Sunday, October 21, 2007

सद्‍भाव

(विजयादशमी के अवसर पर स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित एक और कविता)

'सद्‍भाव' एक सुन्दर शब्द है,
पर आजकल यह शब्द-
शब्दकोश की शोभा मात्र बन गया है
और लोगों के दिलों से
स्वार्थ की आंधी में बह गया है।

सुनते हैं एक नया मुहावरा
'साम्प्रदायिक सद्‍भाव' का,
जिसका निरन्तर रहेगा अभाव ही
क्योंकि-
यदि सद्‍भाव होता तो सम्प्रदाय क्यों बनते
और सम्प्रदाय न बनते तो 'साम्प्रदायिक सद्‍भाव' मुहावरा कहाँ से आता?
तो-
सद्‍भाव का अभाव ही तो दानवता है।

किन्तु सद्‍भाव को
हर दिल में अटल बनाना ही है,
समूचे राष्ट्र को,
सद्‍भाव के श्रृंगार से सजाना ही है,
क्योंकि-
सद्‍भाव ही तो मानवता है।

तो-
पहले अपने अन्तस्तल को जानो,
फिर सबके हृदयेश्वर को पहचानो
एक ही सत्ता-सागर की
लहरों में रखो समभाव
तब स्वतः ही उत्पन्न हो जायेगा सद्‍भाव
क्योंकि-
तब मानव मानव को पहचान लेगा,
सद्‍भाव के रहस्य को जान लेगा।

(रचना तिथिः शनिवार 22-11-1980)

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