Saturday, January 2, 2010

हिन्दी को बढ़ावा देना है तो गूगल की 'है बातों में दम?' प्रतियोगिता में बढ़-चढ़ कर भाग लें ... मैंने वहाँ 100 लेख दिये हैं आप मुझसे भी ज्यादा दें

क्या आप जानते हैं कि आपका कितना महत्व है? जी हाँ आपका बहुत महत्व है क्योंकि आपके लेख बहुत महत्वपूर्ण हैं। आपके लेखों में इतनी शक्ति है कि ये नेट में हिन्दी को वर्चस्व दिला सकते हैं। और मैं यह भी जानता हूँ कि नेट में हिन्दी को सबसे आगे लाना आपका उद्देश्य भी है। तो क्यों देर कर रहे हैं गूगल के 'है बातों में दम?' प्रतियोगिता में अपने लेख देने के लिये?

हम और आप के साथ साथ गूगल भी चाहता है कि नेट में हिन्दी आगे बढ़े। नेट में जितनी अधिक अच्छी सामग्री (अच्छे कंटेंट) आयेगी उतनी ही अधिक हिन्दी आगे बढ़ती जायेगी। अधिक से अधिक अच्छी सामग्री (अच्छे कंटेंट) लाने के लिये ही गूगल ने आयोजित किया है 'है बातों में दम?' प्रतियोगिता!

मुझे गूगल का यह प्रयास पसंद आया। 8 दिसम्बर 2009 को पहली बार मुझे इस प्रतियोगिता के विषय में पता चला। जब मैंने वहाँ जाकर देखा तो पाया कि मात्र दो-तीन लेख ही हैं वहाँ पर। मैंने वहाँ के लेखों की संख्या को बढ़ाने के लिये निश्चय कर लिया और अपने सामर्थ्य के अनुसार अलग-अलग वर्गों लेख डालने शुरू कर दिये। 31 दिसम्बर 2009 तक मैं वहाँ पर 92 लेख डाल चुका था। कल याने कि नये साल के पहले दिन मैंने ठान लिया कि आज यहाँ पर अपने लेखों का शतक बना कर ही रहूँगा और अन्ततः इसमें सफल भी हो गया। आप मेरे उन लेखों को यहाँ क्लिक कर के देख सकते हैं।

वहाँ पर वत्स जी और अन्तर सोहिल जी के लेख देख कर खुशी हुई मुझे! पर मात्र एक लेख से काम नहीं चलना है। मेरा आप सभी लोगों से अनुरोध है कि आप अपने अधिक से अधिक अच्छे लेख इस प्रतियोगिता में दें। इस प्रकार से आप न केवल नेट में हिन्दी को बढ़ावा देंगे बल्कि पुरस्कार प्राप्त करने का अवसर भी पा सकेंगे, याने कि "आम के आम गुठलियों के दाम"! ये पुरस्कार हैं:

हर विषय श्रेणी के विजेता के लिए एक लैपटॉप [श्रेणियाँ हैं (1) मनोरंजन संस्कृति और साहित्य (2) यात्रा (3) खेल (4) स्वास्थ्य और (5) सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दे]

हर विषय श्रेणी में 9वीं से 12वीं कक्षा के विद्यार्थी द्वारा प्रस्तुत की गई सर्वश्रेष्ठ प्रविष्टि को किसी ऑनलाइन पुस्तक की दुकान के 5000 रु के गिफ्ट वाउचर

सभी विषय श्रेणियों में से छांटी गईं पहली 50 प्रविष्टियों को 6 महीने का मुफ़्त इंटरनेट सब्सक्रिप्शन

सभी विषय श्रेणियों में से छांटी गईं अगली 250 प्रविष्टियों के लिए Google गुडीज़
तो फिर देर बिल्कुल मत करें, अपना कम से कम एक अच्छा लेख तो अभी ही डाल दें वहाँ जा कर क्योंकि "काल करे सो आज कर आज करे सो अब्ब पल में परलय होयगा बहुरि करेगा कब्ब"।

लेख डालने के लिये सिर्फ श्रेणी के आगे "अपनी प्रविष्टि दें" बटन को क्लिक करना है, अपने गूगल आईडी से लागिन करना है और आपके सामने स्क्रीन होगा लेख डालने के लिये!

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Friday, January 1, 2010

कर दिया ना कबाड़ा इस नये साल ने ... हमारा तो हेडर ही गायब हो गया

नया साल आ गया! खुशी के साथ हम अपना ब्लॉग में गये किन्तु यह क्या? यहाँ तो हमारा हेडर ही गायब है। इस नये साल ने हमें हमारे ब्लॉग का हेडर गायब करके शायद कोई नये प्रकार का गिफ्ट दिया है। चलिये कोई बात नहीं, हम समझते हैं कि ब्लोगर में शायद कुछ परेशानी आ गई होगी जिसे गूगल वाले जल्दी ही ठीक कर लेंगे और हमारा हेडर फिर से वापस आ जायेगा।

अब नये साल से कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न

नया साल तुम क्या लाये हो?
विश्व-शान्ति है क्या तुममें?
या उर में विस्फोट छियाये हो?

ये प्रश्न मैं नहीं कर रहा बल्कि उन्तीस साल पहले 01-01-1981 के दिन मेरे पिता स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया ने नये साल से ये प्रश्न किये थे अपनी कविता "नया साल तुम क्या लाये हो?" में। ये प्रश्न आज भी अपनी जगह पर खड़े हैं।

प्रस्तुत है वही कविताः

नया साल तुम क्या लाये हो?
(स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित कविता)

नया साल तुम क्या लाये हो?
विश्व-शान्ति है क्या तुममें?
या उर में विस्फोट छियाये हो?
नया साल तुम क्या लाये हो?

उल्लास नया है,
आभास नया है,
पर थोड़े दिन के ही खातिर,
फिर तो दिन और रात बनेंगे
बदमाशी में शातिर
वर्तमान में तुम भाये हो,
नया साल तुम क्या लाये हो?

असुर न देव बनेंगे,
जो जो हैं वे वही रहेंगे,
शोषण कभी न पोषण बनेगा
रक्त पियेगा बर्बर मानव
जो चलता था वही चलेगा।
फिर क्यों जग को भरमाये हो?
नया साल तुम क्या लाये हो?

पिछला वर्ष गया है,
आया समय नया है।
क्या भीषण आघातों से
मानवता का किला ढहेगा?
बोलो, तुम क्यों सकुचाये हो?
नया साल तुम क्या लाये हो?

(रचना तिथिः 01-01-1981)


चलते-चलते

एक और प्रस्तुति:

नया साल है
(स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित कविता)

नया साल है-
लेकिन कौन खुशहाल है?
जो पहले चलता था
वही अब भी बहाल है।

नये वर्ष में-
क्या स्वभाव बदल जायेगा?
जो बदरंग रंग जमा था अब तक,
वही रंग फिर रंग लायेगा।
दुनिया पशुता का कमाल है
नया साल है।

वर्ष आते और जाते रहते हैं,
साथ में खुशियाँ और गम लाते रहते हैं,
सच तो यह है कि-
काल का चक्र एक-सा चलता है,
वर्ष नहीं बदलते पर
भावना का संसार बदलता है
और संसार एक जंजाल है,
नया साल है।

कल्याण का संकल्प दृढ़ है तो,
अवश्य ही नया साल है,
अन्यथा न नूतन है न पुरातन है वरन्
सृष्टि में निरन्तर महाकाल है,
नया साल है।

(रचना तिथिः 01-01-1982)

Thursday, December 31, 2009

आइये कामना करें कि नया साल ब्लोगिंग से कमाई का हो

सुबह को खोजते शाम और शाम को खोजते सुबह आती रही। समय बीतता रहा और इस प्रकार से एक और साल बीत चला। आखरी दिन है इस साल का आज। देखते ही देखते रात को बारह बज जायेंगे और चला जायेगा ये साल। आ जायेगा नया साल! तो आइये कामना करें कि नया साल ब्लोगिंग से कमाई का हो।

ऐसे भी हमारे ब्लोगर मित्र हैं जिन्हें ब्लोग से कमाई की कोई चाह नहीं है, तो उनसे हम पहले ही क्षमा माँग लेते हैं। पर हम तो पहले ही बता चुके हैं कि हम नेट से कमाई के उद्देश्य से ही भटकते फिरते थे और भटकती हुई आत्मा के जैसे भटकते-भटकते आ गये हिन्दी ब्लोगिंग में। इस हिन्दी ब्लोगिंग ने हमें ऐसा जकड़ा कि अंग्रेजी में लिखना बिल्कुल छूट गया और जो थोड़ी बहुत कमाई होती थी वो भी हाथ से गई। अब गूगल के 'है बातों में दम?' प्रतियोगिता देख कर लग रहा है कि गूगल भी हिन्दी को अधिक तेजी के साथ बढ़ावा देना चाहता है। इससे उम्मीद जग रही है कि नये साल में शायद ब्लोग से कुछ कमाई का जुगाड़ हो पायेगा।

अब यदि नये साल में ब्लोग से कमाई का जुगाड़ हो भी जाता है तो भी बहुत पापड़ बेलने पड़ेंगे और बहुत ही मुश्किल से कमाई हो पायेगी क्योंकि कमाई के लिये चाहिये हजारों लाखों ही नहीं बल्कि करोड़ों पाठक। आखिर कमाई तो उन्हीं से होनी है ना! लगभग पच्चीस पाठकों में से ही कोई एक पाठक आपके ब्लोग के विज्ञापन में रुचि लेकर उसे क्लिक करता है। यदि आपके ब्लॉग को प्रतिदिन सौ लोग पढ़ते हैं तो विज्ञापन पर मात्र चार ही क्लिक होंगे। पर यदि आपके ब्लोग को प्रतिदिन दस हजार लोग पढ़ते हैं तो विज्ञापन पर क्लिक करने वालों की संख्या चार सौ होगी। इसीलिये पाठकों की संख्या बढ़ाना जरूरी है। गूगल भी हिन्दी पाठकों की संख्या बढ़ाने के लिये तेजी के साथ भिड़ा हुआ है क्योंकि उनके बिजनेस को तो पाठकों से ही चलना है।

आँकड़े बताते हैं कि भारत में लगभग पैंतालीस मिलियन याने कि चार करोड़ पचास लाख लोग इंटरनेट का प्रयोग करते हैं (देखें: 45 Million Internet Users in India)। अवश्य ही इनमें से कई करोड़ लोग हिन्दीभाषी भी होंगे। किन्तु खेद की बात है भारत में करोड़ों इंटरनेट प्रयोक्ता होने के बावजूद भी हमारे ब्लॉगों के पाठकों की संख्या नगण्य है। इन लोगों को अपने पाठक वर्ग में शामिल करना निहायत जरूरी है।

तो नये साल में हम भी लग जायें अपने पाठकों की संख्या बढ़ाने में और कामना करें कि नया साल ब्लोगिंग से कमाई का हो!

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Wednesday, December 30, 2009

एक कहानी बता रहा हूँ ... यदि इससे भी न सीखे तो कुछ भी नहीं सीखे

यह उस व्यक्ति की कहानी हैः
  • 1832 में जिन्होंने अपनी नौकरी खो दी और वे राज्य विधानसभा (state legislature) में हार गये
  • 1833 में जिन्हें व्यवसाय में असफलता मिली
  • 1835 में जिनकी पत्नी का देहान्त हो गया
  • 1836 में जिन्हें नर्व्हस ब्रेकडाउन हुआ
  • 1838 में जो सदन के अध्यक्ष (Speaker of the House) का चुनाव हार गये
  • 1843 में जिन्हें कांग्रेस के लिए नामांकन नहीं मिल पाया
  • 1846 में जो कांग्रेस में चुने गये और 1848 में जिनका renomination खो गया
  • 1849 में जिन्हें land officer के लिए अस्वीकृत कर दिया गया
  • 1854 में जो अमेरिकी सीनेट के लिए हार गये
  • 1856 में जो उप राष्ट्रपति पद के लिए नामांकन हार गये
  • 1858 में वे फिर से अमेरिकी सीनेट के लिए हार गये
  • और जो 1860 में संयुक्त राज्य अमेरिका के 16 वें राष्ट्रपति चुने गए
वे थे अब्राहम लिंकन!

मित्रों! अब्राहम लिंकन ने अपने जीवन की इतनी सारी असफलताओं से हार नहीं मानी, सारी बाधाओं और अवरोधों का डट कर मुकाबिला करते रहे जिसका परिणाम मिला उन्हें एक बहुत बड़ी सफलता के रूप में!

इसलिये मैं तो यही कहूँगा कि जीवन की असफलताओं से कभी हार ना मानें! यदि आप हार मान जायेंगे तो कभी भी आपको सफलता नहीं मिलेगी किन्तु यदि आप सतत् प्रयास करते रहेंगे तो आपको अपनी मंज़िल तक पहुँचने से कोई भी नहीं रोक सकता।

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Tuesday, December 29, 2009

अब दादी मरेगी तब मजा आयेगा

कल रात घर पहुँचा तो पता चला कि पड़ोस के सेवानिवृत वृद्ध डॉक्टर साहब की श्रीमती जी का देहान्त हो गया था। उस समय तक वे लोग अग्नि संस्कार करके भी आ चुके थे। शोक के इस अवसर पर सारा कुनबा इकट्ठा हो गया था याने कि दोनों बेटे और बहुएँ तथा तीनों बेटियाँ और दामाद अपने अपने बच्चों के साथ वहाँ पर थे।

अब आजकल इस प्रकार से पूरा का पूरा कुनबा एक साथ सिर्फ किसी के मौत होने पर ही तो इकट्ठा होता है। दोनों बेटों और तीनों बेटियों के बच्चों को आपस में मिलने का अवसर ही कहाँ मिल पाता है। अब सभी मिले थे तो खूब हँस-खेल रहे थे। लग रहा था कि त्यौहार जैसा माहौल बन गया है। उन बच्चों को अपनी दादी या नानी की मृत्यु का शोक हो भी तो कैसे? दादी या नानी के साथ रहना कभी हुआ ही नहीं। संयुक्त परिवार टूटने और छोटे परिवार बनने का परिणाम साफ दिखाई पड़ रहा था।

मुझे तो ऐसा लगा मानों वे बच्चे सोच रहे हों कि आज नानी मरी है तो कितना मजा आ रहा है! अब जब दादी मरेगी तो मजा आयेगा!!

Monday, December 28, 2009

जब छोटे अपने से बड़ों पर भड़क उठते हैं

हम लोगों में कम से कम इतनी मर्यादा तो कायम है कि आज भी छोटे अपनों से बड़ों का लिहाज करते हैं। यदि किसी को अपने से बड़े पर किसी कारणवश क्रोध आ भी जाये तो वह अपने उस क्रोध को दबाने का भरसक प्रयत्न करता है। किन्तु कई बार ऐसा भी हो जाता है कि छोटा अपने क्रोध को दबा नहीं पाता और अपने से बड़े पर भड़क उठता है।

यदि ऐसा हो जाये तो बड़े का कर्तव्य हो जाता है कि वह छोटे की भावनाओं का सम्मान करते हुए उसे क्षमा कर दे, कहा भी गया है "क्षमा बड़न को चाहिये ..."

छोटे के द्वारा अपने से बड़े पर भड़कना प्राचीनकाल से ही होता चला आया है यहाँ तक कि एक बार देवर्षि नारद, जो कि श्री विष्णु के सबसे बड़े भक्त हैं, भी भगवान विष्णु पर भड़क उठे थे। तुलसीदास जी ने रामायण में इस कथा को अत्यन्त रोचक रूप से प्रस्तुत किया हैः

जब देवर्षि नारद ने श्री विष्णु को शाप दिया

रामचरितमानस से एक कथा


हिमालय पर्वत में एक बड़ी पवित्र गुफा थी जिसके निकट ही गंगा जी प्रवाहित होती थीं। उस गुफा की पवित्रता देखकर नारद जी वहीं बैठ कर तपस्या में लीन हो गये। नारद मुनि की तपस्या से देवराज इन्द्र भयभीत हो उठे कि कहीं देवर्षि नारद अपने तप के बल से इन्द्रपुरी को अपने अधिकार में न ले लें। इन्द्र ने नारद की तपस्या भंग करने के लिये कामदेव को उनके पास भेज दिया। वहाँ पहुँच कर कामदेव ने अपनी माया से वसन्त ऋतु को उत्पन्न कर दिया। वृक्षों और लताओं में रंग-बिरंगे फूल खिल गये, कोयलें कूकने लगीं और भौंरे गुंजार करने लगे। कामाग्नि को भड़काने वाली शीतल-मन्द-सुगन्ध सुहावनी हवा चलने लगी। रम्भा आदि नवयुवती अप्सराएँ नृत्य व गान करने लगीं।

किन्तु कामदेव की किसी भी कला का नारद मुनि पर कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा। तब कामदेव को भय सताने लगा कि कहीं देवर्षि मुझे शाप न दे दें। हारकर वे देवर्षि के चरणों में गिर कर क्षमा माँगने लगे। नारद मुनि को थोड़ा भी क्रोध नहीं आया और उन्होंने कामदेव को क्षमा कर दिया।

नारद मुनि के मन में अहंकार हो गया कि हमने कामदेव को जीत लिया। नारद जी क्षीरसागर में पहुँच गये और सारी कथा श्री विष्णु को सुनाई। भगवान विष्णु तत्काल समझ गये कि इनके मन को अहंकार ने घेर लिया है। उन्होंने अपने मन में सोचा कि मैं ऐसा उपाय करूँगा कि नारद का अहंकार भी दूर हो जाये।

श्री हरि ने अपनी माया से नारद जी के रास्ते में सौ योजन का एक अत्यन्त सुन्दर नगर रच दिया। उस नगर में शीलनिधि अत्यन्त वैभवशाली राजा रहता था। उस राजा की विश्वमोहिनी नाम की ऐसी रूपवती कन्या थी जिसके रूप को देख कर साक्षात् लक्ष्मी भी मोहित हो जायें। विश्वमोहिनी स्वयंवर करना चाहती थी इसलिये अनगिनत राजा उस नगर में आये हुए थे।

नारद जी उस नगर के राजा के यहाँ पहुँचे तो राजा ने उनका यथोचित सत्कार कर के उनसे अपनी कन्या की हस्तरेखा देख कर उसके गुण-दोष बताने के लिया कहा। उस कन्या के रूप को देख कर नारद मुनि वैराग्य भूल गये। उस कन्या की हस्तरेखा बता रही थी कि उसके साथ जो ब्याह करेगा वह अमर हो जायेगा, उसे संसार में कोई भी जीत नहीं सकेगा और संसार के समस्त चर-अचर जीव उसकी सेवा करेंगे। इन लक्षणों को नारद मुनि ने अपने तक ही सीमित रखा और राजा को उन्होंने अपनी ओर से बना कर कुछ अन्य अच्छे लक्षणों को कह दिया।

अब नारद जी ने सोचा कि कुछ ऐसा उपाय करना चाहिये कि यह कन्या मुझे ही वरे। उन्होंने श्री हरि को स्मरण किया और भगवान विष्णु उनके समक्ष प्रकट हो गये। नारद जी ने उन्हें सारा विवरण बता कर कहा, "हे नाथ आप मुझे अपना सुन्दर रूप दे दीजिये।"

भगवान हरि ने कहा, "हे नारद! हम वही करेंगे जिससे तुम्हारा परम हित होगा। तुम्हारा हित करने के लिये हम तुम्हें हरि (हरि शब्द का एक अर्थ बन्दर भी होता है) का रूप देते हैं।" यह कह कर प्रभु अन्तर्धान हो गये साथ ही उन्होंने नारद जी बन्दर जैसा मुँह और भयंकर शरीर दे दिया। माया के वशीभूत हुए नारद जी को इस बात का ज्ञान नहीं हुआ। वहाँ पर छिपे हुए शिव जी के दो गणों ने भी इस घटना को देख लिया।

ऋषिराज नारद तत्काल विश्वमोहिनी के स्वयंवर में पहुँच गये और साथ ही शिव जी के वे दोनों गण भी ब्राह्मण का वेश बना कर वहाँ पहुँच गये। वे दोनों गण नारद जी को सुना कर कहने लगे कि भगवान ने इन्हें इतना सुन्दर रूप दिया है कि राजकुमारी सिर्फ इन पर ही रीझेगी। उनकी बातों से नारद जी अत्यन्त प्रसन्न हुए। स्वयं भगवान विष्णु भी उस स्वयंवर में एक राजा का रूप धारण कर आ गये। विश्वमोहिनी ने कुरूप नारद की तरफ देखा भी नहीं और राजारूपी विष्णु के गले में वरमाला डाल दी।

मोह के कारण नारद मुनि की बुद्धि नष्ट हो गई थी अतः राजकुमारी द्वारा अन्य राजा को वरते देख वे विकल हो उठे। उसी समय शिव जी के गणों ने व्यंग करते हुए नारद जी से कहा जरा दर्पन में अपना मुँह तो देखये! मुनि ने जल में झाँक कर अपना मुँह देखा और अपनी कुरूपता देख कर अत्यन्त क्रोधित हो उठे। क्रोध में आकर उन्होंने शिव जी के उन दोनों गणों को राक्षस हो जाने का शाप दे दिया। उन दोनों को शाप देने के बाद जब मुनि ने एक बार फिर से जल में अपना मुँह देखा तो उन्हें अपना असली रूप फिर से प्राप्त हो चुका था।

नारद जी को भगवान विष्णु पर उन्हें अत्यन्त क्रोध आ रहा था उनकी बहुत ही हँसी हुई थी। वे तुरन्त विष्णु जी से मिलने के लिये चल पड़े। रास्ते में ही उनकी मुलाकात विष्णु जी, जिनके साथ लक्ष्मी जी और विश्वमोहिनी भी थीं, से हो गई। उन्हें देखते ही नारद जी ने कहा, "हमारे साथ तुमने जो किया है उसका फल तुम अवश्य पाओगे। तुमने मनुष्य रूप धारण करके विश्वमोहिनी को प्राप्त किया है इसलिये मैं तुम्हें शाप देता हूँ कि तुम्हें मनुष्य जन्म लेना पड़ेगा, तुमने हमें स्त्री वियोग दिया इसलिये तुम्हें भी स्त्री वियोग सह कर दुःखी होना पड़ेगा और तुमने हमें बन्दर का रूप दिया इसलिये तुम्हें बन्दरों से ही सहायता लेना पड़ेगा।"

नारद के शाप को श्री विष्णु ने सहर्ष स्वीकार कर लिया और उन पर से अपनी माया को हटा लिया। माया के हट जाने से अपने द्वारा दिये शाप को याद कर के नारद जी को अत्यन्त दुःख हुआ किन्तु दिया गया शाप वापस नहीं हो सकता था। इसीलिये श्री विष्णु को श्री राम के रूप में मनुष्य बनना पड़ा और शिव जी के उन दोनों गणों को रावण और कुम्भकर्ण के रूप में राक्षस बनना पड़ा।

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Sunday, December 27, 2009

नारीपोल याने कि अद्भुत वृक्ष जिसमें नारी फलते हैं

नेट में विचरते हुए फनज़ुग.कॉम से जानकारी मिली कि थाईलैंड में बैंकाक से लगभग 500 कि.मी. दूर Petchaboon province क्षेत्र में "नारीपोल" (Nareepol) नामक वृक्ष पाये जाते हैं जिनमें नारी सदृश फल लगते हैं। देखें उसी साइट के सौजन्य प्राप्त चित्रः

क्या वास्तव में ईश्वर ने ऐसी विचित्र रचना की है या फिर यह कम्प्यूटर से जोड़ तोड़ कर बनाया गया चित्र है? चित्र में पेड़ के पत्तों को देखने से लगता है कि यह कदम्ब का पेड़ है।

विरोध प्रदर्शन के लिये शहर, प्रदेश या देश बंद करवाना कहाँ तक उचित है?

विरोध प्रदर्शन के लिये शहर, प्रदेश या देश बंद करवाना कहाँ तक उचित है?

भारत बन्द!

छत्तीसगढ़ बन्द!

रायपुर बन्द!

विरोध प्रदर्शित करने के लिये ये बन्द करवाना कहाँ तक उचित है? इस प्रकार से बन्द करवाने से क्या कुछ फायदा होता है? जी नहीं कुछ भी फायदा नहीं होता बल्कि नुकसान ही अधिक होते हैं। एक दिन का काम बंद होने से अहित ही होता है शहर, प्रदेश और देश का।

और फिर ऐसा कौन है जो अपनी इच्छा से अपना कारोबार बन्द कर देना चाहे? राजनीतिबाज स्वार्थी तत्वों के द्वारा जोर-जबरदस्ती करके बन्द करवाया जाता है। लोग डर कर बन्द करते हैं अपना कारोबार।

एक हवाला धंधा करने वाले की दिन दहाड़े हत्या हो जाने के विरोध में कल रायपुर बंद करवा दिया गया। पहले तो बंद करवाने के लिये लोग दस बजे के बाद निकला करते थे किन्तु कल सुबह सात बजे ही उन दुकानों को बंद करवा दिया गया जो खुली थीं। उन दुकानों का खुलना ही सिद्ध करता है कि अपनी दुकान बंद करने की उन दुकानदारों की इच्छा नहीं थी, उनके साथ जबरदस्ती की गई। चाय-नाश्ते की दुकान चलाने वाले ये वो लोग हैं जो रोज कमाते और रोज खाते हैं। एक दिन दुकान न खुलने से भले ही मुनाफाखोर तथाकथित बड़े व्यापारियों को कुछ भी फर्क न पड़ता हो किन्तु इन छोटे दुकानदारों को तो बहुत फर्क पड़ता है।

रायपुर में प्रतिदिन एक लाख से भी अधिक लोग बाहर से आते हैं। ऐसे ही अनेक लोग हैं जो चाय नाश्ता और भोजने के लिये जलपानगृह और भोजनालयों पर ही निर्भर रहते हैं। रायपुर बंद हो जाने से इन सभी लोगों को भूखे रह जाना पड़ता है।

पेट्रोल, डीजल आदि न मिल पाने के कारण कई आवश्यक कार्य नहीं हो पाते यहाँ तक कि अस्पताल तक नहीं पहुँच पाने के कारण मरीजों के जान जाने की सम्भावना हो सकती है।

वास्तव में ये बन्द विरोध प्रदर्शन कम बल्कि शक्ति प्रदर्शन अधिक होता है राजनीतिबाजों का।

आप ही सोचिये क्या औचित्य है ऐसे बंद का?