Monday, June 27, 2011

एक ही समय में मैं सुकृत्य भी करता हूँ साथ ही साथ कुकृत्य भी

मैं सुन्दरकाण्ड का पाठ शुरू करता हूँ पर पाठ शुरू करने के बाद पाठ करते करते ही मैं यह भी सोच रहा हूँ कि कॉलेज में जब मैं पढ़ता था तो वह मेरी सहपाठिनी....

क्या कर क्या रहा हूँ मैं?

सुन्दरकाण्ड का पाठ करके सकृत्य?

या विवाहित होते हुए भी किसी अन्य का, जिसका किसी अन्य के साथ विवाह हो चुका है, खयाल करके कुकृत्य?

वास्तव में हम हम ऐसे बहुत से काम काम करते हैं जिनके विषय में हमें पता ही नहीं होता कि हमने वे काम कैसे कर लिया। उदाहरण के लिए आप आफिस जाने के लिए अपने घर से बाइक स्टार्ट करते हैं। बाइक पर सवार होने के बाद चलना शुरू करते ही आपका मस्तिष्क आपके किसी घरेलू समस्या या आगे घूमने जाने की योजना या इसी प्रकार की किसी अन्य बात के विषय में सोचना शुरू कर देता है। घर से आफिस पहुँचने तक आपके सोचने का सिलसिला चलते ही रहता है। रास्ते में चौराहा आता है और आपकी बाइक मुड़ जाती है, सामने कोई आता है और आपका पैर ब्रेक लगा देता है, ट्रैफिक की लाल बत्ती सामने आने पर बाइक उसके हरे होते तक रुकी रहती है और बत्ती के हरा होते ही फिर चल पड़ती है, ये सारे काम होते रहते हैं पर आपका सोचने का सिलसिला अनवरत रूप से चलते रहता है, एक पल के लिए भी नहीं रुकता। जब आप आफिस पहुँचते हैं तो आपकी बाइक स्टैंड में जाकर रुक जाती है और तब आपके सोचने का सिलसिला टूटता है। अब आप यह सोचने लगते हैं कि अरे मैं तो आफिस पहुँच गया। आप यह तो समझ पाते हैं कि आप सोचने का काम कर रहे हैं किन्तु आप यह जरा भी नहीं समझ पाते कि आप आफिस कैसे पहुँच गए, कैसे बाइक कहीं मुड़ा, कहीं रुका, कहीं पर ब्रेक लगा और आफिस में आकर कैसे स्टैंड पर खड़ा हो गया।

अब आप बताइए कि रास्ते भर तो आप सोचने का ही काम करते रहे हैं तो फिर बाइक को चलाने का काम किसने किया?

वास्तव में सोचने का और बाइक चलाने का दोनों ही काम आपने ही किया है किन्तु आपको स्वयं नहीं पता होता कि आपने बाइक कैसे चला लिया। सही बात तो यह है कि हमारे मस्तिष्क को अलग भाग इन दोनों कामों को अलग-करता है, आपका चेतन (conscious) मस्तिष्क सोचने का कार्य करता है और अचेतन (semi conscious) मस्तिष्क बाइक चलाने का।

हमारा यह अचेतन (semi conscious) मस्तिष्क हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हर उस कार्य को पूरा करता है जिसे शुरू तो हमारा चेतन (conscious) मस्तिष्क करता है और शुरू करने के बाद दूसरी ओर भटक जाता है। ऊपर के उदाहरण में भी बाइक चलाने का काम शुरू करने के बाद हमारा चेतन (conscious) मस्तिष्क भटक गया और दूसरी बात सोचने का काम करने लगा किन्तु उसके द्वारा शुरू किए गए कार्य को अचेतन (semi conscious) मस्तिष्क ने पूरा कर दिया। अचेतन मस्तिष्क चेतन के भटक जाने पर उसके शुरू किए गए काम को पूरा तो करता ही है पर इसके अलावा और भी बहुत सारे कार्य करता है। अनायास ही अनमना हो जाना या खुशी महसूस होना आदि भी अचेतन की की क्रियाएँ हैं। चौबीस घंटों में एक क्षण भी यह अचेतन आराम नहीं करता।  नींद में सो जाने पर यह हमें सपने दिखाता है, जागृत अवस्था में जब कोई अन्य हमारे पास न हो तो यह हमें स्वयं से बातें भी करवाता है। इसीलिए तो राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी ने कहा हैः

कोई पास न रहने पर भी, जन-मन मौन नहीं रहता;
आप आपकी सुनता है वह, आप आपसे है कहता।

अस्तु, यह अचेतन कई बार हमें अपने विचारों में इतना तल्लीन करा देता है कि हम किसी स्थान पर होते हुए भी वहाँ पर नहीं होते।

चेतन अत्यन्त चंचल होता है इसीलिए हमेशा भटकता रहता है। मैं न तो चेतन को रोक पाता हूँ और न ही अचेतन को। मेरा जरा भी तो नियन्त्रण नहीं है इन दोनों पर। चेतन और अचेतन मुझे जैसा चलाना चाहते हैं वैसा ही मैं चलता हूँ। मैं इन्हें अपने अनुसार नहीं चला पाता। शायद हिन्दू दर्शन में इन्हें भी इन्द्रिय की ही संज्ञा दी गई है तथा इन पर नियन्त्रण करने का उपदेश दिया गया है। ध्यान, योग आदि वे विधियाँ हैं जिनके द्वारा इन्हें नियन्त्रित किया जा सकता है।

7 comments:

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

सुंदरकाण्ड के पाठ के चमत्कार हवे।
एक बेर मा मनखे हं दू ठीक बूता कर लेथे।:)

arvind said...

badhiya lekh.....lekin avadhiya saaheb sahpaathini ko yaad karanaa bhi sukritya hi hai....

Anil Pusadkar said...

sahi kaha avadhiya ji,man par niyantran aasan nahi hai

प्रवीण पाण्डेय said...

मन मोरा बार बार भटकाय।

Rahul Singh said...

फकीरा चल चला चल.

अजित गुप्ता का कोना said...

सही है ऐसा बहुत बार होता है।

Arunesh c dave said...

मुझे तो कई बार पता नही चलता कि सफ़र कैसे कटा सोचते सोचते ही घर पहुंच जाता हूं बाकी पूजा पाठ मे ध्यान बनाये रखना वाकई मुश्किल होता है