Wednesday, December 17, 2008

हमको जो कोई बूढ़ा समझे बूढ़ा उसका बाप

भाई अगर हम आप लोगों से कुछ साल पहले इस दुनियाँ में आ गये तो इसका मतलब यह तो नहीं हुआ कि आप हमें बूढ़ा बोलें। और यदि बोलते हैं तो बोलते रहिये हम कौन सा ध्यान देने वाले हैं? हम तो सिर्फ अपनी श्रीमती जी की बातों को ही मानते हैं जो कहती हैं कि 'अजी अभी कौनसे बूढ़े हो गये हैं आप?' (यदि हम बूढ़े हो गये तो वे भी तो बुढ़िया मानी जायेंगी और यह तो आप सभी जानते हैं कि कोई भी महिला बुढ़िया कहलाना तो क्या अपनी उम्र को जरा सा खिसकाना भी नहीं चाहेगी, उनका बस चले तो अपनी बेटी को भी अपनी छोटी बहन ही बताना पसंद करेंगी )। वास्तव में हमारा तो सिद्धांत ही है कि 'पत्नी को परमेश्वर मानो'। पत्नी के वचन ब्रह्मवाक्य हैं, पत्नी ने कह दिया याने परमेश्वर ने कह दिया (अब यह अलग बात है कि जब मूड में होती हैं तो यही गुनगुनाती हैं - मैं का करूँ राम मुझे बुड्ढा मिल गया)। अब देखिये ना, अमिताभ जी हमसे भी चार पाँच साल बड़े हैं पर उनको तो कोई बूढ़ा नहीं कहता। फिल्मों में तो वे अभी भी जवानों के जवान हैं। और यदि कहना ही था तो बुजुर्ग न कह कर "ओल्ड ब्वाय" कह लेते, आपकी मंशा भी पूरी हो जाती और हम भी खुश होते।

सत्यानाश हो इस अंग्रेजी का जिसके कारण सभी हमें अंकल पुकारते हैं। अब आप ही सोचिये कि यदि आपको कोई अंकल कहेगा तो क्या आपको अच्छा लगेगा? हमारे पिताजी के समय में तो उम्र में उनसे बहुत छोटे लोग भी उन्हें 'भैया' ही कहते थे, 'काका' नहीं। देखा जाये तो हमारे बुजुर्ग कहलाने में इस अंग्रेजी का ही सबसे ज्यादा हाथ है।

साठ साल की उम्र में भी अयोध्या नरेश दशरथ बूढ़े नहीं हुये थे तभी तो राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। सौ पुत्रों में से निन्यान्बे पुत्रों की मृत्यु के बाद जब अपना समस्त राजपाट छोड़ के विश्वामित्र तपस्या करने के लिये अपनी पत्नी के साथ वन में गये तब भी वे बूढ़े नहीं हुये थे क्योंकि उसके बाद भी उनके और पुत्र हुये। ययाति तो बूढ़े होने का शाप पाने के बाद भी जवान बने रहे, अपने पुत्र पुरु की जवानी लेकर। फिर हमने तो साठ को स्पर्श भी नहीं किया है पर लगे आप हमे बूढ़ा कहने।

बहुत बेइंसाफी है ये। कितने आदमियों ने हमें बुजर्ग कहा कालिया?

एक ने सरदार, कहा नहीं बल्कि चिट्ठा चर्चा में पोस्ट कर दिया और उसके समस्त पाठकगण के साथ ही साथ अन्य हिन्दी ब्लोगर्स ने मान भी लिया।

हूँऽऽऽ, इसकी सजा मिलेगी। जरूर मिलेगी। अरे ओ सांभा, जरा मेरा कम्प्यूटर तो लाना। हम भी अपने ब्लोग में लिखेंगे "हमको जो कोई बूढ़ा समझे बूढ़ा उसका बाप"

उपसंहार

हमारे दो बुजुर्ग ( हालाँकि ये दोनों शायद बुजुर्ग कहलाना पसंद न करें )
पढ़कर एक अच्छा मसाला मिल गया लिखने के लिये। वैसे हम क्यों बुजुर्ग कहलाना पसंद नहीं करेंगे? करेंगे और जरूर करेंगे। हमें 'सींग कटा कर बछड़ों में शामिल हो कर' जग हँसाई नहीं करवाना है। और फिर आज के जमानें में तो लोग बुजुर्ग को बुजुर्ग कहना भी नहीं चाहते। तो जब हमें यह सम्मान मिला है तो उसे क्यों न लें? वैसे लिखने के लिये मसाला सुझाने के लिये चिट्ठा चर्चा और विवेक जी को धन्यवाद!

सूझ शब्द से याद आया कि एक मित्र ने हमसे पूछ लिया, "यार, तुम ये सब लिख कैसे लेते हो?"

हमने कहा, "बस कलम उठाता हूँ और जो कुछ भी सूझता है लिख देता हूँ।"
(मेरा तात्पर्य है कि कम्प्यूटर में तख्ती नोटपैड खोलता हूँ और जो कुछ भी सूझता है लिख देता हूँ।)

"तब तो लिखना बहुत सरल काम है।"

"हाँ, लिखना तो बहुत सरल है पर यह जो सूझना है ना, वही बहुत मुश्किल है।"

3 comments:

Anil Pusadkar said...

अरे साब अभी तो आप वो वाला अपने ज़माने का गाना,अभी तो मैं ज़वान हूं………,भी गा सकते हैं।

ambrish kumar said...

sahi kaha.

सौरभ कुदेशिया said...

saath saal bhi koi umar hoti hai??

aap logo ki baaton main na aaye, yeh sab to chidte hai aapke josh se :-)