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Tuesday, June 22, 2010

बंद होना ब्लोगवाणी का और खुश तथा मायूस होना अलग-अलग लोगों का

"सीता की दुविधा ....." पोस्ट पर ब्लोगवाणी का अटके रहने का आज चौथा दिन है। पहले दिन तो हमने यही अनुमान लगाया कि शायद ब्लोगवाणी का रख-रखाव होने के कारण ऐसा है। फिर जब दूसरे दिन भी हालत नहीं बदली तो सोचने लगे कि ब्लोगवाणी किसी जटिल तकनीकी समस्या से जूझ रही होगी। तीसरे दिन आभास होने लगा कि ब्लोगवाणी बंद हो चुकी है। हमें आशा थी कि ब्लोगवाणी की ओर से ब्लोगवाणी के बंद होने का कारण दर्शाते हुए कुछ न कुछ वक्तव्य अवश्य आयेगा पर हमारी इस आशा पर अभी तक तो तुषारापात ही हुआ है।

ब्लोगवाणी क्यों बंद हुई यह तो ब्लोगवाणी वाले ही जानें पर हमें तो यही लगता है कि किसी कारण से उनकी भावनाओं पर आघात लग जाना ही इसका कारण हो सकता है। आलोचनाएँ तो सेवाव्रत धारण करने वालों को ही सहनी पड़ती है और उन्हें काँटों का ताज भी पहनना पड़ता है। अच्छे कार्य करने वालों को प्रायः प्रशंसा कम और आलोचना ही अधिक मिला करती हैं। हमारे छत्तीसगढ़ी में कहावत है "खेलाय-कूदाय के नाव नहि अउ गिराय-पराय के नाव" अर्थात् "किसी बालक को खिलाने वाले की प्रशंसा नहीं होती पर उसी व्यक्ति से यदि बच्चे को जरा भी चोट लग जाये तो उसे बुरा-भला जरूर कहा जाता है"। अस्तु, हम समझते हैं कि ब्लोगवाणी ने लंबे अरसे तक हिन्दी ब्लोगजगत की निस्वार्थ भाव से सेवा की है और इसके लिये वह धन्यवाद की पात्र है।

किन्तु, चाहे कोई ब्लोगवाणी का प्रशंसक रहा हो या फिर आलोचक, ब्लोगवाणी को सहज ही भुला देना किसी के लिये भी आसान नहीं है इसीलिये कुछ लोग खुश होकर भी उसे नहीं भुला पा रहे हैं और कुछ लोग मायूस होकर भी। वो कहते हैं ना "मुश्किलें होती हैं आसान बहुत मुश्किल से!"

हमारे लिये तो ब्लोगवाणी का बंद होना एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना ही है।

Saturday, June 19, 2010

क्या हुआ ब्लोगवाणी को?

कल सायं 03:19 के बाद से ब्लोगवाणी में हिन्दी ब्लोग्स के पोस्टों का अद्यतनीकरण (updation) नहीं हो रहा है। ब्लोगवाणी के प्रशंसक निराश हैं। हमने तो यही अनुमान लगाया था कि शायद ब्लोगवाणी का रख-रखाव (maintenance) हो रहा हो किन्तु रख-रखाव में इतना लंबा समय तो नहीं लगता। हमारे मित्रगण हमें मोबाइल लगा कर पूछ रहे हैं कि ब्लोगवाणी को क्या हुआ है। पर हम कुछ भी बताने में स्वयं को असमर्थ पा रहे हैं क्योंकि इस विषय में हमें कुछ भी जानकारी नहीं है। जानकारी के अभाव में सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता है। अब हमें लग रहा है कि शायद ब्लोगवाणी का सर्व्हर बदला गया हो और उसके डेटा पुराने सर्व्हर से नये सर्व्हर में स्थानांतरित किये जा रहे हों। पर यह भी सिर्फ एक अनुमान ही है। वास्तविकता क्या है यह तो ब्लोगवाणी टीम ही बता पायेगी।

ब्लोगवाणी से चाहे हमें पसन्द मिले या नापसन्द, चाहे हम ब्लोगवाणी को कितना भी बुरा-भला कहें, किन्तु ब्लोगवाणी का महत्व ऐसे ही समय में स्पष्ट हो जाता है जब यह काम करना बंद कर देता है।

Tuesday, June 15, 2010

कल हमारे नापसन्दीलाल छुट्टी पर थे

जब कोई वस्तु अनायास ही उपलब्ध हो, और वह भी मुफ्त में, तो उस वस्तु का उपयोग करने की इच्छा जागृत हो ही जाया करती है। ब्लोगवाणी ने भी हम सभी को नापसन्द वाला बटन उपलब्ध करवाया हुआ है; और वह भी बिल्कुल मुफ्त में। यह तो आप जानते ही हैं कि "माल-ए-मुफ्त दिल-ए-बेरहम"! तो इस बटन को क्लिकियाने का शौक भला किसे नहीं होगा। नापसन्द का एक चटका लगा देने में भला अपने बाप का क्या जाता है याने कि आजकल की भाषा में What goes of my father? और फिर खूब मजा भी तो आता है नापसन्द का चटका लगाने में! संकलक के हॉटलिस्ट में ऊपर चढ़ता हुआ पोस्ट दन्न से नीचे आ जाता है और पोस्ट लिखने वाले का हाल तो "कइसा फड़फड़ा रिया है स्साला" वाला हो जाता है। नापसन्द का चटका लगाने वाला उसके इस हाल को रू-ब-रू देख तो नहीं पाता, पर उसकी कल्पना कर के खूब खुश हो लेता है।

तो बात चल रही थी नापसन्द वाले बटन को प्रयोग करने की। जब इसे प्रयोग करने की इच्छा जोर मारने लगती है तो सोचना पड़ता है कि आखिर कहाँ पर प्रयोग किया जाये इसका? ज्योंही दिमाग में यह प्रश्न उठता है, तत्काल भीतर से आवाज आती है जो भी ब्लोगर हमें पसन्द नहीं है उस पर इस बटन का प्रयोग कर दो। किसी ब्लोगर के पसन्द होने या ना होने के लिये किसी कारण का होना जरूरी थोड़े ही होता है, कई बार तो लोग अकारण ही हमें पसन्द नहीं होते। सामान्य जीवन में भी आपने अनेक बार अनुभव किया होगा कि हम किसी व्यक्ति को जीवन में पहली बार देखते हैं और देखते ही हमें लगने लगता है कि "स्साला एक नंबर का टुच्चा है"। बताइये कई बार ऐसा लगता है कि नहीं? वैसे कई बार इसका उलटा भी होता है कि किसी अनजान व्यक्ति को देखते ही हमें लगने लगता है कि "यार ये तो बहुत ही अच्छा आदमी है"। तो यही बात किसी ब्लोगर के विषय में भी हो जाना अस्वाभाविक तो नहीं है। बस फिर क्या है? जो ब्लोगर मन को नहीं भाता, उसके पोस्ट पर दन्न से चटका लग जाता है नापसन्द का। अब नापसन्द का चटका लगाने के लिये किसी के पोस्ट को पढ़ना जरूरी थोड़े ही होता है!

तो हम बता रहे थे कि किसी ब्लोगर को नापसन्द करने के लिये किसी कारण का होना जरूरी नहीं है पर हमें नापसन्द करने के लिये तो एक नहीं अनेक कारण हैं। जैसे कि सठियाने के उम्र में भी ब्लोगिंग कर रहा है स्साला। भला ब्लोगिंग भी कोई बुड्ढों की करने की चीज है। पर ये हैं कि किये जा रहा है ब्लोगिंग। सींग कटा कर बछड़ों में शामिल हो गया है। कब्र में पाँव लटके हुए हैं पर छपास की चाह नहीं छूटती। शिरीष के फल के जैसे, सारे फूल-पत्ते के झड़ जाने के बावजूद भी, लटका हुआ है डाली से। अरे भाई, अब गिर भी जाओ नीचे, दूसरे फल को आने के लिये जगह दो।

चलो, अब जब ये ब्लोगिंग कर ही रहे हैं तो हमारे जैसे भलेमानुष को इन पर तरस भी आ जाता है और हम टिप्पणी भी दे देते हैं इन्हें पर ये हैं कि हमें टिप्पणी देना तो दूर, भूल कर भी कभी झाँकने तक नहीं आते हमारे ब्लोग में। भला ये भी कोई बात हुई? ऊपर से तुर्रा यह कि कई बार हमारी टिप्पणी को मिटा तक देते हैं यह कहते हुए कि तुम्हारी टिप्पणी का हमारे पोस्ट के विषय से कुछ सम्बन्ध ही नहीं है। अब भला किसी टिप्पणी का पोस्ट के विषय से सम्बन्ध होना कोई जरूरी है क्या?

कहने का तात्पर्य यह है कि हमें नापसन्द करने के लिये बहुत सारे कारण हैं। ऐसे में यदि कोई हमें नापसन्द करने लगे तो ऐसा होना तो स्वाभाविक ही है। तो साहब, एक अरसे से हम देख रहे हैं कि हमारा पोस्ट ब्लोगवाणी में ज्योंही आता है, तड़ाक से उस पर एक चटका लग जाता है नापसन्द का। हम तो यह सोच कर दिल को तसल्ली दे लेते हैं कि यह सिर्फ एक हमारा ही ग़म नहीं है बल्कि और भी बहुत से लोग इस दर्द के मारे हुए हैं।

पर कल हमें यह देख कर बहुत ही आश्चर्य हुआ कि हमारा पोस्ट संकलक में आ गया है पर नापसन्द का चटका नहीं लगा है। खैर हमने सोचा कि आज हमारे नापसन्दीलाल जी शायद कहीं व्यस्त हैं, बाद में आकर हमें चटका दे जायेंगे। हम इन्तजार करते रहे पर हमारे इन्तजार का कुछ भी सार्थक नतीजा नहीं निकला। यहाँ तक कि कल का दिन बीत गया और आज का दिन आ गया पर वह चटका अभी भी नदारद है। अब हमें लग रहा है कि हमारे नापसन्दी लाल जी शायद कल छुट्टी पर थे। या फिर शायद उन्हे उनके डॉक्टर ने नापसन्द का चटका लगाने के लिये मना कर दिया हो। हमें तो में आशंका हो रही है कि भगवान ना करे कि कहीं बीमार-वीमार ना पड़ गये हों। यदि ऐसा कुछ हो तो हम तो ऊपर वाले से यही दुआ करेंगे कि वे जल्द ही स्वास्थ्यलाभ प्राप्त करें।

Thursday, June 10, 2010

भगवान राम भला करे उसका जो "वाल्मीकि रामायण" पर भी नापसन्द का चटका लगाता है

सभी की अपनी अपनी पसन्दगी और नापसन्दगी होती है। हम जानते हैं कि पसन्द और नापसन्द व्यक्ति का अपना निजी मामला होता है इसीलिये हमारे ब्लोग "धान के देश में" में किसी पोस्ट के प्रकाशित होते ही नापसन्द का चटका लग जाने पर हमें कभी भी आश्चर्य नहीं होता। किन्तु हमारे "संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" के कल के अन्तिम पोस्ट में एक नापसन्द का चटका लगे देखकर हमें किंचित आश्चर्य अवश्य हुआ क्योंकि प्रायः देखा यही गया है कि किसी ऐसे ग्रंथ को जिसे कि सम्पूर्ण विश्व में मान्यता प्राप्त हो यदि कोई पसन्द नहीं कर पाता तो उसके प्रति, शिष्टाचार के नाते ही सही, अपनी नापसन्दी भी नहीं जताता।



अस्तु, किसी की पसन्द और नापसन्द से हमें भला करना ही क्या है, हम तो भगवान श्री राम से यही प्रार्थना करते हैं कि उस भले मानुष का कल्याण करे!

भले ही किसी की पसन्द और नापसन्द से हमें कुछ लेना देना ना हो किन्तु ब्लोगवाणी नापसन्द बटन के विषय में जरूर कुछ कहना चाहेंगे क्योंकि यह बहुत सारे ब्लोगर्स को प्रभावित करता है। इस विषय में हम एक बार फिर से अपने पोस्ट "नापसन्द बटन याने कि बन्दर के हाथ में उस्तरा" कही गई बात को दुहराना चाहेंगे कि:

खुन्नस रखने वालों के लिये नापसन्द का यह बटन "बन्दर के हाथों उस्तरा" ही साबित हो रहा है।


चलते-चलते

A good man in an evil society seems the greatest villain of all.

खराब समाज में सभी लोगों को एक अच्छा आदमी सबसे बड़ा खलनायक जैसा लगता है।

A lie can be halfway around the world before the truth gets its boots on.

सत्य से पराजित होने के पूर्व झूठ आधी दुनिया की यात्रा कर लेता है।

Bad news travels fast.

खराब समाचार तेजी से फैलता है।

An empty vessel makes the most noise.

खाली बर्तन अधिक आवाज करता है। अधजल गगरी छलकत जाय।

All that glisters is not gold.

हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होती।

Wednesday, April 28, 2010

बिना बात कोई नापसंद का चटका लगाता है क्या?

नापसन्द है .. नापसन्द है .. नापसन्द है ..

अब नापसन्द है तो नापसन्द है। कोई हमें नापसन्द का चटका लगाने से रोक सकता है क्या? हम तो लगायेंगे जी नापसन्द का चटका।

कल के हमारे पोस्ट "ट्रिक्स टिप्पणियाँ बढ़ाने के"  में अदा बहन ने अपनी टिप्पणी में यह लिखते हुए कि "आज कल एक नया ट्रेंड चला है पोस्ट को नीचे लाने का...बिना बात के लोग नापसंद का चटका जो लगा रहे हैं" हमसे नापसन्द के बारे में लिखने के लिये अनुरोध किया था। हमें भी लगा कि इस पर कुछ लिखा जाये। और कुछ हो या न हो कुछ नापसन्द के चटके ही मिल जायेंगे हमें।

बिना बात के कोई बात नहीं होती। प्रत्येक कार्य के लिये कुछ ना कुछ कारण होना जरूरी होता है। नापसन्द करने के लिये भी कारण होते हैं। नापसन्द का चटका लगाने के पीछे पोस्ट का नापसन्द होना कारण नहीं होता बल्कि पोस्ट लिखने वाले का नापसन्द होना होता है। पोस्ट लिखने वाले को नापसन्द करने के भी अनेक कारण होते हैं मसलनः

  • हम इतना अच्छा लिखते हैं पर ब्लोगवाणी के हॉटलिस्ट में कभी आ ही नहीं पाता। और इस स्साले को देखो रोज ही इसका पोस्ट चढ़ जाता है हॉटलिस्ट में। नापसन्द का चटका लगा कर खींच दो इसकी टाँगे।

  • अरे इस स्साले ने तो बड़ी छीछालेदर की थी हमारी, आज देखते हैं इसका पोस्ट कैसे ऊपर चढ़ पाता है?

  • ये तो फलाँ क्षेत्र का ब्लोगर है जहाँ से बहुत सारे ब्लोगर हिट हो रहे हैं, क्यों ना इसके पोस्ट को नापसन्द का चटका लगाया जाये?

  • ये आदमी तो हमें फूटी आँखों नहीं सुहाता।

  • अरे इसने तो उसके बारे में पोस्ट लिखा है जो हमें फूटी आँखों नहीं सुहाता। लगा दो स्साले को नापसन्द का चटका।

  • ये तो विधर्मी है और हमारे धर्म के विरुद्ध लिखता है।
आदि आदि इत्यादि ...

दोस्तों, नापसन्द बटन बनाने का उद्देश्य पोस्ट के विषयवस्तु के लिये था किन्तु इसका प्रयोग पोस्ट लिखने वाले के लिये हो रहा है। कई बार आपने ब्लोगवाणी में ऐसे पोस्ट भी देखे होंगे जिसका व्ह्यू 0 होता है किन्तु  पसन्द दिखाता है -1, याने कि पोस्ट को बिना पढ़े और उसकी विषयवस्तु को बिना जाने ही नापसन्द का चटका लगा दिया जाता है।

धन्य है ऐसे लोग! ऐसे ही लोगों के लिये गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा हैः

पर अकाजु लगि तनु परिहरहीं। जिमि हिम उपल कृषी दलि गरहीं॥

Wednesday, March 17, 2010

ब्लोगवाणी के द्वारा दुर्भाव का जहर उगलने वाले ब्लोग्स की सदस्यता बनाये रखने का क्या औचित्य है?

हिन्दी ब्लोग संकलकों में ब्लोगवाणी सर्वाधिक लोकप्रिय है। यह प्रायः समस्त हिन्दी ब्लोग्स के अपडेट्स को एक ही स्थान पर दिखाता है और अधिकांश हिन्दी ब्लोगर्स नये पोस्ट की जानकारी के लिये ब्लोगवाणी का ही सहारा लेते हैं। हिन्दी ब्लोग जगत के लिये ब्लोगवाणी का कार्य अत्यन्त सराहनीय है।

सभी सोशल बुकमार्किंग साइट्स तथा संकलकों की अपनी नियम और शर्तें होती हैं। ये नियम और शर्तें ही तय करती हैं कि किसे सदस्यता दी जाये और किसे नहीं। एक बार सदस्य बन जाने के बाद यदि कोई नियम और शर्तों की अवहेलना करता है तो उसकी सदस्यता समाप्त कर देने का भी प्रावधान रहता है। नियम व शर्तें बनाये ही इसलिये जाते हैं ताकि सद्भावना बनी रहे, किसी की भावनाओं को ठेस न पहुँचे, किसी प्रकार की घृणा न फैलने पाये।

इस बात से तो आप सभी सहमत होंगे कि ब्लोग का महत्व दिनों दिन बढ़ते ही जा रहा है। एक ब्लोग को समस्त संसार में कोई भी पढ़ सकता है। जहाँ किसी ब्लोग में निहित विचार आपसी भाई-चारे का सन्देश देकर "वसुधैव कुटुम्बकम" बना सकता है तो वहीं किसी अन्य ब्लोग में प्रस्तुत किये गये विचार हमारे बीच आपसी कलह भी करवा सकता है। कहने का तात्पर्य है कि आज ब्लोग दुनिया भर में नई क्रान्ति ला सकता है।

आज यह जग जाहिर है कि कुछ हिन्दी ब्लोग्स दुर्भाव का जहर उगल-उगल कर सिर्फ दुर्भावना फैलाने का कार्य कर रहे हैं। ब्लोगवाणी में इनकी सदस्यता होने के कारण ही लोग इन ब्लोग्स में जाते हैं। यदि ब्लोगवाणी में इनकी सदस्यता न रहे तो कोई भी इन ब्लोग्स में नहीं जाने वाला है। तो क्या औचित्य है ऐसे ब्लोग्स की सदस्यता ब्लोगवाणी में बरकरार रखने की?

मैं ब्लोगवाणी के संचालकों से अनुरोध करता हूँ कि वे ऐसे ब्लोग्स, जो महज दुर्भाव फैला रहे हैं, की सदस्यता को तत्काल रद्द करें।

मुझे विश्वास है कि आप सभी मेरे इस विचार का अनुमोदन अवश्य ही करेंगे।

Tuesday, March 16, 2010

हमारा पोस्ट ब्लोगवाणी में टॉप पर कैसे आता है?

आदमी तिकड़मी न हो तो किस काम का? हम भी बहुत बड़े तिकड़मी हैं और अपने पोस्ट को ब्लोगवाणी में टॉप में लाकर छोड़ते हैं। हमारे लिये तो चुटकी बजाने जैसा है यह काम तो। अब आप पूछेंगे कि कैसे?

वो ऐसे कि सबसे पहले तो हम अपने आकाओं के द्वारा तैयार किये गये मैटर को लेकर एक पोस्ट लिखते हैं। सही बात तो यह है कि हम जो कुछ भी लिखते हैं वो हमारे महान आकाओं का ही लिखा हुआ होता है। हमारे ये आका लोग भले ही अपने सम्प्रदाय के विषय में न जानें पर इनका काम है दूसरों की संस्कृति में टाँग घुसेड़ना और विकृत विचार प्रस्तुत करना। तो हम बता रहे थे कि अपने पोस्ट में हम एक सम्प्रदायविशेष के लोगों को बताते हैं आपके सम्प्रदाय के ग्रंथों और हमारे सम्प्रदाय के ग्रंथों में सभी बातें एक जैसी हैं। क्या हुआ जो आपके ग्रंथ किसी और भाषा में हैं और हमारे किसी और भाषा में, विचार तो दोनों में एक ही जैसे हैं। हम बताते हैं कि आपकी मान्यताओं को हम भी मानते हैं। अपनी बात को सिद्ध करने के लिये हम उनकी किसी आस्था पर तहे-दिल से अपनी भी आस्था बताते हैं। उनके ग्रंथों को महान बताते हैं। ऐसा करने के पीछे हमारा उद्देश्य मात्र चारा डालना होता है। भाई सीधी सी बात है कि, भले ही हमें उनकी आस्था-श्रद्धा से हमें कुछ कुछ लेना देना ना हो पर, यदि हम हम उनको दर्शायें कि हम उनकी बातों को मानते हैं तो वे भी हमारी बातों को मानने लगेंगे। और वो यदि हमारी बातों को मानेंगे तो मात्र दिखावे के लिये नहीं बल्कि सही-सही तौर पर मानेंगे। ये दिखावा-सिखावा तो वो लोग जानते ही नहीं हैं। एक बार यदि वे हमारी बातों को मानना शुरू कर देंगे, फिर तो हमारी ओर खिंचते ही चले आयेंगे। यह बात अलग है कि उनमें कुछ लोग एक नंबर के उजड्ड हैं और अनेक प्रकार के तर्क-वितर्क कर के हमारे पोस्ट को महाबकवास साबित करने पर तुले रहते हैं। पर हम भी कम नहीं हैं, हम उनके इस व्यवहार से भीतर ही भीतर उबलते तो बहुत हैं, पर ऊपर से बड़ी विनम्रता दिखाते हुये अपनी बात पर अड़े रहते हैं कि आप आप नहीं हो बल्कि आप हममें से ही एक हो। जब हममें से ही हो तो आकर मिल जाओ हममें।

क्या कहा? विषयान्तर हो रहा है?

हाँ भाई, अपनी बात कहने के चक्कर में हम भूल गये थे कि हम अपने पोस्ट को ब्लोगवाणी में टॉप में लाने वाली बात बता रहे थे। तो चलिये उसी बात पर आगे बढ़ते हैं।

अपने पोस्ट को पब्लिश करते ही हम स्वयं उसमें टिप्पणी करते हैं।

उसके बाद हम बेनामी बन जाते हैं और अपने पोस्ट में टिप्पणी करते हैं।

फिर अपने मित्रों को फोन करके कहते हैं कि हमारा पोस्ट प्रकाशित हो गया है, आप उसमें टिप्पणी करो।

एक मित्र टिप्पणी करता है।

हम टिप्पणी करके उस मित्र को जवाब देते हैं।

उसके बाद हम फिर बेनामी बनकर टिप्पणी करते हैं।

फिर स्वयं बनकर बेनामी जी की टिप्पणी का जवाब देते हैं।

एक बार फिर से हम बेनामी बनकर टिप्पणी करते हैं।

अब बेनामी जी को धन्यवाद देना जरूरी है इस लिये फिर से हम स्वयं बनकर टिप्पणी करते हैं।

फिर हमारा दूसरा मित्र टिप्पणी करता है।

हम टिप्पणी करके अपने मित्र को धन्यवाद देते हैं।

फिर हम एक टिप्पणी करके लोगों से आग्रह करते हैं कि हमारा यह पोस्ट एक बहुत अच्छा पोस्ट है और आकर इसे पढ़िये।

इस बीच में दूसरे सम्प्रदाय वाले कुछ लो फँस जाते हैं हमारे झाँसे में और अपनी टिप्पणी करते हैं।

हम उन सभी टिप्पणी करने वालों को अलग-अलग टिप्पणी करके धन्यवाद देते हैं।

इस प्रकार से सिलसिला चलते चला जाता है, चालीस पचास टिप्पणियाँ हो जाती हैं और इन टिप्पणियों के दम पर हमारा पोस्ट ब्लोगवाणी के टॉप में पहुँच जाता है।

अब ब्लोगवाणी थोड़े ही समझता है कि हमने अपने पोस्ट में टिप्पणियों की संख्या कैसे बढ़ाई है! इस प्रकार से हम ब्लोगवाणी के इस कमजोरी का भरपूर फायदा उठाते हैं और अपने पोस्ट को टॉप पर ले आते हैं।

हैं ना हम महातिकड़मी?

Wednesday, February 17, 2010

ब्लोगवाणी लिंक क्यों काम नहीं कर रहा? ... क्या आप कुछ सहायता कर सकते हैं?

पहले मैं अपने "धान के देश में", "संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" आदि ब्लॉग्स में प्रविष्टि करने के बाद ज्योंही ब्लोगवाणी लोगो को क्लिक करता था तो मेरा पोस्ट ब्लोगवाणी में तत्काल दिखाई देने लगता था। किन्तु कुछ दिनों से मैं अनुभव कर रहा हूँ कि अपने पोस्ट में ब्लोगवाणी लिंक को क्लिक करने के बाद वह ब्लोगवाणी में तुरन्त नहीं पहुँचता बल्कि ५ से लेकर १५ मिनट बाद ही वहाँ पर दिखाई देता है।

प्रत्येक ब्लोगर के जैसे ही मैं भी चाहता हूँ कि मेरा पोस्ट प्रकाशित होते ही वह ब्लोगवाणी में दिखाई देने लगे। मैंने ब्लोगवाणी के पुराने कोड को मिटा कर फिर से नया कोड लगा कर भी देख लिया किन्तु समस्या हल नहीं हुई।

क्या आप इस समस्या को सुलझाने में मेरी मदद कर सकते हैं?

Tuesday, September 15, 2009

ब्लोगवाणी से अनुरोध

ब्लोगवाणी में एक बटन होता है पसंद वाला। याने कि यदि आपको किसी का लेख पसंद आया है तो आप इस बटन को क्लिक कर के बता सकते हैं कि आपने इस लेख को पसंद किया है। बड़े काम का है ये बटन! यह बटन बताता है कि किस लेख को कितने अधिक लोगों ने पसंद किया। अधिक पसंद पाकर ब्लोगर अधिक उत्साहित होता है और उसकी 'कुछ और अच्छा' लिखने की धुन बढ़ जाती है।

बहुत से लोग तो ब्लोगवाणी के हाशिये में अधिक पसंद किया गया देख कर ही लेख पढ़ जाते हैं। इसका मतलब है कि यह पसंद बटन अच्छे लेखों को आगे की ओर ठेलता है।

अब मैं आता हूँ असली बात पर। मैंने महसूस किया है कि इस अच्छे उद्देश्य वाले बटन का गलत प्रयोग भी किया जा सकता है और कहीं कहीं किया भी जा रहा है। भला कौन ब्लोगर नहीं चाहेगा कि उसे अधिक से अधिक पसंद मिले। उदाहरण के लिए मैं ही ब्लोगवाणी पर अपने लेख के आगे के पसंद बटन को कुछ कुछ अन्तराल में चटका देता हूँ। इस तरह से मेरे पोस्ट की पसंद संख्या बढ़ते जाती है और मेरा पोस्ट हाशिये में ऊपर बढ़ते जाता है।

तो मेरा ब्लोगवाणी वालों से एक अनुरोध है कि वे कुछ ऐसी व्यवस्था करें कि किसी भी कम्प्यूटर से पसंद वाली बटन में प्रत्येक 24 घंटे में सिर्फ एक बार ही चटका लगाया जा सके। एक से अधिक बार चटका लगाये जाने पर पसंद की संख्या न बढ़ पाये।

Monday, September 14, 2009

ऐसा भी होता है

जी हाँ ऐसा भी होता हैः

पढ़ा 0 ने, पसंद किया 2 ने। यकीन न हो तो स्नैपशॉट देखें: