Tuesday, February 9, 2010

पैसे की मैं बारिश कर दूँ गर तू हो जाये मेरी

शीर्षक पढ़ते ही यही सोचा ना आपने कि "बुड्ढा स्साला सठिया गया है जो इस उमर में भी किसी को अपना बनाने की बात कर रहा है"। तो हम आपको बता दें कि हमारा अब इस उमर में किसी को अपना बनाने जैसा हमारा कोई विचार नहीं है। अपनी बुढ़िया से ही हम इतने परेशान हैं कि किसी और को अपना बनाने की सोच भी नहीं सकते। और फिर पैसों की बारिश करने की बात तो कोई नवयुवक ही कर सकता है जो समझता है कि मैं तो सारी दुनिया को पाल सकता है। किसी जमाने में हम भी यही समझा करते थे कि हम सारी दुनिया को पाल सकते हैं पर अब तो यही सोचते हैं कि काश! सारी दुनिया मिलकर हमें पाल ले!

दरअसल हम आटो से आ रहे थे तो उस आटो में जो गाना बज रहा था उसमें ऐसा ही कुछ कहा जा रहा था कि "पैसे की मैं बारिश कर दूँ गर तू हो जाये मेरी"। इन बोलों को सुनकर लगा कि भाई जमाना बहुत बदल गया है। हमारे जमाने में तो किसी को अपना बनाने के लिये चांद-सितारे तोड़ लाने की बात कही जाती थी पर आज के जमाने में किसी को अपना बनाने के लिये पैसे की बारिश करना ज्यादा जरूरी है। चांद-सितारों का भला माशूका क्या करेगी? पुराने जमाने की माशूकाएँ भोली-भाली होती थीं और सुन्दर चांद-सितारों के लालच में आ जाया करती थीं पर आज के जमाने की माशूकाएँ तो अच्छी तरह से जानती है कि ये चांद-सितारे तो बड़े-बड़े पिंड मात्र हैं जो सिर्फ दूर से सुन्दर दिखाई देते हैं पर वास्तव में बहुत कुरूप हैं। और यदि चांद सितारों की आवश्यकता पड़ ही गई तो पैसे से खरीद ही लेंगे। यही कारण है कि आज के जमाने में माशूका के लिये पैसे की बारिश करनी जरूरी है। वैसे यह बात भी सही है कि संसार में सिर्फ पैसा ही सब कुछ नहीं है, पैसे से अधिक महत्वपूर्ण वस्तुएँ भी हैं। पर मुश्किल यह है कि उन महत्वपूर्ण वस्तुओं को प्राप्त करने के लिये पैसे की ही जरूरत होती है।

बात चाहे चांद सितारे तोड़ने की हो या पैसे की बारिश की, इन्हीं बातों को कह कर आदमी ऐसा फँसता है कि जिन्दगी भर नहीं निकल पाता।

चलते-चलते

गरीब लकड़हारे की वो कहानी तो आपने जरूर ही सुनी होगी जिसकी कुल्हाड़ी तालाब में गिर जाती है। उसी लकड़हारे का पुनर्जन्म आज के जमाने में हो गया। पर रहा वह गरीब लकड़हारा ही। एक बार वह लकड़ी काटने के लिये अपनी पत्नी के साथ जंगल में गया तो उसकी पत्नी फिसल कर तालाब में डूब गई। लकड़हारा के प्रार्थना पर इस बार भी भगवान उसकी सहायता के लिये आ गये।

भगवान ने उसकी पत्नी को तालाब से निकालने के लिये डुबकी लगाया और ऐश्वर्या रॉय को लेकर बाहर निकले और पूछा, "क्या यही है तेरी पत्नी?"

लकड़हारे ने खुश होकर कहा, "हाँ भगवान! यही है।"

इस पर भगवान ने कहा, "पिछले जनम में कितना ईमानदार था तू और इस जनम में बेईमान हो गया।"

लकड़हारा बोला, "ऐसी बात नहीं है प्रभु! पिछली बार पहले आपने सोने की कुल्हाड़ी निकाली थी फिर चांदी की और आखरी में मेरी लोहे की कुल्हाड़ी निकाली थी और अन्त में आपने मुझे तीनों कुल्हाड़ी दे दी थी। इस बार आपने पहले ऐश्वर्या रॉय को निकाला है, मेरे नहीं कहने पर फिर अमिषा पटेल को निकालते फिर आखरी में मेरी घरवाली को निकालते। अब आप सोचिये कि यदि खुश होकर आप मुझे तीनों को ही दे देते तो मेरा क्या होता? एक घरवाली को तो मैं चला नहीं पाता, तीन तीन को कैसे चलाता?"

14 comments:

Randhir Singh Suman said...

nice

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

अवधिया साहब , आप गाने का सही अर्थ नहीं समझ पाए लगता है :) ऐक्चुअवली जिसने यह गाना लिखा , पहले वह हरिद्वार में गंगा घात पर एक पण्डे के साथ काम करता रहा होगा, लोग दान में १-२-३-५-१०-२०-२५ और ५० पैसे के सिक्के दिया करते थे ! जो अब उसके घर में बोरियां भर-भर के पड़े है, क्या करेगा बेचार उन सिक्को का तो उसने सोचा कि महबूबा पर ही इन्हें बरसा दूं , इम्प्रेस हो जायेगी ! हा-हा-हा-हा-हा-हा....!

Unknown said...

भाई साहब आपके जमाने मै प्रेमिकाये भोली होती थी
प्रेमी कह्ता था कि चान्द तारे तोद के ला दुन्गा वो मान लेती थी. अब प्रेमिकाये व्यवहार निपुण हो गयी है. वो इतनी ही डिमान्ड रखती है कि चल मोभाइल रीचार्ज करा दे, आइसक्रीम खिला दे, सिनेमा दिखा दे और बहुत ही प्रेक्टिकल निकली तो कहेगी १ किलो आलू और १ किलो प्याज दिला दे सस्ते हो तो.

एक और बदलाव आया है
राहत इन्दोरी को सुनकर लडके भी व्यवहार निपुण हो गये है. राहत कह्ते है
प्यार दोनो की जरूरत है चलो इश्क करे
ये मुनाफ़े की तिज़ारत है चलो इश्क करे

Anonymous said...

किसी जमाने में हम भी यही समझा करते थे कि हम सारी दुनिया को पाल सकते हैं पर अब तो यही सोचते हैं कि काश! सारी दुनिया मिलकर हमें पाल ले!

बहुत खूब अवधिया जी!!

arvind said...

हा-हा-हा-हा-हा-हा....!बहुत खूब
krantidut.blogspot.com

अजित गुप्ता का कोना said...

चरित्र, ईमानदारी, वफा आदि गुण तो अब रहे नहीं बस केवल बेईमानी से कमाया हुआ पैसा ही पास है तो उसी की बारिश तो अब होगी ना? बड़ा अच्‍छा लिखा है आपने।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

पर मुश्किल यह है कि उन महत्वपूर्ण वस्तुओं को प्राप्त करने के लिये पैसे की ही जरूरत होती है।


बिलकुल सही कहा आपने.... आजकल की माशूकाएं.... अगर मिलेंगी तो यह भी देखतीं हैं कि आपके हाथ में कौन सा मोबाइल सेट है.... प्रीपेड है या पोस्टपैड.... कार कौन सी....है....मारुती ८०० या फिर बलेनो... कहतीं हैं कि बाइक तो आजकल दूधवाला भी रखता है.....

बहुत ज़माना खराब है....

Saloni Subah said...

it's a great post
---
EINDIAWEBGURU

संजय बेंगाणी said...

चाँद सितारे तोड़ लाने का वादा छलावा होता था. जमाना 'प्रेक्टिकल' होने का है. प्रेमिका पैसा चाहती है. बाकि चिजें इससे आ जाती है :)

डॉ टी एस दराल said...

हा हा हा ! चालाक लकडहारा ।

मनोज कुमार said...

रोचक पोस्ट।

विवेक रस्तोगी said...

यह भी खूब रही।

वाणी गीत said...

"मैं बारिश कर दू पैसे की जो तू हो जाये मेरी " को सुनते हुए पुराने ज़माने का गीत " एक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताजमहल सारी दुनिया को मुहब्बत की निशानी दी है " ...अब आजकल कोई ताजमहल तो बनवाता नहीं क्युकी एक के मरने से पहले ही दूसरी आ जाती है ...और वो इतनी बेवकूफ भी नहीं होती कि ताजमहल बनवाने के लिए अपनी जान दे दे ... तो फिर आस बनाये रखने के लिए पैसे बरसाने की बात ही की जा सकती है ....(यह सिर्फ एक हास्य है ...युवा पीढ़ी खुद पर कटाक्ष नहीं समझे ..:)...)

अजय कुमार झा said...

जब भी छिडता था जिक्र का
मेरा इक दोस्त कुछ यूं फ़रमाया करता था ,
मेरे दोस्त आज करते हैं सभी मोहब्बत ,
पहले ये इश्क ,.....हो जाया करता था

अजय कुमार झा