Saturday, October 6, 2007

धान के देश में - 28

लेखक स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया
(छत्तीसगढ़ के जन-जीवन पर आधारित प्रथम आंचलिक उपन्यास)

- 28 -

नागपुर में महेन्द्र, जानकी और सदाराम हनुमान जी के मन्दिर में बैठे बातें कर रहे थे। सहसा महेन्द्र ने कहा, "मैं एक जरूरी काम से अधारी से मिल कर आता हूँ और जानबूझ कर जानकी और सदाराम को छोड़ कर वह चला गया। उस समय सदाराम को बड़ा विचित्र अनुभव हो रहा था। जानकी को एकान्त में पाकर भी वह उससे अपने हृदय की बात कहने में हिचकिचा रहा था। महेन्द्र जब तक साथ था, तब तक जानकी कुछ न कुछ बात कर रही थी पर अब वह भी चुप थी। साहस बटोर कर सदाराम बोला, "जानकी, मैं तुमसे एक बात कहना चाहता हूँ।"
"क्या?" जानकी ने पूछा।
सदाराम के हृदय की धड़कन बढ़ गई थी। वह कुछ न कह सका। चुप ही रहा। तब जानकी ने कहा, "बोलो ना, क्या कहना चाहते हो?"
सदाराम ने एकदम सरलता से कहा, "मैं तुमसे ब्याह करना चाहता हूँ।"
सुनकर जानकी एकदम गम्भीर हो गई। उसने गहरी दृष्टि से सदाराम के चेहरे को देखा। दोनों की चारों आँखों में आँसू छलछला आये थे। थोड़ी देर तक वे एक दूसरे को शान्त निर्निमेष दृष्टि से देखते रहे। फिर मंत्र से प्रेरित की भाँति सदाराम ने कहा, "तो तुम भी मुझसे प्रेम करती हो।"
"करती नहीं हूँ - हो गया है, पर मैं अपने मचलते हुये प्रेम को सदा के लिये हृदय में ही दबाये रख कर तुम्हारे चरणों की पूजा करना चाहती थी। ब्याह की जरूरत नहीं समझती थी।"
"पर ऐसा क्यों।? जब हम एक दूसरे को चाहते हैं तब मिलने में बाधा क्यों?"

"सुनेंगे" जानकी बोली और कहती ही गई, "ब्याह इसलिये नहीं कि मैं विधवा हूँ।"
जानकी की बात सुनकर सदाराम ऐसा चौंक उठा मानो आसमान से गिर गया हो।
"लेकिन मैं पति के घर कभी नहीं गई। जिस दिन मेरा ब्याह हुआ उसी रात मेरा पति अचानक दिल की धड़कन बन्द हो जाने से मर गया।"
सदाराम चुप ही था। इसी बीच महेन्द्र भी आ गया। दोनों को खामोश देख कर उसने पूछा और सब बातें मालूम कर लेने के बाद मुस्कुरा कर बोला, "तो इसका मतलब हुआ कि तुम बाल विधवा हो। जब विधवा की शादी हो सकती है तब बाल विधवा यह कैसे समझ सकती है कि उसे ब्याह की जरूरत नहीं है। तुम दोनों शादी करने के लिये निश्चय करके तैयार रहो और सब कुछ मेरे ऊपर छोड़ दो। मैं ठीक कर लूँगा।"
महेन्द्र की बात सुन कर जानकी चुप, स्तब्ध और शान्त रही जिसका मतलब ही था कि वह मौन स्वीकृति दे रही थी। सदाराम को तो जैसे स्वाति नक्षत्र का जल ही मिल गया था।
दूसरे दिन महेन्द्र ने जानकी के पिता से जानकी और सदाराम के ब्याह के बारे में बात की। जानकी के पिता को इसमें कोई आपत्ति नहीं थी। तय किया गया कि परीक्षा हो जाने के बाद बैसाख में शादी हो। अब महेन्द्र के सामने एक नई चिन्ता खड़ी हो गई कि इस शादी के लिये राजवती को भी राजी करना होगा। यह सब कुछ हो जाने के बाद दोनों परीक्षा की तैयारी में जुट गये। परीक्षा समाप्त होने के बाद इतवारी की बस्ती में जागृति की चलने वाली योजना का भार जानकी के कंधों पर रख कर वे दोनों रायपुर वापस जाने की तैयारी में व्यस्त हो गये।
(क्रमशः)

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