Wednesday, December 15, 2010

महमूद गजनवी का सत्रह बार आक्रमण - इतिहास का सच या कपोल कल्पना?

हमारा इतिहास हमें बताता है कि महमूद गज़नवी ने सन् 1000-1027 के बीच भारत के राजाओं के साथ 17 बार आक्रमण किया था तथा भारत के पंजाब, मथुरा, गुर्जर आदि विस्तृत क्षेत्रों पदाक्रान्त किया था।

मथुरा किसी अन्य दिशा में है तो सोमनाथ किसी अन्य दिशा में। इसका अर्थ यह हुआ कि महमूद ने चतर्दिक् आक्रमण किया था और जिन क्षेत्रों में उसने आक्रमण किया था वह हजारों मील के दायरे में विस्तीर्ण था। उसके साथ हजारों-लाखों की संख्या में घुड़सवारों के साथ ही पैदलों की सेना थी। उस काल में आज जैसे मोटरयान, रेलयान और वायुयान जैसी सुविधाए उपलब्ध नहीं थीं अर्थात् महमूद की कुछ सेना तो घोड़ों पर चला करती थी और अधिकतर सेना पैदल चला करती थी। अब सवाल यह उत्पन्न होता है कि हजारों मील के क्षेत्र को पार करने के लिए उस पैदल सेना को कितना समय लगा होगा? आखिर उसकी सेना की गति क्या थी? क्या उसकी सेना दिन-रात चौबीसों घंटे चलते ही रहती थी या उन्हें पड़ाव भी डालना पड़ता रहा होगा?

भारत के क्षेत्र उसके लिए अनजाने स्थान थे इसलिए भारत के विभिन्न आक्रमणस्थलों तक पहुँचने के मार्गों का पता लगाने के लिए अवश्य ही उसे अपने जासूसों के साथ ही स्थानीय लोगों की सहायता भी लेनी पड़ती रही होगी। अपने आक्रमण के लिए सहायता पहुँचाने वाले स्थानीय लोग क्या तत्काल प्राप्त हो जाया करते थे? और यदि तत्काल नहीं प्राप्त होते थे तो वैसे लोगों को बहलाने-फुसलाने या खरीदने के लिए उसे कितना समय लगता था?

गज़नी से विभिन्न आक्रमण स्थलो तक के मार्ग भौगोलिक रूप से सिर्फ मैदानी ही नहीं थे जो कि आसानी के साथ पार कर लिए जा सकते हैं, बल्कि उनके मध्य अनेक अगम्य पर्वत-मालाएँ, अथाह जल को कलकल ध्वनि से प्रवाहित करने वाली चौड़ी तथा गहरी नदियाँ, जलरहित, कँटीले कैक्टस के रक्तवर्ण पुष्पों तथा रेत से सुसज्जित विशाल मरुभूमि भी थे। इन दुर्गम पहाड़ों-नदियों-मरुभूमि आदि को वह तथा उसकी सेना कैसे और कितने समय में पार किया करती थी?

मार्ग के मध्य अवश्य ही अनेक छोटे-मोटे राज्य, जागीर आदि भी थे जिनकी सुरक्षा के लिए उनके अपने दुर्ग थे। हो सकता है कि उनमें से अधिकांश ने महमूद के समक्ष समर्पण कर दिया हो, पर कुछ ने अवश्य ही युद्ध किया होगा। उस काल में युद्ध के दौरान अनेक बार दुर्गों को महीनों तक घेरा भी डालना होता था। ऐसे दुर्गों को जीतने के लिए उसकी सेना ने कितने समय तक घेरा डाला होगा?

इतिहास यह भी बताता है कि प्रायः अपनी जीत के पश्चात् वह लूटी अपार सम्पदा को सुरक्षित करने तथा युद्धबन्दियों को गुलाम के रूप में बेचने के लिए वापस गज़नी चला जाया करता था। कुछ काल वहाँ रह कर वह पुनः आक्रमण के लिए भारत आता था। इस प्रकार बार-बार आने-जाने में उसने कितना समय व्यतीत किया होगा?

उस काल की परिस्थितियों तथा सुविधाओं को दृष्टिगत रखते हुए सत्रह बार आक्रमण करने के लिए क्या सत्ताइस-अट्ठाइस वर्षों का समय पर्याप्त है? यदि यह समय पर्याप्त नहीं है तो गज़नी के महमूद द्वारा भारत पर सत्रह बार आक्रमण करना इतिहास का सच है या मात्र कपोल कल्पना?

8 comments:

सुज्ञ said...

महमूद गज़नवी के 17 बार आक्रमण के इतिहास आधार चन्द्र बरदायी का ग्रंथ 'पृथ्वीराज रासो' है। और इतिहासकार इस रासो को पूर्ण प्रमाणिक नहिं मानते। सही भी है इसमें कई अतिश्योक्तिपूर्ण कथन है।
17 बार आक्रमण की बात भी अतिश्योक्ति है। तीन या चार आक्रमण के प्रमाण मिलते ही है।

Rahul Singh said...

मेरा विश्‍वास है कि उसने सत्रह नहीं बल्कि साढ़े सत्रह (मुहावरे वाला) बार आक्रमण किया होगा.

प्रवीण पाण्डेय said...

आपके अवलोकन से तो नहीं लगता कि 17 बार आक्रमण किया।

डॉ टी एस दराल said...

इतिहास की बहुत सी घटनाओं का कोई ठोस प्रमाण नहीं है । फिर भी मान्यताएं हैं ।

हमें तो बस एक बात पसंद है कि इस तथाकथित घटना से एक अच्छा प्रेरणात्मक उदाहरण मिलता है ।
काम को करते रहो जब तक सफलता न मिल जाए ।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

philhal hamla to kiya, ab saat baar kiya ya satrah...

राज भाटिय़ा said...

मुझे लगता हे यह तो मुहावरा बनाने के लिये कहते हे, वरना यह मुमकिन नही, धन्यवाद इस जानकारी के लिये

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

विचारणीय पोस्ट ..

नीरज मुसाफ़िर said...

हां, अब तक हम भी सत्रह-सत्रह पढते आ रहे हैं। लेकिन इस दिशा में दिमाग ने कभी काम किया ही नहीं।
बात तो आपकी भी ठीक है।