Friday, July 15, 2011

गुरु तो रहे नहीं, गुरु पूर्णिमा रह गया

कहाँ रहे अब गुरु? वे गुरु जो अपने शिष्यों को प्राण से भी प्यारे मानते थे, उन्हें जीवन का सद्मार्ग दिखाते थे, आत्म-निर्भर बनाते थे, प्रत्येक परिस्थिति में अडिग रहना सिखाते थे। मेकॉले द्वारा लादी हुई शिक्षा नीति ने आश्रम प्रथा तथा गुरुकुलों को विनष्ट कर डाला और उनके नष्ट होने से वे गुरु भी लुप्त हो गए। उनका स्थान ले लिया प्रोफेसरों, लेक्चररों, टीचरों और शिक्षा कर्मियों ने जो आत्मनिर्भरता सिखाने के बजाय विद्यार्थियों के भीतर नौकरी करके दूसरों पर निर्भर रहने की भावना को बढ़ावा देते हैं तथा उन्हें सर्टिफिकेट, डिप्लोमा इत्यादि दिलाने की व्यवस्था करते हैं ताकि वे ऊँची से ऊँची नौकरियाँ प्राप्त कर सकें।

गुरु लुप्त हो गए किन्तु गुरु पूर्णिमा का अस्तित्व बना ही रहा क्योंकि लाख कोशिश करने के बावजूद भारत को लूटने वाले भारतीय के भीतर से भारतीयता को नहीं मिटा पाए।

चलते-चलते

जा के गुरु है आंधरा, चेला निपट निरंध।
अंधे अंधा ठेलिया, दोना­ कूप परंत॥

10 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

सभी कुयें में जा रहे हैं।

एक बेहद साधारण पाठक said...

गुरु लुप्त हो गए किन्तु गुरु पूर्णिमा का अस्तित्व बना ही रहा क्योंकि लाख कोशिश करने के बावजूद भारत को लूटने वाले भारतीय के भीतर से भारतीयता को नहीं मिटा पाए।


...... बेहद सुन्दर

एक बेहद साधारण पाठक said...

गुरुपूर्णिमा के पावन पर्व पर सभी मित्रों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ

Rahul Singh said...

बदलते समय में शायद कोई नया बेहतर ट्रेंड आ रहा होगा.

Anonymous said...

गुरुपूर्णिमा के पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ!

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

पीड़ा को शब्द दे दिये.

Khushdeep Sehgal said...

अब सारे ही गुरु घंटाल हैं...

जय हिंद...

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

अवधिया जी,

आरज़ू चाँद सी निखर जाए,
जिंदगी रौशनी से भर जाए,
बारिशें हों वहाँ पे खुशियों की,
जिस तरफ आपकी नज़र जाए।
जन्‍मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ!
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ब्‍लॉग समीक्षा की 23वीं कड़ी।
अल्‍पना वर्मा सुना रही हैं समाचार..।

निर्मला कपिला said...

अपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें।

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

गोपाल-कृष्ण जी के जन्म दिवस पर अरुण की शुभ कामनायें.