| उपनाम | व्यक्ति |
| भारत का शेक्सपीयर | कालिदास |
| भारत का मैकियावेली | चाणक्य |
| भारत का नेपोलियन | समुद्रगुप्त |
| मैसूर का शेर | टीपू सुल्तान |
| तराना-ए-हिन्द | मिर्जा गालिब |
| तोता-ए-हिन्द | अमीर खुसरो |
| भारतीय पुनर्जागरण | राजा राममोहन राय |
| गुरुदेव | रवीन्द्र नाथ टैगोर |
| गुरुजी | एम।एस गोलवलकर |
| लाल-बाल-पाल | लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, विपिन चन्द्र पाल |
| पंजाब केसरी | लाला लाजपत राय |
| लोकमान्य | बाल गंगाधर तिलक |
| नेताजी | सुभाष चन्द्र बोस |
| केसर-ए-आजम | भगत सिंह |
| युग पुरुष | महात्मा गांधी |
| राष्ट्रपिता | महात्मा गांधी |
| बापू | महात्मा गांधी |
| चाचा | जवाहर लाल नेहरू |
| लौह पुरुष | सरदार वल्लभ भाई पटेल |
| भारत का बिस्मार्क | सरदार वल्लभ भाई पटेल |
| सरदार | वल्लभ भाई पटेल |
| देशरत्न | डॉ। राजेन्द्र प्रसाद |
| महामना | मदन मोहन मालवीय |
| देशबन्धु | चितरंजन दास |
| शान्ति पुरुष | लाल बहादुर शास्त्री |
| शास्त्रीजी | लाल बहादुर शास्त्री |
| हॉकी के जादूगर | ध्यानचंद |
| उड़नपरी | पी।टी। उषा |
| भारतीय फिल्मों के पितामह | दादा साहब फाल्के |
| स्वर कोकिला | लता मंगेषकर |
| एंग्री यंगमैन | अमिताभ बच्चन |
Saturday, January 22, 2011
प्रसिद्ध व्यक्ति तथा उनके उपनाम
Friday, January 21, 2011
ऋग्वेद में प्रकाश की गति का सूत्र (Formula for Speed of Light in Rig Veda)
वेदों में देवताओं की स्तुति हेतु अनेक ऋचाएँ पढ़ने के लिए मिलती हैं। ऋग् वेद में सूर्य की स्तुति के लिए एक ऋचा हैः
तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिष्कुदसि सूर्य। विश्वमाभासि रोचनम्
इस ऋचा को पढ़कर सायनाचार्य (c.1300's) ने टिप्पणी के रूप में सूर्य की एक और स्तुति लिखी, जो इस प्रकार हैः
तथा च स्मर्यते योजनानां सहस्त्रं द्वे द्वे शते द्वे च योजने एकेन निमिषार्धेन क्रममाण नमोऽस्तुते॥
(सन्दर्भ http://fundamentals.quizblog.in/2010/08/thata-cha-smaryate-yojamam-sahastre-dwe.html)
यहाँ पर "द्वे द्वे शते द्वे" का अर्थ है "2202" और "एकेन निमिषार्धेन" का अर्थ "आधा निमिष" है। अर्थात सूर्य की स्तुति करते हुए यह कहा गया है कि सूर्य से चलने वाला प्रकाश आधा निमिष में 2202 योजन की यात्रा करता है।
आइए योजन और निमिष को आज प्रचलित इकाइयों में परिवर्तित करके देखें कि क्या परिणाम आता हैः
अब तक किए गए अध्ययन के अनुसार एक योजन 9 मील के तथा एक निमिष 16/75 याने कि 0.213333333333333 सेकंड के बराबर होता है।
2202 योजन = 19818 मील = 31893.979392 कि.मी.
आधा निमष = 0.106666666666666 सेकंड
अर्थात् सूर्य का प्रकाश 0.106666666666666 सेकंड में 19818 मील (31893.979392 कि.मी.) की यात्रा करता है।
याने कि प्रकाश की गति 185793.750000001 मील (299006.056800002) कि.मी. प्रति सेकंड है।
वर्तमान में प्रचलित प्रकाश की गति लगभग 186000 मील (3 x 10^8 मीटर) है जो कि सायनाचार्य के द्वारा बताई गई प्रकाश की गति से लगभग मेल खाती है।
आखिर सायनाचार्य ने ऋग वेद के उस ऋचा को पढ़कर टिप्पणी में प्रकाश की गति दर्शाने वाली सूर्य की स्तुति कैसे लिखी? कहीं ऋग वेद की वह ऋचा कोई कोड तो नहीं है जिसे सायनाचार्य ने डीकोड किया?
तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिष्कुदसि सूर्य। विश्वमाभासि रोचनम्
इस ऋचा को पढ़कर सायनाचार्य (c.1300's) ने टिप्पणी के रूप में सूर्य की एक और स्तुति लिखी, जो इस प्रकार हैः
तथा च स्मर्यते योजनानां सहस्त्रं द्वे द्वे शते द्वे च योजने एकेन निमिषार्धेन क्रममाण नमोऽस्तुते॥
(सन्दर्भ http://fundamentals.quizblog.in/2010/08/thata-cha-smaryate-yojamam-sahastre-dwe.html)
यहाँ पर "द्वे द्वे शते द्वे" का अर्थ है "2202" और "एकेन निमिषार्धेन" का अर्थ "आधा निमिष" है। अर्थात सूर्य की स्तुति करते हुए यह कहा गया है कि सूर्य से चलने वाला प्रकाश आधा निमिष में 2202 योजन की यात्रा करता है।
आइए योजन और निमिष को आज प्रचलित इकाइयों में परिवर्तित करके देखें कि क्या परिणाम आता हैः
अब तक किए गए अध्ययन के अनुसार एक योजन 9 मील के तथा एक निमिष 16/75 याने कि 0.213333333333333 सेकंड के बराबर होता है।
2202 योजन = 19818 मील = 31893.979392 कि.मी.
आधा निमष = 0.106666666666666 सेकंड
अर्थात् सूर्य का प्रकाश 0.106666666666666 सेकंड में 19818 मील (31893.979392 कि.मी.) की यात्रा करता है।
याने कि प्रकाश की गति 185793.750000001 मील (299006.056800002) कि.मी. प्रति सेकंड है।
वर्तमान में प्रचलित प्रकाश की गति लगभग 186000 मील (3 x 10^8 मीटर) है जो कि सायनाचार्य के द्वारा बताई गई प्रकाश की गति से लगभग मेल खाती है।
आखिर सायनाचार्य ने ऋग वेद के उस ऋचा को पढ़कर टिप्पणी में प्रकाश की गति दर्शाने वाली सूर्य की स्तुति कैसे लिखी? कहीं ऋग वेद की वह ऋचा कोई कोड तो नहीं है जिसे सायनाचार्य ने डीकोड किया?
Thursday, January 20, 2011
अगस्त्य संहिता में इलेक्ट्रोप्लेटिंग की विधि (Electroplating process in Agastya Samhita)
हमारी सबसे बड़ी विडम्बना है कि हम अपने प्राचीन ग्रन्थों में निहित सामग्री को कपोल कल्पना समझते हैं, संस्कृत साहित्य को केवल मन्त्रोच्चार की सामग्री समझते हैं, ब्रह्म संहिता, वाल्मीकि रामायण आदि में वर्णित स्थानों के नाम को कल्पित नाम समझते हैं जबकि हमारे प्राचीन ग्रन्थ ज्ञान के अथाह सागर हैं।
"Technology of the Gods: The Incredible Sciences of the Ancients" (Google Books) का लेखक उद्धृत करता हैः
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि आज की अनेक आधुनिक तकनीकों का वर्णन हमारे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। शुक्र नीति के अनुसार आज के इलेक्ट्रोप्लेटिंग के लिए "कृत्रिमस्वर्णरजतलेपः" शब्द का प्रयोग करते हुए इसे "सत्कृति" नाम नाम दिया गया है - "कृत्रिमस्वर्णरजतलेप: सत्कृतिरुच्यते"।
अगस्त्य संहिता में विद्युत बैटरी का सूत्र (Formula for Electric battery in Agastya Samhita) के विषय में हम पहले ही बता चुके हैं और अब यह बताना चाहते हैं कि अगस्त्य संहिता में विद्युत् का उपयोग इलेक्ट्रोप्लेटिंग के लिए करने की विधि दर्शाते हुए निम्न सूत्र मिलता हैः
यवक्षारमयोधानौ सुशक्तजलसन्निधो॥
आच्छादयति तत्ताम्रं स्वर्णेन रजतेन वा।
सुवर्णलिप्तं तत्ताम्रं शातकुंभमिति स्मृतम्॥
अर्थात्- लोहे के पात्र में रखे गए सुशक्त जल (तेजाब का घोल) का सानिध्य पाते ही यवक्षार (सोने या चांदी का नाइट्रेट) ताम्र को स्वर्ण या रजत से आच्छादित कर देता है। स्वर्ण से लिप्त उस ताम्र को शातकुंभ स्वर्ण कहा जाता है।
मुझे संस्कृत का विशेष ज्ञान नहीं है अतः मेरे द्वारा किया गया अर्थ दोषयुक्त हो सकता है, संस्कृत के पण्डित और भी अच्छा हिन्दी अनुवाद कर पाएँगे।
(सन्दर्भः http://www.organiser.org/dynamic/modules.php?name=Content&pa=showpage&pid=184&page=22)
हमें तो यह भी प्रतीत होता है कि संस्कृत साहित्य में प्रयुक्त लघु और गुरु मात्राएँ भी आज के बायनरी के अंक अर्थात् 0 और 1 हैं और अनुष्टक श्लोक उनके 8 bits याने कि 1 bite हैं। बहुत सी वैज्ञानिक जानकारी, जैसा कि आज भी होता है, संकेत (codes) में लिखा गया है। आज आवश्यकता है तो अपने प्राचीन ग्रन्थों का गूढ़ अध्ययन करके शोध करने की।
"Technology of the Gods: The Incredible Sciences of the Ancients" (Google Books) का लेखक उद्धृत करता हैः
"In the temple of Trivendrum, Travancore, the Reverned S. Mateer of the London Protestant Mission saw 'a great lamp which was lit over one hundred and twenty years ago', in a deep well in side the temple. ....... On the background of the Agastya Samhita text's giving precise directions for constructing electrical batteries, this speculation is not extravagant."अर्थात्
"लंदन प्रोटेस्टैन्ट मिशन के Reverned S. Mateer ने त्रिवेन्द्रम, ट्रैवंकोर के मन्दिर में 'एक महान दीप (a great lamp) देखा जो कि पिछले एक सौ बीस वर्षों से जलता ही चला आ रहा था'। .....अगस्त्य संहिता में निहित विद्युत बैटरी बनाने के स्पष्ट दिशा निर्देश की पृष्ठभूमि में उनके अवलोकन को अतिशयोक्ति या असत्य नहीं कहा जा सकता।"(चूँकि उपरोक्त पुस्तक कॉपीराइटेड है, हमने उसमें से एक दो पंक्तियों को ही उद्धृत किया है और उसके लिए आभार भी व्यक्त करते हैं।)
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि आज की अनेक आधुनिक तकनीकों का वर्णन हमारे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। शुक्र नीति के अनुसार आज के इलेक्ट्रोप्लेटिंग के लिए "कृत्रिमस्वर्णरजतलेपः" शब्द का प्रयोग करते हुए इसे "सत्कृति" नाम नाम दिया गया है - "कृत्रिमस्वर्णरजतलेप: सत्कृतिरुच्यते"।
अगस्त्य संहिता में विद्युत बैटरी का सूत्र (Formula for Electric battery in Agastya Samhita) के विषय में हम पहले ही बता चुके हैं और अब यह बताना चाहते हैं कि अगस्त्य संहिता में विद्युत् का उपयोग इलेक्ट्रोप्लेटिंग के लिए करने की विधि दर्शाते हुए निम्न सूत्र मिलता हैः
यवक्षारमयोधानौ सुशक्तजलसन्निधो॥
आच्छादयति तत्ताम्रं स्वर्णेन रजतेन वा।
सुवर्णलिप्तं तत्ताम्रं शातकुंभमिति स्मृतम्॥
अर्थात्- लोहे के पात्र में रखे गए सुशक्त जल (तेजाब का घोल) का सानिध्य पाते ही यवक्षार (सोने या चांदी का नाइट्रेट) ताम्र को स्वर्ण या रजत से आच्छादित कर देता है। स्वर्ण से लिप्त उस ताम्र को शातकुंभ स्वर्ण कहा जाता है।
मुझे संस्कृत का विशेष ज्ञान नहीं है अतः मेरे द्वारा किया गया अर्थ दोषयुक्त हो सकता है, संस्कृत के पण्डित और भी अच्छा हिन्दी अनुवाद कर पाएँगे।
(सन्दर्भः http://www.organiser.org/dynamic/modules.php?name=Content&pa=showpage&pid=184&page=22)
हमें तो यह भी प्रतीत होता है कि संस्कृत साहित्य में प्रयुक्त लघु और गुरु मात्राएँ भी आज के बायनरी के अंक अर्थात् 0 और 1 हैं और अनुष्टक श्लोक उनके 8 bits याने कि 1 bite हैं। बहुत सी वैज्ञानिक जानकारी, जैसा कि आज भी होता है, संकेत (codes) में लिखा गया है। आज आवश्यकता है तो अपने प्राचीन ग्रन्थों का गूढ़ अध्ययन करके शोध करने की।
Wednesday, January 19, 2011
इतना लुट जाने पर भी हम चेते नहीं? अब भी हम क्यों लुटे चले जा रहे हैं?
हजार साल से भी अधिक वर्षों से विदेशी लूटते चले आ रहे हैं। तुर्कों ने लूटा, मुगलों ने लूटा पुर्तगालियों ने लूटा, अंग्रेजों ने लूटा और अब बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ लूट रही हैं। देश की सम्पदा अनवरत रूप से विदेशों में जाती रही थी और जाती चली जा रही है। विश्व का सर्वाधिक धनाड्य देश सबसे बड़ा कंगाल देश बनकर रह गया।
प्लासी के युद्ध से वाटरलू के युद्ध तक अर्थात् सन् 1757 से 1815 तक, लगभग एक हजार मिलियन पाउण्ड याने कि पन्द्रह अरब रुपया शुद्ध लूट का भारत से इंग्लैंड पहुँच चुका था। इसका सीधा-सीधा अर्थ यह हुआ कि अट्ठावन साल तक ईस्ट इंडिया कंपनी के नौकर प्रति वर्ष लगभग पचीस करोड़ रुपये भारतवासियों से लूटकर अपने देश ले जाते रहे। समस्त संसार के इतिहास में ऐसी भयंकर लूट की मिसाल अन्य कहीं नहीं मिलती।
इंग्लैंड के लंकाशायर और मनचेस्टर में भाफ के इंजिनों से चलने वाले अनेक कारखाने खोलने के लिए धन कहाँ से आया? भारत को लूट कर ही ना?
आज जब हम बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बने चाय, कॉफी, साबुन, पेस्ट जैसे रोजमर्रा के सामान खरीदते हैं तो हमारा धन कहाँ जाता है? विदेशों में ही ना!
तो क्यों नहीं अपने देश में बनी वस्तुएँ इस्तेमाल करते? ऐसा करके आप देश के धन को देश में ही बनाए रख सकते हैं। आइए संकल्प लें कि हम स्वदेशी वस्तुएँ ही खरीदेंगे।
ये है सूची स्वदेशी और विदेशी वस्तुओं कीः
टूथपेस्ट, दंतमंजन, टूथब्रशः
शेविंग क्रीम तथा ब्लेडः
नहाने का साबुनः
धोने के साबुनः
सौन्दर्य प्रसाधन एवं औषधिः
चाय-कॉफीः
बिस्किट, चाकलेट, ब्रेड दूधः
खाद्य तेल एवं खाद्य पदार्थः
अचार, मुरब्बा, चटनी, कोल्ड ड्रिंक्सः
आइसक्रीमः
पैकबंद स्नेक्सः
पीने का पानीः
लेखन सामग्रीः
विद्युत उपकरण, गृह उपयोगी वस्तुएँ घड़ी आदिः
रेडीमेड कपड़ेः
दवाइयाँ:
जूते और पॉलिशः
कम्प्यूटरः
दोपहिया एवं चारपहिया वाहनः
प्लासी के युद्ध से वाटरलू के युद्ध तक अर्थात् सन् 1757 से 1815 तक, लगभग एक हजार मिलियन पाउण्ड याने कि पन्द्रह अरब रुपया शुद्ध लूट का भारत से इंग्लैंड पहुँच चुका था। इसका सीधा-सीधा अर्थ यह हुआ कि अट्ठावन साल तक ईस्ट इंडिया कंपनी के नौकर प्रति वर्ष लगभग पचीस करोड़ रुपये भारतवासियों से लूटकर अपने देश ले जाते रहे। समस्त संसार के इतिहास में ऐसी भयंकर लूट की मिसाल अन्य कहीं नहीं मिलती।
इंग्लैंड के लंकाशायर और मनचेस्टर में भाफ के इंजिनों से चलने वाले अनेक कारखाने खोलने के लिए धन कहाँ से आया? भारत को लूट कर ही ना?
आज जब हम बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बने चाय, कॉफी, साबुन, पेस्ट जैसे रोजमर्रा के सामान खरीदते हैं तो हमारा धन कहाँ जाता है? विदेशों में ही ना!
तो क्यों नहीं अपने देश में बनी वस्तुएँ इस्तेमाल करते? ऐसा करके आप देश के धन को देश में ही बनाए रख सकते हैं। आइए संकल्प लें कि हम स्वदेशी वस्तुएँ ही खरीदेंगे।
ये है सूची स्वदेशी और विदेशी वस्तुओं कीः
टूथपेस्ट, दंतमंजन, टूथब्रशः
| स्वदेशी | विदेशी |
| एंकर, स्वदेशी, बबूल, प्रॉमिस, विको, अमर, औरा, डाबर, चॉइस, टु जेल, मिसवाक, अजय, हर्बोडंट, अजंता, गरवारे, ब्रश, क्लासिक, ईगल, दंतपोला, बंदर छाप दंतमंजन, बैद्यनाथ, इमामी, युवराज, पतंजलि, विटको पावडर, इकारमेंट, डॉ. स्ट्रांग, मोनेट, रॉयल तथा लघु-कुटीर उद्योग के अन्य स्थानीय उत्पादन। | कोलगेट, सिबाका, क्लोजअप, पेप्सोडेंट, सिग्नल, मेक्लींस, प्रुइंट, एमवे, क्वांटम, एक्वा फ्रेश, नीम, ओरल-बी, फोरहेंस। |
शेविंग क्रीम तथा ब्लेडः
| स्वदेशी | विदेशी |
| गोदरेज, इफ्को, अफगान, इमामी, एक्रीम, सुपर, स्वदेशी, सुपरमेक्स, अशोक, पनामा, वी-जोन, टोपाज़, प्रीमियम, पार्क एवेन्यू, लेजर, विद्युत, जे.के., मेट्रो डीलक्स, भारत, सिल्वर, इशवायर लेसर तथा लघु-कुटीर उद्योग के अन्य स्थानीय उत्पादन। | पॉमालिव, ओल्ड स्पाइस, नीविया, पोंड्स, प्लेटिनम, जीलेट, विलमेन, सेवन ओ क्लॉक, विल्टेल, इरास्मिक, स्विस, लक्मे, डेनिम, विल्किन्सन, लेदर, मेन्थॉल। |
नहाने का साबुनः
| स्वदेशी | विदेशी |
| निरमा, संतूर, स्वस्तिक, मैसूर सैंडल, विप्रो, शिकाकाई, फ्रेश, अफगान, कुटीर होमाकोल, प्रीमियम, मीरा, मेडिमिक्स, विमल, गंगा, पतंजलि, सिंथॉल, वनश्री, सर्वोदय, कस्तूरी, फरग्लो, हिमालय, विजिल, निमा, सहारा तथा लघु-कुटीर उद्योग के अन्य स्थानीय उत्पादन। | लक्स, लिरिल, लाइफबॉय, पियर्स रेक्सोना, हमाम, जय, मोती, कैमे, डव, पोण्डस, पामालिव, जॉन्सन, क्लियरेसिल, डेटॉल, लेसान्सी, जास्मिन, गोस्डमिस्ट, लक्मे, एमवे, क्वांटम, मार्गो, ब्रीज, ओ.के.। |
धोने के साबुनः
| स्वदेशी | विदेशी |
| निरमा, विमल, हिपोलीन, डेट, स्वस्तिक, ससा, प्लस, आधुनिक, एक्टो, टी-सीरीज, होमाकोला, पीताम्बरी, बी.बी., फेना उजाला, टाटा शुद्ध, ईजी, घड़ी, जेन्टील, 555, गोदरेज, रिविल, सहारा, केर, दीप, चमको, टाटा शुद्ध, निमा तथा लघु-कुटीर उद्योग के अन्य स्थानीय उत्पादन। | सनलाइट, व्हील, 501, ओके, एरियल, चेक, डबल, ट्रिलो, रिन, विमबार, की, रिबेल, एमवे क्वांटम, सरफ एक्सेल, हरपीक, रॉबिन ब्लू, रिविल, वूलवॉश, हेंको, स्कायलांक, टिनापल, हार्पिक, हिन्दुस्तान लीवर लिमि. के अन्य उत्पादन। |
सौन्दर्य प्रसाधन एवं औषधिः
| स्वदेशी | विदेशी |
| सिंथॉल, इफ्को, जीटेल्क, संतूर, लुपिन, इमामी, अफगान, नोवाकेर, नोवासिल, बोरोप्लस, तुलसी, टिप्स एण्ड टोज, श्रृंगार, विको टर्मरिक, अर्निका, हेयर एण्ड केयर, हिमानी, पैराशूट, केडीला, सिप्ला, डेन्ड्रफ सोल्युशन, सिल्केशा, हिमताज, फ्रेम, डाबर, धूतपापेश्वर, कोप्रान, फ्रेंको, इप्का, खंडेलवाल, बोरोलीन, केराफेड, महर्षि आयुर्वेद, लुपिन, रोच टोरंट फार्मा, हिमालया, शान्तिरत्न, केशामृत, बलसारा, कोकोराज, जे.के. डाबर, सांडू, वैद्यनाथ, हिमालय, भास्कर, तन्वी, पतंजलि, प्रीमियम, मूव्ह, क्रैक, बजाज सेवाश्रम, नीम, इफ्को, महाभुंग, मार, राजतेल, प्रकाश, डक, मोरोलेकन्सा, जयश्री क्रीम, पार्क एवेन्यू, मृगाहल, किसन, मकाय, जय जवान, नाइल, हिमानी गोल्ड, हैवन्स गोल्ड, हैवन्स ग्लोरी तथा लघु-कुटीर उद्योग के अन्य स्थानीय उत्पादन। | जॉन्सन, पोण्ड्स, ओल्ड स्पाइस, क्लियरेसिल, ब्रिलक्रीम, फेयर एण्ड लव्हली, वेल्वेट, मेडीकेयर, लैवेण्डर, नायसिल, शावर तो शावर, क्यूटीकुरा, लिरिल, लक्मे, डेनिम, आर्गेनिक्स, पेंटीन, रुट्स, हेड एण्ड शोल्डर, क्वांटम, निहार, क्लीनिक, एमवे, ओले, रेवलोन, कोको केयर, ग्लैक्सो, बैसील, नवराटिस, क्लियरटोन, नीविया, चाम्स, एन्नेफ्रेंच, चार्ली। |
चाय-कॉफीः
| स्वदेशी | विदेशी |
| टाटा टी, गिरनार, हँसमुख, आसाम टी, सोसायटी, सपट, डंकन, ब्रह्मपुत्र, एम.आर., सनटिप्स, इन्डिया, अशोक, तेज, टाटा कैफे, एम.आर. कॉफी, न्यूट्रामूल, प्लेन्टेन कैफे, टाटा टेटली, पतंजलि, गायका दूध, इण्डियन कॉफी, रॉयल बेंगाल तथा लघु-कुटीर उद्योग के अन्य स्थानीय उत्पादन। | ब्रुकबांड, ताजमहल, रेड लेबल, डायमेड, लिप्टन, ग्रीन लेबल, टाइगर, नेस्केफे, नेस्ले, डेल्का, ब्रू, सनराइज, थ्री फ्लॉवर्स, यलो लेबल, चियर्स, गॉडफ्रेशिलिप्स, पोल्सन, गुडरिक, माल्टोवा। |
बिस्किट, चाकलेट, ब्रेड दूधः
| स्वदेशी | विदेशी |
| अमूल, सिमको, स्मिथ न्यूट्रीन, शांग्रीला, चेम्पियन, एम्प्रो, पार्ले, साठे, बेकमेन, प्रिया गोल्ड, मोनेको, क्रेकजैक, गिट्स, शालीमार, पैरी, रावलगाँव, नीलगिरि, क्लासिक, न्यूट्रामूल, मोन्जीनीज, आरे, कैम्पको, सम्राट, रॉयल, विज्या, इंडाना, सफल, एशियन, विब्ज ब्रेड, वेस्का, सागर, आल्मोंड, क्रमिका, स्पन तथा लघु-कुटीर उद्योग के अन्य स्थानीय उत्पादन। | ब्रिटानिया, टाइगर, मैरी, नेस्ले, केडबरी, बॉर्नव्हिटा, हॉर्लिक्स, बूस्ट, मिल्कमेड, किसान, मैगी, फैरेक्स, माल्टोवा, अनिक स्प्रे, कॉम्प्लान, किटकैट, चार्ज, एक्लेयर, मोडर्न ब्रेड, ब्रिटानिया ब्रेड, विवा, माइलो, फाइव्ह स्टार, लिप्टन, ग्लुकोज, ब्राउन एण्ड पोल्सन, हॉल्स, चिकलेट, चोको, चियर, ओल्ड जमाइका चोको, विक्स रोएक्स, मिल्कबार, नेसफेरी। |
खाद्य तेल एवं खाद्य पदार्थः
| स्वदेशी | विदेशी |
| धारा, सफोला, पतंजलि, रामदेव, लिज्जत, टाटा, मारुति, पोस्टमेन, रॉकेट, गिन्नी, स्वीकार, कारनेला, रथ, मोहन, उमंग, विजया, सपन, पैराशूट, अशोक, कोहिनूर, मधुर, इंजन, गगन, अमृत, वनस्पति, एमडीएच, एवरेस्ट, बेडेकर, कुबल, सहकार, गणेश, शक्तिभोग, परम, अंकुर, सूर्या, ताजा, तारा, सागर, रुचि, हनुमान, कोकोकेर, क्षुपक, शालिमार तथा लघु-कुटीर उद्योग के अन्य स्थानीय उत्पादन। | डालडा, क्रिस्टल, लिप्टन, अन्नपूर्णा, मैगी, किसान, तरला, ब्रुक, पिल्सबरी, कैप्टन कूक, मॉडर्न, कारगिल, नेस्ले, सनड्रॉप, फ्लोराविटल, एवरी डे, अनिक। |
अचार, मुरब्बा, चटनी, कोल्ड ड्रिंक्सः
| स्वदेशी | विदेशी |
| रसना, फेनिया, पतंजलि, एनर्जी, सोसयो, केम्पाकोला, गुरूजी, ओन्जुस, जाम्पिन, नीरो, प्रिंगो, फ्रूटी, आस्वाद, डाबर, माला, रोजर्स, बिस्लेरी, वेकफील्ड, नोगा, हमदर्द, मैप्रो, रेनबो, कल्वर्ट, सीटम्ब्लिका, रूह अफजा, जय, गजानन, हल्दीराम, गोकुल, बीकानेर, प्रिया, अशोक, मदर्स रेसेपी, उमा तथा लघु-कुटीर उद्योग के अन्य स्थानीय उत्पादन। | लहेर, पेप्सी, सेवन अप, मिरिंडा, टीम, कोका कोला, मेक्डॉवेल, मेगोला, गोल्डस्पॉट, लिम्का, सिट्रा, थम्स अप, स्प्राइट, ड्यूक्स, फेन्टा, केडबरी, केनडा ड्राय, क्रश, स्लाइस, ड्यूक्स, मेगी, किसान, ब्राउन एण्ड पोल्सन, ब्रुकब्रांड, नेस्ले। |
आइसक्रीमः
| स्वदेशी | विदेशी |
| अमूल, वडीलाल, गोकुल, दिनशॉ, जॉय, श्रीराम, पेस्टनजी, नेचर वर्ल्ड, हिमालय, निरुला, आरे, पेरीना, मदर डेयरी, अशोका, विंडी, हैव मोर, वेरका तथा लघु-कुटीर उद्योग के अन्य स्थानीय उत्पादन। | कैडबरी, डोलोप, नाइस, ब्रुकबांड, क्वालिटी वॉल्स, बास्किन एण्ड रोबिन्स, यांकी डूडल्स, कोरनेट्टो, डिनशो, कोलप्स, रेनाल्ड, दिनेश। |
पैकबंद स्नेक्सः
| स्वदेशी | विदेशी |
| बालाजी, गोपाल, बिकानो, हल्दीराम, एवन, होम मेड एण्ड स्नेक्स तथा लघु-कुटीर उद्योग के अन्य स्थानीय उत्पादन। | अंकलचिप्स, पेप्सी, फनमिर्च। |
पीने का पानीः
| स्वदेशी | विदेशी |
| रेल, गरम करलुं पानी, घरे फिल्टर, यश, गंगा, हिमालया, केच, नीर, बिस्लेरी तथा लघु-कुटीर उद्योग के अन्य स्थानीय उत्पादन। | एक्वाफिना, बैले, किनले, प्योर लाइफ, एवियन पेरियर। |
लेखन सामग्रीः
| स्वदेशी | विदेशी |
| कैम्लिन, विल्सन, कैमल, रोटोमेक्स, जीफ्लो, रेव्हलॉन, स्टिक, चन्द्र, मोर्टेक्स, सेलो, बिट्टू, प्लेटो, कोलो, भारत, त्रिवेणी, फ्लारा, अप्सरा, नटराज, लायन, हिन्दुस्तान, ओमेगा, लोटस, आर्मी, डेल्टा, लेक्सर तथा लघु-कुटीर उद्योग के अन्य स्थानीय उत्पादन। | पॉर्कर, पायलट, विंडसर न्यूटन, फैबरइ कैसेल, लक्जर, बिक, मांट, ब्लैक, कोरस, यस, रोटरिंग, रेनॉल्ड, एडजेल, यूनिबोल, फ्लेर, मित्सबिसी, राइडर, स्विसयेर। |
विद्युत उपकरण, गृह उपयोगी वस्तुएँ घड़ी आदिः
| स्वदेशी | विदेशी |
| बी.पी.एल, विडियोकान, ओनिडा, सलोरा, ई टी एण्ड टी, टी सीरीज, नेल्को, वेस्टन, अपट्रॉन, केल्ट्रान, कॉस्मिक, टीवीएस, गोदरेज, क्राउन, बजाज, उषा, पोलर, लाइड्स, ब्ल्यू स्टार, व्होल्टास, कुल होम, खेतान, एवरेडी, जीप, नोविनो, निर्लेप, इलाइट, अंजलि, सुमीत, जयको, टाइटन, अजंता, एचएमटी, मैक्सिमा, आल्विन, बंगाल, मैसूर, हॉकिन्स, प्रेस्टीज, राजेश, सीजा, ट्रिवेल, मैसूर, हिन्दुस्तान, सीमा, सूर्या, एंकर, प्रकाश, ओर्पेट, कॉस्मिक, ओरियंट, टुल्लू, क्रॉम्टन, शक्ति, सिल्वर, अनुपम, डीलक्स, कोहिनूर, यूनिवर्सल तथा लघु-कुटीर उद्योग के अन्य स्थानीय उत्पादन। | जीईसी, फिलिप्स, व्हर्लपूल, तोशिबा, सोनी, टी.डी.के., नेशनल पैनासोनिक, जीवनसाथी, आनन्द, शॉर्प, कीजिइन, आल्विन, सैमसंग, डेव, अकाई, सैनसुइ, एलजी, हिताची, थॉम्प्सन, परवेयर, कैरियर, कोंका, केनवुड, आइवा, जापान, लाइफ, क्रॉम्प्टन ग्रीव्ह्ज, टाइमेक्स, ओमेगा, राडो, रोबीस। |
रेडीमेड कपड़ेः
| स्वदेशी | विदेशी |
| मफतलाल, अरविन्द, वीआईपी, लक्ष, रूपा, ट्रेंड, कैम्ब्रिज, चरागदीन, डबल बुल, जोडियाक, डेनिम, डॉन, प्रोलीन, टीटी, अमूल, वीआईपी, रेमण्ड, पार्क एवन्यू, अल्टिमो, न्यूपोर्ट, किलर, एक्सकेलिबर, फ्लाइंग मशीन, ड्यूक्स, कोलकाता, लुधियाना तथा लघु-कुटीर उद्योग के अन्य स्थानीय उत्पादन। | ली, एरो, पीटर इंग्लैंड, फिलिप्स, बर्लिंगटन, लकोस्ट, सेफिस्को, कलरप्लस, व्हेन, हुसेन, लुइ, लेविस, पेपे बीन्स, रैंगलर, बेनेटोन, रेड एण्ड टेलर, एलेनसोली, बॉयफोर्ड। |
दवाइयाँ:
| स्वदेशी | विदेशी |
| पतंजलि, टोरेन्ट, केडिला, जायडस, साराभाई केमिकल्स, एलम्बिक, रेनबेक्सी। | ग्लेक्सो, इन्टरवेट, फाइजर, यूनीकेम, स्मिथलाइन, सेन्डोज, रैलीज, मेरिन्ड। |
जूते और पॉलिशः
| स्वदेशी | विदेशी |
| लखानी, लिबर्टी, स्टैन्डर्ड, एक्शन, पैरॉगान, फ्लेश, वेलकम, रेक्सोना, रिलैक्सो, लोटस, रेड टॉप, वायकिंग, बिल्ली, कार्नोबा तथा लघु-कुटीर उद्योग के अन्य स्थानीय उत्पादन। | बाटा, प्यूमा, पावर, चेरी ब्लॉसम, आदिदास, रोबोक, नाइक, लीकुप, गैसोलीन, वुडलैंड। |
कम्प्यूटरः
| स्वदेशी | विदेशी |
| एचसीएल, चिराग, अमर पीसी, विप्रो। | एचपी, कॉम्पैक, डेल, माइक्रोसॉफ्ट। |
दोपहिया एवं चारपहिया वाहनः
| स्वदेशी | विदेशी |
| टाटा, महिन्द्रा, हिन्दुस्तान मोटर्स, बजाज, टीवीएस, कायनेटिक | मारुति सुजुकी, हुंडइ, फोर्ड, निशान, होंडा, टोयोटा, यामाहा। |
Tuesday, January 18, 2011
क्या सन् 1630 में ताज महल के निर्माण आरम्भ होना सम्भव था?
इलियट व डौसन का इतिहास, भाग 7, पृष्ठ 19-25, के अनुसार शाहजहां का शाही इतिहासकार मुल्ला हमीद लाहौरी सन् 1630 का, अर्थात् ताज महल के निर्माण आरम्भ होने वाले वर्ष का विवरण इस प्रकार से देता हैः
"वर्तमान वर्ष में भी सीमान्त प्रदेशों में अभाव रहा खास तौर पर दक्षिण और गुजरात में तो पूर्ण अभाव रहा। दोनों ही प्रदेशों के निवासी नितान्त भुखमरी के शिकार बने। रोटी के टुकड़े के लिए लोग खुद को बेचने के लिए भी तैयार थे किन्तु खरीदने वाला कोई नहीं था। समृद्ध लोग भी भोजन के लिए मारे-मारे फिरते थे। जो हाथ सदा देते रहे थे वे ही आज भोजन की भीख पाने के लिए उठने लगे थे। जिन्होंने कभी घर से बाहर पग भी नहीं रखा था वे आहार के लिए दर-दर भटकने लगे थे। लंबे समय तक कुत्ते का मांस बकरे के मांस के रूप में बेचा जाने लगा था और हड्डियों को पीसकर आटे में मिला कर बेचा जाने लगा था। जब इसकी जानकारी हुई तो बेचने वालों को न्याय के हवाले किया जाने लगा, अन्त में अभाव इस सीमा तक पहुँच गया कि मनुष्य एक-दूसरे का मांस खाने को लालयित रहे लगे और पुत्र के प्यार से अधिक उसका मांस प्रिय हो गया। मरनेवालों की संख्या इतनी अधिक हो गई कि उनके कारण सड़कों पर चलना कठिन हो गया था, और जो चलने-फिरने लायक थे वे भोजन की खोज में दूसरे प्रदेशों और नगरों में भटकते फिरते थे। वह भूमि जो अपने उपजाऊपने के लिए विख्यात थी वहाँ कहीं उपज का चिह्न तक नहीं था...। बादशाह ने अपने अधिकारियों को आज्ञा देकर बुरहानपुर, अहमदाबाद और सूरत के प्रदेशों में निःशुल्क भोजनालयों की व्यवस्था करवाई।"सीधी सी बात है कि जब बकरे के मांस के नाम पर कुत्ते का मांस औ र आटे के स्थान पर पिसी हड्डियाँ बेची जा रही हों तथा मनुष्य मनुष्य का मांस भक्षण कर रहा हो तो ऐसी स्थिति में बीमारियों का भी भयंकर प्रकोप भी हुआ ही होगा और अनगिनत लोग भूख से मरने के साथ ही साथ बीमारियों से भी मरे होंगे।
उपरोक्त विवरण "वर्तमान वर्ष में भी..." से शुरू होता है इसका स्पष्ट अर्थ है कि शाहजहाँ के शासनकाल में जब-तब अकाल पड़ते ही रहते थे। ऐसे भीषण दुर्भिक्ष की स्थिति में ताज महल का निर्माण करने के लिए मजदूर कहाँ से आ गए? क्या सन् 1630 में ताज महल के निर्माण आरम्भ होना सम्भव था?
Monday, January 17, 2011
अगस्त्य संहिता में विद्युत बैटरी का सूत्र (Formula for Electric battery in Agastya Samhita)
अगस्त्य संहिता में एक सूत्र हैः
संस्थाप्य मृण्मये पात्रे ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्।
छादयेच्छिखिग्रीवेन चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥
दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:।
संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्॥
अर्थात् एक मिट्टी का बर्तन लें, उसमें अच्छी प्रकार से साफ किया गया ताम्रपत्र और शिखिग्रीवा (मोर के गर्दन जैसा पदार्थ अर्थात् कॉपरसल्फेट) डालें। फिर उस बर्तन को लकड़ी के गीले बुरादे से भर दें। उसके बाद लकड़ी के गीले बुरादे के ऊपर पारा से आच्छादित दस्त लोष्ट (mercury-amalgamated zinc sheet) रखे। इस प्रकार दोनों के संयोग से अर्थात् तारों के द्वारा जोड़ने पर मित्रावरुणशक्ति की उत्पत्ति होगी।
यहाँ पर उल्लेखनीय है कि यह प्रयोग करके भी देखा गया है जिसके परिणामस्वरूप 1.138 वोल्ट तथा 23 mA धारा वाली विद्युत उत्पन्न हुई। स्वदेशी विज्ञान संशोधन संस्था (नागपुर) के द्वारा उसके चौथे वार्षिक सभा में ७ अगस्त, १९९० को इस प्रयोग का प्रदर्शन भी विद्वानों तथा सर्वसाधारण के समक्ष किया गया।
अगस्त्य संहिता में आगे लिखा हैः
अनेन जलभंगोस्ति प्राणो दानेषु वायुषु।
एवं शतानां कुंभानांसंयोगकार्यकृत्स्मृत:॥
अर्थात सौ कुम्भों (अर्थात् उपरोक्त प्रकार से बने तथा श्रृंखला में जोड़े ग! सौ सेलों) की शक्ति का पानी में प्रयोग करने पर पानी अपना रूप बदल कर प्राण वायु (ऑक्सीजन) और उदान वायु (हाइड्रोजन) में परिवर्तित हो जाएगा।
फिर लिखा गया हैः
वायुबन्धकवस्त्रेण निबद्धो यानमस्तके उदान स्वलघुत्वे बिभर्त्याकाशयानकम्।
अर्थात् उदान वायु (हाइड्रोजन) को बन्धक वस्त्र (air tight cloth) द्वारा निबद्ध किया जाए तो वह विमान विद्या (aerodynamics) के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है।
स्पष्ट है कि यह आज के विद्युत बैटरी का सूत्र (Formula for Electric battery) ही है। साथ ही यह प्राचीन भारत में विमान विद्या होने की भी पुष्टि करता है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि हमारे प्राचीन ग्रन्थों में बहुत सारे वैज्ञानिक प्रयोगों के वर्णन हैं, आवश्यकता है तो उन पर शोध करने की। किन्तु विडम्बना यह है कि हमारी शिक्षा ने हमारे प्राचीन ग्रन्थों पर हमारे विश्वास को ही समाप्त कर दिया है।
संस्थाप्य मृण्मये पात्रे ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्।
छादयेच्छिखिग्रीवेन चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥
दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:।
संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्॥
अर्थात् एक मिट्टी का बर्तन लें, उसमें अच्छी प्रकार से साफ किया गया ताम्रपत्र और शिखिग्रीवा (मोर के गर्दन जैसा पदार्थ अर्थात् कॉपरसल्फेट) डालें। फिर उस बर्तन को लकड़ी के गीले बुरादे से भर दें। उसके बाद लकड़ी के गीले बुरादे के ऊपर पारा से आच्छादित दस्त लोष्ट (mercury-amalgamated zinc sheet) रखे। इस प्रकार दोनों के संयोग से अर्थात् तारों के द्वारा जोड़ने पर मित्रावरुणशक्ति की उत्पत्ति होगी।
यहाँ पर उल्लेखनीय है कि यह प्रयोग करके भी देखा गया है जिसके परिणामस्वरूप 1.138 वोल्ट तथा 23 mA धारा वाली विद्युत उत्पन्न हुई। स्वदेशी विज्ञान संशोधन संस्था (नागपुर) के द्वारा उसके चौथे वार्षिक सभा में ७ अगस्त, १९९० को इस प्रयोग का प्रदर्शन भी विद्वानों तथा सर्वसाधारण के समक्ष किया गया।
अगस्त्य संहिता में आगे लिखा हैः
अनेन जलभंगोस्ति प्राणो दानेषु वायुषु।
एवं शतानां कुंभानांसंयोगकार्यकृत्स्मृत:॥
अर्थात सौ कुम्भों (अर्थात् उपरोक्त प्रकार से बने तथा श्रृंखला में जोड़े ग! सौ सेलों) की शक्ति का पानी में प्रयोग करने पर पानी अपना रूप बदल कर प्राण वायु (ऑक्सीजन) और उदान वायु (हाइड्रोजन) में परिवर्तित हो जाएगा।
फिर लिखा गया हैः
वायुबन्धकवस्त्रेण निबद्धो यानमस्तके उदान स्वलघुत्वे बिभर्त्याकाशयानकम्।
अर्थात् उदान वायु (हाइड्रोजन) को बन्धक वस्त्र (air tight cloth) द्वारा निबद्ध किया जाए तो वह विमान विद्या (aerodynamics) के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है।
स्पष्ट है कि यह आज के विद्युत बैटरी का सूत्र (Formula for Electric battery) ही है। साथ ही यह प्राचीन भारत में विमान विद्या होने की भी पुष्टि करता है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि हमारे प्राचीन ग्रन्थों में बहुत सारे वैज्ञानिक प्रयोगों के वर्णन हैं, आवश्यकता है तो उन पर शोध करने की। किन्तु विडम्बना यह है कि हमारी शिक्षा ने हमारे प्राचीन ग्रन्थों पर हमारे विश्वास को ही समाप्त कर दिया है।
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