Sunday, May 16, 2010

पोस्ट का शीर्षक धाँसू ना हो तो उसे पढ़ेगा कौन?

अपने पोस्ट को पढ़वा लेना हँसी खेल नहीं है। बहुत मेहनत करनी पड़ती है इसके लिये। यह बात मैं नामी-गिरामी ब्लोगरों के लिये नहीं, बल्कि अपने जैसे साधारण ब्लोगरों के लिये कह रहा हूँ। नामी-गिरामी ब्लोगरों के तो पोस्ट आने से पहले ही पाठक आ धमकते हैं पर हम जैसे साधारण ब्लोगरों को तो पाठकों को आकर्षित करना पड़ता है।

जैसे मदारी साँप-नेवले की लड़ाई दिखाने की बात करके भीड़ इकट्ठा करता है और आखिर में ताबीज बेचने लगता है उसी तरह से हमारे जैसे ब्लोगरों को भी पाठक जुटाने के लिये कोई धाँसू शीर्षक खोजना पड़ता है ताकि हम अपना पोस्ट रूपी ताबीज बेच सकें। यदि हम अपने पोस्ट का शीर्षक "अक्षय तृतीया" या "आज अक्षय तृतीया है" जैसा कुछ रखते तो क्या आप आते इसे पढ़ने के लिये? नहीं आते ना!

लेकिन अब आ ही गये हैं तो हम जानते हैं कि आप में से कुछ लोग आगे भी हमें झेल लेंगे। कहने का मतलब यह है कि पोस्ट तो है हमारा अक्षय तृतीया पर किन्तु शीर्षक है कुछ और, जो आपको खींच कर ला सके।

तो लीजिये अब झेलिये थोड़ा सा अक्षय तृतीया के बारे में भीः
  • मान्यता है कि वैशाख मास के शुक्ल पक्ष तृतीया के दिन किये गये किसी भी शुभ कार्य का अक्षय फल मिलता है इसीलिये इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है।
  • अक्षय तृतीया के दिन शुभ कार्य करने के लिये मुहूर्त नहीं देखा जाता क्योंकि यह तिथि ही स्वयंसिद्ध मुहूर्त है। इस दिन विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषणों या जमीन-जायजाद, वाहन आदि की खरीददारी जैसे किसी भी मांगलिक कार्य करने के लिये पंचांग में शुभ मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होती।
  • अक्षय तृतीया के दिन से ही वर-विवाह करने का आरम्भ होता है। भारतवर्ष के अनेक क्षेत्रों में इस दिन गुड्डे गुड्डियों के विवाह रचाने का चलन है।
  • भविष्य पुराण के अनुसार सतयुग और त्रेतायुग का आरम्भ अक्षय तृतीया के दिन से ही हुआ था।
  • भगवान परशुराम का जन्म अक्षय तृतीया के दिन ही हुआ था।
  • भारत के प्रमुख तीर्थ बद्रीनाथ तथा केदारनाथ के कपाट इसी दिन से खोले जाते हैं।
  • अक्षय तृतीया के दिन ही महाभारत के युद्ध का समापन हुआ था।
  • छ्तीसगढ़ में अक्षय तृतीया को 'अकती' त्यौहार के रूप में मनाते हैं। इसी दिन से खेती-किसानी का वर्ष प्रारम्भ होता है। इसी दिन पूरे वर्ष भर के लिये नौकर लगाये जाते हैं। शाम के समय हर घर की कुँआरी लड़कियाँ आँगन में मण्डप गाड़कर गुड्डे-गुड्डियों का ब्याह रचाती हैं।

23 comments:

Gyan Darpan said...

सही लिखा आपने ! पोस्ट का शीर्षक तो धांसू ही होना चाहिए |

शेखावत वंश और शेखावाटी प्रेदश के प्रवर्तक महाराव शेखा जी का निर्वाण दिवस भी आज अक्षय तृतीया के दिन ही है |

डॉ टी एस दराल said...

आभार अवधिया जी , आपने तो अनायास ही बड़ी महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान की है।
सही है , लेख का शीर्षक तो आकर्षक होना ही चाहिए ।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

Yah Style bhee pasand aai avadhiya sahaab, majbooran saaree jaankaariyan padhnee padee aur gyan vardhan kiyaa.

Unknown said...

sahi kaha guru............

main bhi

aisa hi kiya karta hoon..ha ha ha

सूर्यकान्त गुप्ता said...

एकदम सही। और यदि पोस्ट अपनी बोली मे लिखी गई हो तो कोई पूछ्ने वाला नही। बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय । हम अवश्य नजर डालते हैं आपके द्वारा लिखी ग्यान वर्धक बातों पर। अभी भी छत्तीसगढी बोली को भाषा का स्वरूप देने के लिये बहुत कुछ करना है।

राजकुमार सोनी said...

अपना तो यह विचार है कि जब पोस्ट धांसू होती है तो शीर्षक भी धांसू बन ही जाता है। बाकी अक्षय तृतीया के बारे में अच्छी जानकारी दी आपने।

कडुवासच said...

... हा हा हा हा हा हा हा हा हा ...!!!

कडुवासच said...

... जबरदस्त !!!

कडुवासच said...

जैसे मदारी साँप-नेवले की लड़ाई दिखाने की बात करके भीड़ इकट्ठा करता है और आखिर में ताबीज बेचने लगता है...

... बहुत खूब ... लाजवाब ... अदभुत ... छा गये अवधिया जी !!!

कडुवासच said...

तो लीजिये अब झेलिये थोड़ा सा अक्षय तृतीया के बारे में भीः ....

... ये भी गजब रही ... आखिर पढवा कर ही दम लोगे!!!

शिवम् मिश्रा said...

बढ़िया आलेख ! बहुत बढ़िया लगा आप का शीर्षक !!

Shah Nawaz said...

बिलकुल सही कहा आपने, शीर्षक से विषय का अंदाजा होता है. वैसे भी पाठकगण की नज़र सबसे पहले शीर्षक पर ही पढ़ती है, लेख के विषय में तो लेख के खुलने पर ही पता चलता है. दरअसल शीर्षक पुरे लेख का एक छोटा सा आइना भर होता है. वैसे आपका लेख और शीर्षक दोनों अलग-अलग हैं, :) चलिए फिर भी अक्षय तृतीया के बारे में अच्छी जानकारी देकर अच्छा किया है आपने.

योगेन्द्र मौदगिल said...

ठीक सै.... लेबल तो चौक्खा हो तो मजा आवै ना... अवधिया जी..

Anonymous said...

बहुत खूब

36solutions said...

अकती तिहार के झउहा झउहां बधई.

बने बताए गुरूदेव आजे गांव ले फोन आये रहिसे 'कांटा खूंटी बिंन डारे हावन, खातू पलोए नइअन, भूतिहार खोजत हावन'.

फ़िरदौस ख़ान said...

बहुत ख़ूब...

Khushdeep Sehgal said...

दुकान के अंदर लाने का स्टाइल अच्छा है...

जय हिंद...

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

बने केहेस गा अवधिया जी
पैकिंग बने रही त सरहा डबल रोटी घला बेचा जाथे

अक्ति तिहार के गाड़ा गाड़ा बधई

जय हो

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

हिन्दी ब्लागिंग में ये फार्मूला कम ही फिट बैठता है.क्यों कि यहाँ तो चाहे शीर्षक भी न लिखा जाए तो भी जो नियमित पढने वाले सज्जन मित्र हैं, उन्हे तो आना ही है...हाँ सामान्य पाठकों की दृ्ष्टि से तो ये ठीक है....बाकी अक्षय तृ्तीया के बारे में आपकी जानकारी बहुत बढिया रही.......

राज भाटिय़ा said...

अजी क्या पते की बात कही आप ने, ओर साथ मै बहुत अच्छी जानकारी मुफ़्त मै. धन्यवाद

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

आपने सही लिखा है ... इस बात का साबुत यही है कि इतने लोग इस पोस्ट पर आ गए ... वैसे जानकारी बहुत अच्छी दी है आपने
कहते हैं कि बंगाली कैलेंडर के हिसाब से कई साल बाद इस बार फिर अक्षय तृतीया पहला जेठ को आया है ...

Ra said...

आपकी पोस्ट का शीर्षक भी तो धांसू ही है ....मैं आपसे सहमत हूँ ... धांसू शीर्षक से नए पाठक जरूर आते है ...जानकारी भी अच्छी लगी ..शुक्रिया

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

जानकारी अच्छी दी है आपने....अब तो इसलिए भी इस दिन के बारे में जानकारी जुटा रहे हैं क्योंकि आज ही के दिन २ वर्ष पहले हमारी बिटिया ने जन्म लिया था....
इसी कारण उसका नाम भी रखा है अक्षयांशी

जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड