रखना, नीच व्यक्ति से मित्रता करना तथा नीच कुल के व्यक्ति की नौकरी करना - ये पाँच कार्य ऐसे हैं जो भूलोक में ही नरक के दुखों का आभास कराते हैं।

  • शेर की मांद में जाकर गजमुक्ता पाया जा सकता है और सियार के मांद में जाकर सिर्फ बछड़े की पूँछ या गधे का चमड़ा ही पाया जा सकता है।

  • विद्या से हीन व्यक्ति किसी कुत्ते की पूँछ के समान होता है जिससे न तो इज्जत ढाँकी जा सकती है और न ही मक्खियों को दूर किया जा सकता है।

  • वाणी की पवित्रता, मन की स्वच्छता और इन्द्रियों को वश में रखने का तब तक कुछ भी महत्व नहीं है जब तक कि मन में करुणा न हो।

  • जिस प्रकार से दिखाई न देने के बावजूद भी फूल में सुगंध, तिल में तेल, लकड़ी में अग्नि, दूध में घी और गन्ने में गुड़ विद्यमान रहता है उसी प्रकार से शरीर में आत्मा विद्यमान रहती है।

Monday, February 23, 2015

अपने मोबाइल से मुफ्त बात करें फेसबुक टू फेसबुक 'फ्री' कॉल कर के


मोबाइल से बात करने में पैसे तो खर्च करने पड़ते हैं। जितनी लंबी बातचीत उतने ही अधिक पैसे भी खर्च।

पर अब आप अपने मोबाइल से बिना पैसे खर्च किये ही, मुफ्त में, बात कर सकते हैं... और वह भी आप जितनी भी देर तक चाहें। आप चाहें तो इन्टरनेशनल कॉल भी कर सकते हैं बिल्कुल मुफ्त में।

मेरे इस पोस्ट को पढ़कर आपको लगेगा कि मैं एक बहुत बड़ा जानकार हूँ, किन्तु यकीन मानिये कि कल तक मैं भी नहीं जानता था कि मोबाइल से मुफ्त में भी बात किया जा सकता है। यह जानकारी तो मेरे हाथ लगी कल ब्लोगर शिरोमणि और महातकनीकी विशेषज्ञ श्री बी.एस. पाबला जी के कल के एक फेसबुक अपडेट से। पाबला जी ने कल के अपने फेसबुक अपडेट में लिखा था

मैंने और Shekhar Patil जी ने अभी एक लंबी बातचीत की फेसबुक टू फेसबुक 'फ्री' कॉल कर के.

हम दोनों ही वाई-फाई से जुड़े मोबाइल्स पर थे

शानदार नतीजा रहा. फेसबुक को इस पर 100/ 100 मार्क्स smile emoticon

उपरोक्त अपडेट के कमेंट्स में कुछ लोगों ने पूछा है कि मोबाइल से मुफ्त में बात कैसे होती है? मुझे भी इस बात की उत्सुकता हुई। सो मैंने नेट में थोड़ा सा शोधकार्य किया और मुझे पता चल गया कि यह कैसे होता है। मैंने तत्काल, अपने मोबाइल से, पाबला जी से मुफ्त में बात किया और इस विषय पर पोस्ट लिखने की अनुमति चाही जो कि पाबला जी ने खुशी के साथ दे दिया।

तो आप भी जान लें कि मोबाइल से मुफ्त बात कैसे किया जाये।

मोबाइल से मुफ्त बात करने के लिए पहली बात तो यह है कि आपका मोबाइल नेट से कनेक्टेड हो, 3g हो तो बेहतर है क्योंकि 2g पर नतीजा उतना अच्छा नहीं है। वाई-फाई से जुड़े हों तो फिर क्या बात है! नेट का भी अलग से खर्च नहीं।

तो इसके लिए आपको सबसे पहले अपने मोबाइल में फेसबुक मेसेन्जर डाउनलोड करना होगा। डाउनलोड हो जाने पर जब आप फेसबुक मेसेन्जर को ओपन करेंगे तो आपके सारे फेसबुक मित्रों की सूची आपको नजर आएगी। मोबाइल के टच स्क्रीन पर किसी मित्र को टच करने पर टाप राइट कॉर्नर पर कॉल वाला आइकॉन दिखेगा। बस क्या है इस आइकान को टच करें और शुरू कर दें बात करना मुफ्त में!

आपकी जानकारी के लिए यह बताना भी अनुपयुक्त नहीं होगा कि फेसबुक मेसेन्जर में VOIP (voice over IP) नामक यह सुविधा जनवरी 2013 से ही उपलब्ध थी किन्तु इस सुविधा का उपयोग केवल US, UK, और कनाडा तक ही सीमित था जिसे कि अप्रैल 2014 से सभी देशों के लिए उपलब्ध करा दिया गया।

Thursday, February 19, 2015

चाणक्य नीति - अध्याय 6 (Chanakya Neeti in Hindi)


  • शास्त्रों के श्रवण से धर्म का ज्ञान होता है, द्वेष का नश होता है, ज्ञान की प्राप्ति होती है और माया से आसक्ति दूर होती है।

  • पक्षियों में कौवा नीच है; पशुओं में कुत्ता नीच है; तपस्वियों में पाप करने वाला तपस्वी घृणास्पद है; और मनुष्यों में दूसरों की निन्दा करने वाला सबसे बड़ा चांडाल है।

  • राख से माँजने पर काँसे का बर्तन शुद्ध होता है; इमली से माँजने से तांबे का बर्तन शुद्ध होता है; रजस्वला होकर स्त्री शुद्ध होती है; और तीव्र गति से प्रवाहित होकर नदी निर्मल होती है।

  • राजा, ब्राह्मण और योगी भ्रमण में जाते हैं तो सम्मानित होते हैं; किन्तु घर से बाहर अकारण भ्रमण करने वाली स्त्री भ्रष्ट होती है।

  • पास में धन होने पर अनेक मित्र व सम्बन्धी बनते हैं; धनवान ही सद्पुरुष एवं पण्डित कहलाता है।

  • होनी अर्थात् ईश्वरेच्छा जैसी होती है वैसी ही बुद्धि और कर्म हो जाते हैं; सहायक भी ईश्वरेच्छा से प्राप्त होते हैं।

  • काल ही पंच भूतो (पृथ्वी,जल, वायु, अग्नि, आकाश) को पचाता है; काल ही प्राणियों का संहार करता है; काल की सीमा को कोई भी नहीं लांघ सकता; काल के जागृत होने पर प्राणी सुसुप्त अवस्था में चला जाता है।

  • जन्म से अंधे व्यक्ति को दिखाई नहीं देता; कामासक्त व्यक्ति को सुझाई नहीं देता; मद से मतवाला व्यक्ति सोच नहीं सकता; और स्वार्थी व्यक्ति को स्वयं में कोई दोष दिखाई नहीं देता।

  • जीव अनेक प्रकार के अच्छे-बुरे कर्म करता है और अपने कर्मों के फल को भोगता है; जीव स्वयं संसार के माया-मोह में फँसता है और अन्त में संसार को त्याग देता है।
  • राजा को प्रजा के द्वारा किये गए पाप को, राजपुरोहित को राजा के द्वारा किए गये पाप को, पति को पत्नी के द्वारा किए गये पाप को और गुरु को शिष्यों के द्वारा किए गये पाप को भोगना पड़ता है।

  • कर्ज में डूबा रहने वाला पिता शत्रु है; व्याभिचारिणी माता शत्रु है; मूर्ख पुत्र शत्रु है; और सुन्दर स्त्री शत्रु है।

  • लोभी को धन से, घमंडी को हाथ जोड़कर, मूर्ख को उसके अनुसार व्यवहार से और पंडित को सच्चाई से वश में करना चाहिए।

  • दुष्ट राजा के राज्य में रहने की अपेक्षा बिना राज्य के ही रहना उत्तम है; दुष्ट मित्र के साथ रहने की अपेक्षा बिना मित्र के ही रहना उत्तम है; नीच शिष्य बनाने अपेक्षा शिष्य न बनाना ही उत्तम है; और दुष्ट एवं कुलटा स्त्री के साथ रहने की अपेक्षा बिना स्त्री के ही रहना उत्तम है।

  • दुष्ट राजा के राज्य में प्रजा को सुख कहाँ? दुष्ट मित्र के साथ रहने से शान्ति कहाँ? दुष्ट एवं कुलटा नारी के संग रहने में सुख कहाँ? नीच शिष्य को ज्ञान देने में कीर्ति कहाँ?

  • मनुष्य को शेर तथा बगुले से एक, गधे से तीन, मुर्गे से चार, कौवे से पाँच और कुत्ते से छः गुण सीखना चाहिए।

  • जिस प्रकार से सिंह अपने शिकार को, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, एक बार पकड़ लेता है तो छोड़ता नहीं, उसी प्रकार से किसी काम को, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, एक बार हाथ में ले लेने के बाद छोड़ना नहीं चाहिए।

  • जिस प्रकार से बगुला अपने समस्त इन्द्रियों को संयम में रखकर शिकार करता है उसी प्रकार देश, काल और अपने सामर्थ्य को ध्यान में रखकर कार्य करना चाहिए।

  • बहुत थक जाने के बावजूद भी बोझ ढोना, ठंडे-गर्म का विचार न करना, सदा संतोषपूर्वक विचरण करना, ये तीन बातें गधे से सीखनी चाहिए।

  • अत्यंत थक जाने पर भी बोझ को ढोना, ठंडे-गर्म का विचार न करना, सदा संतोषपूर्वक विचरण करना, ये तीन बातें गधे से सीखनी चाहिए।

  • ब्राह्ममुहूर्त में जागना, रण में पीछे न हटना, किसी वस्तु का बन्धुओ में बराबर भाग करना और स्वयं आक्रमण करके दूसरे से अपने भक्ष्य को छीन लेना, ये चार बातें मुर्गे से सीखनी चाहिए।

  • गुप्त स्थान में मैथुन करना, छिपकर चलना, समय-समय पर सभी इच्छित वस्तुओं का संग्रह करना, सभी कार्यो में सावधानी रखना और किसी पर भी जल्दी विश्वास न करना - ये पाँच बातें कौवे से सीखना चाहिए।

  • भोजन करने की अत्यधिक शक्ति रखने के बावजूद भी थोड़े भोजन से ही संतुष्ट हो जाना, गहरी नींद में भी जरा-सा खटका होने पर ही जाग जाना, अपने रक्षक से प्रेम करना और शूरता दिखाना - ये छः गुण कुत्ते से सीखना चाहिए।
  • उपरोक्त गुणों को अपने जीवन में उतारकर आचरण करने वाला मनुष्य सदैव सभी कार्यो में विजय प्राप्त करता है।

Tuesday, February 17, 2015

आदिगुरु शंकराचार्य रचित शिवाष्टकम्


आज महाशिवरात्रि के अवस पर प्रस्तुत है आदिगुरु शंकराचार्य रचित शिवाष्टकम् -

तस्मै नम: परमकारणकारणाय दिप्तोज्ज्वलज्ज्वलित पिङ्गललोचनाय।
नागेन्द्रहारकृतकुण्डलभूषणाय ब्रह्मेन्द्रविष्णुवरदाय नम: शिवाय॥1॥

कारणों के भी परम कारण, दीप्त उज्ज्वल एवं पिङ्गल नेत्रों वाले, सर्पों के हार-कुण्डल आदि से विभूषित, तथा ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्रादि को भी वर देने वालें शिव जी को मैं नमस्कार करता हूँ।

श्रीमत्प्रसन्नशशिपन्नगभूषणाय शैलेन्द्रजावदनचुम्बितलोचनाय।
कैलासमन्दरमहेन्द्रनिकेतनाय लोकत्रयार्तिहरणाय नम: शिवाय॥2॥

निर्मल चन्द्र कला तथा सर्पों द्वारा भूषित एवं शोभायमान, शैलेन्द्रजा के मुख से चुम्बित लोचनों वाले, कैलास एवं महेन्द्रगिरि निवासी तथा जो त्रिलोक के दु:खों को हरने वाले शिव जी को मैं नमस्कार करता हूँ।

पद्मावदातमणिकुण्डलगोवृषाय कृष्णागरुप्रचुरचन्दनचर्चिताय।
भस्मानुषक्तविकचोत्पलमल्लिकाय नीलाब्जकण्ठसदृशाय नम: शिवाय॥3॥

स्वच्छ पद्मरागमणि के कुण्डलों से किरणों की वर्षा करने वाले, अगर तथा चन्दन से चर्चित तथा भस्म से विभूषित, प्रफुल्लित कमल और जूही से सुशोभित, नीलकमलसदृश कण्ठवाले शिव जी को मैं नमस्कार करता हूँ।

लम्बत्स पिङ्गल जटा मुकुटोत्कटाय दंष्ट्राकरालविकटोत्कटभैरवाय।
व्याघ्राजिनाम्बरधराय मनोहराय त्रिलोकनाथनमिताय नम: शिवाय॥4॥

पिङ्गलवर्ण जटाओं के मुकुट धारण करने से जो उत्कट जान पड़ते वाले, तीक्ष्ण दाढ़ों के कारण अति विकट और भयानक प्रतीत होने वाले, व्याघ्रचर्म धारण करने वाले अति मनोहर, तथा तीनों लोकों के अधीश्वर को भी अपने चरणों में झुकाने वाले शिव जी को मैं नमस्कार करता हूँ।

दक्षप्रजापतिमहाखनाशनाय क्षिप्रं महात्रिपुरदानवघातनाय।
ब्रह्मोर्जितोर्ध्वगक्रोटिनिकृंतनाय योगाय योगनमिताय नम: शिवाय॥5॥

दक्षप्रजापति के महायज्ञ को ध्वंस करने वाले, अत्यन्त विकट त्रिपुरासुर दानव का वध करने वाले तथा ब्रह्मा के दर्पयुक्त ऊर्ध्वमुख (पञ्च्म शिर) को काट देने वाले शिव जी को मैं नमस्कार करता हूँ।

संसारसृष्टिघटनापरिवर्तनाय रक्ष: पिशाचगणसिद्धसमाकुलाय।
सिद्धोरगग्रहगणेन्द्रनिषेविताय शार्दूलचर्मवसनाय नम: शिवाय॥6॥

संसार मे घटित होने वाले समस्त घटनाओं में परिवर्तन करने में सक्षम, राक्षस, पिशाच से ले कर सिद्धगणों द्वरा घिरे रहने वाले, सिद्ध, सर्प, ग्रह-गण एवं इन्द्रादि से सेवित, तथा बाघम्बर धारण करने वाले शिव जी को मैं नमस्कार करता हूँ।

भस्माङ्गरागकृतरूपमनोहराय सौम्यावदातवनमाश्रितमाश्रिताय।
गौरीकटाक्षनयनार्धनिरीक्षणाय गोक्षीरधारधवलाय नम: शिवाय॥7॥

जिन्होंने भस्म लेप द्वारा श्रृंगार किया हुआ है, जो अति शान्त एवं सुन्दर वन का आश्रय करने वालों (ऋषि, भक्तगण) के आश्रित (वश में) हैं, जिनका श्री पार्वतीजी कटाक्ष नेत्रों द्वारा निरीक्षण करती हैं, तथा जिनका गोदुग्ध की धारा के समान श्वेत वर्ण है, उन शिव जी को मैं नमस्कार करता हूँ।

आदित्य सोम वरुणानिलसेविताय यज्ञाग्निहोत्रवरधूमनिकेतनाय।
ऋक्सामवेदमुनिभि: स्तुतिसंयुताय गोपाय गोपनमिताय नम: शिवाय॥8॥

सूर्य, चन्द्र, वरूण और पवन द्वारा सेवित, यज्ञ एवं अग्निहोत्र धूम निवासी, ऋक-सामादि, वेद तथा मुनिजन द्वारा स्तुत्य, नन्दीश्वर द्वारा पूजित, गौओं का पालन करने वाले शिव जी को मैं नमस्कार करता हूँ।

Friday, February 13, 2015

चाणक्य नीति - अध्याय 5 (Chanakya Neeti in Hindi)


  • द्विजों के लिए अग्नि पूज्य है; अन्य वर्ण के लोगों के लिए ब्राह्मण पूज्य है; पत्नी के लिए पति पूज्य है; और मध्याह्नभोज के समय आने वाला अतिथि सभी के लिए पूज्य है।

  • जिस प्रकार से सोने को घिसकर, काटकर, गरम करके और पीटकर परखा जाता है, उसी प्रकार से व्यक्ति को उसके त्याग, आचरण, गुण तथा व्यवहार से परखा जाता है।

  • भय से तभी तक भयभीत होना चाहिए जब तक भय आने की आशंका हो, किन्तु भय के आ जाने पर निःसंकोच उसे दूर करने का प्रयास करना चाहिए।

  • जैसे बेर के पेड़ में फले सारे बेर एक जैसे नहीं होते, उसी प्रकार से एक ही गर्भ से और एक ही नक्षत्र में उत्पन्न व्यक्तियों के स्वभाव भी एक जैसे नहीं होते।

  • किसी वस्तु के प्रति आसक्ति नहीं होने पर उस वस्तु का अधिकारी भी नहीं बना जा सकता। वासना का त्याग कर देने वाला श्रृंगार नहीं करता; मूर्ख व्यक्ति मृदुभाषी नहीं होता; और स्पष्ट बात करने वाला धोखा नहीं देता।

  • मूर्ख विद्वान से इर्ष्या करते हैं; दरिद्र धनवान से इर्ष्या करते हैं; बुरे आचरण वाली स्त्री पतिव्रता से इर्ष्या करती हैं; और कुरूप स्त्री सुन्दर स्त्री से इर्ष्या करती हैं।

  • आलस्य से विद्या का नाश होता है; भरोसा कर के दूसरों को दे देने से धन का नाश होता है; लापरवाही से बुआई करने पर बीजों का नाश होता है; और सेनापति के बिना सेना का नाश होता है।

  • विद्या अभ्यास से आती है; कुल का बड़प्पन सुशील स्वभाव से होता है; श्रेष्ठता की पहचान गुणों से होती है; और क्रोध का पता आँखों से चलता है।

  • धर्म की रक्षा धन से होती है; ज्ञान की रक्षा निरन्तर साधना से होती है; राजकोप से मृदु स्वभाव द्वारा रक्षा होती है और घर की रक्षा कर्तव्य परायण गृहणी से होती है।
  • वैदिक पाण्डित्य तथा शास्त्रों के ज्ञान को को व्यर्थ बताने वाले लोग स्वयं व्यर्थ हैं।

  • दान से दारिद्र्य का; सदाचार से दुर्भाग्य का; विवेक से अज्ञान का; और परीक्षण से भय का नाश होता है।

  • काम वासना से बढ़कार कोई रोग नहीं होता; मोह से बढ़कर कोई शत्रु नहीं होता; क्रोध से बढ़कर कोई आग नहीं होता; और ज्ञान से बढ़कर कोई सुख नहीं होता।

  • व्यक्ति अकेला ही जन्म लेता है, अकेला ही मरता है, अकेला ही अपने अच्छे बुरे कर्मों को भोगता है और अकेला ही नर्क में जाता है या मोक्ष प्राप्त करता है।

  • ब्रह्मज्ञानी की दृष्टि में स्वर्ग तुच्छ है; पराक्रमी योद्धा की दृष्टि में जीवन तुच्छ है; इन्द्रियों को जीत लेने वाले की दृष्टि में स्त्री तुच्छ है; तत्वज्ञानी की दृष्टि में समस्त संसार तुच्छ है।

  • विदेश में विद्या मित्र है; घर में पत्नी मित्र है; रोगी के लिए औषधि मित्र है; और मरने वाले के लिए धर्म मित्र है।

  • समुद्र होने वाली वर्षा व्यर्थ है; तृप्त व्यक्ति को भोजन कराना व्यर्थ है; धनी व्यक्ति को दान देना व्यर्थ है; और दिन में दिया जलाना व्यर्थ है।

  • वर्षा के जल के समान कोई जल नहीं है; आत्मबल के समान कोई बल नहीं है; नेत्र की ज्योति के समान कोई प्रकाश नहीं है; और अन्न के समान कोई सम्पत्ति नहीं है।

  • निर्धन को धन की कामना होती है; पशु को वाणी की कामना होती है; मनुष्य को स्वर्ग की कामना होती है; और देवताओं को मोक्ष की कामना होती है।

  • सत्य से पृथ्वी टिकी है; सत्य से सूर्य प्रकाशित है; सत्य से वायु प्रवाहित होती है; संसार के समस्त पदार्थों में सत्य ही निहित है।

  • लक्ष्मी अस्थिर है; प्राण अस्थिर है; संसार में सिर्फ धर्म ही स्थिर है।
  • पुरुषों में नाई धूर्त होता है; पक्षियों में कौवा धूर्त होता है; पशुओं में गीदड़ धूर्त होता है; और औरतों में मालिन धूर्त होती है।

  • जन्म देने वाला, यज्ञोपवीत संस्कार कराने वाला, विद्या प्रदान करने वाला, अन्न देने वाला और भय से मुक्ति दिलाने वाला - ये पाँच पिता कहे गए हैं।
  • राजा की पत्नी, गुरु की पत्नी, मित्र की पत्नी, पत्नी की माता तथा स्वयं की माता को माता समझना चाहिए।

Wednesday, February 11, 2015

चाणक्य नीति - अध्याय 4 (Chanakya Neeti in Hindi)


  • व्यक्ति की कुल उम्र, व्यक्ति के कार्य का प्रकार, व्यक्ति की संपत्ति और व्यक्ति की मृत्यु दिनांक - ये चार बातें माता के गर्भ में ही निश्चित हो जाती हैं।

  • सन्तान, मित्र तथा सगे-सम्बन्धी भगवान के भक्त से दूर भागते हैं, किन्तु जो लोग भगवान के भक्त का अनुसरण करते हैं वे अपने समर्पण के कारण अपने परिवार को धन्य कर देते हैं।

  • जिस प्रकार से मछली, कछुआ और पक्षी अपने बच्चों को देखभाल करके, सावधानी बरत कर और स्पर्श करके बड़ा करते हैं, उसी प्रकार से संतजन भी अपने सहभागियों का पालन करते हैं।

  • जब शरीर स्वस्थ हो, स्वयं के नियन्त्रण में हो और मृत्यु दूर हो तभी आत्मसुरक्षा का प्रयास कर लेना चाहिए, मृत्यु के सर पर आ जाने पर भला क्या किया जा सकता है?

  • विद्या प्राप्ति कामधेन के समान है जो कि हर ऋतु में फल प्रदान करती है। विद्या माँ के समान रक्षक तथा हितकारी है। विद्या एक छुपे हुए खजाने के जैसा है।

  • अच्छे गुणों से सम्पन्न एक पुत्र, गुणों से वंचित सौ पुत्रों से भी अच्छा होता है। आसमान के असंख्य तारे रात्रि के अन्धकार को दूर नहीं कर सकते, उसे तो सिर्फ एक चन्द्रमा ही दूर करता है।

  • पैदा होते ही मर जाने वाला पुत्र, एक लम्बी उम्र वाले मूर्ख पुत्र से अच्छा होता है क्योंकि पैदा होते ही मर जाने वाला पुत्र क्षणिक दुख देता है जबकि मूर्ख बालक तमाम उम्र दुख देता है।

  • शरीर को बिना आग के जलाती हैं -
    उस छोटे से गाँव में बसना जहाँ रहने की सुविधाएँ उपलब्ध न हो
    नीच कुल में जन्मे व्यक्ति की नौकरी करना
    अस्वास्थ्यकर भोजन करना
    पत्नी का सदैव क्रोधित रहना
    मूर्ख पुत्र का होना
    पुत्री का विधवा हो जाना

  • दूध न देने वाली तथा गर्भधारण के अयोग्य गाय किस काम की? उसी प्रकार ऐसे पुत्र का जन्म किस काम का जो न तो शिक्षित हो सके और न ही भगवान की भक्ति कर सके।

  • जीवन के दुखों की आग में झुलसने वाले व्यक्ति को केवल सन्तान, पत्नी और भगवान के भक्तों की संगति ही सहारा देते हैं।

  • ये बातें सिर्फ एक बार होती हैं -
    राजा का आज्ञा देना
    पण्डित का उपदेश देना
    लड़की का विवाह

  • तप अकेले करना चाहिए, अभ्यास दो लोगों को एक साथ करना चाहिए, गायन तीन लोगों को एक साथ करना चाहिए, कृषि चार लोगों को एक साथ करना चाहिए और युद्ध अनेक लोगों को एक साथ लड़ना चाहिए।

  • यथार्थ में पत्नी वही होती है जो शुचिपूर्ण हो, पारंगत हो, पतिव्रता हो, पति को प्रसन्न करने वाली हो और सत्यवादी हो।

  • पुत्रहीन व्यक्ति का घर, सम्बन्धी रहित व्यक्ति की समस्त दिशाएँ, मूर्ख व्यक्ति का हृदय और निर्धन व्यक्ति का सब कुछ उजाड़ होता है।

  • आचरण में न लाया जाने वाला आध्यात्मिक सीख जहर है; अजीर्ण रोग से ग्रसित व्यक्ति के लिए भोजन जहर है; निर्धन व्यक्ति के लिए सामाजिक कार्यक्रम में जाना जहर है; और वृद्ध या प्रौढ़ व्यक्ति के लिए युवा पत्नी जहर है।

  • दया और धर्म से हीन व्यक्ति, आध्यात्मिक ज्ञान न रखने वाले गुरु, निरन्तर घृणा प्रदर्शन करने वाली पत्नी और स्नेह न रखने वाले सम्बन्धी का त्याग कर देना चाहिए।

  • व्यक्ति का सतत् भ्रमण बुढ़ापे को समीप ला देता है; घोड़े को हमेशा बाँधे रखने से वह बूढ़ा हो जाता है; पति के साथ यौनाचार न करने वाली स्त्री बूढ़ी हो जाती है; और लगातार धूप में रखने से वस्त्र पुराने हो जाते हैं।

  • इन बातों पर बार-बार विचार करना चाहिए - उचित समय, उचित मित्र, उचित स्थान, आय के उचित साधन, व्यय के उचित तरीके और उर्जा स्रोत जहाँ से आप शक्ति प्राप्त करते हैं।
  • द्विज अग्नि अग्नि में भगवान् देखते है, भक्त अपने हृदय में भगवान् देखते है, अल्पबुद्धि लोग मूर्ति में भगवान् देखते है किन्तु व्यापक दृष्टि रखने वाले लोग सर्वत्र में में भगवान् देखते है।

Monday, February 9, 2015

चाणक्य नीति - अध्याय 3 (Chanakya Neeti in Hindi)

  • इस संसार में ऐसा कौन सा परिवार है जिस पर कोई दाग न लगा हो? ऐसा कौन है जो रोग और संताप से मुक्त हो, हमेशा सुखी रहने वाला कौन है?

  • व्यक्ति के आचरण से उसके कुल को पहचाना जा सकता है, उसकी भाषा के उच्चारण से उसके देश को पहचाना जा सकता है, उसके सौहार्द तथा उसकी दीप्ति से उसकी मित्रता पहचानी जा सकती है और उसके शारीरिक गठन से उसकी भोजन क्षमता पहचानी जा सकती है।

  • पुत्री का विवाह अच्छे कुल में करना चाहिए, पुत्र को ज्ञानार्जन के प्रति आसक्त करना चाहिए, शत्रु को क्लेश में डालना चाहिए और मित्रों को धर्म के प्रति आसक्त करना चाहिए।

  • एक साँप एक दुर्जन से बेहतर होता है क्योंकि वह तभी आक्रमण करता है जब उसे प्राण जाने का भय हो किन्तु दुर्जन हर कदम पर वार करता है।
  • राजा स्वयं को अच्छे कुल के व्यक्तियों से इसलिए घिरा रखता है क्योंकि वे न आरम्भ में, न तो मध्य में और न ही अन्त में साथ छोड़कर जाते हैं।

  • प्रलय के समय समुद्र भी अपनी मर्यादा खो देता है किन्तु सज्जन व्यक्ति कभी भी विचलित नहीं होते।

  • मूर्खों के साथ कभी भी मित्रता नहीं करनी चाहिए क्योंकि वे दो पैरों वाले पशु के समान होते हैं, जैसे कोई अनदेखा काँटा शरीर के अंग में घुसकर पीड़ा पहुँचाता है वैसे ही मूर्ख अपने कटु वचनों से हृदय को क्लेश पहुँचाता है।

  • अच्छे कुल में जन्म लेने वाला यौवन से सम्पन्न सुन्दर व्यक्ति भी विद्या से हीन होने पर पलाश के फूल के समान होता है जो कि सुन्दर होते हुए भी सुगन्ध हीन होता है।
  • कोयल की सुन्दरता उसकी कूक में होती है, स्त्री की सुन्दरता पति के प्रति विशुद्ध समर्पण में होती है, कुरूप व्यक्ति की सुन्दरता उसके ज्ञान में होती है और तपस्वी की सुन्दरता उसकी क्षमाशीलता में होती है।

  • परिवार की रक्षा के लिए परिवार के सदस्य का बलिदान कर देना चाहिए, गाँव की रक्षा के लिए परिवार का बलिदान कर देना चाहिए, देश की रक्षा के लिए गाँव का बलिदान कर देना चाहिए और आत्मा की रक्षा के लिए देश का बलिदान कर देना चाहिए।

  • कर्मशील व्यक्ति निर्धन नहीं हो सकता, जप करने वाला पापी नहीं हो सकता, मौनी व्यक्ति अन्य व्यक्तियों से विवाद नहीं हो सकता और सचेत व्यक्ति भयभीत नहीं हो सकता।
  • सीता का हरण उसकी अति सुन्दरता के कारण हुआ, रावण अन्त उसके अति अहंकार के कारण हुआ, अति दानी होने के कारण राजा बलि को बंधन में बंधना पड़ा, अतः अति किसी भी वस्तु की अच्छी नहीं होती।

  • सामर्थ्यवान के लिए कौन सा कार्य कठिन है? श्रम करने वाले के लिए कौन सा स्थान दूर है। विद्वान के लिए विदेश कहाँ है? मृदुभाषी का अहित कौन कर सकता है?

  • जिस प्रकार से सुगन्धित फूलों वाला केवल एक वृक्ष पूरे वन को महका देता है उसी प्रकार से केवल एक गुणवान पुत्र पूरे कुल को प्रतिष्ठा दिलाता है।

  • जिस प्रकार से केवल एक सूखा वृक्ष जलकर पूरे वन को भस्म कर देता है उसी प्रकार से केवल एक कपूत पूरे कुल की मान-मर्यादा एवं प्रतिष्ठा को नष्ट कर देता है।

  • जिस प्रकार से चन्द्रमा के उदय होने से रात जगमगा उठती है उसी प्रकार से विद्वान एवं सदाचारी पुत्र से सम्पूर्ण परिवार खुशहाल हो जाता है।

  • दुःख एवं निराशा देने वाले अनेक पुत्र किस काम के हैं? इससे तो अच्छा है कि परिवार को आश्रय एवं शान्ति प्रदान करने वाला एक ही पुत्र हो।

  • पाँच वर्ष की आयु तक पुत्र का पालन लाड़-प्यार के साथ करना चाहिए, बाद के दस साल तक उसे छड़ी से डराना चाहिए किन्तु सोलह वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने पर पुत्र के साथ मित्रवत व्यवहार करना चाहिए।

  • भयावह आपदा के समय, विदेशी आक्रमण होने पर, भयानक अकाल पड़ने पर तथा दुष्ट व्यक्ति का साथ हो जाने पर जो व्यक्ति दूर भाग जाता है, वही व्यक्ति हमेशा सुरक्षित होता है।

  • जो व्यक्ति धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष अर्जित नहीं कर सकता उसे बार-बार जन्म लेना और मरना पड़ता है।

  • धन की देवी लक्ष्मी स्वयमेव तथा स्वेच्छा से वहाँ चली आती हैं जहाँ -
    मूखो का सम्मान नहीं होता।
    अनाज का सही प्रकार से भण्डारण होता है।
    पति-पत्नी का आपस मे विवाद नहीं।

Thursday, January 29, 2015

चाणक्य नीति - अध्याय 2 (Chanakya Neeti in Hindi)


  • औरतो के कुछ नैसर्गिक दुर्गुण है -
    झूठ बोलना
    कठोरता
    छल करना
    बेवकूफी करना
    लालच
    अपवित्रता
    निर्दयता 
  • सामान्य तप का फल नहीं है -
    भोजन के योग्य पदार्थ की उपलब्धता और भोजन करने की क्षमता होना
    सुन्दर स्त्री की प्राप्ति और उसे भोगने के लिए काम शक्ति होना
    पर्याप्त धनराशि का होना तथा दान देने की भावना
  • वह व्यक्ति धरती पर स्वर्ग को पा लेता है -
    जिसका पुत्र आज्ञांकारी हो
    जिसकी पत्नी उसकी इच्छा के अनुरूप व्यव्हार करती हो
    जो अपने कमाये धन से संतुष्ट हो
  • पुत्र वही है जो पिता का आज्ञापालन करे, पिता वही है जो पुत्रों का पालन-पोषण करे, मित्र वही है जिस पर पूरा विश्वास किया जा सके और पत्नी वही है जिससे सुख प्राप्त हो।
  • ऐसे लोगों से बचकर रहना चाहिए जो आपके मुँह के सामने मीठी बातें करते हैं, किन्तु आपके पीठ पीछे आपके विनाश की योजना बनाते है। ऐसा करने वाले उस विष के घड़े के समान है जिसकी उपरी सतह दूध से भरी हो।
  • किसी बुरे मित्र पर तो कभी विश्वास करें हीं नहीं, साथ ही किसी अच्छे मित्र पर भी विश्वास न करें, क्योंकि आपसे रुष्ट होने पर ऐसे लोग आप के सारे रहस्यों को अन्य लोगों को बता देंगे।
  • जिस किसी भी कार्य को करने के लिए आपने निश्चय किया है, उसे किसी के समक्ष प्रकट न करें तथा बुद्धिमत्तापूर्ण तरीके से उसे कार्यरूप में परिणित कर दें।
  • मूर्खता निश्चित रूप से कष्ट देती है, वैसे ही युवावस्था भी निःसन्देह कष्टमय है, किन्तु सबसे अधिक दुःखदायी होता है किसी अन्य के घर जाकर उससे उपकृत होना।
  • प्रत्येक पर्वत पर माणिक्य नहीं मिलते, प्रत्येक हाथी के सिर पर मणि नहीं होता, प्रत्येक स्थान में साधु नहीं मिलते और प्रत्येक वन में चन्दन का वृक्ष नहीं होता।
  • बुद्धिमान व्यक्ति को अपने पुत्रों को नैतिकता की शिक्षा देनी चाहिए, क्योंकि नीतिशास्त्र में निपुण एवं अच्छा व्यवहार करने वाले पुत्र परिवार की कीर्ति होते हैं।
  • अपनी सन्तान को शिक्षा से वंचित रखने वाले माता-पिता अपनी ही सन्तान के शत्रु होते हैं, क्योंकि विद्या से रहित बालक विद्वानों की सभा में वैसे ही तिरस्कृत होते हैं जैसे कि हंसों की सभा में बगुले।
  • बच्चों मे गलत आदते पैदा करती है और ताड़ना से अच्छी आदतें, इसलिए बच्चों को, जरुरत पड़ने पर, अपने शिष्यों दण्डित करना चाहिए, लाड कभी भी ना करें।
  • बिना एक श्लोक, आधा श्लोक, चौथाई श्लोक, या श्लोक का केवल एक अक्षर सीखे या दान, अभ्यास या कोई पवित्र कार्य किये बिना किसी भी दिन को नहीं जाने देना चाहिए।
  • बिना अग्नि के शरीर को जलाती हैं -
    पत्नी से वियोग
    अपनों से अनादर
    बचा हुआ ऋण
    दुष्ट राजा की सेवा
    गरीबी
    अव्यवस्थित सभा
  • निःसन्देह शीघ्र नष्ट हो जाते हैं -
    नदी किनारे के वृक्ष
    दूसरे व्यक्ति के घर में रहने वाली स्त्री
    बिना मंत्री का राजा
  • ब्राह्मण का बल है तेज और विद्या, राजा का बल है उसकी सेना, वैश्य का बल है उसका धन और शूद्र का बल है उसकी सेवा-भावना।
  • वेश्या को निर्धन व्यक्ति का त्याग करना पड़ता है, प्रजा को पराजित राजा का त्याग करना पड़ता है, पक्षियों को फलरहित वृक्ष का त्याग का त्याग करना पड़ता है और अतिथियों को भोजन करने के पश्चात् अपना आतिथ्य करने वाले के घर का त्याग करना पड़ता है।
  • दक्षिणा मिल जाने पर ब्राह्मण यजमान के घर से चला जाता है, विद्या प्राप्ति के बाद शिष्य गुरु के घर से चला जाता है और आग से जल जाने पर पशु वन से चले जाते हैं।
  • दुराचारी, कुदृष्टि रखने वाले तथा धूर्त व्यक्ति के साथ मित्रता करने वाले का शीघ्र नाश हो जाता है।
  • प्रेम और मित्रता बराबर वालों में ही फलता है, राजा की सेवा करने वाले को ही सम्मान मिलता है, सार्वजनिक व्यवहार में व्यावसायिक बुद्धि वाला ही अच्छा होता है और सुन्दर महिला अपने घर में ही सुरक्षित होती है।

Monday, January 26, 2015

चाणक्य नीति - अध्याय 1 (Chanakya Neeti in Hindi)

  • प्रकाण्ड पण्डित भी घोर कष्ट में आ जाता है जब वह
    किसी मूर्ख को उपदेश देता है
    वह दुष्ट पत्नी का पालन-पोषण करता है
    किसी दुखी व्यक्ति के साथ अतयंत घनिष्ठ सम्बन्ध बना लेता है
    दुष्ट पत्नी, झूठा मित्र, धृष्ट नौकर और साँप के साथ निवास करना अपनी मृत्यु को निमन्त्रित करना है

  • दुर्दिन से निबटने के लिए धन संचय करना चाहिए। पत्नी की रक्षा के लिए, आवश्यक हो तो, धन का भी त्याग कर देना चाहिए। आत्म-रक्षा के लिए, आवश्यक हो तो, धन और पत्नी दोनों का ही बलिदान कर देना चाहए।

  • भविष्य में आने वाली आपदाओं के लिए धन जमा करना चाहिए। ऐसा कदापि न सोचें कि धनवान व्यक्ति पर, धन होने से, कभी आपदा नही आ सकती क्योंकि जब आपदा आती है तो धन भी साथ छोड़ देता है।

  • जहाँ मान-सम्मान न मिले, जहाँ आजीविका न मिले, जहाँ कोई मित्र न हो और जहाँ ज्ञानार्जन न हो सके ऐसे देश में कदापि निवास नहीं करना चाहिए।

  • उस स्थान में एक दिन भी निवास नहीं करना चाहिए जहाँ निम्न पाँच न हो -

    एक धनवान व्यक्ति
    एक ब्राह्मण जो वैदिक शास्त्रों में निपुण हो
    एक राजा
    एक नदी
    एक चिकित्सक
  • बुद्धिमान व्यक्ति को ऐसे देश में कभी नहीं जाना चाहिए जहाँ -

    आजीविका कमाने का कोई माध्यम ना हो
    लोगों को किसी बात का भय न हो
    लोगो को किसी बात की लज्जा न हो
    जहा लोग बुद्धिमान न हो
    लोगो की वृत्ति दान धरम करने की ना हो

  • नौकर की परीक्षा कर्त्तव्य-पालन से होती है, रिश्तेदारों की परीक्षा मुसीबत पड़ने पर होती है, मित्र की परीक्षा विपरीत परिस्थितियों में होती है और पत्नी की परीक्षा बुरे दिनों में होती है।

  • अच्छा मित्र वही है जो हमे निम्न परिस्थितियों में साथ न त्यागे -

    आवश्यकता पड़ने पर
    किसी प्रकार की दुर्घटना हो जाने पर
    जब अकाल पड़ा हो
    जब युद्ध चल रहा हो
    जब हमे राजा के दरबार मे जाना पड़े
    जब हमे श्मशान घाट जाना पड़े

  • जो व्यक्ति किसी नाशवान वस्तु के लिए ऐसी वस्तु को छोड़ देता है जिसका कभी नाश नहीं होता, तो नाशवान वस्तु को तो वह खोता ही है और निःसन्देह उसके हाथ से अविनाशी वस्तु भी निकल ही जाती है। 

  • बुद्धिमान व्यक्ति को सम्माननीय परिवार कन्या से ही विवाह करना चाहिए, भले की कन्या रूपवान न हो। हीन परिवार की कन्या चाहे कितनी भी सुन्दर क्यों न हो, उससे विवाह नहीं करना चाहिए। शादी-ब्याह हमेशा बराबरी के परिवारों मे ही उचित होता है।

  • निम्न पाँच पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए  -

    नदियाँ
    जिन व्यक्तियों के पास अस्त्र-शस्त्र हों
    नाख़ून और सींग वाले पशु
    औरतें (भोली सूरत)
    राज घराने के लोग

  • सम्भव हो तो विष मे से भी अमृत निकाल लेना चाहिए, यदि सोना गन्दगी में भी पड़ा हो तो उसे उठा तथा धोकर अपना लेना चाहिए, नीच कुल मे जन्म लेने वाले से भी ज्ञान ग्रहण करना लेना चाहिए और अच्छे गुणों से सम्पन्न बदनाम कन्या से भी सीख ग्रहण करना चाहिए।
  • महिलाओं में पुरुषों कि अपेक्षा भूख दोगुनी, लज्जा चारगुनी, साहस छःगुना और काम आठगुनी होती है।

Saturday, January 24, 2015

वसन्त पंचमी - वसन्त ऋतु का प्रारम्भ (Vasant Panchami)


वसन्त ऋतु को ऋतुराज की संज्ञा दी गई है। ऋतुराज अर्थात् ऋतुओं का राजा!

जलते हुए अंगारों के जैसे पलाश के फूल! सारे पत्ते झड़े हुए सेमल के वृक्षों पर लगे हुए रक्त के जैसे लाल सुमन! वातावरण में मनमोहक सुगन्ध बिखेरती शीतल-मन्द बयार! मन में मादकता पैदा करने वाली आम के बौर! रंग-बिरंगे फूलों से सजे बाग-बगीचे! हवा के झौंकों से गिरे फूलों से शोभित भूमि! कलकल ध्वनि के साथ तेजी के साथ बहती नदियाँ! स्वच्छ जल से लबालब तालाब व झीलें। पक्षियों का मधुर कलरव!

यही सब तो वसन्त को ऋतुओं का राजा बना देते हैं।

माना जाता है कि वसन्त का आरम्भ वसन्त पंचमी (Vasant Panchami) के दिन से होता है। और आज वसन्त पंचमी है (Vasant Panchami) याने कि वसन्त ऋतु की शुरुवात।

अब शिशिर की ठिठुरन खत्म और वसन्त की शीतोष्ण समीर द्वारा तन और मन का सहलाना शुरू!

ऐसा शायद ही कोई रसिक होगा जिसका मन वसन्त पंचमी (Vasant Panchami) से लेकर रंग पंचमी तक मादकता और मस्ती से न मचले।

तो मित्रों! आप सभी को वसन्त पंचमी  (Vasant Panchami) की हार्दिक शुभकामनाए!

Friday, January 23, 2015

"आजाद हिन्द फौज (The Indian National Army) का Provisional Government" : नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की अमर गाथा

21 अक्टूबर 1943 का दिन इतिहास का एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं गौरवशाली दिन है!

इसी दिन नेताजी सुभाष चन्द्र बोस (Subhash Chandra Bose) ने "आजाद हिन्द तत्कालिक (provisional) सरकार" बनाने का ऐलान किया था। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस (Subhash Chandra Bose) के द्वारा की गई "आजाद हिन्द फौज (The Indian National Army) का Provisional Government" के निर्माण की इस घोषणा ने स्वातंत्र्य वीरों को जोश और उत्साह से भर दिया था। इस घोषणा में प्रत्येक भारतीय, चाहे वह किसी भी जाति का हो या किसी भी संप्रदाय को मानने वाला हो, को समान मान्यता और समान मान्यता देने का दावा नेताजी ने किया था। अपने भाषण के अन्त में उन्होंने भावोत्तेज अपील किया था कि -

"In the name of God, in the name of bygone generations who have welded the Indian people into one nation and in the name of the dead heroes who have bequeathed to us a tradition of heroism and self-sacrifice - we call upon the Indian people to rally round our banner and strike for India's Freedom. We call upon them to launch the final struggle against the British and all their allies in Indian and to prosecute that struggle with valour and perseverance and with full faith in Final Victory - until the enemy is expelled from
Indian soil and the Indian people are once again a Free Nation."

भावार्थ - भगवान के नाम पर, बीते पीढ़ियों के नाम पर, जिन्होंने हमें एक राष्ट्र के रूप जोड़ रखा है और उन अमर वीरों के नाम पर जिन्होंनें हमें वीरता एवं आत्म बलिदान की एक परंपरा विरासत दिया है - भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के उद्देश्य से रैलियाँ निकालने, बैनर लगाने तथा हड़तालें करने के लिए निमन्त्रित करते हैं। हम उन्हें ब्रिटिश एवं उनके समस्त सहयोगियों के विरुद्ध वीरतापूर्वक और दृढ़तापूर्वक एवं अन्तिम विजय हेतु दृढ़ विश्वास रखते हुए निर्णायक संघर्ष आरम्भ करने के लिए आह्वान करते हैं - तब तक संघर्ष जारी रहना चाहिए जब तक कि दुश्मन भारत भूमि से खदेड़ ना दिये जाएँ और समस्त भारतीय पुनः एक स्वतन्त्र राष्ट्र के अंग न बन जाएँ।

"आजाद हिन्द फौज (The Indian National Army) का Provisional Government"  में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस (Subhash Chandra Bose) स्वयं देश के मुखिया, प्रधान मन्त्री तथा युद्ध मन्त्री थे तथा आजाद हिन्द फौज के अन्य अधिकारी केबिनेट मेम्बर थे।

"आजाद हिन्द तत्कालिक (provisional) सरकार" के केबिनेट मेम्बर्स का विवरण इस प्रकार है -

लेफ्टिनेंट ए.सी. चटर्जी - वित्त मन्त्री (Minister of Finance)
डॉ.(कैप्टन) लक्ष्मी सहगल - Minister of Women’s Organisation
श्री ए.एम सहाय - Secretary with Ministerial Rank
श्री एस.एं अय्यर - Minister of Publicity and Propaganda
ले. कर्नल जे.के. भोंसले - Representative of INA
ले. कर्नल लोगानाथन - Representative of INA
ले. कर्नल एहसान कादिर - Representative of INA
ले. कर्नल एन.एस. भगत - Representative of INA
ले. कर्नल एम.जेड. कियानी - Representative of INA
ले. कर्नल अज़ीज़ अहमद -Representative of INA
ले. कर्नल शाह नवाज़ खान - Representative of INA
ले. कर्नल गुलजारा सिंह - Representative of INA
रास बिहारी बोस - Supreme Advisor
करीम गियानी - Advisor from Burma
देबनाथ दास - Advisor from Thailand
सरदार ईशर सिंह - Advisor from Thailand
डी.एम. खान - Advisor from Hong Kong
ए. येल्लप्पा - Advisor from Singapore
ए.एन सरकार - Advisor from Singapore
 (सन्दर्भः http://www.s1942.org.sg/s1942/indian_national_army/provi.htm)

"आजाद हिन्द तत्कालिक (provisional) सरकार" ने न केवल नेताजी को जापानियों के साथ बराबरी के साथ समझौता करने में सक्षम बनाया बल्कि पूर्व एशिया में रहने वाले भारतीयों को एक सूत्र में बाँधकर आजाद हिन्द फौज में भर्ती होने के लिए प्रोत्साहित किया। सुभाष चन्द्र बोस जी के इस तत्कालिक सरकार को अनेक देशों ने मान्यता भी प्रदान की।

"आजाद हिन्द तत्कालिक (provisional) सरकार" के निर्माण के साथ ही नेताजी ने भारतीयों को एकसूत्र में बँध कर आजाद हिन्द फौज के तत्वावधान में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध का शंखनाद भी कर दिया। मलाया, थाइलैंड तथा बर्मा में बसे भारतीयों ने नेताजी के युद्ध के प्रस्ताव का उत्साहपूर्वक स्वागत किया और बड़ी संख्या में भारतीय आजाद हिन्द फौज में भर्ती होने लगे। अनेक भारतीयों ने आजाद हिन्द फौज को सोना, चाँदी, गहने, कपड़े आदि की सहायता प्रदान की, महिलाओं ने अपने जेवरात तक उतार कर आजाद हिन्द फौज को समर्पित कर दिए।

भारतीयों से प्राप्त उसी धन से अप्रैल 1944 तक रंगून में आजाद हिन्द बैंक की स्थापना भी हो गई।



Thursday, January 22, 2015

चंद शेर


तुम्हें गैरों से कब फुरसत हम अपने ग़म से कब खाली
चलो बस हो गया मिलना ना तुम खाली ना हम खाली

अंदाज अपना देखते हैं आईने में वो
और ये भी देखते हैं कोई देखता ना हो

उधर ज़ुल्फों में कंघी हो रही है, खम निकलता है
इधर रुक रुक के खिच खिच के हमारा दम निकलता है
इलाही खैर हो, उलझन पे उलझन बढ़ती जाती है
ना उनका खम निकलता है, ना हमारा दम निकलता है

कितने नादाँ हैं तेरे भूलने वाले कि तुझे
याद करने के लिए उम्र पड़ी हो जैसे

दर्द-ओ-ग़म का ना रहा नाम तेरे आने से
दिल को क्या आ गया आराम तेरे आने से

हमको किसके ग़म ने मारा, ये कहानी फिर सही
किसने तोड़ा दिल हमारा, ये कहानी फिर सही
दिल के लुटने का सबब पूछो न सबके सामने
नाम आएगा तुम्हारा, ये कहानी फिर सही

कि तू भी याद  नहीं आता ये तो होना था
गए दिनों को सभी को भुलाना होता है

आदमी आदमी को क्या देगा, जो भी देगा वही खुदा देगा
जिंदगी को क़रीब से देखो, इसका चेहरा तुम्हें रुला देगा

अपने मंसूबों को नाकाम नहीं करना है
मुझको इस उम्र में आराम नहीं करना है

Tuesday, January 20, 2015

ओ देस से आने वाले बता!


ओ देस से आने वाले बता!
क्‍या अब भी वहाँ के बाग़ों में मस्‍ताना हवाएँ आती हैं?
क्‍या अब भी वहाँ के परबत पर घनघोर घटाएँ छाती हैं?
क्‍या अब भी वहाँ की बरखाएँ वैसे ही दिलों को भाती हैं?

ओ देस से आने वाले बता!
क्‍या अब भी वतन में वैसे ही सरमस्‍त नज़ारे होते हैं?
क्‍या अब भी सुहानी रातों को वो चाँद-सितारे होते हैं?
हम खेल जो खेला करते थे अब भी वो सारे होते हैं?

ओ देस से आने वाले बता!
शादाबो-शिगुफ़्ता फूलों से मा' मूर हैं गुलज़ार अब कि नहीं?
बाज़ार में मालन लाती है फूलों के गुँधे हार अब कि नहीं?
और शौक से टूटे पड़ते है नौउम्र खरीदार अब कि नहीं?

(शादाबो-शिगुफ़्ता = प्रफुल्‍ल, मा' = स्‍फुटित, मूर = परिपूर्ण, गुलज़ार = वाटिका)

ओ देस से आने वाले बता!
क्‍या शाम पड़े गलियों में वही दिलचस्‍प अंधेरा होता हैं?
और सड़कों की धुँधली शम्‍मओं पर सायों का बसेरा होता हैं?
बाग़ों की घनेरी शाखों पर जिस तरह सवेरा होता हैं?

ओ देस से आने वाले बता!
क्‍या अब भी वहाँ वैसी ही जवां और मदभरी रातें होती हैं?
क्‍या रात भर अब भी गीतों की और प्‍यार की बाते होती हैं?
वो हुस्‍न के जादू चलते हैं वो इश्‍क़ की घातें होती हैं?

ओ देस से आने वाले बता!
क्‍या अब भी महकते मन्दिर से नाक़ूस की आवाज़ आती है?
क्‍या अब भी मुक़द्दस मस्जिद पर मस्‍ताना अज़ां थर्राती है?
और शाम के रंगी सायों पर अ़ज़्मत की झलक छा जाती है?

(नाक़ूस = शंख, मुक़द्दस = पवित्र, अज़ां = अजान, अ़ज़्मत = महानता)

ओ देस से आने वाले बता!
क्‍या अब भी वहाँ के पनघट पर पनहारियाँ पानी भरती हैं?
अँगड़ाई का नक़्शा बन-बन कर सब माथे पे गागर धरती हैं?
और अपने घरों को जाते हुए हँसती हुई चुहलें करती है?

ओ देस से आने वाले बता!
क्‍या अब भी वहाँ मेलों में वही बरसात का जोबन होता है?
फैले हुए बड़ की शाखों में झूलों का निशेमन होता है?
उमड़े हुए बादल होते हैं छाया हुआ सावन होता है?

ओ देस से आने वाले बता!
क्‍या शहर के गिर्द अब भी है रवाँ दरिया-ए-हसीं लहराए हुए?
ज्यूं गोद में अपने मन को लिए नागन हो कोई थर्राये हुए?
या नूर की हँसली हूर की गर्दन में हो अ़याँ बल खाये हुए?

(रवाँ = बहती है, दरिया-ए-हसीं = सुन्‍दर नदी, मन = मणि, नूर = प्रकाश, अ़याँ = प्रकट)

ओ देस से आने वाले बता!
क्‍या अब भी किसी के सीने में बाक़ी है हमारी चाह? बता!
क्‍या याद हमें भी करता है अब यारों में कोई? आह बता!
ओ देश से आने वाले बता लिल्‍लाह बता, लिल्‍लाह बता!

(लिल्‍लाह = भगवान के लिए)

ओ देस से आने वाले बता!
क्‍या गाँव में अब भी वैसी ही मस्ती भरी रातें आती हैं?
देहात में कमसिन माहवशें तालाब की जानिब जाती हैं?
और चाँद की सादा रोशनी में रंगीन तराने गाती हैं?

ओ देस से आने वाले बता!
क्‍या अब भी गजर-दम चरवाहे रेवड़ को चराने जाते हैं?
और शाम के धुंधले सायों में हमराह घरों को आते हैं?
और अपनी रंगीली बांसुरियों में इश्‍क़ के नग्‍मे गाते हैं?

(गजर-दम = सुबह)

ओ देस से आने वाले बता!
आखिर में ये हसरत है कि बता वो ग़ारते-ईमां कैसी है?
बचपन में जो आफ़त ढाती थी वो आफ़ते-दौरां कैसी है?
हम दोनों थे जिसके परवाने वो शम्‍मए-शबिस्‍तां कैसी हैं?

(ग़ारते-ईमां = धर्म नष्ट करने वाली, अत्यन्त सुन्दरी, आफ़ते-दौरां = संसार के लिए आफत, शम्‍मए-शबिस्‍तां = शयनाकक्ष का दीपक)

ओ देस से आने वाले बता!
क्‍या अब भी शहाबी आ़रिज़ पर गेसू-ए-सियह बल खाते हैं?
या बहरे-शफ़क़ की मौजों पर दो नाग पड़े लहराते हैं?
और जिनकी झलक से सावन की रातों के से सपने आते हैं?

(शहाबी आ़रिज़ = गुलाबी कपोल, गेसू-ए-सियह = काले केश, बहरे-शफ़क़ = ऊषा का सागर, मौजों = लहरों)

ओ देस से आने वाले बता!
अब नामे-खुदा, होगी वो जवाँ मैके में है या ससुराल गई?
दोशीज़ा है या आफ़त में उसे कमबख़्त जवानी डाल गई?
घर पर ही रही या घर से गई, ख़ुशहाल रही ख़ुशहाल गई?

ओ देस से आने वाले बता!

अख़्तर शीरानी

Wednesday, January 14, 2015

मकर संक्रांति (Makar Sankranti)

प्रायः हिन्दू त्यौहार चन्द्र आधारित पंचाग के हिसाब से मनाये जाते हैं और इसी कारण से हर साल उनके मनाने की अंग्रेजी तारीख बदल जाती है। किन्तु मकर संक्रांति (Makar Sankranti) एकमात्र ऐसा हिन्दू त्यौहार है जिसे सूर्य आधारित पंचांग के हिसाब से मनाया जाता है। यही कारण है कि मकर संक्रांति को प्रतिवर्ष 15 जनवरी के दिन ही मनाया जाता है। मकर संक्रांति को हिन्दू धर्म में अत्यन्त पुनीत त्यौहार माना गया है क्योंकि इसी दिन सूर्यदेव मकर रेखा को स्पर्श करके अपनी दिशा बदलते हैं।

इस पवित्र त्यौहार को सम्पूर्ण भारत में मनाया जाता है, यद्यपि भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में इस त्यौहार का नाम भी अलग-अलग होता है, यथा मकर संक्रांति, पोंगल, लोहड़ी, उत्तरायण आदि।

मकर संक्रांति (Makar Sankranti) के दिन तिल और गुड़ का बहुत अधिक महत्व होता है। प्रायः घरों में तिल और गुड़ के व्यञ्जन बनाये जाते हैं। शायद इसका कारण यही हो सकता है कि मकर संक्रांति का त्यौहार शीतकाल में पड़ता है और तिल तथा गुड़ शरीर को उष्णता प्रदान करते हैं।

Saturday, January 3, 2015

भारतीय पाककला (Indian Culinary Art)

पूरन पूरी हो या दाल बाटी, तंदूरी रोटी हो या शाही पुलाव, पंजाबी खाना हो या मारवाड़ी खाना, जिक्र चाहे जिस किसी का भी हो रहा हो, केवल नाम सुनने से ही भूख जाग उठती है। भारतीय भोजन की अपनी एक विशिष्टता है और इसी कारण से आज संसार के सभी बड़े देशों में भारतीय भोजनालय पाये जाते हैं जो कि अत्यंत लोकप्रिय हैं। विदेशों में प्रायः सप्ताहांत के अवकाशों में भोजन के लिये भारतीय भोजनालयों में ही जाना अधिक पसंद करते हैं।

इस बात में तो दो मत हो ही नहीं सकता कि भारतीय खाना 'स्वाद और सुगंध का मधुर संगम' होता है!

स्वादिष्ट खाना बनाना कोई हँसी खेल नहीं है। इसीलिये भारतीय संस्कृति में खाना बनाने को कला माना गया है अर्थात् खाना बनाना एक कला है। भारतीय भोजन तो विभिन्न प्रकार की पाक कलाओं का संगम ही होता है! इसमें पंजाबी खाना, मारवाड़ी खाना, दक्षिण भारतीय खाना, शाकाहारी खाना, मांसाहारी खाना आदि सभी सम्मिलित हैं।

भोजन की सबसे बड़ी विशेषता तो यह है कि यदि पुलाव, बिरयानी, मटर पुलाव, वेजीटेरियन पुलाव, दाल, दाल फ्राई, दाल मखणी, चपाती, रोटी, तंदूरी रोटी, पराठा, पूरी, हलुआ, सब्जी, हरी सब्जी, साग, सरसों का साग, तंदूरी चिकन न भी मिले तो भी आपको आम का अचार या नीबू का अचार या फिर टमाटर की चटनी से भी भरपूर स्वाद प्राप्त होता है।

भारत में पाककला का अभ्युदय हजारों वर्षों पहले हुआ था। वाल्मीकि रामायण में निषादराज गुह के द्वारा राम को भक्ष्य, पेय, लेह्य आदि, जिनका निर्माण पकाये गए अन्नादि से होता था, भेंट करने का वर्णन आता है। इसका अर्थ यह हुआ कि रामायण काल में भी भारत में भोजन बनाने की परम्परा रही है। सुश्रुत के अनुसार भोजन छः प्रकार के होते हैं - चूष्म, पेय, लेह्य, भोज्य, भक्ष्य और चर्व्य। भोज्य पदार्थों को सुश्रुत के द्वारा इस प्रकार से विभाजन भी भारत में पाककला के अत्यन्त प्राचीन होने को इंगित करता है। यहाँ तक माना जाता है कि भारत में पाककला उतना ही पुराना है जितना कि स्वयं मनुष्य।

इन हजारों वर्षों के दौरान भारत में अनेकों शासक हुए जिनके प्रभाव से भारतीय पाककला भी समय समय में परिवर्तित होती रही। विभिन्न देशों से आने वाले पर्यटकों का भी यहाँ के पाककला का प्रभाव पड़ता रहा। आइये देखें कि विभिन्न काल में भारतीय पाककला में कैसे कैसे परिवर्तन हुएः

माना जाता है कि मोहनजोदड़ो और हड़प्पा सभ्यता के काल में, जो कि ईसा पूर्व 2000 का काल था, तथा उससे भी पूर्व भारत में भोजन पकाने की आयुर्वेदिक परम्परा थी। भोजन पकाने की यह आयुर्वेदिक परम्परा इस अवधारणा पर आधारित थी कि हमारे द्वारा भक्ष्य भोजन का हमारे तन के साथ ही साथ मन पर भी समुचित प्रभाव पड़ता है। इस कारण से उस काल में भोजन की शुद्धता पर अत्यधिक ध्यान दिया जाता था। भोजन में षट्‍रस, अर्थात मीठा, खट्टा, नमकीन, तीखा, कसैला एवं कड़वा, के सन्तुलन को भी महत्वपूर्ण माना जाता था।

ईसा पूर्व 1000 के काल में अनेक विदेशी यात्रियों का आगमन होना आरम्भ हो चुका था। इन यात्रियों की अपनी-अपनी अलग-अलग खाना बनाने की पद्धतियाँ हुआ करती थीं जिनका प्रभाव भारतीय पाककला पर पड़ते गया और भारत में खाना बनाने की विभिन्न प्रणालियाँ विकसित होती चली गईं।

ईसा पूर्व 600 में भारत में बौद्ध तथा जैन धर्म का आविर्भाव हुआ और इन धर्मों का समुचित प्रभाव भारतीय पाककला पर भी पड़ा। इस काल में मांस भक्षण तथा लहसुन एवं प्याज से बने भोज्य पदार्थों को त्याज्य मानने की परम्परा बनी।

मौर्य साम्राज्य तथा सम्राट अशोक के काल में, जो कि ईसा पूर्व 400 बौद्ध धर्म अपने चरम विकास पर पहुँचा तथा बौद्ध धर्म का प्रचार विदेशों में भी होने लगा। इस प्रकार से भारत से विदेशों में जाने वाले प्रचारकों के साथ भारतीय पाक प्रणालियाँ विभिन्न देशों में पहुँचती चली गईं। साथ ही उन प्रचारकों के वापस भारत आने पर अन्य देशों की भोजन पद्धतियाँ उनके साथ यहाँ आईं और उनका प्रभाव भारतीय पाककला पर पड़ा।

कहने का तात्पर्य है कि विभिन्न कालों में भारतीय पाककला पर विभिन्न प्रकार के प्रभाव पड़ते रहे तथा उसमें अनेक परिवर्तन होते चले गए। भारत में मुस्लिम साम्राज्य हो जाने पर भारतीय पाककला पर सबसे अधिक प्रभाव मुस्लिम खान-पान का ही पड़ा। उसके पश्चात् भारत में अंग्रेजों का अधिकार हो जाने के कारण भारतीय पाककला पर पश्चिमी प्रकार से खाना बनाने की विधियों का प्रभाव पड़ने लगा। आलू, टमाटर, लाल मिर्च आदि वनस्पतियों का, जिनके विषय में भारत में पोर्तुगीजों तथा अंग्रेजों के आने के पहले जानकारी ही नहीं थी, वर्चस्व भारतीय भोजन में बढ़ने लगा।

इस प्रकार से समय समय में अनेक परिवर्तन होने के कारण आज भारत में विभिन्न प्रकार से भोजन बनाने का प्रचलन है।