एक फिल्म आई थी "साधू और शैतान" और उस फिल्म के कामेडियन हीरो नायक ने उसमें एक डॉयलाग बोला था "सच बोलूँगा तो माँ मारेगी और झूठ बोलूँगा तो बाप कुत्ता खायेगा"।
मेरे साथ गाहे-बगाहे ऐसी परिस्थितियाँ आती रहती हैं कि 'सच बोलूँगा तो माँ मारेगी और झूठ बोलूँगा तो बाप कुत्ता खायेगा'। स्वैच्छिक सेवानिवृति के बाद इंटरनेट में झक मारते रहता हूँ ताकि कुछ कमाई हो जाये। एक जगह 'सेल्फ ड्राफ्टिंग' का काम भी करता हूँ। इंटरनेट से चाहे कमाई हो या न हो पर जहाँ काम करने जाता हूँ वहाँ से तो कुछ रुपये बन ही जाते हैं।
सच पूछो तो ये 'रुपया' भी बहुत कमीनी चीज है। जिसके पास नहीं है क्या क्या नहीं करवाता उससे? अकरणीय से भी अकरणीय करवाता है, इज्जत-आबरू तक उतार देता है। जिसके पास नहीं है उसे तो तंगाता ही है और जिसके पास है उसे भी बर्बाद करने पर तुला रहता है। पर किसी ने ठीक ही कहा है कि संसार में रुपया ही सब कुछ नहीं है, रुपये से बढ़ कर भी बहुत सारी चीजें हैं पर मुश्किल यह है कि वे चीजें भी रुपये से ही खरीदनी पड़ती हैं।
आप यही सोच रहे हैं न कि मैं नशा करके लिखने बैठा हूँ, बहक गया हूँ, विषय कुछ है और लिख कुछ रहा हूँ। पर ऐसा कतइ नहीं है। मैं विषयान्तर नहीं कर रहा हूँ जनाब, आ रहा हूँ विषय पर। बात यह है कि मैं झूठ को पसंद नहीं करता। अब आप सोचेंगे कि मैं धार्मिक हूँ, आदर्शवादी हूँ, महान हूँ, ये हूँ, वो हूँ, न जाने क्या क्या हूँ और इसीलिये झूठ को पसंद नहीं करता। पर आपकी सोच बिल्कुल गलत है। दरअसल मैं जब भी झूठ बोलता हूँ तो तत्काल पकड़ा जाता हूँ और सिर्फ इसीलिये मैं झूठ को पसंद नहीं करता। हमेशा छीछालेदर करवा देता है मेरा।
तो मैं बता रहा था कि मैं कहीं पर सेल्फ ड्राफ्टिंग का काम भी करता हूँ। मेरा पूरा काम 'करेस्पांडिंग' का है। सारी चिट्ठी-पत्री अंग्रेजी में होती हैं और 'बॉस' अंग्रजी समझ तो लेता है पर 'ड्राफ्टिंग' नहीं कर पाता। इसीलिये मुझे क्या लिखना है हिंदी में बताया जाता है और मैं उसका अंग्रेजी में अनुवाद कर के तथा टाइप कर के दे देता हूँ। और इसी काम की वजह से ऐसी परिस्थिति में फँस जाता हूँ कि 'सच बोलूँगा तो माँ मारेगी और झूठ बोलूँगा तो बाप कुत्ता खायेगा'।
आगे की बात लिखने के पहले यह बता दूँ कि यह कहावत कैसे बनी। बात यह है कि लड़के के बाप ने बड़े शौक से मटन लाकर अपनी पत्नी को दिया और बोला कि इसे तैयार कर के रखना। ड्यूटी से वापस आकर खाउँगा। लड़के की माँ ने मटन बनाया और कैसा बना है जानने के लिये चखा। मटन इतना जोरदार बना था लड़के की माँ को बार-बार उसे चखने की इच्छा होने लगी और चखते-चखते वह पूरा मटन चट कर गई। मटन के खत्म हो जाने पर उसे भय ने घेरा कि पति वापस आयेगा तो बहुत नाराज होगा। उसे एक उपाय सूझा, उसने पास के मुहल्ले के एक आवारा कुत्ते को मारा और उसके मटन को पका कर रख दिया। लड़का सब कुछ देख रहा था और परेशान था कि क्या करूँ। 'सच बोलूँगा तो माँ मारेगी और झूठ बोलूँगा तो बाप कुत्ता खायेगा'।
हाँ तो जहाँ मैं सेल्फ ड्राफ्टिंग का काम करता हूँ वहाँ का 'बॉस' बहुत रुपये वाला आदमी है। बहुत बड़ा व्यवसाय है उसका। पर वहाँ पर सच का प्रयोग 'दाल में नमक' के हिसाब से किया जाता है। रुपये यदि लेने के निकलते हैं तो देनदार को फोन पर फोन करके ऐसा तंगाया जाता है कि 'नानी याद आ जाये'। जितना लेना निकलता है उसमें पता नहीं क्या क्या चार्जेस, ब्याज आदि जोड़ कर अधिक से अधिक बताये जाते हैं। और अगर रुपये किसी को देने के निकलते हैं तो ऐसे आदमी को फोन अटेंड करने के लिये कहा जाता है जिसे कि लेनदार जानता ही नहीं। (आजकल कॉलर आईडी फोन और मोबाइल होने के कारण पता तो चल ही जाता है कि फोन किसका है।) और फोन अटेंड करने वाला बड़े मजे के साथ कह देता है कि 'बॉस' आवश्यक मीटिंग में है, मुख्यालय से बाहर गया है आदि आदि। वैसे 'बॉस' भी अपनी जगह सही है, यदि व्यवसायी झूठ नहीं बोलेगा तो रुपये कैसे कमायेगा।
तो साहब झूठ बोलने तक ही सीमित रहे वहाँ तक तो ठीक है पर मुझसे तो चिट्ठी पत्री में भी झूठ लिखने के लिये भी कहा जाता है। मैं मना करने की कोशिश करता हूँ तो 'बॉस' कहता है, "अरे अवधिया जी, बोलने से ही तो आपका झूठ पकड़ा जाता है न, आपके चेहरे के भाव देख कर या आपकी आवाज सुन कर। पर चिट्ठी में न तो आपके चेहरा दिखाई पड़ता है और न ही आपकी आवाज सुनाई पड़ती है। फिर क्यों मना करते हैं आप?"
अब क्या करूँ साहब, झूठ लिखने के लिये अंतरात्मा (यदि इस नाम की कोई वस्तु हो तो) धिक्कारती है और 'बास' के अपने साथ अच्छे व्यवहार तथा रुपये कमाने की लालसा के कारण काम छोड़ना हो नहीं पाता। बस इसीलिये ऐसी परिस्थितियों में फँस जाता हूँ कि 'सच बोलूँगा तो माँ मारेगी और झूठ बोलूँगा तो बाप कुत्ता खायेगा'।
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Friday, July 2, 2010
Monday, May 10, 2010
प्रसन्नता की बात है कि हम ब्लोगर्स को माया नहीं व्यापती!
माया याने कि धन याने कि रुपया!
हर किसी को व्यापती है यह, हर कोई दीवाना है इसका और हर कोई भाग रहा है इसके पीछे। सभी को सिर्फ यही चिन्ता खाते रहती है कि चार पैसे कैसे बना लिये जायें? कोई कुछ कार्य करता है तो उस कार्य के बदले में सिर्फ धन की ही अभिलाषा रखता है। जिसे देखो वही "हाय पैसा!" "हाय पैसा!!" कर रहा है। धन कमाने के लिये आदमी अपना सुख-चैन यहाँ तक कि खाना-पीना तक को भी भूल जाता है।
ऐसा नहीं है कि संसार में रुपया ही सबसे बड़ा है, रुपये से बढ़ कर एक से एक मूल्यवान वस्तुएँ हैं जैसे कि विद्या, शिक्षा, ज्ञान, योग्यता, चिकित्सा आदि, किन्तु मुश्किल यह है कि, आज के जमाने में, वे वस्तुएँ भी केवल रुपये अदा करके प्राप्त की जा सकती हैं।
धन की यह महिमा आज से ही नहीं बल्कि सैकड़ों हजारों-वर्षों से चलती चली आ रही है। लगभग सौ साल पहले लिखी गई पुस्तक "भूतनाथ" में 'खत्री' जी लिखते हैं:
कितने महान हैं हम ब्लोगर! माया हमें व्यापती ही नहीं है!!
हर किसी को व्यापती है यह, हर कोई दीवाना है इसका और हर कोई भाग रहा है इसके पीछे। सभी को सिर्फ यही चिन्ता खाते रहती है कि चार पैसे कैसे बना लिये जायें? कोई कुछ कार्य करता है तो उस कार्य के बदले में सिर्फ धन की ही अभिलाषा रखता है। जिसे देखो वही "हाय पैसा!" "हाय पैसा!!" कर रहा है। धन कमाने के लिये आदमी अपना सुख-चैन यहाँ तक कि खाना-पीना तक को भी भूल जाता है।
ऐसा नहीं है कि संसार में रुपया ही सबसे बड़ा है, रुपये से बढ़ कर एक से एक मूल्यवान वस्तुएँ हैं जैसे कि विद्या, शिक्षा, ज्ञान, योग्यता, चिकित्सा आदि, किन्तु मुश्किल यह है कि, आज के जमाने में, वे वस्तुएँ भी केवल रुपये अदा करके प्राप्त की जा सकती हैं।
धन की यह महिमा आज से ही नहीं बल्कि सैकड़ों हजारों-वर्षों से चलती चली आ रही है। लगभग सौ साल पहले लिखी गई पुस्तक "भूतनाथ" में 'खत्री' जी लिखते हैं:
अहा, दुनिया में रुपया भी एक अजीब चीज है! इसकी आँच को सह जाना हँसी-खेल नहीं है। इसे देखकर जिसके मुँह में पानी न भर आवे समझ लो कि वह पूरा महात्मा है, पूरा तपस्वी है और सचमुच का देवता है। इस कमबख्त की बदौलत बड़े-बड़े घर सत्यानाश हो जाते हैं, भाई-भाई में बिगाड़ हो जाता है, दोस्तों की दोस्ती में बट्टा लग जाता है, जोरू और खसम का रिश्ता कच्चे धागे से भी ज्यादे कमजोर होकर टूट जाता है, और ईमानदारी की साफ और सफेद चादर में ऐसा धब्बा लग जाता है जो किसी तरह छुड़ाये नहीं छूटता। इसे देखकर जो धोखे में न पड़ा, इसे देखकर जिसका ईमान न टला, और इसे जिसने हाथ-पैर का मैल समझा, बेशक कहना पड़ेगा कि उस पर ईश्वर की कृपा है और वही मुक्ति का पात्र है।किन्तु प्रसन्नता की बात है कि हम ब्लोगर्स को यह माया नहीं व्यापती! अंग्रेजी तथा अन्य भाषा के ब्लोग्स में भी ब्लोगर्स पोस्ट लिखते हैं तो धन कमाने के लिये। वे लिखते हैं किसी उत्पाद को प्रमोट करने के लिये ताकि उत्पाद उनके ब्लोग के माध्यम से बिके और उनका कमीशन बने। पर हमें भला ब्लोग से कमाई से क्या लेना-देना है? क्यों सोचें हम उन तरीकों के बारे में जिनसे ब्लोग के माध्यम लोगों का भला होने के साथ ही साथ हम ब्लोगर्स की कमाई भी हो? हम तो खुश हैं एक से एक विवाद करके? विवाद करने में, एक-दूसरे की टाँगें खींचने में, छिद्राण्वेशन करने में जो सुख है वह धन प्राप्त करने में भला कहाँ है!
कितने महान हैं हम ब्लोगर! माया हमें व्यापती ही नहीं है!!
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