Friday, March 13, 2015

कलम-दवात और काले हाथ


कल एक व्यापारी मित्र ने अनुरोध किया कि मैं उनका बैंक अकाउंट खोलने का फॉर्म भर दूँ। फॉर्म तो मैंने भर दिया किन्तु फॉर्म भरने के लिए पेन निकालते समय विचार आया कि न जाने कितने दिनों से मैंन कुछ लिखने के लिए पेन का प्रयोग नहीं किया है। आजकल पेन तो सिर्फ हस्ताक्षर करने के लिए ही निकलता है, या फिर कभी कोई फॉर्म भरने के लिए। कुछ, सार्थक या निरर्थक ही सही, लिखने के लिए मैंने पेन का प्रयोग कब किया था, बहुत सोचने पर भी याद नहीं आया। अब लिखना होता ही कहाँ है? अब तो सिर्फ कम्प्यूटर में टाइप करना ही होता है।

विचारों के सागर में गोते लगाता हुआ मैं धीरे-धीरे बीते हुए समय की ओर जाने लगा। आज जेल पेन, उसके पहले बॉल पेन, बॉल पेन के पहले फाउंटेन पेन और उसके भी पहले कलम-दवात।



दवात को धो-पोंछ कर उसमें स्याही भरना...

स्याही भरते समय हाथ, कभी-कभी कपड़ों, का काला हो जाना...

लिखते समय कलम का निब टूट जाने पर परेशान होना...

लिखावट सुन्दर न होने के कारण गुरुजी से डाँट पड़ना और कभी-कभी मार खाना...

पर यह सब मैं लिख क्यों रहा हूँ? शायद इसलिए कि अतीत में जीते रहना वृद्धों का स्वभाव बन जाता है।

वैसे भी प्रेमचंद जी ने अपने उपन्यास 'गोदान' में लिखा है -
बूढ़ों के लिए अतीत के सुखों और वर्तमान के दु:खों और भविष्य के सर्वनाश से ज्यादा मनोरंजक और कोई प्रसंग नहीं होता।


Monday, March 9, 2015

औरत संसार की क़िस्मत है फिर भी...


साहिर लुधियानवी

औरत ने जनम दिया मर्दों को
मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
जब जी चाहा मसला कुचला
जब जी चाहा दुत्कार दिया

तुलती है कहीं दीनारों में
बिकती है कहीं बाज़ारों में
नंगी नचवाई जाती है
ऐय्याशों के दरबारों में
ये वो बेइज़्ज़त चीज़ है जो
बँट जाती है इज़्ज़तदारों में
औरत ने जनम दिया मर्दों को...

मर्दों के लिये हर ज़ुल्म रवाँ
औरत के लिये रोना भी खता
मर्दों के लिये लाखों सेजें
औरत के लिये बस एक चिता
मर्दों के लिये हर ऐश का हक़
औरत के लिये जीना भी सज़ा
औरत ने जनम दिया मर्दों को...

जिन होठों ने इनको प्यार किया
उन होठों का व्यौपार किया
जिस कोख में इनका जिस्म ढला
उस कोख का कारोबार किया
जिस तन से उगे कोपल बन कर
उस तन को ज़लील-ओ-ख़ार किया
औरत ने जनम दिया मर्दों को...

मर्दों ने बनायी जो रस्में
उनको हक़ का फ़रमान कहा
औरत के ज़िन्दा जलने को
कुर्बानी और बलिदान कहा
इस्मत के बदले रोटी दी
और उसको भी एहसान कहा
औरत ने जनम दिया मर्दों को...

संसार की हर एक बेशर्मी
गुर्बत की गोद में पलती है
चकलों ही में आ के रुकती है
फ़ाकों से जो राह निकलती है
मर्दों की हवस है जो अक्सर
औरत के पाप में ढलती है
औरत ने जनम दिया मर्दों को...

औरत संसार की क़िस्मत है
फ़िर भी तक़दीर की हेटी है
अवतार पयम्बर जनती है
फिर भी शैतान की बेटी है
ये वो बदक़िस्मत माँ है जो
बेटों की सेज़ पे लेटी है
औरत ने जनम दिया मर्दों को...