देखा कि श्रीमती जी का मूड अच्छा था सो हमने कह दिया, " हैप्पी हग डे डार्लिंग!"
श्रीमती जी ने नाक को आँचल से दबाकर, मुख-मुद्रा को वीभत्स बनाते हुए, कहा, "छिः छिः, क्या गन्दगी वाली बातें कहते हैं आप भी।"
हमने कहा, "अरे मैं हिन्दी के 'हग' के बारे में नहीं, अंग्रेजी के 'हग' के बारे में कह रहा हूँ। ग्रेजुएशन कैसे कर लिया था तुमने जब कि अंग्रेजी का 'हग' भी नहीं जानती?"
"क्या मैं कन्व्हेंट में पढ़ती थी जो ये सब जानूँ? आप अच्छी तरह से जानते हैं कि मेरा मीडियम हिन्दी था।"
"आज वैलेन्टाइन वीक का छठवाँ दिन है 'हग डे', इसीलिए मैंने 'हैप्पी हग डे डार्लिंग' कहकर तुम्हें विश किया था।"
"इतनी उम्र हो गई आपकी और आपको शर्म भी नहीं आती ऐसा कहते हुए? बच्चे सुन लें तो जाने क्या सोचें?"
"बच्चे अब बच्चे नहीं रह गए हैं, गृहस्थी वाले हो गए हैं, वो सब समझते हैं बल्कि खुद भी बहुओं को यही कह रहे होंगे।"
"वो कुछ भी करें, वो नये जमाने के हैं। पर आपको अपने जमाने के साथ चलना चाहिए। 'सींग कटा कर बछड़ों में शामिल होना' भला कोई अच्छी बात है?"
"कुछ भी कहो, पर मुझे तो लगता है कि मेरे और तुम्हारे साथ तो वही मिसल हो गई कि 'बन्दर क्या जाने अरदक का स्वाद' या कहें कि 'अन्धा क्या जाने बसन्त बहार'!"
श्रीमती जी ने तत्काल तुनक कर जवाब दिया, "देखिये जी, न तो आप बन्दर हैं और न मैं बन्दरिया। हम दोनों अन्धे भी नहीं हैं। अगर आप समझते हैं कि लच्छेदार भाषा में मुझसे बात करके आप मुझ पर रौब गाँठ लेंगे, तो जान लीजिए कि आप गलत समझ रहे हैं।"
'खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे' के अन्दाज में हमने कहा, "अरे भई, मैं तो यह कह रहा था हमारे जमाने में वैलेन्टाइन वीक होती ही नहीं थी और हम उसका मजा उठा ही नहीं पाए।"
"अच्छा, अगर उस जमाने में वैलेन्टाइन वीक होता तो क्या करते आप?" श्रीमती जी ने हम पर तरस खाने के अन्दाज में कहा।
"तो मैं 7 फरवरी याने कि 'रोज डे' के दिन तुम्हें गुलाब के बहुत सारे खूबसूरत फूल उपहार में देता।"
"येल्लो, थर्ड क्लास में फिल्म देखने के लिए तो आपके पास चालीस पैसे तो होते नहीं थे उन दिनों। अपनी छोटी बहन तक से पैसे माँग लेते थे टिकट के लिए। मैं ही चुपके से आपकी बहन को पैसे दे दिया करती थी जिसे वो आपको देती थी। फिर मेरे लिए ढेर सारे गुलाब लाने के लिए कहाँ से पैसे आते आपके पास? और क्या आप समझते हैं कि आप मुझे गुलाब का फूल देते तो मैं खुश हो जाती? जबकि आप जानते हैं कि मेरे घर के बगीचे में गुलाब के फूलों की कोई कमी नहीं थी, हर प्रकार के गुलाब खिलते थे वहाँ पर।"
"अरे भई, 'रोज डे' के दिन प्रेमिका को गुलाब के फूल देना रिवाज है।"
"मतलब ये कि जिसके पास ढेर सारे गुलाब हों उसे भी उपहार में गुलाब ही दो। ये तो वैसा ही हुआ कि भरपेट खाना खाये आदमी को और खाने को दो।"
"तुम नहीं समझोगी इस रिवाज को।"
"हाँ मैं कैसे समझूँगी? मैं तो बेवकूफ हूँ। आप सीधे-सीधे मुझे बेवकूफ कह रहे हैं। जबकि अकल खुद आपमें नहीं है, अगर होती तो आप मुझे गुलाब देने के बदले गोलगप्पे खिलाते।"
मन ही मन हमने सोचा कि कह तो ये ठीक ही रही है, अगर हम में अकल होता तो इससे शादी ही क्यों करते? फिर प्रत्यक्ष कहा, "तुम तो जुबान पकड़ लेती हो, मैंनें तुम्हें बेवकूफ नहीं कहा, मेरी क्या शामत आई है जो तुम्हें बेवकूफ कहूँ? क्या इतना भी मैं नहीं जानता कि जिस तरह से काने को काना नहीं कहना चाहिए उसी तरह से बेवकूफ को भी बेवकूफ नहीं कहना चाहिए। फिर भी अगर तुम्हें ऐसा लगता है कि मैंने कहा है तो माफ कर दो। हाँ फिर 8 फरवरी याने कि प्रपोज डे के दिन मैं तुम्हें प्रपोज करता।"
"हुँह, खाक प्रपोज करते। किसी लड़की से बात तक करने में तो नानी मरती थी आपकी।"
"अरे भई कर ही लेता कैसे भी करके प्रपोज। फिर चॉकलेट डे के दिन मैं तुम्हें चॉकलेट लाकर देता।"
"आप जानते हैं ना कि चॉकलेट मुझे जरा भी पसन्द नहीं है। हाँ चॉकलेट की जगह अगर रसमलाई होता तो शायद मैं खुश हो जाती।"
"पर चॉकलेट डे के दिन चॉकलेट ही दिया जाता है।"
"अगर आप मुझे चॉकलेट देते मैं आपके सामने ही उसे फेंक देती।"
"और फिर किस डे के दिन मैं तुम्हें किस करता।"
"इतनी हिम्मत थी आपमें? और कैसे भी हिम्मत करके शादी से पहले आप मुझे किस करने की कोशिश करते तो किस-विस तो मिलता नहीं उल्टे मेरे हाथ के दो-चार झापड़ जरूर मिल गए होते।"
"तुम वैलेन्टाइन के लायक हो ही नहीं।"
"तो मैंने कब कहा कि मैं हूँ। बड़े आए हैं वैलेन्टाइन वाले। अपनी संस्कृति-सभ्यता भूल कर ऊल-जलूल रिवाज अपनाने वाले। भलाई इसी में है कि आप अपनी खाल में ही रहिये। और अब मेरा टाइम खोटा करने के बजाय जाइये, सब्जी लेकर आइये। और खबरदार जो फिर कभी वैलेन्टाइन-फैलेन्टाइन का नाम लिया मेरे सामने।"
इसके बाद भला हम क्या कर सकते थे? चुपचाप उठकर चले गए सब्जी लेने।