Monday, March 8, 2010

तरबूज तो मीठे ही होते हैं ... यदि नहीं होते तो सैक्रीन का इंजेक्शन लगाकर उन्हें मीठा बना दिया जाता है

वाह बन्धु! आप जानकारी दे रहे हैं महानदी के तरबूजों के बारे में कि वे बहुत मीठे होते हैं। अरे भाई! तरबूज चाहे महानदी के हों या और किसी नदी के, वे तो मीठे ही होते हैं, यदि नहीं भी होते तो सैक्रीन का इंजेक्शन लगाकर उन्हें मीठा बना दिया जाता है।

किन्तु बन्धु! आज हमें बहुत अधिक निराशा हुई है आपके पोस्ट को पढ़कर। आप हमारे छोटे भाई हैं और हमें आप पर गर्व भी बहुत है क्योंकि आपने आज तक बहुत सारी अच्छी-अच्छी प्रविष्टियाँ लिखी हैं। पर आज हमें लग रहा है कि हमारा गर्व चूर-चूर हो गया है। हिन्दी तथा संस्कृत सहित और भी बहुत सी भाषाओं पर अधिकार एवं ज्ञान का विशद भण्डार रखने वाले अपने छोटे भाई से हमें इतनी तुच्छ जानकारी वाले पोस्ट की किंचित मात्र भी अपेक्षा नहीं थी।

भला ये भी कोई जानकारी हुई कि महानदी के किनारे तरबूज की खेती हो रही है। अरे भाई तरबूज की खेती तो प्रायः देश भर की नदियों के रेत में होती है। महानदी के विषय में बताना ही था तो यह बताया होता कि इस पवित्र सरिता को छत्तीसगढ़ में पुण्य सलिला गंगा की भाँति ही कलुषहारिणी माना जाता है। आप यह जानकारी दे सकते थे कि जिस प्रकार से प्रयाग में पुण्य-सलिला गंगा के साथ यमुना और सरस्वती का त्रिवेणी संगम होता है उसी प्रकार छत्तीसगढ़ के राजिम में पवित्र महानदी के साथ पैरी और सोढ़ुर नदियों का त्रिवेणी संगम होता है। आप अच्छी तरह से जानते हैं कि महानदी का प्राचीन नाम चित्रोत्पला है, प्राचीनकाल में इसे महानन्दा एवं नीलोत्पला के नाम से भी जाता था। आपने ही हमें बताया था कि महानदी का उल्लेख मत्स्य पुराण, ब्रह्मपुराण तथा महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथो में भी पाया जाता है। तो क्या आपने अपने पोस्ट में इतनी अच्छी जानकारी देना उचित नहीं समझा?

आप बता सकते थे कि महानदी छत्तीसगढ़ तथा उड़ीसा अंचल की सर्वाधिक लंबी नदी है। इसका उद्गम छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में स्थित सिहावा नामक पर्वत श्रेणी से हुआ है। महानदी का प्रवाह दक्षिण दिशा से उत्तर दिशा की ओर है। सिहावा से निकलकर महानदी बंगाल की खाड़ी तक निरन्तर लगभग 855 कि.मी. प्रवाहित होती है और अन्ततः बंगाल की खाड़ी में विलीन हो जाती है। महानदी के तट पर धमतरी, कांकेर, चारामा, राजिम, चम्पारण, आरंग, सिरपुर, शिवरी नारायण आदि छत्तीसगढ़ में प्रमुख स्थान हैं और सम्बलपुर, कटक आदि उड़ीसा के। पैरी, सोंढुर, शिवनाथ, हसदेव, अरपा, जोंक, तेल आदि महानदी की प्रमुख सहायक नदियाँ हैं। कटक नगर से लगभग सात मील पहले महानदी का डेल्टा शुरू हो जाता है जहाँ से यह अनेक धाराओं में विभक्त हो जाती है। रुद्री, गंगरेल और हीराकुंड महानदी पर बने प्रमुख बाँध हैं।

उपरोक्त सभी बातें जानते हुए भी आपने अपने पोस्ट में नहीं बताया इससे हमें बहुत ही दुःख हुआ है।

हम आप पर अपना अधिकार समझते हैं इसलिये ये सब कह दिया हमने; और हमें विश्वास है कि भविष्य में आप अच्छे पोस्ट लिख कर हमारे गर्व को बनाये रखेंगे।

8 comments:

Anil Pusadkar said...

अकेला ललित नही हम सभी छत्तीसगढिया ब्लागर आपसे छोटे हैं और आपका अधिकार है गलतीयां निकालना और उसे सुधारना जिस तरह आज अपनी पोस्ट लिख कर सुधार दी है।आभारी हैं आपके अवधिया जी और सौभग्यशाली भी जो आप जैसा वरिष्ठ हमारे ब्लाग परिवार मे शामिल हैं।

Dr.Rakesh said...

बाकि तो सब ठीक है पर महानदी ओड़िसा के बलांगीर से प्रवाहित नहीं होती और ओड़िसा का नाम अब गैर-जानकार ही उड़िसा>ओरिस्सा आदि कहते हैं..

Unknown said...

गलती की जानकारी देने के लिये धन्यवाद डॉ. राकेश जी! महानदी के तट से बलांगीर का नाम हटाकर भूल सुधार कर दिया गया है।

जहाँ तक ओड़ीसा नाम का सवाल है, अंग्रेजी हिज्जों के कारण बहुत से नामों का अलग-अलग समय में अलग-अलग उच्चारण करने का प्रचलन रहा है। उदाहरण के लिये अंग्रेज अवध को Oudh लिखा करते थे, जबलपुर को Jabbalpore और लखनऊ को Lucknow लिखा करते थे। ऐसे और भी बहुत से उदाहरण मिल सकते हैं। इन अंग्रेजी हिज्जों के कारण ही प्रायः भ्रम की स्थिति बन जाया करती है। हम तो शुरू से उड़ीसा ही पढ़ते और सुनते आये हैं।

राज भाटिय़ा said...

अवधिया जी आज की पोस्ट समझ मै नही आई, लेकिन दोबारा पढेगे शाम को.कही तरबूज की बात तो कही कुछ गडबड की बात.... धन्यवाद

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

वाह्! ये जानकारी आपने बहुत ही बढिया तरीके से प्रदान की...जिससे कि ललित जी वाली पोस्ट अब जाकर पूर्णता को प्राप्त हुई।

अजित गुप्ता का कोना said...

किस पोस्‍ट के जवाब में तरबूज खाने से हमें वंचित कर महानदी का भूगोल पढाया गया? वैसे जानकारी सटीक थी।

डॉ टी एस दराल said...

ललित जी की कमी को पूरा कर आपने एक अच्छे मित्र होने का परिचय दिया है।
बढ़िया लगी यह जानकारी।

राज भाटिय़ा said...

अब समझ मै आई सारी कहानी, अवधिया जी बिना सोचे समझे भी कुछ लिखना भी गलत है, फ़िर आज तो तरबुज बालो से भी बात हो गई :)