Tuesday, March 16, 2010

हमारा पोस्ट ब्लोगवाणी में टॉप पर कैसे आता है?

आदमी तिकड़मी न हो तो किस काम का? हम भी बहुत बड़े तिकड़मी हैं और अपने पोस्ट को ब्लोगवाणी में टॉप में लाकर छोड़ते हैं। हमारे लिये तो चुटकी बजाने जैसा है यह काम तो। अब आप पूछेंगे कि कैसे?

वो ऐसे कि सबसे पहले तो हम अपने आकाओं के द्वारा तैयार किये गये मैटर को लेकर एक पोस्ट लिखते हैं। सही बात तो यह है कि हम जो कुछ भी लिखते हैं वो हमारे महान आकाओं का ही लिखा हुआ होता है। हमारे ये आका लोग भले ही अपने सम्प्रदाय के विषय में न जानें पर इनका काम है दूसरों की संस्कृति में टाँग घुसेड़ना और विकृत विचार प्रस्तुत करना। तो हम बता रहे थे कि अपने पोस्ट में हम एक सम्प्रदायविशेष के लोगों को बताते हैं आपके सम्प्रदाय के ग्रंथों और हमारे सम्प्रदाय के ग्रंथों में सभी बातें एक जैसी हैं। क्या हुआ जो आपके ग्रंथ किसी और भाषा में हैं और हमारे किसी और भाषा में, विचार तो दोनों में एक ही जैसे हैं। हम बताते हैं कि आपकी मान्यताओं को हम भी मानते हैं। अपनी बात को सिद्ध करने के लिये हम उनकी किसी आस्था पर तहे-दिल से अपनी भी आस्था बताते हैं। उनके ग्रंथों को महान बताते हैं। ऐसा करने के पीछे हमारा उद्देश्य मात्र चारा डालना होता है। भाई सीधी सी बात है कि, भले ही हमें उनकी आस्था-श्रद्धा से हमें कुछ कुछ लेना देना ना हो पर, यदि हम हम उनको दर्शायें कि हम उनकी बातों को मानते हैं तो वे भी हमारी बातों को मानने लगेंगे। और वो यदि हमारी बातों को मानेंगे तो मात्र दिखावे के लिये नहीं बल्कि सही-सही तौर पर मानेंगे। ये दिखावा-सिखावा तो वो लोग जानते ही नहीं हैं। एक बार यदि वे हमारी बातों को मानना शुरू कर देंगे, फिर तो हमारी ओर खिंचते ही चले आयेंगे। यह बात अलग है कि उनमें कुछ लोग एक नंबर के उजड्ड हैं और अनेक प्रकार के तर्क-वितर्क कर के हमारे पोस्ट को महाबकवास साबित करने पर तुले रहते हैं। पर हम भी कम नहीं हैं, हम उनके इस व्यवहार से भीतर ही भीतर उबलते तो बहुत हैं, पर ऊपर से बड़ी विनम्रता दिखाते हुये अपनी बात पर अड़े रहते हैं कि आप आप नहीं हो बल्कि आप हममें से ही एक हो। जब हममें से ही हो तो आकर मिल जाओ हममें।

क्या कहा? विषयान्तर हो रहा है?

हाँ भाई, अपनी बात कहने के चक्कर में हम भूल गये थे कि हम अपने पोस्ट को ब्लोगवाणी में टॉप में लाने वाली बात बता रहे थे। तो चलिये उसी बात पर आगे बढ़ते हैं।

अपने पोस्ट को पब्लिश करते ही हम स्वयं उसमें टिप्पणी करते हैं।

उसके बाद हम बेनामी बन जाते हैं और अपने पोस्ट में टिप्पणी करते हैं।

फिर अपने मित्रों को फोन करके कहते हैं कि हमारा पोस्ट प्रकाशित हो गया है, आप उसमें टिप्पणी करो।

एक मित्र टिप्पणी करता है।

हम टिप्पणी करके उस मित्र को जवाब देते हैं।

उसके बाद हम फिर बेनामी बनकर टिप्पणी करते हैं।

फिर स्वयं बनकर बेनामी जी की टिप्पणी का जवाब देते हैं।

एक बार फिर से हम बेनामी बनकर टिप्पणी करते हैं।

अब बेनामी जी को धन्यवाद देना जरूरी है इस लिये फिर से हम स्वयं बनकर टिप्पणी करते हैं।

फिर हमारा दूसरा मित्र टिप्पणी करता है।

हम टिप्पणी करके अपने मित्र को धन्यवाद देते हैं।

फिर हम एक टिप्पणी करके लोगों से आग्रह करते हैं कि हमारा यह पोस्ट एक बहुत अच्छा पोस्ट है और आकर इसे पढ़िये।

इस बीच में दूसरे सम्प्रदाय वाले कुछ लो फँस जाते हैं हमारे झाँसे में और अपनी टिप्पणी करते हैं।

हम उन सभी टिप्पणी करने वालों को अलग-अलग टिप्पणी करके धन्यवाद देते हैं।

इस प्रकार से सिलसिला चलते चला जाता है, चालीस पचास टिप्पणियाँ हो जाती हैं और इन टिप्पणियों के दम पर हमारा पोस्ट ब्लोगवाणी के टॉप में पहुँच जाता है।

अब ब्लोगवाणी थोड़े ही समझता है कि हमने अपने पोस्ट में टिप्पणियों की संख्या कैसे बढ़ाई है! इस प्रकार से हम ब्लोगवाणी के इस कमजोरी का भरपूर फायदा उठाते हैं और अपने पोस्ट को टॉप पर ले आते हैं।

हैं ना हम महातिकड़मी?

32 comments:

Anonymous said...

आखिर जाल में फंस ही गए ना महातिकड़मी :-)

Bhavesh (भावेश ) said...

काफी अच्छा और एकदम सच्चा लिखा है आपने. दुसरे धर्म और संप्रदाय में अपनी टांग अड़ाने वालो के लिए इतना ही कहूँगा की बकरे की माँ आखिर कब तक खैर मनाएगी. ये तो बस अपनी दुकानदारी जमाने के लिए जो जी में आये वोह लिख रहे है वैसे असल में इन तिलों में तेल नहीं है

राजीव तनेजा said...

जुगाड तो बंधुवर आपने बहुत बढ़िया सुझाया है लेकिन क्या करें?..दिल है कि मानता नहीं

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

जय हो गुरुदेव
बहुत जोरदार पोस्ट लिखी है।
बधाई हो बधाई

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

"हमारे ये आका लोग भले ही अपने सम्प्रदाय के विषय में न जानें पर इनका काम है दूसरों की संस्कृति में टाँग घुसेड़ना और विकृत विचार प्रस्तुत करना। तो हम बता रहे थे कि अपने पोस्ट में हम एक सम्प्रदायविशेष के लोगों को बताते हैं आपके सम्प्रदाय के ग्रंथों और हमारे सम्प्रदाय के ग्रंथों में सभी बातें एक जैसी हैं।"

मैं भी यही सोच रहा था कि इनका यह तमाशा देखकर भी अवधिया जी इतने दिनों से खामोश बैठे क्यों है !!! :)

अजित गुप्ता का कोना said...

यह तो रही मजाक की बात, लेकिन कुछ लोगों की पोस्‍ट वाकयी में अच्‍छे लेखन के कारण ही सर्वश्रेष्‍ठ होती है। सभी को गधा और घोडे की श्रेणी में मत हाकिंए नहीं तो लोग टिप्‍पणी करना बन्‍द कर देंगे। नवसम्‍वतसर की हार्दिक बधाई।

अन्तर सोहिल said...

जे बात
करारा पोस्ट
बढिया खिंचाई की है

प्रणाम

अजय कुमार said...

आपने तो हमारे पेट पर ,क्षमा करें पोस्ट पर लात मार दी ,हमारा भेद ही खोल दिया ।

मिहिरभोज said...

बङी ही गंद फैला रखी है इन लोगों ने ब्लोग पर ...सबको विरोध करना चाहिये......

संजय बेंगाणी said...

आपको पता नहीं क्या पोस्ट लिख कर तुरतं खुद को ही पाँच सात टिप्पणी करनी होती है? :)

M VERMA said...

वाह क्या बात है
आजमाके देखते हैं

शरद कोकास said...

आपने तो कई लोगों को राह सुझा दी हाहाहा ।

वीरेन्द्र जैन said...

बहुत बह्त बधाई कि आपने छद्म से टाप पर आने वालों की धोती ही उठा दी और नाम के मामले में पहेली भी बनी रहने दी। वैसे तो सब समझ गये हैं किंतु अधिक अच्छा होता यदि नाम भी खोल देते।

Unknown said...

बेंगाणी जी से सहमत, और टिप्पणी भी क्या करना होती है जी, बस लेख (कूड़े) में से दो-चार लाइन कॉपी-पेस्ट कर दो बेनामी या नकली नामों से बस… आ गया "कचरा" ब्लॉगवाणी की लिस्ट में ऊपर… :)

ताऊ रामपुरिया said...

लो जी आपने तो लोगों के पायजामे के साथ साथ चड्डी भी खींच दी.:)

रामराम.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

वाह्! अवधिया जी, इन लोगों की एकदम सही तस्वीर उतारी आपने...अपना नंगापन देखकर अब तक तो कईं चाचे,भतीजे(जो कभी अवध नहीं गये) हडकाने आ गये होंगें :-)
यह एक गहरा सुनियोजित षडयन्त्र है जिसे शायद हम लोग बहुत ही हल्के में ले रहे हैं!

मनोज कुमार said...

अच्छी जानकारी। धन्यवाद।

राज भाटिय़ा said...

अवधिया जी मै तो इस कीचड से दुर ही रहता हुं,क्योकि इन से सर खपाने से अच्छा है इन से ही दुर रहे, यह क्या करते है करे, जब हम झांके गे ही नही इन की दुकान पर तो, खुद ही बन्द करेगे अपनी यह गंदी दुकान

Udan Tashtari said...

ब्लॉगवाणी के टॉपर को क्या भारत रत्न से नवाजा जाने वाला है? फिर इतनी तिकड़म किस लिए, महाराज?


आप को नव विक्रम सम्वत्सर-२०६७ और चैत्र नवरात्रि के शुभ अवसर पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ .....

Gyan Darpan said...

बढ़िया व्यंग्य ठोका है जी आपने !!

Arvind Mishra said...

अच्छा किया जग जाहिर कर दिया -बच्चों का भला हो जायेगा -

Jandunia said...

तिकड़मी होना कितना जायज है ये तो बहस का मुद्दा है. फिलहाल इतना जरूर है आलेख में सच्चाई है. ऐसे आलेख का स्वागत किया जाना चाहिए।

अजय कुमार झा said...

ओह तो ये फ़ार्मूला था ...अब जाकर पता चला ....
अजय कुमार झा

दिनेशराय द्विवेदी said...

आपने टॉपमटॉप होने का फारमूला बताया उस के लिए आभार, आशा है आगे भी ऐसे ही बताते रहेंगे।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

धन्यवाद .......

वीनस केसरी said...

हम सोच ये रहे है कि जब हम भी ऐसा ही करने लगेंगे तो फिर टॉप पर कौन होगा हम या आप ???

:):)

बढ़िया खीचा :)

बाल भवन जबलपुर said...

chaliye aisaa bhee kar lete hain

Rahul Rathore said...

मुझे ये लफड़े कुछ नहीं मालूम ..सिर्फ लिखता अच्छा होगा तो एक दो टिप्पणी मिल जायेगी |

झूंठी टिप्पणी चाहिए भी नहीं |

Randhir Singh Suman said...

चाचे,भतीजे(जो कभी अवध नहीं गये) हडकाने आ गये होंगें :-)nice

रानीविशाल said...

सही कटाक्ष किया है आपने ....!!
पुरानो की पोल खोल दी, नयो को रह दिखा दी :)

Yashwant Mehta "Yash" said...

कल इस पोस्ट ने टॉप पर रहकर बता दिया कि ब्लोगवाणी पर पोस्ट टॉप पर कैसे आता हैं

कृष्ण मुरारी प्रसाद said...

मैं तो सोच में पड़ गया हूँ....
लड्डू बोलता है...इंजीनियर के दिल से....

http://laddoospeaks.blogspot.com