Saturday, May 22, 2010

क्या आपको याद है कि पिछली बार कब सुना था आपने बैंड बाजा?

कल हम रास्ते में थे कि एकाएक ठिठक कर रुक जाना पड़ा हमें। सामने से एक बारात आ रही थी जिसके आगे आगे लकदक ड्रेस पहने बैंड बाजा वाले सुरीली धुन बजाते हुए चल रहे थे। क्लॉर्नेट से निकलती हुई फिल्म 'मुगल-ए-आज़म' के मेलॉडियस और कर्णप्रिय गाने "मोहे पनघट पे नन्दलाल ..." की धुन ने बरबस ही वहाँ पर तब तक के लिये रोक लिया जब तक कि वह धुन पूरी ना हो गई। संगीत के सम्मोहन ने बहुत देर तक बाँध रखा हमें।

हम सोचने लगे कि पिछली बार कब सुना था हमें बैंड बाजा? बहुत सोचने पर भी याद नहीं आया। सुनें भी तो कैसे? आज बैंड बाजे का चलन रह ही कहाँ गया है? और रहे भी तो कैसे? आजकल जो गाने बनते हैं उन्हें बैंड बाजे पर बजाया भी तो नहीं जा सकता। जी हाँ, बैंड बाजे में मैलॉडी तो बजाई जा सकती है पर शोर को बजाना मुश्किल ही नहीं असम्भव है।

एक जमाना था कि बैंड बाजा के बिना शादी-विवाह जैसे शुभ कार्य सम्पन्न ही नहीं हो पाते थे। वैसे तो रायपुर में उन दिनों बहुत सी बैंड पार्टियाँ थीं किन्तु सबसे अधिक नाम था "सिद्दीक बैंड पार्टी" और "गुल मोहम्मद बैंड पार्टी का"। शादी बारातों और गनेश विसर्जन के जुलूसों में इन्हीं का वर्चस्व दिखाई पड़ता था। ये बैंड वाले जब "कुहूँ कुहूँ बोले कोयलिया ..." की धुन बजाया करते थे तो ऐसा कोई भी न था जो मन्त्रमुग्ध न हो जाये!

आज बैंड बाजा लुप्त हो चुका है, डी.जे. और धमाल पार्टियों के शोर ने बैंड बाजे की मैलॉडी और मधुरता को निगल डाला है।

Friday, May 21, 2010

आपसे एक सवाल, यदि आपकी शादी हो चुकी है

शादी-विवाह का सीज़न चल रहा है आजकल। अक्षय तृतीया के रोज से ही खूब जोर शुरू हो गया है शादियों का। कहीं बारात ले जाने की तैयारी चल रही है तो कहीं बारात स्वागत् की। इन सबको देखकर याद आया कि चौंतीस साल पहले हम भी इस प्रक्रिया से गुजरे थे और विवाह के समय पण्डित जी ने हमसे हमारी श्रीमती जी को सात वचन दिलवाये थे और हमें भी उनसे एक वचन दिलवाया था।

तो आज हमने उन वचनों को याद करने का बहुत प्रयास किया किन्तु एक वचन भी याद नहीं आ सका (सठिया जाने के कारण स्मरणशक्ति का कमजोर हो जाना ही इसका कारण हो सकता है)। और उन वचनों को जानने की जिज्ञासा है कि शान्त ही नहीं हो पा रही है।

तो बन्धुओं आप लोगों से हमारा सवाल है कि क्या आपको वे वचन याद हैं? यदि हैं तो कृपया हमें भी बताने का कष्ट करें।

Thursday, May 20, 2010

भाड़ में जाये अलेक्सा रैंक, गूगल पेज रैंक और गूगल खोज परिणाम ... हिन्दी ब्लोगिंग को इनकी जरूरत ही क्या है?

"नमस्कार लिख्खाड़ानन्द जी!"

"नमस्काऽर! आइये आइये टिप्पण्यानन्द जी!"

"लिख्खाड़ानन्द जी! अभी हाल ही में हमने एक पोस्ट पढ़ी 'हिन्दी ब्लोगर्स - गूगल खोज परिणाम के अनुसार'। हमने सोचा कि लगे हाथों आपके भी गूगल खोज परिणाम देख लें। सच कहें तो आपके इतने कम गूगल खोज परिणाम देखकर हमें बड़ी ही निराशा हुई। अलेक्सा रैंक और गूगल पेज रैंक के मामले में भी आप बहुत पीछे हैं। जल्दी कुछ करिये इस मामले में।"

"टिप्ण्यानन्द जी!  आप तो यह बताइये कि हम हिन्दी ब्लोगिंग में महत्व का स्थान रखते हैं कि नहीं? लोग हमें उस्ताद जी कहते हैं कि नहीं? हमारा पोस्ट आते ही टिप्पणियों की बौछार शुरू हो जाती या नहीं? चिट्ठाजगत और ब्लोगवाणी की हॉट लिस्ट में हम टॉप में रहते हैं या नहीं? फिर क्यों करें कुछ भाई? आप भी ना बस ... आलतू-फालतू की फिकर करते रहते हैं आप।"

"अंग्रेजी ब्लोग वाले तो इन्ही सब चीजों की फिकर में दुबले हुए जाते हैं। पोस्ट प्रकाशित करने के बाद डिग, टेक्नोराटी जैसे कितने ही सोशल बुकमार्किंग साइट्स में अपने पोस्ट का लिंक देते रहते हैं।"

"लगता है टिप्पण्यानन्द जी कि आप हिन्दी ब्लोगिंग की बातों के लिये अंग्रेजी ब्लॉगिंग की नजीर रखने वाले लोगों में से ही एक हैं।"

"लिख्खाड़ानन्द जी! आखिर ब्लोगिंग तो अंग्रेजी से ही आई है ना हमारे पास।"

"तो क्या हुआ? हमने उनसे ब्लोग ले लिया तो इसका मतलब यह तो नहीं कि उनकी हर बात की हम नकल करें? ब्लोग हमारे काम की चीज थी इसलिये हमने उसे ले लिया पर ये अलेक्सा रैंक, गूगल पेज रैंक, गूगल खोज परिणाम, डिग, टेक्नोराटी आदि हमारे किस काम के? आखिर हिन्दी ब्लोगिंग को इनकी जरूरत ही क्या है? भाड़ में जाये अलेक्सा रैंक, गूगल पेज रैंक और गूगल खोज परिणाम।"

"क्यों नहीं है हिन्दी ब्लोगिंग को इनकी जरूरत?"

"इसलिये नहीं है क्योंकि ये सब तो पाठकों की संख्या बढ़ाने वाली चीजे हैं। हमें क्या जरूररत है पाठकों की संख्या बढ़ाने की? हमारे पाठक तो गिनती के सिर्फ कुछ सौ हिन्दी ब्लोगर्स ही हैं और उनमें से अधिकतर हमारे मुरीद हैं ही। तो क्यों हम अपना समय बरबाद करें उन कामों को करने में जिन्हें अंग्रेजी ब्लोगर किया करते हैं। उसके बदले में तो हम समझते हैं कि हमें उस बहुमूल्य समय को अपने मुरीदों को देना चाहिये उन्हें संतुष्ट रखने के लिये ताकि वे हमारे विरोधियों के तरफ ना चले जायें।"

"सही कह रहे हैं आप उस्ताद जी! अब हमें समझ में आ गया कि हम ही गलत थे।"

"शुक्र है कि समझ गये आप! नहीं तो आपको समझाने के लिये बहुत मेहनत करनी पड़ती हमें।"

"लिख्खाड़ानन्द जी! बधाई हो! आपकी पिछले पोस्ट ने तो टिप्पणियाँ पाने में रेकॉर्ड तोड़ दिये। एकदम लाजवाब लिखते हैं आप!"

"टिप्पण्यानन्द जी! यह तो सही है कि हमारे पिछले पोस्ट ने हमें हमारी उम्मीद से भी ज्यादा टिप्पणियाँ दिलाई हैं किन्तु आप भी अन्य टिप्पणी देने वालों के जैसे ही हमारे पोस्ट की तारीफ करेंगे यह हमने नहीं सोचा था।"

"क्यों भाई आपकी पोस्ट जोरदार है तो क्यों तारीफ ना करें?"

"क्या जोरदार है उसमें? भला बताइये तो सही क्या समझा आपने हमारे उस पोस्ट को पढ़कर?"

परेशान होकर सिर खुजाते हुए "कुछ दर्शन-वर्शन की बातें थीं उस पोस्ट में!"

"कैसा दर्शन था?"

"जीऽऽऽऽऽ ......"

"जाने दीजिये, नहीं बता पायेंगे आप। आप क्या कोई भी नहीं बता पायेगा। सरिता-तट पर होने वाली बातें, स्याह-सुर्ख हो पाने की चाहत, दामन में लगने वाले धब्बे, एक भाषा में दूसरी भाषा का घालमेल करके नये-नये शब्दों की ईजाद, सिगरेट के टोटे, घोड़े की लीद आदि बातों से हम पोस्ट कैसे बना लेते हैं यह हम खुद भी नहीं बता सकते तो दूसरा कोई क्या खाक बता पायेगा?

देखिये टिप्पण्यानन्द जी! आप हमारे मित्र हैं इसलिये हम आपको बता देते हैं कि हम क्या लिखते हैं। हम हिन्दी के जाने माने ब्लोगर हैं और जाने माने ब्लोगर ही बने रहना चाहते हैं। जाने माने बने रहने के लिये हिन्दी ब्लोगिंग में अधिक से अधिक टिप्पणियाँ बटोरनी और संकलकों में टॉप में बने रहना बहुत जरूरी है इसलिये हम वही लिखते हैं जिसे कोई पढ़कर समझ पाये या ना समझ पाये, पर हमें महान अवश्य समझे। महान बनने के लिये बहुत सारे फॉर्मूले हैं जिन्हें अपनाना पड़ता है। हम अपने पोस्ट में ऐसा कुछ लिखते हैं जिसे हर आदमी अपने हिसाब से समझ ले। हम दो बातों को, चाहे उनमें समानता हो या ना हो, जोड़ देते हैं ताकि लोग अपने-अपने हिसाब से अटकल लगाते रहें। एक-एक लाइन को सोच-समझ कर लिखना पड़ता है हमें। हमारा काम है अपने लेखन से सभी लोगों को सन्तुष्ट रखना इसीलिये यह जानते हुए भी कि रास्ते में गंदगी तो कुत्ते-बिल्ली भी करते हैं किन्तु हम गाय के गोबर करने को ही रास्ते में गंदगी बतायेंगे जिससे सारे लोग संतुष्ट रहें। हम अपने लेखन से किसी को भी नाराज होने का जरा भी मौका नहीं देना चाहते, यहाँ तक कि विरोधियों तक को भी नहीं, हाँ  छुपे रूप से "देखन में छोटन लगे घाव करै गम्भीर" जैसी एक दो-बातें अवश्य डाल देते हैं ताकी हमारे विरोधी थोड़ा तिलमिला जरूर जायें किन्तु नाराज कदापि ना हों।

अब आप ही बताइये कि यदि हम 'भरत मुनि' के 'नाट्यशास्त्र', 'विशाखदत्त' के 'मुद्राराक्षस', 'कालिदास' के 'कुमारसम्भव', 'भास' के 'प्रतिज्ञायौगन्धरायण', 'सैयद इंशाअल्ला खाँ' के 'रानी केतकी की कहानी', 'कालिदास' के 'कुमारसम्भव', 'सदल मिश्र' के 'नासिकेतोपाख्यान', 'बाबू देवकीनन्दन खत्री' के 'चन्द्रकान्ता सन्तति', 'वृन्दावनलाल वर्मा' के 'झाँसी की रानी', 'शरतचन्द्र' के 'पथ के दावेदार', 'आचार्य चतुरसेन' के 'सोना और खून' जैसे विषयों पर कुछ लिखेंगे तो क्या कोई झाँकने आयेगा हमारे पोस्ट में? इधर-उधर से कुछ पाठक शायद आ जायें उसे पढ़ने के लिये किन्तु टिप्पणी देने वाले हमारे ब्लोगर मित्र तो बिल्कुल ही नहीं आयेंगे क्योंकि इस प्रकार के पोस्ट में उन्हें मजा नहीं आता और वे पोस्ट संकलकों के गर्त में जाकर गुम हो जाते हैं।"

"वाह लिख्खाड़ानन्द जी! महान हैं आप! जब भी हम आपसे मिलने आते हैं, ज्ञान और मर्म की बातें ही लेकर जाते हैं।"

"हमारा तो काम ही ज्ञान बाँटना है टिप्पण्यानन्द जी! हम और भी बहुत सारी बातें बतायेंगे आपको किन्तु आज बस इतना ही क्योंकि हमारे पोस्ट लिखने का समय हो गया है।"

"तो अब मैं चलता हूँ, नमस्कार!"

"नमस्काऽर!"

Wednesday, May 19, 2010

ब्लोगरों का पाश्‍चुराइजेशन - याने कि उनके लेखन स्तर को लंबे समय तक बरकरार रखना

"अवधिया जी, लगता है कि अब ब्लोगर्स का भी पाश्‍चुराइजेशन करना पड़ेगा।" हमसे ललित शर्मा जी ने कहा जो कल एक विवाह समारोह में सम्मिलित होने के लिये रायपुर आये थे।

हमने पूछा, "क्यों भाई?"

"आपने अनुभव किया होगा कि ब्लोगर्स के आज का लेखन स्तर उनके पहले के लेखन स्तर से गिरता जा रहा है। आप तो जानते ही हैं कि दूध को कुछ समय रखने पर वह खराब हो जाता है किन्तु यदि उसे पाश्‍चुराइज्ड कर दिया जाये तो वह तीन से चार महीने तक खराब नहीं होता। ऐसे ही ब्लोगर्स को भी यदि पाश्‍चुराइज्ड कर दिया जाये तो उनका लेखन स्तर लंबे समय तक ज्यों का त्यों बना रहेगा।"

"बात में तो आपके दम है ललित जी! पर पहले यह बताइये कि आखिर ये पाश्‍चुराइजेशन है क्या बला?"

हमारे इस प्रश्न पर ललित जी ने बताया, "पाश्‍चुराइजेशन एक प्रक्रिया है जो भोजन में माइक्रोबियल विकास को धीमा कर देती है जिससे उसका खराब होना रुक जाता है। सबसे पहले भोजन को खराब होने से रोकने के प्रयोग फ्रांसीसी रसायनज्ञ और सूक्ष्मजीव विज्ञानी लुई पाश्‍चर ने किये थे इसलिये इस प्रक्रिया का नाम पाश्‍चुराइजेशन हो गया। वैसे अवधिया जी, आपकी जानकारी के लिये मैं बता दूँ कि पाश्चुराइजेशन बादाम, पनीर, क्रीम, अंडे, दूध, फलों के रस, मधुरस, डिब्बाबंद भोजन, सोया सॉस, बीयर, शराब आदि का किया जा सकता है। हमारे देश में प्रायः दूध का पाश्चुराइजेशन अधिक होता है और निकट भविष्य में ब्लोगर्स का भी अधिक से अधिक पाश्चुराइजेशन होने लगेगा।"

"तो ब्लोगर्स को पाश्चुराइज्ड करने के लिये क्या योजना बनाई है आपने?"

"सबसे पहले तो अवधिया जी, किसी एक ब्लोगर पर पाश्चुराइजेशन का प्रयोग किया जायेगा। यह तो आप मानेंगे ही कि आपका लेखन स्तर दिनों दिन गिरते ही जा रहा है। इसलिये मैंने सोचा है कि यह प्रयोग आप पर ही किया जाये। आप पर प्रयोग करने के दो फायदे हैं, एक तो यह कि हमें हमारे बुजुर्ग ब्लोगर से स्तर के पोस्ट मिलते रहेंगे और दूसरा यह कि यदि प्रयोग में कुछ गड़बड़ी हो जाये और आपका पाश्चुराइजेशन होने के बजाय परलोकगमन हो जाये तो भी हिन्दी ब्लोगजगत को कोई विशेष क्षति नहीं होगी। हाँ तो आपके पाश्चुराइजेशन के लिये आपको लोहे के पाइप के भीतर रखकर उसे  15-20 सेकंड के लिए 71.7 डिग्री सेल्सियस (161 ° एफ) के लिए गर्म किया जायेगा। उसके बाद आपको पैकेज्ड कर दिया जायेगा। तीन माह बाद आपको पैकेज से निकाल कर आपके लेखन स्तर को चेक किया जायेगा। बस इतना छोटा सा ही तो प्रयोग है। प्रयोग के सफल हो जाने पर ब्लोगर्स पाश्‍चुराइजेशन प्लांट भी बना लिया जायेगा।"

"ललित भाई, आप तो हमें बख्श ही दो। आप कहें तो हम ब्लोगिंग ही छोड़ देंगे पर अपने ऊपर ये प्रयोग नहीं होने देंगे।"

"अवधिया जी, इतनी जल्दी निर्णय मत ले लीजिये। जरा सोचिये कि आपके इस कार्य के लिये भविष्य में हिन्दी ब्लोगजगत में आपका कितना नाम होगा। फिलहाल तो मैं कुछ दिनों के लिये दिल्ली जा रहा हूँ तब तक आप अच्छे से सोच लीजियेगा फिर अपना निर्णय बताइयेगा।"

इतना कहकर उन्होंने हमसे विदा लिया और हम सोच रहे हैं कि क्या निर्णय लिया जाये।

Tuesday, May 18, 2010

हिन्दी ब्लोगर्स - गूगल खोज परिणाम के अनुसार

कुछ अत्यन्त लोकप्रिय ब्लोगर्स

समीर लाल
खोज परिणाम लगभग 92,700

अनूप शुक्ल
खोज परिणाम लगभग 75,600






ज्ञानदत्त पाण्डेय
खोज परिणाम लगभग 76,300







P.C. Rampuria (ताऊ)
खोज परिणाम लगभग 3,620






कुछ नियमित लेखन करने वाले ब्लोगर्स

raviratlami (रवि रतलामी)
खोज परिणाम लगभग 161,000






पी.सी.गोदियाल
खोज परिणाम लगभग 128,000






दिनेशराय द्विवेदी
खोज परिणाम लगभग 74,700






राज भाटिया
खोज परिणाम लगभग 16,400
 





कुछ छत्तीसगढ़ के ब्लोगर्स

ललित शर्मा
खोज परिणाम लगभग 139,000






अनिल पुसदकर
खोज परिणाम लगभग 20,800






राजकुमार सोनी
खोज परिणाम लगभग 29,700






जी.के. अवधिया
खोज परिणाम लगभग 178,000






अपने पसंदीदा ब्लोगर्स के खोज परिणाम आप स्वयं भी गूगल सर्च करके देख सकते हैं, ध्यान रहे कि खोज करते समय ब्लोगर का नाम इनव्हर्टेड कामाज के बीच होना चाहिये।

भूल सुधार

ललित शर्मा जी ने निम्न टिप्पणी करके बताया है कि ताऊ जी के खोज परिणाम के मामले में हमसे एक गलती हो गई हैः

ऊपर जो P.C. ramapuria के नाम से सर्च रिजल्ट दिये गये हैं वो ताऊ के असली
सर्च रिजल्ट नही हैं. ताऊ ने उपरोक्त नाम से कमेंट करना काफ़ी पहले बंद कर दिया है.
ताऊ अब ताऊ के नाम से कमेंट करते हैं और इस ताऊ शब्द से सर्च करने पर मुझे
2,52,000 रिज्ल्ट प्राप्त हुये. यह सुधार अपेक्षित है.
अतः कृपया ताऊ जी के खोज परिणाम को 3,620 स्थान पर 2,52,000 पढ़ा जाये।


ललित जी को धन्यवाद देते हुए हम अपनी भूल के लिए खेद प्रकट करते हैं।

Sunday, May 16, 2010

पोस्ट का शीर्षक धाँसू ना हो तो उसे पढ़ेगा कौन?

अपने पोस्ट को पढ़वा लेना हँसी खेल नहीं है। बहुत मेहनत करनी पड़ती है इसके लिये। यह बात मैं नामी-गिरामी ब्लोगरों के लिये नहीं, बल्कि अपने जैसे साधारण ब्लोगरों के लिये कह रहा हूँ। नामी-गिरामी ब्लोगरों के तो पोस्ट आने से पहले ही पाठक आ धमकते हैं पर हम जैसे साधारण ब्लोगरों को तो पाठकों को आकर्षित करना पड़ता है।

जैसे मदारी साँप-नेवले की लड़ाई दिखाने की बात करके भीड़ इकट्ठा करता है और आखिर में ताबीज बेचने लगता है उसी तरह से हमारे जैसे ब्लोगरों को भी पाठक जुटाने के लिये कोई धाँसू शीर्षक खोजना पड़ता है ताकि हम अपना पोस्ट रूपी ताबीज बेच सकें। यदि हम अपने पोस्ट का शीर्षक "अक्षय तृतीया" या "आज अक्षय तृतीया है" जैसा कुछ रखते तो क्या आप आते इसे पढ़ने के लिये? नहीं आते ना!

लेकिन अब आ ही गये हैं तो हम जानते हैं कि आप में से कुछ लोग आगे भी हमें झेल लेंगे। कहने का मतलब यह है कि पोस्ट तो है हमारा अक्षय तृतीया पर किन्तु शीर्षक है कुछ और, जो आपको खींच कर ला सके।

तो लीजिये अब झेलिये थोड़ा सा अक्षय तृतीया के बारे में भीः
  • मान्यता है कि वैशाख मास के शुक्ल पक्ष तृतीया के दिन किये गये किसी भी शुभ कार्य का अक्षय फल मिलता है इसीलिये इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है।
  • अक्षय तृतीया के दिन शुभ कार्य करने के लिये मुहूर्त नहीं देखा जाता क्योंकि यह तिथि ही स्वयंसिद्ध मुहूर्त है। इस दिन विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषणों या जमीन-जायजाद, वाहन आदि की खरीददारी जैसे किसी भी मांगलिक कार्य करने के लिये पंचांग में शुभ मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होती।
  • अक्षय तृतीया के दिन से ही वर-विवाह करने का आरम्भ होता है। भारतवर्ष के अनेक क्षेत्रों में इस दिन गुड्डे गुड्डियों के विवाह रचाने का चलन है।
  • भविष्य पुराण के अनुसार सतयुग और त्रेतायुग का आरम्भ अक्षय तृतीया के दिन से ही हुआ था।
  • भगवान परशुराम का जन्म अक्षय तृतीया के दिन ही हुआ था।
  • भारत के प्रमुख तीर्थ बद्रीनाथ तथा केदारनाथ के कपाट इसी दिन से खोले जाते हैं।
  • अक्षय तृतीया के दिन ही महाभारत के युद्ध का समापन हुआ था।
  • छ्तीसगढ़ में अक्षय तृतीया को 'अकती' त्यौहार के रूप में मनाते हैं। इसी दिन से खेती-किसानी का वर्ष प्रारम्भ होता है। इसी दिन पूरे वर्ष भर के लिये नौकर लगाये जाते हैं। शाम के समय हर घर की कुँआरी लड़कियाँ आँगन में मण्डप गाड़कर गुड्डे-गुड्डियों का ब्याह रचाती हैं।