Saturday, December 20, 2008

हिन्दी ब्लोग्स में एडसेंस विज्ञापन क्यों बंद हो गये

कल "शास्त्री जी कहते हैं" पोस्ट पर नजर पड़ गई। उसमें की गई टिप्पणियों को पढ़ने से लगा कि बहुत से लोग एडसेंस के विषय में जानने की जिज्ञासा रखते हैं। अतः इस विषय में मुझे जो जानकारी है वह यहाँ बता रहा हूँ (ये अलग बात है कि वर्तमान में एडसेंस के विज्ञापन हिन्दी ब्लोग्स तथा वेबसाइट्स को नहीं मिल पा रहे हैं पर उम्मीद करें कि जल्दी ही हिन्दी में फिर से ये विज्ञापन मिलने लगे, आखिर उम्मीद पे ही तो दुनिया कायम है)

एडसेंस क्या है

वास्तव में गूगल संसार की सबसे बड़ी आनलाइन विज्ञापन कंपनी है। संसार भर से उसे विज्ञापन मिलते हैं जिन्हें कि वह अनगिनत वेबसाइट्स तथा ब्लोग्स में फैला देती है। जब कोई इस विज्ञापन पर क्लिक करता है तो गूगल को विज्ञापनदाता से पैसे मिलते हैं जिसका एक छोटा सा हिस्सा गूगल उसे भी देता है जिसके ब्लोग या वेबसाइट से क्लिक किया गया था। इसे इस प्रकार से समझ सकते हैं कि बड़े शहरों में विज्ञापन एजेंसियाँ विज्ञापनदाताओं से पैसे लेकर उनके विज्ञापन को शहर भर में अनेकों होर्डिंग में दर्शाती है। अब यदि कोई होर्डिंग आपके घर के दीवाल पर लगा हो तो आपके दीवाल को उपयोग करने के एवज में विज्ञापन एजेंसी आपको भी कुछ कुछ रकम देती है।

यहाँ पर यह समझ लेना आवश्यक है कि गूगल को विज्ञापन के पैसे तभी मिलते हैं जब कोई विज्ञापन को क्लिक करता है और उस क्लिक के लिये गूगल जिस ब्लोग या वेबसाइट से क्लिक हुआ है उसके मालिक को पैसे देता है। अब होता यह है कि बहुत से लोग पैसा कमाने के लिये अपने ब्लोग के एडसेंस विज्ञापन पर या तो स्वयं क्लिक करते हैं या फिर अपने मित्रों, रिश्तेदारों और जान पहचान वालों से क्लिक करवाते हैं जिसे कि click fraud कहा जाता है। गूगल आज सिर्फ अपनी ईमानदारी की वजह से संसार की सबसे बड़ी विज्ञापन कंपनी बना हुआ है। उसे बेइमानी जरा भी पसंद नहीं है और वह नहीं चाहता कि उसके विज्ञापनदाताओं को अनावश्यक नुकसान हो। गूगल के पास ऐसे धोखा देने वाले क्लिक्स को पकड़ने का फूलप्रूफ तकनीक है। शास्त्री जी ने सही लिखा है कि "गूगल की नजरें बहुत तेज हैं" क्लिक प्राड करने वालों पर गूगल जरा भी दया नहीं करता और उन्हें बैन करके विज्ञापनों से वंचित कर देता है। एक बार यदि किसी को गूगल ने बैन कर दिया तो उसे कभी भी गूगल एडसेंस से पैसे कमाने का अवसर नहीं मिल पाता। गूगल की इस नीति से अन्य भाषा के बहुत से ब्लोगर और वेबमास्टर (जिन्हें बेइमानी पसंद है) भी त्रस्त हैं। बेइमानी करने वाले लाखों लोगों को गूगल ने बैन करके रखा हुआ है।

हिन्दी ब्लोग्स में एडसेंस विज्ञापन आने क्यों बंद हो गये?

इस प्रश्न के उत्तर में हम विश्वासपूर्वक कुछ कह नहीं सकते क्योंकि गूगल ने इस विषय में अब तक कुछ भी नहीं कहा है। हाँ इस प्रश्न के उत्तर में कि मेरे वेब पेजेस में सार्वजनिक सेवा विज्ञापन क्यों आते हैं गूगल का जवाब हैः

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(देखें: https://www.google.com/adsense/support/bin/answer.py?hl=en&answer=10035)

मुझे नहीं लगता कि हिन्दी ब्लोग्स में विज्ञापन आने या सिर्फ सार्वजनिक सेवा विज्ञापन ही मिलने का कारण क्लिक प्राड है (यानी कि लोगों ने अपने ब्लोग के विज्ञापनों को क्लिक किया इसलिये गूगल ने विज्ञापन भेजने बंद कर दिया) गूगल केवल उन लोगों पर ही कार्यवाही करता है जो कि धोखेबाज होते हैं। वास्तव में गूगल के एडसेंस के लिये सपोर्टिंग भाषाओं की सूची में हिन्दी भाषा शामिल नहीं है (मई 2008 के पहले तक गूगल ने अपनी भाषा नीति में ढिलाई दे रखी थी इसलिये हिन्दी ब्लोग्स में एडसेंस विज्ञापन रहे थे और बाद में इस नीति को सख्त कर दिये जाने के कारण विज्ञापन आने बंद हो गये)

बहुत हद तक तो यही लगता है कि गूगल के सपोर्टिंग भाषाओं की सूची में नहीं होने के कारण ही हमें एडसेंस विज्ञापन नहीं मिल पा रहे हैं। यह भी हो सकता है कि गूगल हिन्दी के लिये अपने "बोट" को विकसित करने में लगा हो क्योंकि गूगल का बोट आपके पेज को पढ़ता है और उसमें सिर्फ उन विज्ञापनों को ही भेजता है जो कि आपके पेज के विषय से संबंधित हों याने कि यदि आपका पेज फर्नीचर के बारे में है तो गूगल उसमें केवल फर्नीचर्स के विज्ञापन भेजेगा। मई 2008 तक हिन्दी पेजेस में जो एडसेंस विज्ञापन रहे थे वे पेज के विषय से संबंधित विज्ञापन हो कर सिर्फ हिन्दी से संबंधित विज्ञापन हुआ करते थे। अब जबकि गूगल ने हिन्दी के अन्य भाषाओं में अनुवाद (http://translate.google.com) की टेक्नोलॉजी विकसित कर लिया है तो इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि गूगल अपने बोट को हिन्दी सपोर्ट के लिये विकसित कर रहा हो। पर यह सिर्फ एक अनुमान है, सत्य क्या है यह तो सिर्फ गूगल ही जानता है।

क्या फिर हिन्दी ब्लोग्स में एडसेंस विज्ञापन आयेंगे?

बहुत अधिक संभावना तो इसी बात की है कि हिन्दी पेजेस में जल्दी ही एडसेंस विज्ञापन आने शुरू हो जायेंगे और वह भी आपके पेज के विषय से संबंधित। आज जब संसार की सभी बड़ी कंपनियों ने अपने हिन्दी साइट्स बना लिये हैं, फायरफॉक्स, गूगल क्रोम के हिन्दी संस्करण चुके हैं, भारत में इंटरनेट का प्रयोग दिन दूना रात चौगुना बढ़ते जा रहा है तो कोई कारण नहीं है कि गूगल भारत के विज्ञापनों से होने वाली कमाई से आँख फेर ले। एक प्रश्न के उत्तर में गूगल हेल्प ने कहा थाः


(AdSensePro Stephanie Google employee Jun 21, 1:14 am
From: AdSensePro Stephanie
Date: Fri, 20 Jun 2008 13:14:51 -0700 (PDT)
Local: Sat, Jun 21 2008 1:14 am
Subject: Re: Serving PSAs on unicoded (hindi) pages

If you haven't done so already, I'd encourage you to visit the AdSense
blog at adsense.blogspot.com to keep track of all the latest AdSense
news and updates. If we're able to expand our list of supported
languages, we'll be sure to post an announcement on our blog.)
(देखें: http://groups.google.com/group/adsense-help-features/browse_thread/thread/77476824e7119726/1916d587ba3f179b?lnk=gst&q=hindi#1916d587ba3f179b)

अभी पिछले हफ्ते ही गूगल ने अधिकारिक भाषाओं की लिस्ट में चार नई भाषाओं को जोड़ा है, देखें http://adsense.blogspot.com/2006/12/adsense-for-content-in-4-new-languages.html

तो हम भी उम्मीद कर सकते हैं कि जल्दी ही गूगल अपनी लिस्ट में हिन्दी को भी स्थान दे देगा और हमें विज्ञापन मिलने शुरू हो जायेंगे।

पर जब कभी भी हिन्दी ब्लोग्स में एडसेंस विज्ञापन आये तो याद रखें कि अपने स्वयं के ब्लोग के विज्ञापनों पर भूल कर भी न खुद क्लिक करना है और न ही किसी अन्य से क्लिक करवाना है।

Friday, December 19, 2008

मानो या ना मानो

या आप बता सकते हैं कि भारत का यह चित्र किस वस्तु से बना है?



आप सोच रहे होंगे कि ये ड्राइंग पेपर या प्लास्टिक के बना होगा। जी नहीं! आप गलत सोच रहे हैं। यदि मैं कहूँ कि इसे खाया जा सकता है तो आप समझेंगे कि मैं बकवास कर रहा हूँ। पर आपको जानकर आश्चर्य होगा कि ये केक हैं और शायद इन्हें खाया भी जा चुका होगा।

सौजन्यः Love Guru Yahoo Group

Wednesday, December 17, 2008

हमको जो कोई बूढ़ा समझे बूढ़ा उसका बाप

भाई अगर हम आप लोगों से कुछ साल पहले इस दुनियाँ में आ गये तो इसका मतलब यह तो नहीं हुआ कि आप हमें बूढ़ा बोलें। और यदि बोलते हैं तो बोलते रहिये हम कौन सा ध्यान देने वाले हैं? हम तो सिर्फ अपनी श्रीमती जी की बातों को ही मानते हैं जो कहती हैं कि 'अजी अभी कौनसे बूढ़े हो गये हैं आप?' (यदि हम बूढ़े हो गये तो वे भी तो बुढ़िया मानी जायेंगी और यह तो आप सभी जानते हैं कि कोई भी महिला बुढ़िया कहलाना तो क्या अपनी उम्र को जरा सा खिसकाना भी नहीं चाहेगी, उनका बस चले तो अपनी बेटी को भी अपनी छोटी बहन ही बताना पसंद करेंगी )। वास्तव में हमारा तो सिद्धांत ही है कि 'पत्नी को परमेश्वर मानो'। पत्नी के वचन ब्रह्मवाक्य हैं, पत्नी ने कह दिया याने परमेश्वर ने कह दिया (अब यह अलग बात है कि जब मूड में होती हैं तो यही गुनगुनाती हैं - मैं का करूँ राम मुझे बुड्ढा मिल गया)। अब देखिये ना, अमिताभ जी हमसे भी चार पाँच साल बड़े हैं पर उनको तो कोई बूढ़ा नहीं कहता। फिल्मों में तो वे अभी भी जवानों के जवान हैं। और यदि कहना ही था तो बुजुर्ग न कह कर "ओल्ड ब्वाय" कह लेते, आपकी मंशा भी पूरी हो जाती और हम भी खुश होते।

सत्यानाश हो इस अंग्रेजी का जिसके कारण सभी हमें अंकल पुकारते हैं। अब आप ही सोचिये कि यदि आपको कोई अंकल कहेगा तो क्या आपको अच्छा लगेगा? हमारे पिताजी के समय में तो उम्र में उनसे बहुत छोटे लोग भी उन्हें 'भैया' ही कहते थे, 'काका' नहीं। देखा जाये तो हमारे बुजुर्ग कहलाने में इस अंग्रेजी का ही सबसे ज्यादा हाथ है।

साठ साल की उम्र में भी अयोध्या नरेश दशरथ बूढ़े नहीं हुये थे तभी तो राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। सौ पुत्रों में से निन्यान्बे पुत्रों की मृत्यु के बाद जब अपना समस्त राजपाट छोड़ के विश्वामित्र तपस्या करने के लिये अपनी पत्नी के साथ वन में गये तब भी वे बूढ़े नहीं हुये थे क्योंकि उसके बाद भी उनके और पुत्र हुये। ययाति तो बूढ़े होने का शाप पाने के बाद भी जवान बने रहे, अपने पुत्र पुरु की जवानी लेकर। फिर हमने तो साठ को स्पर्श भी नहीं किया है पर लगे आप हमे बूढ़ा कहने।

बहुत बेइंसाफी है ये। कितने आदमियों ने हमें बुजर्ग कहा कालिया?

एक ने सरदार, कहा नहीं बल्कि चिट्ठा चर्चा में पोस्ट कर दिया और उसके समस्त पाठकगण के साथ ही साथ अन्य हिन्दी ब्लोगर्स ने मान भी लिया।

हूँऽऽऽ, इसकी सजा मिलेगी। जरूर मिलेगी। अरे ओ सांभा, जरा मेरा कम्प्यूटर तो लाना। हम भी अपने ब्लोग में लिखेंगे "हमको जो कोई बूढ़ा समझे बूढ़ा उसका बाप"

उपसंहार

हमारे दो बुजुर्ग ( हालाँकि ये दोनों शायद बुजुर्ग कहलाना पसंद न करें )
पढ़कर एक अच्छा मसाला मिल गया लिखने के लिये। वैसे हम क्यों बुजुर्ग कहलाना पसंद नहीं करेंगे? करेंगे और जरूर करेंगे। हमें 'सींग कटा कर बछड़ों में शामिल हो कर' जग हँसाई नहीं करवाना है। और फिर आज के जमानें में तो लोग बुजुर्ग को बुजुर्ग कहना भी नहीं चाहते। तो जब हमें यह सम्मान मिला है तो उसे क्यों न लें? वैसे लिखने के लिये मसाला सुझाने के लिये चिट्ठा चर्चा और विवेक जी को धन्यवाद!

सूझ शब्द से याद आया कि एक मित्र ने हमसे पूछ लिया, "यार, तुम ये सब लिख कैसे लेते हो?"

हमने कहा, "बस कलम उठाता हूँ और जो कुछ भी सूझता है लिख देता हूँ।"
(मेरा तात्पर्य है कि कम्प्यूटर में तख्ती नोटपैड खोलता हूँ और जो कुछ भी सूझता है लिख देता हूँ।)

"तब तो लिखना बहुत सरल काम है।"

"हाँ, लिखना तो बहुत सरल है पर यह जो सूझना है ना, वही बहुत मुश्किल है।"

Tuesday, December 16, 2008

वह देश कौन सा है?

पुकार कर अल्ला-हो-अकबर,
संबंध सुधारना चाहता है
ये कह कर कि 'लव्ह दाइ नैबर';
पर अपनी जमीं पे वो सदा
देता शरण आतंकवाद को,
घुसपैठियों को भेजकर
रहता खुश-ओ-आबाद जो।

वह देश कौन सा है?

रक्त की जिसको प्यास है,
कश्मीर जिसकी आस है,
ग्रस्त है हीन भावना से जो
पर 'दादाओं' का खास है;
कहता है खुद को नेक-ओ-मजहबी
पर कट्टरपंथ का दास है;
झूठ पे झूठ बोल कर जो
निकालता अपनी भड़ास है।

वह देश कौन सा है?

करतूत जिसकी सुधरी न तो
निश्चित सजा जो पायेगा
इक पग भी आगे जो बढ़ा
तो जान ही से जायेगा
कमजोर जो समझा हमें
तो ऐसी मुँहकी खायेगा
संसार के मानचित्र से
नक्शा जिसका मिट जायेगा।

वह देश कौन सा है?

Monday, December 15, 2008

इंटरनेट यूजर्स - भारत चौथे स्थान पर (हिन्दी ब्लोग्स की साख में भी वृद्धि)

विश्व भर के इंटरनेट यूजर्स के मामले में अब भारत का स्थान चौथा हो गया है। भारत में इंटरनेट यूजर्स की संख्या 88100000 (88.1 मिलियन) है। देखें: With 81 mn Net users, India gets 4th slot

टाप 10 दस देशों की लिस्ट इस प्रकार है:

यूनाइटेड स्टेट्स आफ अमेरिका 220 मिलियन यूजर्स
चीन 210 मिलियन यूजर्स
जापान 88.1 मिलियन यूजर्स
भारत 81 मिलियन यूजर्स
ब्राजील 53 मिलियन यूजर्स
यूनाइटेड किंगडम 40.2 मिलियन यूजर्स
जर्मनी 39.1 मिलियन यूजर्स
कोरिया 35.5 मिलियन यूजर्स
इटली 32 मिलियन यूजर्स
फ्रांस 31.5 मिलियन यूजर्स

यद्यपि लगता है कि 88.1 मिलियन एक बहुत बड़ी संख्या है पर देखा जाये तो भारत के 300 मिलियन कर्मचारियों की तुलना में भारत में इंटरनेट यूजर्स की तादात अभी बहुत कम है। लगता है कि भारत में अभी भी इंटरनेट सुविधा की कीमत अपेक्षाकृत ज्यादा है और इसी कारण से अधिकतर लोग अपने आफिस से या फिर साइबर कैफे से ही इंटरनेट का प्रयोग करते हैं। पर यह तय है कि निकट भविष्य में इस संख्या में इजाफा ही होना है। यदि जल्दी ही भारत का स्थान चौथे से पहले या कम से कम दूसरे में आ जाये तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।

अब यदि हम ब्लोग्स की भी चर्चा करें तो आपको जान कर खुशी होगी कि हिंदी ब्लोग्स का मान अब विश्व की निगाह में बढ़ता जा रहा है। सबूत के तौर पर देखें Blog it in Hindi, dude से एक उद्धरणः

When Amitabh Bachchan decided to write his blog in Hindi, it evoked mixed reactions everywhere; but not many know that Hindi blogging in recent times has reached such a height that it really doesn't need big names to endorse it.

(जब अमिताभ बच्चने अपने ब्लोग को हिंदी में लिखने का निश्चय किया तो सभी स्थानों में इसकी मिश्रित प्रतिक्रिया हुई, किन्तु अधिकतर लोग नहीं जानते कि वर्तमान समय में हिन्दी ब्लोगिंग इतनी ऊँचाई पर पहुँच चुकी है कि उसे अपने परिचय के लिये बड़े नामों की आवश्कता नहीं है।)
फिलहाल विश्व भर में ब्लोग्स की कुल संख्या 70000000 से अधिक है जिसमें से 15000000 सक्रिय ब्लोग्स हैं। देखें Blog Count for July: 70 million blogs। एक आकलन के अनुसार प्रतिदिन 120000 नये ब्लोग्स का निर्माण होता है।

अभी भी अन्य भाषाओं के ब्लोग्स तथा वेबसाइट्स की तुलना में हिन्दी ब्लोग्स की संख्या नगण्य ही है।

हिन्दी ब्लोग्स की संख्या कम होने के कुछ कारण ये भी हैं।

  • अभी भी अधिकतर लोगों को हिन्दी लेखन सॉफ्टवेयर्स की जानकारी नहीं है और वे चाह कर भी अपने हिन्दी के ब्लोग्स नहीं बना पाते।

  • अन्य भाषा के ब्लोगर्स का मुख्य उद्देश्य होता है अपने ब्लोग से कमाई करना जबकि हिन्दी ब्लोगर्स अपनी आत्म तुष्टि के लिये ब्लोगिंग करते हैं। यदि आत्म तुष्टि के साथ साथ ब्लोग्स से कुछ अतिरिक्त कमाई होने लगे तो निश्चित तौर पर हिन्दी ब्लोग्स की संख्या बढ़ेगी।

    (वैसे श्री दिनेशराय द्विवेदी के अंग्रेजी ब्लोग Law & Life को देख कर लगा कि अतिरिक्त कमाई के लिये द्विवेदी जी ने एक सार्थक पहल किया है। आखिर कब तक हिन्दी ब्लोगर्स बिना कमाई का लेखन करते रहेंगे, हिन्दी ब्लोग्स से कमाई नहीं तो अंग्रेजी ब्लोग्स से ही सही। वैसे मैंने भी इसी उद्देश्य से GKA's Blog बनाया है।)

  • अन्य भाषा में जो लोग स्वयं को लिखने में अक्षम पाते हैं वे लोग भी अन्य लेखकों से लेख खरीद कर या फिर आर्टिक डायरेक्टरीज़ से प्राप्त होने वाले मुफ्त लेखों का उपयोग कर के अपना ब्लोग बना लेते हैं जबकि हिन्दी में आर्टिकल डायरेक्टरी की सुविधा नहीं के बराबर है।

पर यह निश्चित है कि निकट भविष्य में हिन्दी ब्लोग्स की संख्या अवश्य ही बढ़ेगी।

अंत में:

मैं पहले भी बता चुका हूँ कि मैंने कृति निर्देशिका नामक हिन्दी आर्टिकल डायरेक्टरी का निर्माण किया है। चूँकि वह हिन्दी की डायरेक्टरी थी, गूगल महाराज ने उस पर कृपा की और उसका पेज रैंक 2 हो गया। नतीजे के रूप में उसमें अंग्रेजी के बहुत सारे लेख आने लग गये जिन्हें कि मैं, यह कारण बता कर कि यह डायरेक्टरी सिर्फ हिंदी के लेख स्वीकार करती है, सधन्यवाद प्रकाशन के लिये अस्वीकार कर दिया करता था। परिणाम स्वरूप पेज रैंक गिर कर 1 हो गया और वह डायरेक्टरी दम तोड़ने के कगार पर आ गई क्योंकि उसमें लेखों की संख्या बहुत कम थी (श्री जाकिर हुसैन रजनीश जी की दो कृतियों को छोड़ कर सिर्फ मेरी ही रचनाएँ है)। अंततः उसे मरने से बचाने के लिये मजबूरन मुझे उसमे एक अंग्रेजी लेख वर्ग बनाना तथा अंग्रेजी लेखों को स्वीकार करना पड़ा इससे डायरेक्टरी चल पड़ी (वर्तमान में उसमें 1500 से अधिक लेख हैं) और प्रतिदिन कुछ सेंट एडसेंस के द्वारा कमाई भी होने लगी। किन्तु मुझे दुःख है कि मैं अपनी डायरेक्टरी के लिये हिंदी रचनाएँ नहीं जुटा पाया। अपने समस्त ब्लोगर मित्रों से मैं एक बार फिर से आग्रह करता हूँ कि वे लोग कम से कम अपनी एक रचना (भले ही वह उनके ब्लोग में पूर्व प्रकाशित हो) कृति निर्देशिका को दान के रूप में दे दें जिससे कम से कम यह तो लगे कि ये हिन्दी की डायरेक्टरी है।