Tuesday, February 17, 2015

आदिगुरु शंकराचार्य रचित शिवाष्टकम्


आज महाशिवरात्रि के अवस पर प्रस्तुत है आदिगुरु शंकराचार्य रचित शिवाष्टकम् -

तस्मै नम: परमकारणकारणाय दिप्तोज्ज्वलज्ज्वलित पिङ्गललोचनाय।
नागेन्द्रहारकृतकुण्डलभूषणाय ब्रह्मेन्द्रविष्णुवरदाय नम: शिवाय॥1॥

कारणों के भी परम कारण, दीप्त उज्ज्वल एवं पिङ्गल नेत्रों वाले, सर्पों के हार-कुण्डल आदि से विभूषित, तथा ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्रादि को भी वर देने वालें शिव जी को मैं नमस्कार करता हूँ।

श्रीमत्प्रसन्नशशिपन्नगभूषणाय शैलेन्द्रजावदनचुम्बितलोचनाय।
कैलासमन्दरमहेन्द्रनिकेतनाय लोकत्रयार्तिहरणाय नम: शिवाय॥2॥

निर्मल चन्द्र कला तथा सर्पों द्वारा भूषित एवं शोभायमान, शैलेन्द्रजा के मुख से चुम्बित लोचनों वाले, कैलास एवं महेन्द्रगिरि निवासी तथा जो त्रिलोक के दु:खों को हरने वाले शिव जी को मैं नमस्कार करता हूँ।

पद्मावदातमणिकुण्डलगोवृषाय कृष्णागरुप्रचुरचन्दनचर्चिताय।
भस्मानुषक्तविकचोत्पलमल्लिकाय नीलाब्जकण्ठसदृशाय नम: शिवाय॥3॥

स्वच्छ पद्मरागमणि के कुण्डलों से किरणों की वर्षा करने वाले, अगर तथा चन्दन से चर्चित तथा भस्म से विभूषित, प्रफुल्लित कमल और जूही से सुशोभित, नीलकमलसदृश कण्ठवाले शिव जी को मैं नमस्कार करता हूँ।

लम्बत्स पिङ्गल जटा मुकुटोत्कटाय दंष्ट्राकरालविकटोत्कटभैरवाय।
व्याघ्राजिनाम्बरधराय मनोहराय त्रिलोकनाथनमिताय नम: शिवाय॥4॥

पिङ्गलवर्ण जटाओं के मुकुट धारण करने से जो उत्कट जान पड़ते वाले, तीक्ष्ण दाढ़ों के कारण अति विकट और भयानक प्रतीत होने वाले, व्याघ्रचर्म धारण करने वाले अति मनोहर, तथा तीनों लोकों के अधीश्वर को भी अपने चरणों में झुकाने वाले शिव जी को मैं नमस्कार करता हूँ।

दक्षप्रजापतिमहाखनाशनाय क्षिप्रं महात्रिपुरदानवघातनाय।
ब्रह्मोर्जितोर्ध्वगक्रोटिनिकृंतनाय योगाय योगनमिताय नम: शिवाय॥5॥

दक्षप्रजापति के महायज्ञ को ध्वंस करने वाले, अत्यन्त विकट त्रिपुरासुर दानव का वध करने वाले तथा ब्रह्मा के दर्पयुक्त ऊर्ध्वमुख (पञ्च्म शिर) को काट देने वाले शिव जी को मैं नमस्कार करता हूँ।

संसारसृष्टिघटनापरिवर्तनाय रक्ष: पिशाचगणसिद्धसमाकुलाय।
सिद्धोरगग्रहगणेन्द्रनिषेविताय शार्दूलचर्मवसनाय नम: शिवाय॥6॥

संसार मे घटित होने वाले समस्त घटनाओं में परिवर्तन करने में सक्षम, राक्षस, पिशाच से ले कर सिद्धगणों द्वरा घिरे रहने वाले, सिद्ध, सर्प, ग्रह-गण एवं इन्द्रादि से सेवित, तथा बाघम्बर धारण करने वाले शिव जी को मैं नमस्कार करता हूँ।

भस्माङ्गरागकृतरूपमनोहराय सौम्यावदातवनमाश्रितमाश्रिताय।
गौरीकटाक्षनयनार्धनिरीक्षणाय गोक्षीरधारधवलाय नम: शिवाय॥7॥

जिन्होंने भस्म लेप द्वारा श्रृंगार किया हुआ है, जो अति शान्त एवं सुन्दर वन का आश्रय करने वालों (ऋषि, भक्तगण) के आश्रित (वश में) हैं, जिनका श्री पार्वतीजी कटाक्ष नेत्रों द्वारा निरीक्षण करती हैं, तथा जिनका गोदुग्ध की धारा के समान श्वेत वर्ण है, उन शिव जी को मैं नमस्कार करता हूँ।

आदित्य सोम वरुणानिलसेविताय यज्ञाग्निहोत्रवरधूमनिकेतनाय।
ऋक्सामवेदमुनिभि: स्तुतिसंयुताय गोपाय गोपनमिताय नम: शिवाय॥8॥

सूर्य, चन्द्र, वरूण और पवन द्वारा सेवित, यज्ञ एवं अग्निहोत्र धूम निवासी, ऋक-सामादि, वेद तथा मुनिजन द्वारा स्तुत्य, नन्दीश्वर द्वारा पूजित, गौओं का पालन करने वाले शिव जी को मैं नमस्कार करता हूँ।

No comments: