Monday, February 1, 2010

लोग आगे बढ़ते हैं पर मैं पीछे जाता हूँ

जमाना तेजी के साथ आगे बढ़ रहा है। होड़ लगी हुई है आज तेजी से आगे बढ़ने के लिये! ऐसा कोई भी नजर नहीं आता जो पीछे जाना तो क्या पीछे झाँक कर देखना भी चाहे। आगे बढ़ना है याने आगे बढ़ना है, चाहे इसके लिये दूसरे को पीछे धकेलना ही क्यों ना पड़े। पर मैं हूँ कि पीछे ही पीछे चला जाता हूँ। अपने मोबाइल में जब एमपी3 गाने सुनता हूँ तो मुझे वो पुराना ग्रामोफोन और लाख का तवा याद आता है जिस पर डायफ्रॉम में लगी सुई खिसकते रहती थी और भोंपू से कुन्दनलाल सहगल जी की मधुर आवाज निकल कर मुग्ध किया करती थी।

बाबुल मोरा नैहर छूटो जाय ....

जब मैं स्कूल में पढ़ता था तो मेरे घर में एक ग्रामोफोन हुआ करता था। हम बच्चों को बड़ी मुश्किल से इजाजत मिला करती थी ग्रामोफोन सुनने के लिये। जमाना उन दिनों में भी आगे बढ़ रहा था पर आज की तरह से तेज गति से नहीं बल्कि चींटी की गति से। जमाना थोड़ा आगे बढ़ा तो ग्रामोफोन की जगह ले लिये रेकॉर्ड प्लेयर ने। हमारे यहाँ भी एक रेकॉर्ड प्लेयर खरीद कर ले आया गया जिस पर एसपी और एलपी रेकॉर्ड बजते थे। ग्रामोफोन और उसके लाख के तवे घर के कचराखाने में ऐसे गये कि बाद में फिर कभी दिखे ही नहीं। कुछ सालों के बाद रेकॉर्ड प्लेयर भी उसी कचरेखाने में चला गया क्योंकि एसपी और एलपी रेकॉर्ड्स की जगह कैसेटों ने लिया और रेकॉर्ड प्लेयर की जगह कैसेट प्लेयर ने। कैसेट प्लेयर की उम्र तो रेकॉर्ड प्लेयर से भी कम निकली क्योंकि सीडी प्लेयर ने उस पर विजय पा लिया। सीडी प्लेयर को भी जल्दी ही विदा लेना पड़ा क्योंकि डीव्हीडी प्लेयर का जमाना आ गया। और अब आज एमपी3 प्लेयर का जमाना है। हम अपने मोबाइल पर कभी भी और कहीं भी गाने सुन रहे हैं और व्हीडियो देख रहे हैं। पर मैं हूँ कि मोबाइल में जब एमपी3 गाने सुनते सुनते ग्रामोफोन तक पहुँच गया। किसी ने शायद मुझ जैसों के लिये ही लिखा हैः

जीने की तमन्ना में मरे जा रहे हैं लोग
मरने की आरज़ू में जिये जा रहा हूँ मैं

6 comments:

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

वाह अवधिया जी-आपने पुराने जमाने की याद दिला दी। उस समय का तवा रील वाला टेपरिकार्डर भी होता था। जिसमे हम लोग बचपन मे स्कुल की कविता गाकर टेप करते थे और सुनकर आनंदित होते थे।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

जो भी कहो लेकिन Old is gold !

Arshad Ali said...

papa ne pahle is gramophon ki kahani sunai thi bilkul aap ke hin tarah.

aapne ek purani manoranjan ke sadhan ko yaad dilakar papa ke kahi baaton ko aur majboot kar diya.

sundar aalekh.

डॉ महेश सिन्हा said...

आया है मुझे फिर याद वो जालिम गुजरा जमाना बचपन का .......

डॉ टी एस दराल said...

मोबाइल पर ऍम पी ३ गाने ---अवधिया जी आगे तो आप भी बढ़ रहे हैं।
फिर ग़म कहे का।

शरद कोकास said...

अजायब घरों को चाहिये कि इस यंत्र को अभी से सुरक्षित कर लें ।