Thursday, May 28, 2009

तरस जाओगे भीख देने के लिये यदि हम मांगने न आयें तो

"कुछ दे दो बाबा, भगवान आपका भला करेगा।" मेरे पास आकर वो बोला। अच्छा खासा जवान आदमी था, किसी प्रकार की शारीरिक अपंगता भी न थी।

"हट्टे-जवान आदमी होकर भी भीख मांगते शर्म नहीं आती। कुछ काम क्यों नहीं करते?" मैंने कहा।

"काम ही तो कर रहा हूँ। क्या भीख मांगना काम नहीं है? हम लोग यदि मांगने न आयें तो आप लोग भीख देने के लिये तरस जायेंगे। कुछ देना है तो दीजिये, फालतू उपदेश देकर मेरे धंधे का वक्त खोटा मत कीजिये।"

उसकी बातें सुनकर मेरे ज्ञान चक्षु खुल गये। मैंने सोचा ठीक ही तो कह रहा है। जेब से एक रुपये सिक्का निकाल कर कहा, ये लो।

उसने एक के सिक्के को तुच्छ नजरों से देखा और बोला, "एक रुपये से क्या होता है साहब आजकल? एक रुपये में एक सिगरेट तक तो नहीं मिलता। सिगरेट की बात छोड़िये, एक पानी पाउच तक तो नहीं आता, रायपुर की इस बढ़ी हुई गर्मी में दुकानदार लोग एक रुपये के पानी पाउच को दो रुपये से तीन रुपये तक में बेच रहे हैं, लोग यह तक नहीं जानते कि अधिक पैसे लेकर उन्हें महीनों पुराने स्टॉक का सड़ा पानी दिया जा रहा है। दस रुपये नहीं तो कम से कम पाँच रुपये तो दीजिये।"

मैं बोला, "देखो, एक रुपया लेना है तो लो नहीं तो चलते बनो।"

"वाह साहब, दोस्तों के साथ 'बार' में बैठ कर दारू पीने में तो हजार पाँच सौ रुपये खर्च कर दोगे। 'वेटर' को ही बीस पचीस रुपये टिप दे दोगे। पर हमें दस पाँच रुपये भी नहीं दे सकते।"

उसकी बातों में अब मुझे भी थोड़ा रस आने लगा था। मैंने कहा, "दारू चाहे अच्छा हो या बुरा पर वह कम से कम हमारे अंग में तो जाता है, वेटर भी अपनी सेवाएँ देता है। पर तुम्हें देने से भला क्या मिलेगा?"

"हमें देने से आपको पुण्य मिलेगा साहब जो परलोक में आपके काम आयेगा। और सबसे बड़ी बात तो हमारा आशीर्वाद मिलेगा जो अमूल्य है और इस लोक में आपकी बढ़ती करेगा। बस अब जल्दी से दस रुपये दे दीजिये।"

"देख भाई, एक रुपये ले कर चलता बन। और भी लोगों से मांगेगा तो दस पाँच रुपये बन ही जायेंगे।"

"एक रुपया तो मैं किसी से नहीं लेता साहब, मैं तो पुण्य और आशीर्वाद का व्होलसेल डीलर हूँ। देना है तो कम से कम पाँच रुपये दीजिये।"

"मैं चिल्हर पुण्य और आशीर्वाद लेना चाहता हूँ भाई थोक नहीं, जाओ तुम कोई और ग्राहक ढूंढो और मैं कोई चिल्हर दुकानदार देखूँगा।"

कुछ देर तो वो मुझे बड़ी हिकारत भरी नजर से देखता रहा फिर चला गया।

अब मेरे भी संस्कार कुछ ऐसे हैं कि वह एक रुपया मुझे काटने लगा, जब तक मैं उस रुपये को दान में न दे देता मुझे चैन नहीं मिलने वाला था। अब मैं इन्तिजार करने लगा कि कोई दूसरा भिखारी आये तो मैं उसे वो एक रुपया दे दूँ।

कुछ देर बाद मेरी मुराद पूरी हुई और एक दूसरा भिखारी मेरे पास आ कर बोला, "एक रुपया दे दीजिये साहब, गरीब भिखारी को।"

था तो वह भी पहले वाले जैसा ही याने कि हट्टा कट्टा जवान पर उसे काम करने के लिये कहने की हिम्मत अब मेरी न हुई क्योंकि मैं खुद ही अपने एक रुपये से पीछा छुड़ाना चाहता था। पर मेरे अचेतन में एकाएक पहले भिखारी के शब्द गूँज उठे और अनायास ही मेरे मुँह से निकल पड़ा, "एक रुपये से आजकल होता क्या है?"

वो बोला, "होता तो कुछ भी नहीं है साहब पर देने वाली की औकात देख कर मांगना पड़ता है।"

मुझे पहली बार अपनी औकात का पता चला। मैंने उसे एक रुपया थमाते हुये कहा, "तुम मांगने वालों की किस्मत खुल गई है कि रायपुर में एक जमाने से अठन्नी चवन्नी का चलन बन्द हो चुका है। नहीं तो एक आदमी से मुश्किल चवन्नी ही मिलती, मैं भी तुम्हें चवन्नी ही दिया होता।"

"तो क्या आप समझते हैं कि मैं आपकी चवन्नी ले लेता?" आश्चर्यमिश्रित स्वर में उसने मुझसे कहा, "नहीं साहब, मैं कभी भी आपकी चवन्नी नहीं लेता क्योंकि मैं अपने से कम औकात वालों से भीख नहीं लेता बल्कि उन्हें खुद ही कुछ दे दिया करता हूँ।"

एक रुपये से मेरा पीछा छूट चुका था इसलिये मैं खुश था और इसीलिये आगे बिना कुछ कहे सुने उसे चुपचाप चले जाने दिया।

10 comments:

समयचक्र said...

"काम ही तो कर रहा हूँ। क्या भीख मांगना काम नहीं है? हम लोग यदि मांगने न आयें तो आप लोग भीख देने के लिये तरस जायेंगे। कुछ देना है तो दीजिये, फालतू उपदेश देकर मेरे धंधे का वक्त खोटा मत कीजिये।"

क्या कहें ऐसे भिखारियो को भीख भी सीना ठोककर मांगते है . भीख मांगते है कि गुंडा टेक्स मांगते है समझ में नहीं आता है . ऐसे भिखारियो की संख्या भी दिनोदिन बढ़ रही है जो काम नहीं करना चाहते है .

Unknown said...

हा हा हा, मजेदार लेख… वैसे शायद आपने बनारस और उज्जैन के भिखारी नहीं देखे… वरना 2-4 पोस्ट और ठेल देते गुस्से के मारे… :)

admin said...

बहुत खूब। मजा आ गया।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Unknown said...

khoob hasaya bhaiji aapne, ab ke vah bhikhari nazar aaye to use ek rupya meri taraf se bhi tika dena .....main aapko ek rupya agle janam me vapas dedoonga HA HA HA HA

Anonymous said...

मज़ेदार!
संस्कारों की याद और उन्हें बनाये रखने में ऐसे व्यक्ति सहायक दिख रहे हैं। :-)

राज भाटिय़ा said...

अजी मजा आ गया, पिछले साल मै हरिदुवार गया ओर एक भिखारी को, ५० पेसे या एक रुप्या दिया, वो उलटा मेरे मुंह पर मार कर चला गया, सच मै लगता है अब भिखारियो का भी स्टेटस बढ गया है.
वेसे मै भिखारी को खाना तो खिला देता हुं, लेकिन नगद कभी नही देता.
धन्यवाद

Gyan Dutt Pandey said...

इस भिखारी की क्या कहें - कई बड़े बड़े देश भीख पर जिन्दा हैं और ठसक कर लेते हैं भीख!
अपने पडोसी देश को ही देख लें! :)

लोकेश Lokesh said...

मजा आ गया

Anil Pusadkar said...

वाह!मज़ा आ गया।

naresh singh said...

बहुत ही मजेदार पोस्ट है । हास्य व्यग्य के माध्यम से एक गम्भीर बात को उठाया है । मै तो बगैर काम कर वाये किसी को कुछ भी नही देता हू । एक झाड़ू रखता हू जो भी भिखारी आता है उसे पकडा के सफाई करने के लिये कहता हू । एक बार जो आ जाता है दुबारा नही आता है ।