"'जार्ज पंचम की स्तुति' का महत्व अधिक है या 'भारत माता की वन्दना' का?"मुझे समझ में नहीं आता कि गीत और गान में क्या अन्तर है? मेरी मन्दबुद्धि के अनुसार तो दोनों का अर्थ एक ही होता है। फिर हमारे देश में एक 'राष्ट्रगीत' और एक 'राष्ट्रगान' क्यों है? यदि किसी विद्वान मित्र को गीत और गान का अन्तर ज्ञात है तो मुझे भी बताने की कृपा करे। और यदि दोनों में अन्तर है तो कौन बड़ा है और कौन छोटा? क्या 'जनगणमन' बीस है और 'वन्देमातरम्' उन्नीस है? 'जार्ज पंचम की स्तुति' का महत्व अधिक है या 'भारत माता की वन्दना' का?
जब राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान दो हो सकते हैं तो 'राष्ट्रीय खेल' और 'राष्ट्रीय क्रीड़ा' क्यों नहीं हो सकते। राष्ट्रीय खेल हॉकी को तो अब अपने देश में कोई पूछता नहीं तो क्यों न क्रिकेट को राष्ट्रीय क्रीड़ा बना दिया जाये? इस प्रकार से अंग्रेजों के इस खेल को सम्मानित करके हम और भी बड़े अंग्रेज भक्त हो जायेंगे और हो सकता है कि सारे क्रिकेट प्रेमियों का वोट भी इस पुनीत कार्य करने वाले को मिले।
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10 comments:
नहीं अवधिया जी, राष्ट्रीय क्रीडा : गिल्ली डंडा और कबड्डी !
अवधिया जी जन गण मन को राष्ट्रगीत इसलिये कहा जाता है कि इसे बाकायदा "राष्ट्र्गीत ऐक्ट " बनाकर राष्ट्र्गीत नाम दिया गया है । अत; बाकी सब राष्ट्र गान राष्ट्रीय गीत आदि हो सकते हैं राष्ट्रगीत एक ही रहेगा ।
अवधिया जी क्या 'जनगणमन' बीस है और 'वन्देमातरम्' उन्नीस है? 'जार्ज पंचम की स्तुति' का महत्व अधिक है या 'भारत माता की वन्दना' का?आज कल के हालात देख कर तो लगता है कि 'जार्ज पंचम की स्तुति' का महत्व अधिक है
धन्यवाद
फिर तो राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीय पताका भी अलग अलग होने चाहिए :)
क्षमा करें शरद कोकास जी ने शायद भूल वश 'जन गण मन' को राष्ट्रगीत बता दिया है । जहाँ तक मैं समझता हूँ । भारत का राष्ट्रगीत "वन्दे मातरम्" ही है और "जन गण मन " राष्ट्र गान ।
रहा सवाल "गीत और गान " में अन्तर का तो गीत शाश्वत होता है , स्थायी होता है अपने देश काल और समाज के संपूर्ण परिवेश की सांस्कृतिक व साहित्यिक झांकी होता है जबकि गान केवल गेय होता है । उदाहरण के लिए गोपाल दास नीरज की रचना "कारवाँ गुज़र गया" गीत है और समीर की रचना "टन टना टन टन टन टारा , चलती है क्या नौ से बारा " गान है । इसीलिए कवियों के गीतों को गीत कहा जाता है और फिल्मी गानों को गाना कहा जाता है ।
वन्दे मातरम् से कोई भी कार्यक्रम शुरू भी हो सकता है और समाप्त भी लेकिन जन गण मन केवल समापन के समय होता है । जैसे मुख्य अतिथि कभी भी बोल सकता है लेकिन अध्यक्ष केवल अंत में ही बोलता है ।
वही अन्तर है जो राष्ट्रभाषा व राजभाषा में है .............उदाहरण के रूप में हिन्दी अभी भी हमारे देश की राजभाषा के रूप में अधिकृत है राष्ट्रभाषा के रूप में नहीं ।
वही अन्तर है जो आत्मा व मन में है , वही अन्तर है जो तृप्ति और सन्तुष्टि में है, वही अन्तर है जो प्रार्थना और निवेदन में है..... जानवर और पशु में है, आदमी और इंसान में है तथा अतिथि और मेहमान में है........
और भी कई हैं लेकिन आज मैं गुरु पर्व के कारण थोड़ा पिताजी की स्मृतियों में रहना चाहता हूँ ..इसलिए इतने से ही काम चला लीजिये.......
वैसे सब बताने का ठेका क्या मैंने अकेले ने लिया है ? और लोग भी तो आयेंगे अपनी अपनी टिप्पणी लेकर उनके लिए कुछ छोडूं कि नहीं .........हा हा हा हा
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