Tuesday, December 14, 2010

भारत में नापतौल पद्धति

मनुष्य जीवन के लिए नापतौल की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। यह कहना अत्यन्त कठिन है कि नापतौल पद्धति का आविष्कार कब और कैसे हुआ होगा किन्तु अनुमान लगाया जा सकता है कि मनुष्य के बौद्धिक विकास के साथ ही साथ आपसी लेन-देन की परम्परा आरम्भ हुई होगी और इस लेन-देन के लिए उसे नापतौल की आवश्यकता पड़ी होगी। प्रगैतिहासिक काल से ही मनुष्य नापतौल पद्धतियों का प्रयोग करता रहा है। समय मापने के लिए वृक्षों की छाया को नापने चलन से लेकर कोणार्क के सूर्य मन्दिर के चक्र तक अनेक पद्धतियों का प्रयोग किया जाता रहा है।

भारत में विभिन्न कालों में नापतौल की विभिन्न पद्धतियाँ प्रचलित रही हैं। मनुस्मृति के 8वें अध्याय के 403वें श्लोक में कहा गया हैः

राजा को प्रति छः माह पश्चात् भारों (बाटों) तथा तुला (तराजू) की सत्यता सुनिश्चित करके राजकीय मुहर द्वारा सत्यापित करना चाहिए।

इससे स्पष्ट है कि भारत में अत्यन्त प्राचीनकाल से नापतौल की पद्धतियाँ रही हैं। प्रचलित जानकारी के अनुसार सिन्धु घाटी की पुरातात्विक खुदाई में मिले नापतौल के विभिन्न अवशेषों से ज्ञात होता है कि ईसा पूर्व 3000-1500 में सिन्धु घाटी सभ्यता के निवासियों ने मानकीकरण की एक परिष्कृत प्रणाली विकसित किया था। सिन्धु घाटी सभ्यता के इस नापतौल पद्धति को विश्व के प्राचीनतम पद्धतियों में से एक माना जाता है। सिन्धु घाटी सभ्यता की नापतौल प्रणाली कितनी परिष्कृत थी यह इसी से पता चलता है कि उस काल में भवन निर्माण के लिए प्रयोग की जाने वाली ईंटों की लम्बाई, चौड़ाई तथा ऊँचाई की माप सुनिश्चित थी जो कि 4:2:1 के अनुपात में होती थीं।

आज से लगभग 2400 वर्ष पहले चंद्रगुप्त मौर्य काल में भी माप तथा नापतौल के लिए अच्छी प्रकार से परिभाषित पद्धति का प्रयोग किया जाता था तथा राज्य के द्वारा माप के भारों (बाटों) एवं तुला (तराजू) की सत्यता सत्यापिक करने की परम्परा थी। उस काल की प्रणाली के अनुसार भार की सबसे छोटी इकाई एक परमाणु तथा लंबाई की सबसे छोटी इकाई अंगुल थी। लम्बी दूरी के लिए योजन का प्रयोग किया जाता था।

मध्यकाल में मुगल बादशाह अकबर ने भी नापतौल की एकरूप (uniform) प्रणाली विकसित किया था जिसका प्रयोग सम्पूर्ण देश में किया जाता था। अबुल फज़ल रचित आईने अकबरी के अनुसार उस काल में भूमि नापने की इकाई "इलाही गज" हुआ करती थी जो कि वर्तमान 33 इंच से 34 के बराबर थी। वजन नापने की इकाई "सेर" हुआ करता था।

ब्रिटिश काल में अंग्रेजों ने भी देश भर में नापतौल की एकरूप (uniform) प्रणाली विकसित किया वजन की इकाइयाँ मन, सेर, छँटाक, तोला, माशा और रत्ती थीं। भूमि मापने के लिए मील, एकड़, गज, फुट, इंच का प्रयोग किया जाता था। अंग्रेजों के द्वारा विकसित उस प्रणाली का प्रयोग स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भी सन् 1956 तक होता रहा। सन् 1956 में भारत सरकार ने नापतौल के नए मानक स्थापित किया और देश भर में नापतौल की मीटरिक पद्धति का चलन हो गया।

नीचे नापतौल की कुछ ब्रिटिश पद्धतियों के रूप दिए जा रहे हैं:

वजन

8 रत्ती     = 1 माशा
12 माशा = 1 तोला
5 तोला     = 1 छँटाक
16 छँटाक = 1 सेर
40 सेर = 1 मन

लंबाई

12 इंच = 1 फुट
3 फुट = 1 गज
220 गज = 1 फर्लांग
8 फर्लांग = 1 मील

मुद्रा

4 पैसा = 1 आना
16 आना = 1 रुपया

8 comments:

सुज्ञ said...

बडी 'भारी' जानकारी!!

परिमाण का इतिहास ही प्रस्तूत कर दिया।

आभार, इस बहुमूल्य जानकारी के लिये।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

माप तौल पर अच्छी जानकारी

Rahul Singh said...

रोचे और उपयोगी. आशा है इस विषय पर आगे भी पोस्‍ट आएगी.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

हम लोग बहुत आगे थे... मुगलों और फिर अंग्रेजों के शासन ने क्या कर दिया!

संगीता पुरी said...

ज्ञानवर्द्धक जानकारी देता रोचक आलेख !!

प्रवीण पाण्डेय said...

हर बार आपके ब्लॉग से कुछ छटाक जानकारी चुरा कर ले जाते हैं।

राज भाटिय़ा said...

जब हम छॊटे थे तो सेर मन ओर छाटंक त्रब भी चलते थे, पुरानी यादे ताजा कर दी धन्यवाद

निर्मला कपिला said...

बचपन से यही माप तौल थे तब के याद हैं। अच्छी जानकारे है। धन्यवाद।