पिछले डेढ़ दो साल के भीतर पेट्रोलियम उत्पादों के दाम चार बार बढ़े। पर हम क्या कर सकते हैं?
हम कुछ भी तो नहीं कर सकते।
दाल न मिलने पर आदमी प्याज के साथ रोटी खा लेता था भले ही प्याज काटने पर आँख से आँसू निकलते थे पर अब प्याज की कीमत सुनते ही आँख से आँसू निकलने लगते हैं। प्याज की कीमत आसमान छू रही है। पर हम क्या कर सकते हैं?
हम कुछ भी तो नहीं कर सकते।
टमाटर की लाली से हमारा मोहभंग हो गया है क्योंकि टमाटर खरीदने का अब हममें साहस नहीं रह पाया है। टमाटर के दाम सुनकर अब हम टमाटर खाने की इच्छा को भीतर ही भीतर कहीं दफन कर देते हैं। टमाटर के दाम इतने बढ़ चुके हैं की हम खरीद नहीं सकते। पर हम क्या कर सकते हैं?
हम कुछ भी तो नहीं कर सकते।
दाल खाना तो पहले ही मुहाल हो गया था, अब रोटी के भी लाले पड़ने लगे हैं। गेहूँ का दाम बढ़ गया है। पर हम क्या कर सकते हैं?
हम कुछ भी तो नहीं कर सकते।
हम तो जनता-जनार्दन हैं। वोट देकर सरकार बनाते हैं। फिर वही सरकार हमें महँगाई के गर्त में धकेलती चली जाती है। पर हम सब तो जनता होने के नाते निरीह प्राणी हैं। हम कर ही क्या सकते हैं?
हम कुछ भी तो नहीं कर सकते।
8 comments:
व्यवस्था पर व्यंगात्मक परिहास।
हम कुछ भी तो नहीं कर सकते .. सही है !!
कुछ भी तो नहीं कर सकते...bisleri pee sakte hain.
काश, हम कुछ कर पाते।
---------
अंधविश्वासी तथा मूर्ख में फर्क।
मासिक धर्म : एक कुदरती प्रक्रिया।
हम बहुत कुछ कर सकते हे, लेकिन जनता मे एकता नही, सब मिल कर इस सरकार की नींव हिला कर रख सकते हे, इसे घुटनो मे ला सकते हे, कर तो बहुत कुछ सकते हे..... लेकिन हर कोई सोचता हे मुझे क्या?
बहुत कुछ कर सकते हे....!लेकिन जनता मे एकता नही...!
thik kaha aapne
ye padh kar duhkhi ho sakte hai aur kya kar sakte hai?
Post a Comment