Saturday, November 26, 2011

पोस्ट प्रकाशित हुई नहीं कि टिप्पणी आ गई

बात अप्रैल 2008 की है। हिन्दी ब्लोगिंग में कदम रखे अधिक समय नहीं हुआ था मुझे, या यों कहें कि अधिकतर लोग मुझे जानते ही नहीं थे। अस्तु, एक दिन मैंने एक पोस्ट लिखी और ज्योंही "प्रकाशित करें" वाला बटन दबाया त्योंही मेरे गूगल टॉक ने सन्देश दिया कि कोई मेल आया है। मैंने मेल खोला तो देखा कि अभी-अभी मैंने जो पोस्ट प्रकाशित किया है उसमें कोई टिप्पणी आई है। याने कि पोस्ट प्रकाशित हुई नहीं कि टिप्पणी आ गई! बहुत बड़ी उपलब्धि थी वो मेरे लिए।

पर उस टिप्पणी ने क्या-क्या गुल खिलाया और मैं कैसे परेशान हुआ यह मैं ही जानता था। अपने उस अनुभव को शेयर करने के लिए मैंने तत्काल फिर एक पोस्ट लिखा जिसे कि पुनः प्रस्तुत कर रहा हूँ क्योंकि उस रोचक पोस्ट को बहुतों ने पढ़ा ही नहीं होगा या जिन्होंने पढ़ा होगा वे भूल चुके होंगे।

तो वह पोस्ट था -
प्रकाशित होना पोस्ट का और आना टिप्पणी का

अब देखिये ना, मैंने ब्लोगर में एक नया पोस्ट कर के प्रकाशित किया नहीं कि फटाक से मेरे गूगल टॉक ने संदेश दिया कि एक नई टिप्पणी आई है। मन प्रसन्नता से झूम उठा, अरे भाई हूँ तो मैं भी साधारण ब्लोगिया ही, टिप्पणी के बारे में जान कर भला कैसे खुश नहीं होउंगा? और इस बार तो बात ही विशेष थी। विशेषता यह थी कि पोस्ट प्रकाशित हुआ नहीं कि टिप्पणी आ गई। जैसे कोई इंतिजार करते हुये बैठा था कि कब ये पोस्ट प्रकाशित हो और कब मैं टिप्पणी करूँ। जब स्कूल में पढ़ता था तो हिन्दी के सर ने अतिशयोक्ति अलंकार का उदाहरण बताया था - 'हनूमान के पूँछ में लगी पाई आग। लंका सिगरी जल गई गये निशाचर भाग॥' उदाहरण से अच्छी प्रकार से समझ में आ गया था कि अतिशयोक्ति अलंकार क्या होता है। पर पोस्ट प्रकाशित होते ही टिप्पणी आने पर जरा सा भी नहीं लगा कि यह अतिशयोक्ति हो सकती है। और लगे भी क्यों भाई, भले ही अच्छा न लिख पाउँ पर समझता अवश्य हूँ कि मैं भी एक लिख्खाड़ हूँ। अब पोस्ट प्रकाशित होते ही टिप्पणी आ जाने पर यही तो सोचूँगा न कि अब तो मैं बहुत अच्छा लिख्खाड़ हो गया हूँ, भला यह क्यों सोचने लगा कि यह अतिशयोक्ति टाइप की कुछ चीज हो सकती है?

यह भी विचार नहीं आया कि मेरे पोस्ट में तो प्रायः टिप्पणी आती ही नहीं। और आये भी क्यों? मैं खुद तो टिप्पणी करने के मामले में संसार का सबसे आलसी प्राणी हूँ, कभी किसी के ब्लोग में जा कर टिप्पणी नहीं करता। तो भला क्या किसी को क्या पागल कुत्ते ने काटा है कि मेरे ब्लोग में आ कर टिप्पणी करेगा? यह बात अलग है कि दूसरों के ब्लोग में टिप्पणियों को देख कर कुढ़ता अवश्य हूँ। सोचता हूँ कि इतने साधारण लेख पर इतनी सारी टिप्पणियाँ और मेरे सौ टका विशेष लेख पर एक भी नहीं। खैर, यह सोच कर स्वयं को तसल्ली दे लेता हूँ कि अभी लोगों की बुद्धि इतनी विकसित नहीं हुई है कि मेरी बात को समझ पायें। जब सही तरीके से समझेंगे ही नहीं तो भला टिप्पणी क्या करेंगे।

ऐसा भी नहीं है कि मेरे ब्लोग में कभी टिप्पणी आती ही न हो। आती है भइ कभी-कभार चार छः महीने में। अब संसार सहृदय व्यक्तियों से बिल्कुल खाली तो नहीं हो गया है। किसी सहृदय व्यक्ति को तरस आ जाता है कि बेचारा चार छः महीनों से बिना टिप्पणियों के ही लिखा चला आ रहा है, चलो आज इसके ब्लोग पर भी टिप्पणी कर दें।

हाँ तो मैं कह रहा था कि पोस्ट प्रकाशित हुआ नहीं कि टिप्पणी आ गई।


Warning! See Please Here

अरे! यह भी कोई टिप्पणी हुई? ये तो कोई चेतावनी है। टिप्पणीकर्ता 'यहाँ देखो' कह कर शायद यह बता रहा है कि मैंने किसी और स्थान से लेख चोरी कर के अपने ब्लोग में पोस्ट कर दिया है। सरासर चोरी का इल्जाम लग रहा है यह तो। प्रसन्नता काफूर हो गई।

मैंने भी सोचा कि चलो देखें तो सही कि ये कहाँ जाने को कह रहा है, आखिर मैंने चोरी किस जगह से की है। क्लिक कर दिया भैया। अब क्लिक कर देने पर जो शामत आई है उसके बारे में मत ही पूछो तो अच्छा है। न जाने कौन कौन से साइट्स खुलने लगे। चेतावनी पर चेतावनी - आपके कम्प्यूटर में ये वायरस आ गया है, वो वायरस आ गया है, हमसे मुफ्त स्कैन करवायें। मुफ्त स्कैन करवाने पर वायरसों की एक लम्बी फेहरिस्त आ गई जिसे दूर करने के लिये उनके एन्टीवायरस को खरीदने की सलाह दी गई थी। मैने तो केवल एक बार क्लिकिआया था बन्धु, यकीन मानिये कि एक बार क्लिक करने के बाद हिम्मत ही नहीं हुई दुबारा क्लिक करने की। पर न जाने कैसे बिना क्लिक किये ही वो साइट अपने-आप खुल जाती थी कुछ कुछ देर में और मेरे कम्प्यूटर का मुफ्त स्कैन होने लगता था। लगता था कि कोई भूत घुस आया है मेरे कम्प्यूटर में। अब बन्धु मेरे, बड़ी मुश्किल से उस भूत को भगा पाया मैं।

बड़ी कोशिश करके भूत को भगाने के बाद थोड़ा धीरज बंधा और थोड़ी शान्ति मिली। अब मन में विचार आया कि वो टिप्पणी तो अभी भी मेरे ब्लोग में है। यदि मेरे पाठकों ने उस पर क्लिक कर दिया तो? जरूर वह भूत उन्हें भी तंगायेगा। यह टिप्पणी तो बीच रास्ते में केले का छिलका बन कर पड़ा हुआ है, कोई फिसल कर गिर न जाये। इस टिप्पणी को मिटाना ही पड़ेगा।

अब भइ, इससे पहले कभी कोई टिप्पणी मिटाई नहीं थी। अब कभी-कभार आये हुए टिप्पणी को मैं मिटाने क्यों लगा - क्या मैं इतना बेवकूफ़ हूँ कि अपने ब्लोग से टिप्पणी को मिटा दूँ। हाँ तो टिप्पणी मिटाने का मुझे कुछ अनुभव ही नहीं था। मैंने ब्लोगर के एक-एक हिस्से को छान मारा पर टिप्पणी मिटाने के उपाय के बारे में कहीं कुछ न मिला। निदान मैं ब्लोगर के फोरम में गया और ढ़ूँढ़-ढ़ाँढ़ कर टिप्पणी मिटाने का उपाय प्राप्त कर ही लिया और टिप्पणी को मिटा दिया

तो साहब किया टिप्पणीकर्ता सॉफ्टवेयर ने और भरना मुझे पड़ा।

7 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

:):) टिप्पणी आई तो भी भुगतना पड़ा ..रोचक और जानकारी देती घटना ..

प्रवीण पाण्डेय said...

रोचक..

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

सब 'मायाजाल' है।

रजनीश तिवारी said...

rochak lekh...

अजित गुप्ता का कोना said...

अवधिया जी, हम तो आपके आलेख पर अक्‍सर टिप्‍पणी करते ही हैं। यह सच है कि जो पठनीय है, उसे अवश्‍य पढ़ा जाता है और जब पढ़ लिया जाता है तो टिप्‍पणी भी की जाती है। मैं तो कम से कम इस फेर में नहीं पड़ती कि कोई मेरी पोस्‍ट पर टिप्‍पणी कर रहा है या नहीं। बस मुझे पठनीय लगना चाहिए, मैं उसे अवश्‍य पढ़ती हूँ, क्‍योंकि ह‍म तो यहाँ पढने के लिए ही आए हैं।

BS Pabla said...

हा हा हा

हमने भी भुगता था कभी
फिर समझ आया था कि वह सब तो फ्लैश और एनीमेशन का खेल था पाठक को डरा कर अपनी वेबसाईट से कुछ डाउनलोड करवाने का

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

जय हो गुरुदेव