हम लुटते रहे थे, लुटते रहे हैं और लुटते रहेंगे
हजारों वर्षों पूर्व सिकन्दर, मोहम्मद बिन कासिम, महमूद गज़नवी, मोहम्मद गोरी आदि के द्वारा हम लुटते रहे थे। फिर पुर्तगाली, फ्रांसीसी आदि लुटेरों ने आकर हमें लूटा और व्यापारी का भेष धारण कर भारत को लूटने वाले अंग्रेज लुटेरों ने तो विश्व के समृद्धतम देश भारत को कंगाल बना कर ही छोड़ा। हमारे देश की धन-सम्पदा हमारे यहाँ न रहकर विदेशों में चली गई।
आज हम बहुराष्ट्रीय कंपनियों तथा धन-लोलुप तथाकथित व्यापारियों और सत्ता-लोलुप राजनीतिबाजों के द्वारा लुट रहे हैं। आज भी हमारे देश की धन-सम्पदा को बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अपने देशों में ले जा रही हैं और हमारे ही देश के स्वार्थी तत्व उसे स्विस बैंकों में भेजे जा रहे हैं।
आज अमरीका, रूस, जर्मनी, प्रांस और चीन जैसे शक्तिशाली देशों के राष्ट्रध्यक्ष, प्रधानमन्त्री आदि का भारत आगमन हो रहा है। क्या वे भारत की विदेशों में बढ़ी हुई साख या सुदृढ़ आर्थिक अर्थ-व्यवस्था से प्रभावित होकर यहाँ आ रहे हैं? कदापि नहीं! उनका मात्र उद्देश्य भारत के बाजार का दोहन करना ही है। स्पष्ट है कि भविष्य में भी हम लुटते ही रहेंगे क्योंकि हमारे देश के कर्ता-धर्ता, अपने राष्ट्र के हितों को ताक में रखकर, उनकी योजनाओं को स्वीकार करते हुए हमारे लुटे जाने के दस्तावेजों पर मुहर लगाए चले जा रहे हैं।
पर हम हैं कि अपनी रचनाओं और उन पर मिली टिप्पणियों पर मुग्ध हैं। हमें अपना लुटना दिखाई ही नहीं देता। हमें लगता ही नहीं कि हम ऐसा कुछ लिखें जिसे देश के करोड़ों लोग पढ़ें और उन्हें समझ में आ जाए कि हम सब लुटे जा रहे हैं, वे अपना लुटना देखकर आक्रोश में आ जाएँ, क्रान्ति करने की ठान लें।
पर क्यों लिखें हम कुछ ऐसा? ऐसा लिखने से हमें टिप्पणियाँ तो नहीं मिलने वाली हैं, गैर-ब्लोगर लोग हमारे पोस्टों को पढ़कर या तो अप्रभावित ही चले जाते हैं या फिर प्रभावित होकर कुछ करने की ठान लेते हैं (सिवा टिप्पणी करने के)। और यह तो जग जाहिर है कि हम टिप्पणी न मिलने वाली कोई बात लिखते ही नहीं हैं क्योंकि टिप्पणियाँ ही तो हम ब्लोगरों की वास्तविक सम्पदा है।
11 comments:
किस दुनिया में है आप अवधिया साहब ? इसे आज की सभी दुनिया में "नकाराताम्क सोच" की संज्ञा दी जाती है !
@ .सी.गोदियाल "परचेत"
क्या कहूँ गोदियाल जी, पुरानी दुनिया का आदमी हूँ इसलिए आज की दुनिया में रहते हुए भी नहीं रह पाता।
पहले गैरों ने जी भर लूटा
अब अपने ही हाथों लुट रहे हैं ।
घर के लुटेरों से कैसे घर को बचाया जाए ?
इतने सारों ने लूटा. अब फिर लुट रहे हैं. इसे सकारात्मक तरीके से सोचें तो हम फिर से लुटने लायक बन गए हैं. लेकिन अब हमें सचेत होना होगा की कैसे लुटने से बचें. आपकी पोस्ट ने उत्प्रेरक का काम किया है. आभार.
जो भी लिखें प्रभाव दिखाये, सत्य दिखाये।
यदि आज की बात करे तो सभी राष्ट्राध्यक्षो ने हथियार परमाणु बिजली आदि बड़ी बड़ी चीजे बेचीं है जो सीधे सरकार ने खरीदी है आम आदमी इसको नहीं रोक सकता है | किसी की भी सरकार बने हम तो हर हाल में लूटेंगे ही |
हम तो हर किसी के ब्लॉग पर टिपियाते रहते हैं, चाहे वह हमारे ब्लॉग पर आए अथवा नहीं। क्योंकि मुझे मालूम है कि मेरे काम से कम वह खुश तो होगा ही।
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मोबाइल चार्ज करने की लाजवाब ट्रिक्स।
उत्प्रेरक प्रसंग ....पर ब्लोगिंग से क्रांति कैसे आएगी ?
अपना अपना नजरिया है ! क्या ये मुमकिन नहीं कि वे भी दूध के धुले हुए ना हों ? मेरा मतलब जो खुद ही थोड़ी बहुत चोरी चकारी कर रहे हों उनसे उम्मीदें कैसी ? जब तक ये तय ना हो कि देश के लायक वे हैं भी कि नहीं ?
लूटो लूटो रे बालमा, लूटो रे बालमा
मेरा भारतवा लूटो..
लूटो इनको लूटो उनको
लूटो सभी को तुम लूटो
लूटो ...
bharosha kar liya jis par usi ne hamako luta hai , knha tak naam ginawaayen sabhi ne hamo luta hai ?
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