Tuesday, January 18, 2011

क्या सन् 1630 में ताज महल के निर्माण आरम्भ होना सम्भव था?


इलियट व डौसन का इतिहास, भाग  7, पृष्ठ 19-25, के अनुसार शाहजहां का शाही इतिहासकार मुल्ला हमीद लाहौरी सन् 1630 का, अर्थात् ताज महल के निर्माण आरम्भ होने वाले वर्ष का विवरण इस प्रकार से देता हैः
"वर्तमान वर्ष में भी सीमान्त प्रदेशों में अभाव रहा खास तौर पर दक्षिण और गुजरात में तो पूर्ण अभाव रहा। दोनों ही प्रदेशों के निवासी नितान्त भुखमरी के शिकार बने। रोटी के टुकड़े के लिए लोग खुद को बेचने के लिए भी तैयार थे किन्तु खरीदने वाला कोई नहीं था। समृद्ध लोग भी भोजन के लिए मारे-मारे फिरते थे। जो हाथ सदा देते रहे थे वे ही आज भोजन की भीख पाने के लिए उठने लगे थे। जिन्होंने कभी घर से बाहर पग भी नहीं रखा था वे आहार के लिए दर-दर भटकने लगे थे। लंबे समय तक कुत्ते का मांस बकरे के मांस के रूप में बेचा जाने लगा था और हड्डियों को पीसकर आटे में मिला कर बेचा जाने लगा था। जब इसकी जानकारी हुई तो बेचने वालों को न्याय के हवाले किया जाने लगा, अन्त में अभाव इस सीमा तक पहुँच गया कि मनुष्य एक-दूसरे का मांस खाने को लालयित रहे लगे और पुत्र के प्यार से अधिक उसका मांस प्रिय हो गया। मरनेवालों की संख्या इतनी अधिक हो गई कि उनके कारण सड़कों पर चलना कठिन हो गया था, और जो चलने-फिरने लायक थे वे भोजन की खोज में दूसरे प्रदेशों और नगरों में भटकते फिरते थे। वह भूमि जो अपने उपजाऊपने के लिए विख्यात थी वहाँ कहीं उपज का चिह्न तक नहीं था...। बादशाह ने अपने अधिकारियों को आज्ञा देकर बुरहानपुर, अहमदाबाद और सूरत के प्रदेशों में निःशुल्क भोजनालयों की व्यवस्था करवाई।"
सीधी सी बात है कि जब बकरे के मांस के नाम पर कुत्ते का मांस औ र आटे के स्थान पर पिसी हड्डियाँ बेची जा रही हों तथा मनुष्य मनुष्य का मांस भक्षण कर रहा हो तो ऐसी स्थिति में बीमारियों का भी भयंकर प्रकोप भी हुआ ही होगा और अनगिनत लोग भूख से मरने के साथ ही साथ बीमारियों से भी मरे होंगे।

उपरोक्त विवरण "वर्तमान वर्ष में भी..." से शुरू होता है इसका स्पष्ट अर्थ है कि शाहजहाँ के शासनकाल में जब-तब अकाल पड़ते ही रहते थे। ऐसे भीषण दुर्भिक्ष की स्थिति में ताज महल का निर्माण करने के लिए मजदूर कहाँ से आ गए? क्या सन् 1630 में ताज महल के निर्माण आरम्भ होना सम्भव था?

11 comments:

Rahul Singh said...

क्‍या यह राहत कार्य के अंतर्गत हुआ.

Unknown said...

राहुल जी! शायद आप कोई साक्ष्य दे सकें कि यह राहत कार्य के अन्तर्गत नहीं हुआ। बादशाहनामा, जिसे कि ताज महल बनवाने का मुख्य साक्ष्य होना चाहिए, में तो ताज महल बनाने में हुए खर्च के विषय में विशेष उल्लेख नहीं है।

मेरी बुद्धि तो यही कहती है कि जिस बादशाह के राज्य में भीषण दुर्भिक्ष पड़ा हो किन्तु उसे प्रजा की चिन्ता न होकर ताज महल बनवाने जैसे अपने स्वार्थ की ही चिन्ता हो वैसा बादशाह अपने खजाने का पैसा व्यर्थ नहीं गँवाने वाला, वह तो हर कार्य बेगार में ही करवाएगा।

P.N. Subramanian said...

सन १८९६ में छत्तीसगढ़ में अकाल पड़ा था रायपुर से धमतरी और राजिम के रेल लाइन प्रस्तावित थी परन्तु काम शुरू नहीं हुआ था. अकाल की स्थिति को देख जनता को रोजी रोटी मुहय्या कराने के लिए एक राहत कार्य के सदृश रेल लाइन का निर्माण तात्कालिक रूप से किये जाने का उल्लेख मिलता है. कुछ वैसा ही हुआ होगा. बेगार भले न रहा हो परन्तु ऐसी स्थितियों में मजदूरी तो कम ही देनी होती है. राहुल जी ने एक शंका व्यक्त की है.

Unknown said...

@ P.N. Subramanian

रेल लाइन बनाने और ताज महल बनाने में जमीन आसमान का अन्तर है, रेल लाइन बनाना महत्वाकांक्षा और स्वार्थ का प्रतीक नहीं है।

राहुल जी की शंका का स्वागत है! शंका से तर्क उत्पन्न होती है और तर्क से सच्चाई तथा ज्ञान के रास्ते खुलते हैं।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

नयी जानकारी ...गहन अध्ययन की ज़रूरत है ...

Rahul Singh said...

''जिसको न दे मौला, उसको दे आसफुद्दौला.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

"ऐसे भीषण दुर्भिक्ष की स्थिति में ताज महल का निर्माण करने के लिए मजदूर कहाँ से आ गए? क्या सन् 1630 में ताज महल के निर्माण आरम्भ होना सम्भव था?"


अवधिया साहब, क्षमा चाहूँगा , मगर प्रश्न जचा नहीं ! पहली बात तो यह कि मुस्लिम चाहे वह राजा हो अथवा रंक , उससे इस बात की पूरी-पूरी गुंजाईश है, कि वह इन्सान की तात्कालीय शारीरिक और आर्थिक स्थिति पर बिना रहम किये, उसे काम पर झोंक सकता है! दूसरी बात, जैसा कि आपके लेख से उल्लिखित होता है कि लोग भूख से मारे-मारे फिर रहे थे, अगर ऐसे लोगो को यह कहा जाय कि मजदूरी करो तुम्हे भोजन मिलेगा तो मजदूरों की फौज खादी हो जायेगी !

मैं आपके लेख का सार समझ रहा हूँ किन्तु यह भी सत्य है कि जो आधुनिक ताज ढांचा है वह मुस्लिम शैली का ही है और मुग़ल काल में ही बना होगा ! अब चाहे उससे पहले वहाँ कुछ और रहा हो जिसे उन्होंने नष्ट कर दिया हो !

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

क्या सत्य है? पता नहीं कब सामने आयेगा ?

Meenu Khare said...

Good Post.

प्रवीण पाण्डेय said...

लगता तो नहीं है।

Unknown said...

क्या सत्य है? पता नहीं कब सामने आयेगा ?