Thursday, October 22, 2009

आप एक साथ दो दो कृष्ण कैसे हैं?...ये पूछा गया था मेरे इंटरव्ह्यू में ...

आप एक साथ दो दो कृष्ण कैसे हैं?

जी हाँ, यही प्रश्न किया गया था मुझसे मेरे इंटरव्ह्यू में। मैंने क्या उत्तर दिया था यह भी बताता हूँ पर मेरा ये साक्षात्कार थोड़ा सा रोचक था इसलिए सिलसिलेवार बताने में मजा आयेगा। बात सन् 1972 की है। मैं उस समय एम।एससी. (फिजिक्स) फायनल ईयर में था। एक मित्र के कहने से भारतीय स्टेट बैंक का रिटन टेस्ट दे दिया था और उसमें पास भी हो गया था।

अब साक्षात्कार देने लिए पहुँचा था मैं। मेरे ही साथ अध्ययनरत एक सहपाठी भी आया था उस साक्षात्कार में। उसे साक्षात्कार के लिए मुझसे पहले बुलाया गया।

उसके साक्षात्कार कक्ष से बाहर निकलने पर मैंने उससे पूछा, "यार दिलीप, क्या पूछा तेरे से वहाँ पर?"

उसने कहा, "नाम वाम पूछने के बाद पूछा कि अभी क्या करते हो और मेरे यह बताने पर कि फिजिक्स के एम.एससी. फायनल ईयर में पढ़ रहा हूँ उन्होंने झट से पूछ लिया 'बताओ इस्केप व्हेलासिटी क्या होता है?' भाई इस्केप व्हेलासिटी तो नवीं-दसवीं कक्षा में पढ़े थे इसलिए याद कहाँ से आता पर जैसे तैसे याद आ ही गया।"

साहब, पहली बार इंटरव्ह्यू देने के नाम से एक तो मैं पहले से ही नर्वस सा था और अब जब पता चला कि प्रश्न पूछने वाला फिजिक्स भी जानता है तो नवीं दसवीं में पढ़े बेसिक बातों को याद करने लगा जैसे कि 'आर्किमीडीज का सिद्धान्त क्या है', उसने "यूरेका यूरेका" क्यों कहा था आदि आदि इत्यादि।

खैर, मेरा भी नंबर आ गया और दरवाजे पर पहुँच कर मैंने 'मे आई कमिन सर' कह कर अन्दर आने की इजाजत मांगी। प्रेमपूर्ण जवाब मिला, "आइये, आइये, बैठिये।"

मेरे बैठ जाने पर पूछा गया, "क्या नाम है आपका?"

"जी, गोपाल कृष्ण अवधिया।"

"अरे भाई गोपाल तो कृष्ण ही होता है और कृष्ण तो खैर कृष्ण हैं हीं। तो आप एक साथ दो दो कृष्ण कैसे हैं?"

बिना एक सेकंड सोचे भी मैंने उत्तर दिया, "सर मैं दो कृष्ण नहीं, एक ही कृष्ण हूँ। मेरे नाम में कृष्ण संज्ञा है और गोपाल उस संज्ञा की विशेषता बताने वाला विशेषण याने कि गौओं का पालन करने वाला कृष्ण।"

मेरा उत्तर शायद उन्हे बहुत पसंद आया और फिर मुझसे कोई भी प्रश्न नहीं पूछा गया।

बाद में मुझे वह नौकरी मिल गई थी याने कि मेरा पहला इंटरव्हियु आखरी इंटरव्हियु भी बन गया।

आज ये बात वैसे ही याद आ गई तो शेयर कर दिया आप लोगों के साथ।

चलते-चलते

एक खोपड़ी खपाऊ प्रश्नः

आप अकेले किसी रास्ते से एक अनजान मंजिल तक जा रहे हैं। आपको बताया जाता है कि आगे जा कर यह रास्ता दो भागों मे बँट जायेगा जिसमें से एक तो आपको अपनी मंजिल तक पहुँचा सकता है और दूसरा मौत के मुँह में। याने कि एक सही रास्ता है और एक गलत। आपको यह भी बताया जाता है कि जहाँ पर रास्ता दो भागों में विभक्त होता है वहाँ पर दो आदमी दिखाई देंगे जिनमें से एक हमेशा सच बोलता है और दूसरा झूठ। सही रास्ता जानने के लिए आप उन दोनों में से किसी एक से सिर्फ एक प्रश्न पूछ सकते हैं (ध्यान रखें कि आप जिससे प्रश्न करेंगे उसके विषय में नहीं जानते कि वह सच बोलने वाला है या झूठ)।

तो क्या प्रश्न करेंगे आप?

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राम के राजतिलक की घोषणा - अयोध्याकाण्ड (1)

20 comments:

ghughutibasuti said...

रोचक इन्टरव्यू रहा। उत्तर बढ़िया दिया।
घुघूती बासूती

Mohammed Umar Kairanvi said...

पोस्‍ट से और आपकी ब्लागिंग से पता चलता है कि आपका भाग्‍य ने हमेशा सा‍थ दिया है, यह सवाल हमने वेद प्रकाश शर्मा के नाविल में पढा था, इसलिये इस बारे में खामोश रह लेते हैं, आप बताईये यह चुप रहना समझदारी है कि बेवकूफी,

Mishra Pankaj said...

रोचक इन्टरव्यू रहा। उत्तर बढ़िया

Mohammed Umar Kairanvi said...

अवधिया जी आपकी बातों से पता चलता है भाग्‍य की मार से कोई ना बच सका, कभी अच्‍छा भाग्‍य तो कभी बुरा बनकर यह सबके साथ रहा, खेर चलते चलते सवाल का जो जवाब मैंने आपको ईमेल से दिया किया वह ठीक नहीं है, यह मैंने शायद चंद्रकातता संतति में पढा था,

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

Aaadarniya Awadhiya ji.....

sansmaran bahut achcha laga..... kai cheezen .....hamein poori zindagi yaad rehtin hain....

bahut badhiya laga padh kar....

par sawaal to waaqai mein khopdi khapau hai.....

Unknown said...

कैरानवी जी,

देवकीनन्दन खत्री जी के सारे उपन्यास, चाहे वो तिलस्मी हो या न हों, मैंने पढ़े हैं। चन्द्रकान्ता सन्तति मेरा प्रिय उपन्यास है और मैंने उसे अनेक बार पढ़ा है। आखरी बार तो अभी एक डेढ़ महीने पहले ही। यह प्रश्न और उत्तर चन्द्रकान्ता सन्तति में नहीं है।

मुझे तो ये प्रश्न मेरे एक मित्र ने सन् 1984 में, जब मैं राजनांदगाँव में था, किया था।

Mohammed Umar Kairanvi said...

अवधिया जी,जल्‍दी का काम शैतान का, जल्‍दी में चंन्द्रकान्ता सन्तति लिख दिया उनके नाविल का नाम उनपर अर्थात देव कान्ता सन्तति था,
चलते चलते सवाल का जवाब में दे चुका, आप इमेल में मानचुके, मुझसे बडा कोई ज्ञानी ब्लागिंग में हो तो वह जवाब देके दिखाये, आप सप्‍लाई नहीं करना जवाब की, प्‍लीज

Mohammed Umar Kairanvi said...

आपने जो निम्‍न पंक्तियों में मेरी नालेज को माना है,यह हमेंशा मेरे लिये किसी पदक प्राप्‍त करने से भी अधिक खुशी देगा,,, वह इस लिये भी कि मेरा भतीजा जब नेकर सही पहनना नहीं जानता था, तब राष्‍ट्रपति पदक घर ले आया था, यकीन ना हों तो लिंक भेज दूं आनलाइन है,

अवधिया जी की गुजारिश कैरानवी कोः
''एक गुज़ारिश है कि आप(कैरानवी) अपने नालेज का फायदा लोगों को उठाने दे कर सबकी भलाई करें।''

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

दो कृष्ण की बात तो मजेदार है और इसे कहते हैं हींग लगे न फिटकरी साथ ही नौकरी भी लग गई

राज भाटिय़ा said...

मजे दार

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

आपकी त्वरित बुद्धि ने ही आपको साक्षात्कार में सफलता प्रदान की....

वैसे अवधिया जी मैं पिछले दो दिनों से यह देखकर बडा विस्मित हूँ कि क्या नीम में इतनी मिठास हो सकती है ?
वैसे सुना है कि दुनिया में चमत्कार भी होते हैं :)

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

interview रोचक लगा ...

Khushdeep Sehgal said...

अवधिया जी,
आजकल तो इंटरव्यू कुछ ऐसे होते हैं...जिससे रखना होता है उससे पूछा जाता है कि महाभारत का युद्ध किस-किस में हुआ...और जिसे नहीं रखना होता, उससे पूछा जाता है कि कौरव कितने भाई थे...अगर सही उत्तर मिल जाता है...फिर पूछा जाता है...सभी 100 कौरवों के नाम बताओ...


जय हिंद...

Unknown said...

खुशदीप जी,

सही कह रहे हैं आप, 100 कौरवों के नाम तो तो छोटी बात है, द्वितीय विश्वयुद्ध में मारे गये सारे लोगों के नाम तक पूछ लिया जाता है। :-)

kishore ghildiyal said...

apne interview ke sansmarann ko baantne ka bahut bahut shukriya

http/jyotishkishore.blogspot.com

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

अवधिया जी, सुन्दर जबाब दिया आपने साक्षात्कार में !

हाँ, खोपडी खपाऊ प्रश्न का सीधा जबाब यही रहेगा कि दोनों में से किसी एक को पूछने से पहले और दो रहे पर पहुँचने से पहले ही एक जोर की अआवाज लगावो "अरे वो हमेशा झूट बोलने वाले इधर आ " क्योंकि सच बोलने वाला तो आएगा नहीं, क्योंकि वह झूट नहीं बोलता और फिर ..... पूछ लो सवाल सच बोलने वाले से !

Ashish Shrivastava said...

हम पुछेँगे कि यदि मै दूसरे व्यक्ति से पुछूँ की मौत का रास्ता कौनसा है तो वह कौनसा रास्ता बतायेगा? जो भी रास्ता बताया जायेगा उसके उल्टे रास्ते पर चल देँगे!
सच बोलने वाला जो रास्ता बातायेगा वह गलत होगा क्योँकि वह सच बोल रहा है| सत्यवादी असत्यवादी का उतर वैसे ही बतायेगा जो गलत होगा|
झूठ बोलने वाला जो रास्ता बतायेगा वह गलत होगा क्योँकि वह झूठ बोल रहा है| असत्यवादी सत्यवादी के उत्तर को उल्टा कर के बतायेगा जो गलत ही होगा|

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

Aadarniya Awadhiya ji.......... meri yeh nayi post dekhiyega....

"आइये जानें क्यों यूरोपीय व कुछ एशियाई देश शून्य (ज़ीरो) को 'ओ' (O) बोलतें हैं?

dhanyawaad

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

और विजेता रहे इस पहेली के श्री श्रीवास्तव जी ! बहुत सुन्दर !!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

इस खोपडी खपाऊ प्रश्न से मिलता जुलता ही एक सवाल अगर आपको याद हो तो आज से करीब चार-पांच साल पहले " विकारल और गबराल" सीरिअल जो टीवी पर चलता था उसमे भी पूछा गया था..... जब दो गार्ड दो गेटों पर बैठे होते है........
खैर एक ऐसा ही मिलता जुलता सवाल यह भी है जो हम स्कूली दिनों में आपस में पूछते थे ;

अंधे की बीबी को, लंगडे ने किस(चुम्बन) किया और गूंगे ने देख लिया .... अब बतावो कि गूंगा अंधे को कैसे बताएगा कि उस लंगडे ने क्या किया उसकी बीबी के साथ !