Sunday, May 23, 2010

बैंड बाजा से दिल्ली ब्लोगर्स मिलन से क्या सम्बन्ध? ... आखिर कितनी टिप्पणियाँ मिटायें हम?

कल के हमारे पोस्ट का विषय था बैंड बाजा। लोगों ने उसे पढ़ा भी और और उस पर अपनी राय भी व्यक्त किया। बहुत अच्छा लगा हमें, आखिर हम भी जाने माने नहीं तो कम से कम एक तुच्छ ब्लोगर ही हैं जो अपने पोस्ट में टिप्पणियाँ पा कर फूला नहीं समाता। किन्तु उनमें दो टिप्पणियाँ दिल्ली ब्लोगर्स मिलन के सम्बन्ध में थीं। बहुत सोचने विचारने के बाद भी हमारी अल्पबुद्धि यह समझ ही नहीं पाई कि आखिर बैंड बाजा से दिल्ली ब्लोगर्स मिलन से सम्बन्ध ही क्या है? हमें लगा कि वे टिप्पणियाँ हमारे टाट रूपी पोस्ट में मखमल रूपी पैबंद हैं। अब मखमल और टाट का मेल तो अच्छा लग ही नहीं सकता ना? इसीलिये तो मुहावरा बनाया गया है "मखमल में टाट का पैबंद"। और फिर यहाँ तो बात ही उलटी थी याने कि यहाँ पर "टाट में मखमल का पैबंद" था।

हमें लगा कि ये दोनों टिप्पणियाँ तो हमारे "क्या आपको याद है कि पिछली बार कब सुना था आपने बैंड बाजा?" का ही बैंड बाजा बजा दे रही हैं। अतः विवश होकर हमें वे दोनों टिप्पणियाँ मिटानी पड़ीं। हाँ टिप्पणीकर्ता की भावनाओं को ध्यान में रखकर हमने अपने उसी पोस्ट में अपनी यह टिप्पणी भी कर दीः

कुमार जलजला जी,

आपने मेरे पोस्ट पर दो दो बार टिप्पणियाँ की जिसके लिये मैं आपको धन्यवाद देता हूँ किन्तु आपकी दोनों टिप्पणियों का इस पोस्ट के विषय से कुछ भी सम्बन्ध ना होने के कारण विवश होकर मैं इन्हें मिटा रहा हूँ जिसके लिये मुझे खेद है।
मित्रों, ऐसा नहीं है कि कुमार जलजला, जो कि किसी का छद्मनाम है, ही ऐसी टिप्पणी करते हैं बल्कि और भी बहुत से लोग भी ऐसा करते हैं। मेरे साथ बहुत बार ऐसा हुआ है कि मेरे पोस्ट का विषय कुछ और होता है और उसमें टिप्पणियाँ किसी ऐसे विषय पर आती हैं जिनका मेरे पोस्ट के विषय से दूर-दराज का भी सम्बन्ध नहीं होता। ऐसी टिप्पणियों को पढ़कर क्या आपको नहीं लगता कि लोग पोस्ट को पढ़े बिना ही कुछ भी टिप्पणी कर देते हैं? लोग ऐसा क्यों करते हैं यह समझ के बाहर की बात है। पुरानी कहावत है "अपनी-अपनी ढपली अपना-अपना राग" पर आज तो लगता है कि अपना राग अलापने के लिये अपनी ढपली की भी आवश्यकता नहीं रही है, दूसरे की ढपली पर ही अपना राग अलाप दो याने कि किसी के ब्लोग पर जा कर कुछ भी अनर्गल टिप्पणी कर दो।

अन्ततः हम यही कहना चाहते हैं कि ऐसी टिप्पणियों को मिटाना एक विवशता हो जाती है। किन्तु टिप्पणी मिटाने के लिये भी कुछ ना कुछ समय तो बर्बाद होता ही है ना? तो आखिर कितनी टिप्पणियाँ मिटायें हम?

13 comments:

Shah Nawaz said...

ऐसे लोग गोबर की तरह है, जो जगह-जगह फ़ैल कर बदबू फैलाना चाहते हैं. लेकिन योग्य व्यक्ति गोबर को भी खाद की तरह इस्तेमाल करना जानते हैं. इस तरह के गोबर को खाद ना बनाया गया तो बदबू फैलती रहेगी. :

दिनेशराय द्विवेदी said...

अवधिया जी, ब्लाग जगत में जलजलतों की कोई कमी है?

Kumar Jaljala said...

ऊपर एक महाशय ने मुझे गोबर कहा है। आपको तो पता है न गोबर कितने काम आता है. हिन्दुओं का कोई भी त्यौहार गोबर के उपयोग के बगैर पूरा ही नहीं होता.बंधुवर को जरा गोबर का मतलब समझाइए.
रहा सवाल मैं आपके ब्लाग पर टिप्पणी सिर्फ इसलिए करता हूं क्योंकि आपको लोग पढ़ते हैं। जलजला उन ब्लागों में जाना पसन्द नहीं करता जहां कुत्ता भी रहना पसन्द नहीं करता.
मैं दिल्ली से काफी दूर निकल चुका हूं और एक ढाबे में बैठकर दाल-रोटी खा रहा हूं.
आपको कष्ट हुआ उसके लिए क्षमा.

Unknown said...

कुमार जलजला जी, इस बार मैं आपकी टिप्पणी नहीं मिटा रहा हूँ क्योंकि आपने कारण बताया है कि आपने ऐसा क्यूँ किया। किन्तु आप ही बताइये कि क्या किसी एक विषय के पोस्ट पर किसी दूसरे विषय से सम्बन्धित टिप्पणी का कोई औचित्य है क्या? कम से कम मुझे तो इसका कोई औचित्य नजर नहीं आता।

honesty project democracy said...

अवधिया जी आपने बहुत ही अच्चा किया इन मुद्दों पे लिखकर क्योकि जैसा शाहनवाज जी ने भी कहा है ये वो गोबर हैं जो ज्यादा सड़ गए तो बदबू पैदा करेंगे /इसलिए इनका खाद के रूप में प्रयोग करना या ऐसे गोबर पैदा करने वाले का कुछ तो करना ही होगा / बताइए इस ब्लोगर मिलन को भी इसने निशाना बना दिया / मैं यह कमेन्ट दिल्ली के जाट धर्मशाला ,नागलोई से कर रहा हूँ मैं यहाँ पहुंच चूका हूँ और लोगों का स्वागत करने को तैयार हूँ /

हिंदीब्लॉगजगत said...

ज़लज़ला की बात छोड़ दें तो सभी प्रचार के भूखे हैं यहाँ. अच्छे ब्लौगर ऐसा नहीं करते. वही लोग करते हैं जिनके लेखन में दम नहीं होता.
टिपण्णी के नीचे पोस्टों के लिंक, और फोन नंबर देना भी अखरता है.

राज भाटिय़ा said...

मस्त रहे जी

डॉ महेश सिन्हा said...

आपने लिखा बैंड बाजा तो सब आ गए अपना अपना लेके . अब तो आपको प्रमाणपत्र भी मिल गया :)

दीपक गर्ग said...

'वाह-वाह,बहुत खूब'
पढ़ने की आदत सी पड़ गयी
'कुछ है अलग हम'
ये बात मन में उतर गयी
आज कल तेरी मेरी बात के चर्चे हर जुबान पर
सबको मालूम है और सबको खबर हो गयी.
सब=२५ -५० लोग

Amit Sharma said...

अजी साहब कल कि मेरी इस पोस्ट http://27amit.blogspot.com/2010/05/blog-post_21.html में भी यह जनाब अपना भोंपू बजा गए थे. क्या करें मन मूसा कर रह गए जी. मरे मुरदार क्या बिगड़े जो पोस्ट से सम्बंधित दो चार काले लकिते बना दे तो, पर नहीं साहब लिखे तो तब ना जब पोस्ट पढ़े . इनको तो अपनी लाल टीशर्ट कि चिंता थी :>)

सूर्यकान्त गुप्ता said...

ध्यान रखने योग्य। आभार स्पष्ट रूप से भावना प्रकट कर देने के लिये ताकि बाकी लोग सचेत रहें।

विजय प्रकाश सिंह said...

हाय रे टिप्पड़ियां ! टीवी चैनेलों की टीआरपी और ब्लॉग की टिप्पड़ियां । इनके लिए कुछ भी करेगें भाई लोग । बढ़िया है ।

Udan Tashtari said...

कहाँ आप भी अटक गये...अगली पोस्ट का इन्तजार करता हूँ. :)